होम ब्लॉग पेज 3152

थम नहीं रहीं आजम खान की मुश्किलें, विवादित टिप्पणी से पीछा छूटा तो बेटा पहुंचा हिरासत में

लोकसभा सांसद और समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. उनके द्वारा लोकसभा में पीठासीन सभापति रमा देवी पर अभद्र टिप्पणी का मुद्दा अभी शांत ही हुआ था कि बुधवार को उनके पुत्र और सपा विधायक अब्दुल्ला आजम खान को उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिरासत में ले लिया. अब्दुल्ला खान अब्दुल्ला स्वार विधानसभा सीट से विधायक हैं और यूपी की अखिलेश सरकार में मंत्री रहे चुके हैं. अब्दुल्ला पर पासपोर्ट बनवाने के दौरान भर्जी डॉक्यूमेंट और गलत जानकारी देने का आरोप है, इसके चलते अब्दुल्ला के खिलाफ बीजेपी नेता आकाश सक्सेना ने धोखाधड़ी और सरकारी कामकाज में गफलतबाजी करने की रिपोर्ट दर्ज करायी. आकाश सक्सेना की रिपोर्ट पर यूपी पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

अधिक पढ़ें: सोमवार को होगा आजम खान का निलम्बन!

बता दें, इससे पहले लोकसभा में पीठासीन सभापति रमा देवी पर आपत्तिजनक टिप्पणी कहने के चलते आजम खान पर सदन में जमकर हंगामा हुआ, यहां तक की आजम खान दो बार इस्तीफे की पेशकश करते हुए सदन से बाहर चले गए. इस मामले पर सत्ताधारी पार्टी के साथ विपक्ष ने भी जमकर शोर शराबा किया. बाद में स्पीकर ओम बिड़ला ने सर्वदल बैठक करते हुए इस बात का निष्कर्ष निकाला कि आजम खान सदन में सबके सामने रमा देवी से माफी मांगेंगे. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनपर कड़ा एक्शन लिया जाएगा. बाद में सोमवार को आजम खान ने लोकसभा में अपने कारनामे पर दो बार माफी मांगी. उन्हें सदन में फिर से ऐसा कुछ न करने की हिदायत भी मिली.

अधिक पढ़ें: BJP सांसद रमा देवी से ‘अभद्र’ बात कहने पर आजम खान ने मांगी माफी

सोमवार को लोकसभा का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि दूसरी मुसीबत आजम खान का पीछा कर रही थी. मंगलवार को यूपी प्रशासन ने रामपुर में आजम खान की जौहर यूनिवर्सिटी पर छापा मारा. यहां पुलिस को करीब 300 से ज्यादा चोरी की किताबें मिली. ये सभी किताबें करीब 100 से 150 साल पुरानी बताई जा रही हैं. इन अति प्राचीन किताबों की चोरी 1774 में रामपुर में स्थापित मदरसा आलिया से हुई थ़ी. इनमें से कुछ प्राचीन पांडूलिपी भी हैं. पुलिस ने इस मामले में यूनिवर्सिटी के चार कर्मचारियों को हिरासत में लिया है. प्रशासन ने आजम खान को क्षतिपूर्ति के रूप में करीब 3.28 करोड़ रुपये हर्जाने के तौर पर देने का निर्देश दिया है.

वहीं उत्तर प्रदेश पुलिस ने जौहर यूनिवर्सिटी के पदाधिकारी आले हसन के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया है. वे आजम खान के बेहद करीबी सहयोगी माने जाते हैं. जमीन पर कब्जा करने और जबरन बसूली के 27 मामलों में आरोपी हसन के खिलाफ एलओसी जारी कर दिया गया है.

अधिक पढ़ें: बीजेपी नेता जया प्रदा ने आजम खान के निर्वाचन को कोर्ट में दी चुनौती

ताजा मामले में आजम खान को एक बेशकीमती जमीन के घोटाले में आरोपी बनाया गया है. उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने उनको रामपुर में लग्जरी रिसॉर्ट ‘हमसफर’ के लिए सरकारी जमीन कब्जाने को लेकर नोटिस जारी किया है. जिला प्रशासन ने सरकारी जमीन के एक बड़े टुकड़े को कब्जाने के संबंध में अनियमितताओं का आरोप लगाया है. इस जमीन पर गेस्ट हाउस का निर्माण हुआ है. आजम खान पर पहले से ही जमीन हड़पने के 26 मामले दर्ज हैं और इन मामलों के चलते उनको भूमाफिया घोषित किया जा चुका है.

गहलोत सरकार के मॉब लिंचिंग के खिलाफ विधेयक पर गरमाई राजनीति

कुलपति को हटाने के प्रावधान वाले संशोधन विधेयक पर तीखी बहस

राजस्थान में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधारने की दिशा में कांग्रेस की गहलोत सरकार ने विधानसभा में दो विधेयक पारित किए, जो मंगलवार को ध्वनिमत से पारित हो गए. इनमें राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय की विधियां (संशोधन) विधेयक 2019 तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग ने पेश किया और राजस्थान विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय के अध्यापक एवं अधिकारी (नियुक्ति के लिए चयन) (संशोधन) विधेयक 2019 उच्च शिक्षा मंत्री भंवरसिंह भाटी ने पेश किया. इसमें प्रावधान है कि राज्य के किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति पर भ्रष्टाचार का आरोप साबित होने पर उसे राज्यपाल के आदेश से हटाया जा सकता है. इस विधेयक पर पक्ष विपक्ष में तीखी बहस हुई.

सत्ता पक्ष के विधायकों ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि हम विश्वविद्यालय के कुलपति को सिर्फ शिक्षक नियुक्ति का काम क्यों देना चाहते हैं? उनका काम अकादमिक है. भर्ती का कार्य कार्यकारी अधिकारी का है. वहीं भाजपा विधायकों ने इस विधेयक को विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के खिलाफ बताते हुए काला कानून कहा. उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालयों का बेड़ा गर्क करने वाला राजनीतिक कदम है.

कांग्रेस विधायकों का कहना था कि विश्वविद्यालय के कुलपति का पद इतना निरंकुश कैसे हो सकता है, जिसको हटाने का कोई प्रावधान ही न हो. देश में शीर्ष से लेकर हर पद पर बैठे व्यक्ति को हटाने के कानूनी प्रावधान हैं, लेकिन कुलपति कितना ही भ्रष्टाचार करे, उसके काम में कितनी ही गलतियां हों, फिर भी उसे हटाने का कहीं कोई प्रावधान ही नहीं है. पहले विधानसभा में ऐसा हो चुका है जब राजस्थान विश्वविद्यालय के एक कुलपति को हटाने का प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने कहा था कि सदन को इसका अधिकार है या नहीं? कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण कुलपति को नहीं हटाया जा सका.

विधेयक पर बहस में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि यह विधेयक विश्वविद्यालय के कुलपति और शिक्षकों की स्थिति प्राइमरी स्कूल के शिक्षक से भी बुरी कर देगा. इसमें सक्षमता, सत्यनिष्ठा और नैतिक आचरण की शर्त जोड़ी है. सवाल उठाया है कि सत्यनिष्ठा आंकने की कौनसी प्रक्रिया अपनाई जा सकती है. सदस्यों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि हम रोज ही सत्यनिष्टा की शपथ लेते हैं. ईश्वर जानता है हम कैसे काम कर रहे हैं.

उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि संशोधन विधेयक के माध्यम से सरकार ने विश्वविद्यालयों में दखलंदाजी शुरू कर दी है. कुलपति, जो हमारे समाज में मान और सम्मान के प्रतीक होते हैं, एक तरह से उनको अपमानित करने के लिए, कुलपति को हटाने का जो प्रावधान किया जा रहा है, वह विश्वविद्यालय के हित के लिए नहीं है. पहली बार इस तरह का संशोधन किया जा रहा है, जब भी चाहें आप जांच करें. सरकार जांच करने के आधार पर किसी भी प्रतिष्ठित शिक्षाविद की टोपी उछालकर उसे हटा दे. जब यह संशोधन पारित हो जाएगा तो कुलपति सरकार की कठपुतली बन जाएंगे.

राठौड़ ने कहा कि कुलपतियों का सरकारी अधिकारियों के रूप में परिवर्तन का दौर प्रारंभ हो रहा है. नई शिक्षा नीति के बारे में पूरे देश में चर्चा है. प्रारूप जारी हुआ है. राज्य सरकारों से मत मांगा जा रहा है. उच्च शिक्षा संस्थानों को प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता दी जाना चाहिए. विश्वविद्यालयों के साथ खिलवाड़ बंद होना चाहिए.

भाजपा विधायक किरण माहेश्वरी ने कहा कि इस संशोधन के जरिए सरकार विश्वविद्यालयों में भयमुक्त की बजाय भययुक्त वातावरण तैयार करना चाहती है. इससे कुलपति के ऊपर हमेशा तलवार लटकती रहेगी. पता नहीं कब आपको हटा दिया जाएगा. इससे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा. बता दें, किरण माहेश्वरी भाजपा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रह चुकी हैं.

अनिता भदेल ने कहा कि सरकार जल्दबाजी में यह सब कर रही है. 1998 से 2003 के बीच राजीव गांधी स्कूल खोले गए थे. उनमें दसवीं कक्षा की योग्यता वालों को ही शिक्षक बना दिया गया था. अब किस सुधार की उम्मीद कर सकते हैं? अशोक लाहोटी ने कहा कि इससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तशासी व्यवस्था में सरकारी दखल बढ़ेगा. सरकार आज है कल नहीं, लेकिन विश्वविद्यालय रहेंगे. सरकार तो कल कर्नाटक में थी आज नहीं. राजस्थान में भी किसे पता, सरकार कल रहेगी या नहीं.

निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने कहा कि हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2018 में कहा था कि सर्च कमेटी कुलपति पद के लिए उच्च स्तरीय क्षमता और ईमानदारी जरूर देखे. कोर्ट को ऐसा क्यों कहना पड़ा? लोगों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा और कोर्ट को यह टिप्पणी करनी पड़ी. चार विश्वविद्यालयों में भर्तियां निकली, सभी पर विवाद हुआ और भर्ती अटक गई. राजस्थान विश्वविद्यालय में गैर पीएचडी को कुलपति बनाने का काम किसने किया?

उच्च शिक्षा मंत्री भंवरसिंह भाटी ने कहा कि कुलपति के खिलाफ कार्रवाई से पहले सुनवाई का मौका दिया जाएगा. यदि राज्यपाल को सरकार की सूचना पर या अन्य किसी माध्यम से यह जानकारी में आता है कि कुलपति कोई गलत काम कर रहे हैं या शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं, या विश्वविद्यालय के अधिनियम का पालन नहीं किया, पद का दुरुपयोग किया या विश्वविद्यालयों के हितों के खिलाफ काम किया तो कुलाधिपति, जो कि राज्यपाल हैं, राज्य सरकार से परामर्श कर जांच के बाद कुलपति को हटा सकेंगे. जांच के दौरान कुलपति को निलंबित भी किया जा सकता है.

तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग ने कहा कि यह संशोधन विधेयक भारत सरकार की मंशा के अनुरूप ही राज्यपाल की अनुमति से लाया गया है. उन्होंने पिछली भाजपा सरकार पर कई आरोप लगाए.

Gajendra Singh का अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद संशोधन विधेयक पर निराला अंदाज

गहलोत सरकार के भीड़ की हिंसा के खिलाफ विधेयक पर गरमाई राजनीति

देश में भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) और प्रेम विवाह करने वाले युवक-युवतियों की इज्जत की खातिर हत्या (ऑनर किलिंग) के मामले के मामले बढ़ रहे हैं. भीड़ की हिंसा में देश भर में 65 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. ऐसा करने वाले को कोई सख्त सजा मिली हो, इसके उदाहरण भी सामने नहीं आए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए कानून बनाने को कहा है. देश में राजस्थान पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग दोनों पर कानून बनाने की पहल की है. गहलोत ने अपने बजट भाषण में इस तरह का कानून बनाने की घोषणा की थी. यह समय की जरूरत है, लेकिन इस पर भी राजनीति शुरू हो गई है.

इन दोनों विधेयकों पर अब 5 अगस्त से बहस होगी. इससे पहले ही सदन के बाहर राजनीतिक बयानबाजी का सिलसिला जोर पकड़ने लगा है. भाजपा की तरफ से नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उपनेता राजेन्द्र राठौड़, विधायक अशोक लाहोटी ने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक क्रेडिट लेने के लिए हड़बड़ी में ये बिल ला रही है. विधेयक लाने के पीछे सरकार की मंशा लोगों को राहत देने से ज्यादा राजनीतिक क्रेडिट लेने की है. गौरतलब है कि कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी भीड़ की हिंसा के मामले उठाती रही है.

कटारिया ने कहा कि बिल लाने की बहुत आवश्यकता नहीं है. कानून ऐसे मामलों में हमेशा सजा देता है. सिर्फ वर्ग विशेष के साथ ऐसा होता है, ऐसा नहीं है. सरकार इसे सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बना रही है. लेकिन फिर भी बिल लाया जा रहा है तो हम इस पर चर्चा करेंगे. राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि नए कानून बनाने से अपराध नहीं रुकते. इन अपराधों के लिए आईपीसी में पहले ही प्रावधान हैं. अपराध रोकने के लिए सरकार और अफसरों की मंशा मायने रखती है.

उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा, कोई भी व्यक्ति कानून हाथ में न ले. हर व्यक्ति की सरकार सुरक्षा करे. अपराध करने वालों को सजा दिलवाए. इसको देखते हुए राज्य सरकार की ओर से ऑनर किलिंग और मॉब लिंचिंग को लेकर विधानसभा में बिल पेश किया गया है. जल्द ही ये बिल पारित हो जाएंगे. इनके लागू होने पर अपराधियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि अपनी इच्छा से शादी करने वाले वयस्क युवक-युवतियों को मार दिया जाता है. अब सरकार कानून के जरिए ऐसे अपराध रोकेगी. अब यह गैर जमानती अपराध बन जाएगा, जिसके लिए मौत की सजा, आजीवन कारावास और पांच लाख रु. तक के जुर्माने का प्रावधान होगा. मॉब लिंचिंग की घटनाएं भी राजस्थान में हो चुकी हैं.

इस तरह कांग्रेस इन विधेयकों को जनहित में बता रही है, जबकि भाजपा नेता इसे गहलोत सरकार का राजनीतिक क्रेडिट लेने का प्रयास बता रहे हैं. देश में भीड़ की हिंसा के जितने मामले हुए हैं, उनमें राजस्थान भी मुख्य रूप से शामिल है. मोहम्मद अखलाक से लेकर रकबर खान तक…. पिछले चार सालों में मॉब लिंचिंग के 134 मामले सामने आ चुके हैं. एक वेबसाइट के मुताबिक इन मामलों में 2015 से अब तक 68 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें दलितों पर हुए अत्याचार भी शामिल हैं. लेकिन ज्यादातर मामले गौरक्षा के नाम पर हुई भीड़ की हिंसा के हैं.

गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा के तीन मामले 2014 में सामने आए थे, जिनमें 11 लोग घायल हुए. अगले साल 2015 में ऐसे मामले बढ़कर 12 हो गए. इनमें 10 लोगों को पीट-पीटकर मार डाला गया, जबकि 48 लोग घायल हुए. 2016 में गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा दो गुना हो गई. ऐसे 24 मामलों में आठ लोगों की मौत हुई, जबकि 58 लोग घायल हुए. 2017 में ऐसी 37 घटनाओं में 11 लोगों की मौत हुई और 152 घायल हुए. 2018 में नौ घटनाओं में पांच लोग मारे गए और 16 घायल हुए. कुल मिलाकर गौरक्षा के नाम पर अब तक भीड़ की हिंसा की 85 घटनाएं हो चुकी है. इनमें 34 लोगों की हत्या कर दी गई, जबकि 289 लोगों को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया.

‘प्रियंका गांधी कांग्रेस की बागडोर संभालने के लिए सबसे सही विकल्प’

राज्यसभा में बिना बहुमत कैसे पास हुआ तीन तलाक बिल, जानिए क्या रही मोदी सरकार की रणनीति

मंगलवार, 30 जुलाई, 2019 देश की संसद के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा. मंगलवार को मोदी 2.0 सरकार ने तीन तलाक बिल को राज्यसभा से पास करा लिया. जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के पास लोकसभा की तरह राज्यसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है. लेकिन बहुमत न होने के बावजूद तीन तलाक बिल यानि द मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल, 2019 राज्यसभा में बहुमत के साथ पास हो गया. बिल के पक्ष में 99 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 84 वोट पड़े. यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता कही जा सकती है. सदियों से चली आ रही कुप्रथा खत्म हो गयी है. अब इस बिल को कानून बनने के लिए केवल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी का इंतजार है.

बता दें, विधेयक में तीन तलाक का अपराध सिद्ध होने पर पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान है. लेकिन सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत न होने के बाद भी इस बिल का पास होना सबको अचम्भित करता है जबकि एनडीए का प्रमुख घटक दल जदयू तीन तलाक बिल के विरोध में था. इसके लिये बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने किस रणनीति के तहत कार्य किया, आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी राजनीतिक सोच और कहानी …

तीन तलाक बिल दूसरी बार राज्यसभा में पेश हुआ है. पिछली मोदी सरकार में तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश हुआ था लेकिन सेलेक्ट कमेटी के पास अटक कर रह गया था. इस बार राज्यसभा में तीन तलाक बिल का पास होना उसी दिन पुख्ता हो गया था जब पिछले सप्ताह गुरुवार, 26 जुलाई 2019 को केन्द्र सरकार ने सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक बिल (RTI) राज्यसभा में 75 के मुकाबले 117 वोट से पास करवा लिया था. जबकि यूपीए अध्य्क्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष को एकजुट करते हुए सूचना का अधिकार संशोधन बिल का पुरजोर विरोध किया था. पोलिटॉक्स की टीम ने उसी दिन अपनी खबर में इस बात को पुख्ता कर दिया था कि जिस तरह केन्द्र सरकार ने RTI संशोधन बिल राज्यसभा में पास करवाया है उसी तरह तीन तलाक बिल भी पास हो जाएगा.

यह भी पढ़ें: आरटीआई संशोधन विधेयक के बाद अब तीन तलाक बिल भी होगा पारित!

दरअसल, मंगलवार को राज्यसभा में तीन तलाक बिल को पास कराने में वोटिंग के दौरान राज्यसभा की खाली पड़ी कुर्सियों का अहम योगदान रहा या यूं कहें कि इस बिल का पुरजोर विरोध करने वाले विपक्षी सांसदो का वोटिंग का बहिष्कार करते हुए वॉकआउट करना तीन तलाक बिल को पारित कराने में सबसे बड़ा योगदान साबित हुआ. हमारी राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं जिनमें से 4 खाली हैं. ऐसे में सदन में 241 सदस्य मौजूद हैं. यहां किसी भी विधेयक के बहुमत के लिए 121 सदस्यों की जरूरत है. लेकिन तीन तलाक बिल की वोटिंग के दौरान केवल 183 सांसद ही सदन में मौजूद रहे. ऐसा ही कुछ आरटीआई बिल के दौरान भी हुआ. अब बहुमत के लिए चाहिए थे केवल 92 वोट. जब वोटिंग हुई तो बिल के पक्ष में पड़े 99 वोट और विपक्ष में 84. ऐसे में 15 वोटों के अंतर से तीन तलाक बिल राज्यसभा से पारित हो गया और देश में एक इतिहास कायम हो गया.

पता रहे, मंगलवार को राज्यसभा में तीन तलाक बिल के लिए वोटिंग के दौरान विपक्ष के करीब 20 से ज्यादा सांसद गैरहाजिर रहे. इनमें टीआरएस के 6, टीडीपी के 2 और बीएसपी के 4, टीएमसी के 2, आरजेडी के एक, सीपीआई के एक, केरल कांग्रेस का एक और आईयूएमएल के एक सांसद ने वोटिंग का बहिष्कार किया. राज्यसभा के नामित सदस्य केटीएस तुलसी भी सदन में वोटिंग के दौरान उपस्थित नहीं रहे. एनडीए की सहयोगी जेडीयू के 6 सदस्यों ने भी सदन से वॉकआउट किया.

इसमें से करीब-करीब सभी सदस्य बिल के विरोध में थे. लेकिन इनके सदन में अनुपस्थित होने का पूरा फायदा बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए को हुआ और एनडीए ने आसानी से राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बहुमत हासिल कर दिया. इस तरह एनडीए ने तीन तलाक बिल को 15 वोटों से पारित करा देश में सालों से चल रही मुस्लिम महिलाओं की एक कुप्रथा को जड़ से समाप्त कर दिया. अब इंतजार केवल महामहीम की रजामंदी का है जो जल्दी ही आ जाएगी. मोदी सरकार के इस बिल को लाने के बाद मुस्लिम पुरूषों को जरूर बड़ा झटका लगा हो लेकिन मुस्लिम महिलाओं से किया गया वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर निभाया है.

कर्नाटक और गोवा के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी का ‘ऑपरेशन लोट्स’

कर्नाटक और गोवा में मिली सफलता के बाद अब भारतीय जनता पार्टी का ऑपरेशन लोटस महाराष्ट्र में शुरू हो रहा है. अगर रांकपा अध्यक्ष शरद पवार और भाजपा नेताओं के दावों पर विश्वास करें तो कांग्रेस और एनसीपी के कई विधायक और नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं. रविवार को ही एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने दावा किया था कि राज्य की भाजपा सरकार उनकी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं को तोड़ रही है और उन पर दबाव डाल रही है.

वहीं हाल ही में महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री गिरीश महाजन ने दावा किया है कि कांग्रेस और एनसीपी के 50 से ज्यादा विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और विधानसभा चुनाव से पहले वह पार्टी में शामिल होना चाहते हैं. महाजन का यह बयान ऐसे वक्त आया है, जब शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के कई नेता हाल ही में पार्टी छोड़ चुके हैं.

यह भी पढें: महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन की तैयारियां शुरू

मंगलवार को महाराष्ट्र कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के चार विधायकों जिनमें एनसीपी विधायक संदीप नाईक, कांग्रेस के कालिदास कोलंबकर, वैभव पच्छाद और शिवेंद्र राजे भोसले ने अपनी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. माना जा रहा है कि चारों विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. चारों विधायकों ने महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर हरिभाऊ बागाडे को अपना इस्तीफा सौंपा.

बता दें, पिछले हफ्ते ही मुंबई एनसीपी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सचिव अहिर एनसीपी का दामन छोड़ शिवसेना में शामिल हो गए थे. वहीं एनसीपी की महिला ईकाई की अध्यक्ष चित्रा वाघ ने भी एनसीपी से किनारा कर लिया था. एनसीपी की नेता चित्रा वाघ ने एक महीने पहले ही कहा था कि उनका एनसीपी में कोई भविष्य नहीं है और भाजपा में शामिल होना चाहती हैं, हालांकि वह शिवसेना में शामिल हुई हैं. इस पर शरद पवार ने आरोप लगाया था कि भाजपा सरकार कांग्रेस और एनसीपी को हराने के लिए उनके नेताओं के खिलाफ सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है.

गौरतलब है कि कर्नाटक और गोवा में भी ठीक ऐसा ही हुआ. कर्नाटक में कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली 434 दिन चली जेडीएस-कांग्रेस सरकार को गिराकर वहां बीजेपी की सरकार बन गयी और सत्ता की कमान संभाली बीएस येदियुरप्पा ने. गोवा में भी आॅपरेशन लोट्स के चलते कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. दो तिहाई से ज्यादा होने के चलते प्रदेश में दलबदल कानून भी नहीं लग सकता और बीजेपी ने यहां पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली. गोवा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या विपक्ष में इतनी सी रह गयी कि वो किसी भी बात पर विरोध तक करने के काबिल न रहे.

यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र के भाजपा अध्यक्ष का दावा – 8 से 10 दिन में कांग्रेस-एनसीपी के कई विधायक हमारी पार्टी में शामिल होंगे

अगले दो महीनों बाद महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन उससे पहले ही नेताओं का पाला बदलने का दौर शुरू हो गया है. महाराष्ट्र में बीजेपी के मनसूबों को इस बात से भांप सकते हैं कि हाल में महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार में जल संसाधन मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता गिरीश महाजन ने दावा किया कि राज्य में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के 50 से ज्यादा विधायक उनके संपर्क में हैं और सभी नेता विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होना चाहते हैं. इससे पहले महाराष्‍ट्र में बीजेपी के प्रदेश अध्‍यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने भी यह कहकर हलचल मचा दी थी कि आने वाले 8 से 10 दिनों के भीतर कई कांग्रेसी और एनसीपी के विधायक इस्‍तीफा दे देंगे.

बात करें कांग्रेस की तो महाराष्ट्र कांग्रेस को उस समय बड़ा झटका लगा जब लोकसभा चुनाव की वोटिंग से ऐन वक्त पहले पार्टी के वरिष्‍ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्‍ण विखे पाटिल के बेटे सुजय विखे पाटिल बीजेपी में शामिल हो गए. भाजपा ने उन्हें अहमदनगर सीट से टिकट दिया और उन्हें जीत भी मिली. उसके बाद जून में उनके पिता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने भी भाजपा का दामन थाम लिया और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया. अब विधायक कालिदास कोलाम्बकर भी इस्तीफा दे चुके हैं, कोलाम्बकर मुंबई से सात बार विधायक रह चुके हैं.

वहीं दूसरी ओर, शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी को उसके नेता लगातार अलविदा कह रहे हैं. अकोला से विधायक वैभव पिचड ने शनिवार को घोषणा की थी कि वह सत्ताधारी भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं. एनसीपी की मुंबई इकाई के अध्यक्ष सचिन अहीर और एनसीपी की महाराष्ट्र महिला विंग की अध्यक्ष चित्रा वाघ पहले ही शिवसेना में शामिल हो चुके हैं.

यह भी पढें: महाराष्ट्र- पार्थ और रोहित में से कौन संभालेगा ‘NCP’ की विरासत?

राधाकृष्ण विखे पाटिल और कालिदास कोलाम्बकर जैसे दिग्गज और सीनियर नेताओं का पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल होने से कांग्रेस और एनसीपी की नींव कमजोर होती जा रही है. बता दें, 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में फिलहाल बीजेपी के 135 और शिवसेना के 70 विधायक हैं. यहां दोनों की गठबंधन सरकार है और इसके मुखिया देवेंद्र फडणवीस हैं. एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों की संख्या 60 के करीब है.

मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग बिल विधानसभा में पेश, 5 लाख से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान

मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग पर गहलोत सरकार सख्त

गहलोत सरकार ने मंगलवार को मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए दो विधेयक विधानसभा में पेश किए. पता रहे, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 16 जुलाई को बजट भाषण के जवाब के दौरान मॉब लिंचिंग और आनॅर किलिंग को रोकने के लिए कानून बनाने की घोषणा की थी.

राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने राजस्‍थान सम्‍मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्‍वतंत्रता में हस्‍तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक, 2019 और राजस्‍थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक, 2019 को सदन में पेश किया. देश भर में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर बढ़ते रोष के बीच राजस्थान की गहलोत सरकार ने इस पर कानून बनाने की पहल की है. इसके अनुसार कथित सम्मान के लिए की जाने वाली हिंसा व कृत्य भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है.

गहलोत सरकार राजस्थान में मॉब लिंचिंग और आनॅर किलिंग की घटनाओं को रोकने के लिए नया कानून बनाने जा रही है. दोनों विधेयकों को विधानसभा के चालू सत्र में ही पारित कराने की मंशा के साथ सरकार ने सदन में विधेयक को पेश कर दिया है. ‘राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019’ में 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा के प्रावधान हैं.

‘राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019’ विधानसभा में पेश कर दिया गया. चालू सत्र में ही विधेयक को पारित कराने की मंशा के साथ गहलोत सरकार ये बिल लाई है. इस बिल के प्रारूप में इसके लाने के उद्देश्य और कारणों का भी जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पिछले कुछ समय में लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं, जिनसे लोगों के रोजगार या फिर जानमाल का नुकसान हुआ है. बिल में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका का जिक्र करते हुए कहा गया कि तहसीन पूनावाला बनाम भारत सरकार के मामले में कोर्ट ने लिंचिंग के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने भी जुलाई माह में अपने एक निर्णय में इस संबंध में कानून बनाने की सिफारिश की थी. मॉब लिंचिंग पर लगाम लगाने के मकसद से लाए गए विधेयक के अनुसार, भारत का संविधान समस्त लोगों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता और विधियों के समान संरक्षण के अधिकार देता है. पिछले महीनों में हुई इस तरह की घटनाएं इस बात का प्रमाण है कि मॉब लिंचिंग के कारण व्यक्तियों की जीविका की हानि हुई है या उनकी मृत्यु हुई है.

विधानसभा में पेश विधेयक ‘राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019’ में मॉब की परिभाषा स्पष्ट करते हुए इसमें दो या दो से ज्यादा लोगों के समूह को रखा है. इस विधेयक के जरिए सरकार ने लिंचिंग रोकने के लिए नोडल अधिकारी लगाने की बात कही है, यह नोडल अधिकारी पुलिस महानिदेशक की तरफ से नियुक्त किया जाएगा जो कि कम से कम पुलिस महानिरीक्षक यानी आईजी रैंक का अधिकारी होगा. इस विधेयक के अंतर्गत थाने के स्तर पर थानाधिकारी को इस मामले में कार्यवाही करने के अधिकार दिए गए हैं. यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी इस कानून के तहत सभी अपराधों को घटित होने से पहले रोकने के लिए अपनी क्षमता अनुसार हर संभव कार्रवाई करेगा.

विधानसभा में पेश किए गए विधेयक के अनुसार मॉब लिंचिंग की घटनाओं में दोषी पाये गए आरोपी को सात साल की सजा या एक लाख रुपये तक का अधिकतम जुर्माने का प्रावधान है. जबकि लिंचिंग की घटना में पीड़ित के गंभीर घायल होने पर आरोपी को दस साल तक कि सजा या पच्चीस हजार से तीन लाख तक के जुर्माने का प्रावधान रखा गया है. और अगर लिंचिंग के घटना दौरान पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो धारा 302 के तहत अभियोग चलाया जाएगा और आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान इस विधेयक में किया गया है. इसके साथ ही लिंचिंग में परोक्ष रूप से भूमिका निभाने वाले लोगों के लिए भी षड्यंत्र में शामिल मानकर अभियोग चलाया जाएगा. ऐसे आरोप साबित होने पर सह-अभियुक्त को भी पांच साल तक की सजा का प्रावधान इस बिल में रखा गया है.

गौरतलब है कि मंगलवार को ही राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बहस के दौरान कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने केन्द्र सरकार से कहा कि उसे मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार इस मसले पर कुछ करने से पीछे हट रही है. अब इसे इत्तेफाक गई कहिये की मंगलवार को जब राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद अपनी बात रख रहे थे तब तक राजस्थान विधानसभा में मॉब लिंचिंग पर पर बिल पेश किया जा चुका था.

पता रहे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र के दौरान 16 जुलाई को बजट भाषण के जवाब के दौरान मॉब लिंचिंग और आनॅर किलिंग को रोकने के लिए कानून बनाने की घोषणा की थी.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat