गहलोत सरकार ने मंगलवार को मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए दो विधेयक विधानसभा में पेश किए. पता रहे, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 16 जुलाई को बजट भाषण के जवाब के दौरान मॉब लिंचिंग और आनॅर किलिंग को रोकने के लिए कानून बनाने की घोषणा की थी.
राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक, 2019 और राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक, 2019 को सदन में पेश किया. देश भर में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर बढ़ते रोष के बीच राजस्थान की गहलोत सरकार ने इस पर कानून बनाने की पहल की है. इसके अनुसार कथित सम्मान के लिए की जाने वाली हिंसा व कृत्य भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है.
गहलोत सरकार राजस्थान में मॉब लिंचिंग और आनॅर किलिंग की घटनाओं को रोकने के लिए नया कानून बनाने जा रही है. दोनों विधेयकों को विधानसभा के चालू सत्र में ही पारित कराने की मंशा के साथ सरकार ने सदन में विधेयक को पेश कर दिया है. ‘राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019’ में 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा के प्रावधान हैं.
‘राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019’ विधानसभा में पेश कर दिया गया. चालू सत्र में ही विधेयक को पारित कराने की मंशा के साथ गहलोत सरकार ये बिल लाई है. इस बिल के प्रारूप में इसके लाने के उद्देश्य और कारणों का भी जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पिछले कुछ समय में लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं, जिनसे लोगों के रोजगार या फिर जानमाल का नुकसान हुआ है. बिल में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका का जिक्र करते हुए कहा गया कि तहसीन पूनावाला बनाम भारत सरकार के मामले में कोर्ट ने लिंचिंग के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने भी जुलाई माह में अपने एक निर्णय में इस संबंध में कानून बनाने की सिफारिश की थी. मॉब लिंचिंग पर लगाम लगाने के मकसद से लाए गए विधेयक के अनुसार, भारत का संविधान समस्त लोगों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता और विधियों के समान संरक्षण के अधिकार देता है. पिछले महीनों में हुई इस तरह की घटनाएं इस बात का प्रमाण है कि मॉब लिंचिंग के कारण व्यक्तियों की जीविका की हानि हुई है या उनकी मृत्यु हुई है.
विधानसभा में पेश विधेयक ‘राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019’ में मॉब की परिभाषा स्पष्ट करते हुए इसमें दो या दो से ज्यादा लोगों के समूह को रखा है. इस विधेयक के जरिए सरकार ने लिंचिंग रोकने के लिए नोडल अधिकारी लगाने की बात कही है, यह नोडल अधिकारी पुलिस महानिदेशक की तरफ से नियुक्त किया जाएगा जो कि कम से कम पुलिस महानिरीक्षक यानी आईजी रैंक का अधिकारी होगा. इस विधेयक के अंतर्गत थाने के स्तर पर थानाधिकारी को इस मामले में कार्यवाही करने के अधिकार दिए गए हैं. यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी इस कानून के तहत सभी अपराधों को घटित होने से पहले रोकने के लिए अपनी क्षमता अनुसार हर संभव कार्रवाई करेगा.
विधानसभा में पेश किए गए विधेयक के अनुसार मॉब लिंचिंग की घटनाओं में दोषी पाये गए आरोपी को सात साल की सजा या एक लाख रुपये तक का अधिकतम जुर्माने का प्रावधान है. जबकि लिंचिंग की घटना में पीड़ित के गंभीर घायल होने पर आरोपी को दस साल तक कि सजा या पच्चीस हजार से तीन लाख तक के जुर्माने का प्रावधान रखा गया है. और अगर लिंचिंग के घटना दौरान पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो धारा 302 के तहत अभियोग चलाया जाएगा और आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान इस विधेयक में किया गया है. इसके साथ ही लिंचिंग में परोक्ष रूप से भूमिका निभाने वाले लोगों के लिए भी षड्यंत्र में शामिल मानकर अभियोग चलाया जाएगा. ऐसे आरोप साबित होने पर सह-अभियुक्त को भी पांच साल तक की सजा का प्रावधान इस बिल में रखा गया है.
गौरतलब है कि मंगलवार को ही राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बहस के दौरान कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने केन्द्र सरकार से कहा कि उसे मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार इस मसले पर कुछ करने से पीछे हट रही है. अब इसे इत्तेफाक गई कहिये की मंगलवार को जब राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद अपनी बात रख रहे थे तब तक राजस्थान विधानसभा में मॉब लिंचिंग पर पर बिल पेश किया जा चुका था.
पता रहे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र के दौरान 16 जुलाई को बजट भाषण के जवाब के दौरान मॉब लिंचिंग और आनॅर किलिंग को रोकने के लिए कानून बनाने की घोषणा की थी.