मंगलवार, 30 जुलाई, 2019 देश की संसद के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा. मंगलवार को मोदी 2.0 सरकार ने तीन तलाक बिल को राज्यसभा से पास करा लिया. जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के पास लोकसभा की तरह राज्यसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है. लेकिन बहुमत न होने के बावजूद तीन तलाक बिल यानि द मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल, 2019 राज्यसभा में बहुमत के साथ पास हो गया. बिल के पक्ष में 99 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 84 वोट पड़े. यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता कही जा सकती है. सदियों से चली आ रही कुप्रथा खत्म हो गयी है. अब इस बिल को कानून बनने के लिए केवल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी का इंतजार है.
बता दें, विधेयक में तीन तलाक का अपराध सिद्ध होने पर पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान है. लेकिन सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत न होने के बाद भी इस बिल का पास होना सबको अचम्भित करता है जबकि एनडीए का प्रमुख घटक दल जदयू तीन तलाक बिल के विरोध में था. इसके लिये बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने किस रणनीति के तहत कार्य किया, आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी राजनीतिक सोच और कहानी …
तीन तलाक बिल दूसरी बार राज्यसभा में पेश हुआ है. पिछली मोदी सरकार में तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश हुआ था लेकिन सेलेक्ट कमेटी के पास अटक कर रह गया था. इस बार राज्यसभा में तीन तलाक बिल का पास होना उसी दिन पुख्ता हो गया था जब पिछले सप्ताह गुरुवार, 26 जुलाई 2019 को केन्द्र सरकार ने सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक बिल (RTI) राज्यसभा में 75 के मुकाबले 117 वोट से पास करवा लिया था. जबकि यूपीए अध्य्क्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष को एकजुट करते हुए सूचना का अधिकार संशोधन बिल का पुरजोर विरोध किया था. पोलिटॉक्स की टीम ने उसी दिन अपनी खबर में इस बात को पुख्ता कर दिया था कि जिस तरह केन्द्र सरकार ने RTI संशोधन बिल राज्यसभा में पास करवाया है उसी तरह तीन तलाक बिल भी पास हो जाएगा.
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दरअसल, मंगलवार को राज्यसभा में तीन तलाक बिल को पास कराने में वोटिंग के दौरान राज्यसभा की खाली पड़ी कुर्सियों का अहम योगदान रहा या यूं कहें कि इस बिल का पुरजोर विरोध करने वाले विपक्षी सांसदो का वोटिंग का बहिष्कार करते हुए वॉकआउट करना तीन तलाक बिल को पारित कराने में सबसे बड़ा योगदान साबित हुआ. हमारी राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं जिनमें से 4 खाली हैं. ऐसे में सदन में 241 सदस्य मौजूद हैं. यहां किसी भी विधेयक के बहुमत के लिए 121 सदस्यों की जरूरत है. लेकिन तीन तलाक बिल की वोटिंग के दौरान केवल 183 सांसद ही सदन में मौजूद रहे. ऐसा ही कुछ आरटीआई बिल के दौरान भी हुआ. अब बहुमत के लिए चाहिए थे केवल 92 वोट. जब वोटिंग हुई तो बिल के पक्ष में पड़े 99 वोट और विपक्ष में 84. ऐसे में 15 वोटों के अंतर से तीन तलाक बिल राज्यसभा से पारित हो गया और देश में एक इतिहास कायम हो गया.
पता रहे, मंगलवार को राज्यसभा में तीन तलाक बिल के लिए वोटिंग के दौरान विपक्ष के करीब 20 से ज्यादा सांसद गैरहाजिर रहे. इनमें टीआरएस के 6, टीडीपी के 2 और बीएसपी के 4, टीएमसी के 2, आरजेडी के एक, सीपीआई के एक, केरल कांग्रेस का एक और आईयूएमएल के एक सांसद ने वोटिंग का बहिष्कार किया. राज्यसभा के नामित सदस्य केटीएस तुलसी भी सदन में वोटिंग के दौरान उपस्थित नहीं रहे. एनडीए की सहयोगी जेडीयू के 6 सदस्यों ने भी सदन से वॉकआउट किया.
इसमें से करीब-करीब सभी सदस्य बिल के विरोध में थे. लेकिन इनके सदन में अनुपस्थित होने का पूरा फायदा बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए को हुआ और एनडीए ने आसानी से राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बहुमत हासिल कर दिया. इस तरह एनडीए ने तीन तलाक बिल को 15 वोटों से पारित करा देश में सालों से चल रही मुस्लिम महिलाओं की एक कुप्रथा को जड़ से समाप्त कर दिया. अब इंतजार केवल महामहीम की रजामंदी का है जो जल्दी ही आ जाएगी. मोदी सरकार के इस बिल को लाने के बाद मुस्लिम पुरूषों को जरूर बड़ा झटका लगा हो लेकिन मुस्लिम महिलाओं से किया गया वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर निभाया है.