राजस्थान में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधारने की दिशा में कांग्रेस की गहलोत सरकार ने विधानसभा में दो विधेयक पारित किए, जो मंगलवार को ध्वनिमत से पारित हो गए. इनमें राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय की विधियां (संशोधन) विधेयक 2019 तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग ने पेश किया और राजस्थान विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय के अध्यापक एवं अधिकारी (नियुक्ति के लिए चयन) (संशोधन) विधेयक 2019 उच्च शिक्षा मंत्री भंवरसिंह भाटी ने पेश किया. इसमें प्रावधान है कि राज्य के किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति पर भ्रष्टाचार का आरोप साबित होने पर उसे राज्यपाल के आदेश से हटाया जा सकता है. इस विधेयक पर पक्ष विपक्ष में तीखी बहस हुई.

सत्ता पक्ष के विधायकों ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि हम विश्वविद्यालय के कुलपति को सिर्फ शिक्षक नियुक्ति का काम क्यों देना चाहते हैं? उनका काम अकादमिक है. भर्ती का कार्य कार्यकारी अधिकारी का है. वहीं भाजपा विधायकों ने इस विधेयक को विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के खिलाफ बताते हुए काला कानून कहा. उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालयों का बेड़ा गर्क करने वाला राजनीतिक कदम है.

कांग्रेस विधायकों का कहना था कि विश्वविद्यालय के कुलपति का पद इतना निरंकुश कैसे हो सकता है, जिसको हटाने का कोई प्रावधान ही न हो. देश में शीर्ष से लेकर हर पद पर बैठे व्यक्ति को हटाने के कानूनी प्रावधान हैं, लेकिन कुलपति कितना ही भ्रष्टाचार करे, उसके काम में कितनी ही गलतियां हों, फिर भी उसे हटाने का कहीं कोई प्रावधान ही नहीं है. पहले विधानसभा में ऐसा हो चुका है जब राजस्थान विश्वविद्यालय के एक कुलपति को हटाने का प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने कहा था कि सदन को इसका अधिकार है या नहीं? कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण कुलपति को नहीं हटाया जा सका.

विधेयक पर बहस में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि यह विधेयक विश्वविद्यालय के कुलपति और शिक्षकों की स्थिति प्राइमरी स्कूल के शिक्षक से भी बुरी कर देगा. इसमें सक्षमता, सत्यनिष्ठा और नैतिक आचरण की शर्त जोड़ी है. सवाल उठाया है कि सत्यनिष्ठा आंकने की कौनसी प्रक्रिया अपनाई जा सकती है. सदस्यों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि हम रोज ही सत्यनिष्टा की शपथ लेते हैं. ईश्वर जानता है हम कैसे काम कर रहे हैं.

उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि संशोधन विधेयक के माध्यम से सरकार ने विश्वविद्यालयों में दखलंदाजी शुरू कर दी है. कुलपति, जो हमारे समाज में मान और सम्मान के प्रतीक होते हैं, एक तरह से उनको अपमानित करने के लिए, कुलपति को हटाने का जो प्रावधान किया जा रहा है, वह विश्वविद्यालय के हित के लिए नहीं है. पहली बार इस तरह का संशोधन किया जा रहा है, जब भी चाहें आप जांच करें. सरकार जांच करने के आधार पर किसी भी प्रतिष्ठित शिक्षाविद की टोपी उछालकर उसे हटा दे. जब यह संशोधन पारित हो जाएगा तो कुलपति सरकार की कठपुतली बन जाएंगे.

राठौड़ ने कहा कि कुलपतियों का सरकारी अधिकारियों के रूप में परिवर्तन का दौर प्रारंभ हो रहा है. नई शिक्षा नीति के बारे में पूरे देश में चर्चा है. प्रारूप जारी हुआ है. राज्य सरकारों से मत मांगा जा रहा है. उच्च शिक्षा संस्थानों को प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता दी जाना चाहिए. विश्वविद्यालयों के साथ खिलवाड़ बंद होना चाहिए.

भाजपा विधायक किरण माहेश्वरी ने कहा कि इस संशोधन के जरिए सरकार विश्वविद्यालयों में भयमुक्त की बजाय भययुक्त वातावरण तैयार करना चाहती है. इससे कुलपति के ऊपर हमेशा तलवार लटकती रहेगी. पता नहीं कब आपको हटा दिया जाएगा. इससे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा. बता दें, किरण माहेश्वरी भाजपा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रह चुकी हैं.

अनिता भदेल ने कहा कि सरकार जल्दबाजी में यह सब कर रही है. 1998 से 2003 के बीच राजीव गांधी स्कूल खोले गए थे. उनमें दसवीं कक्षा की योग्यता वालों को ही शिक्षक बना दिया गया था. अब किस सुधार की उम्मीद कर सकते हैं? अशोक लाहोटी ने कहा कि इससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तशासी व्यवस्था में सरकारी दखल बढ़ेगा. सरकार आज है कल नहीं, लेकिन विश्वविद्यालय रहेंगे. सरकार तो कल कर्नाटक में थी आज नहीं. राजस्थान में भी किसे पता, सरकार कल रहेगी या नहीं.

निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने कहा कि हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2018 में कहा था कि सर्च कमेटी कुलपति पद के लिए उच्च स्तरीय क्षमता और ईमानदारी जरूर देखे. कोर्ट को ऐसा क्यों कहना पड़ा? लोगों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा और कोर्ट को यह टिप्पणी करनी पड़ी. चार विश्वविद्यालयों में भर्तियां निकली, सभी पर विवाद हुआ और भर्ती अटक गई. राजस्थान विश्वविद्यालय में गैर पीएचडी को कुलपति बनाने का काम किसने किया?

उच्च शिक्षा मंत्री भंवरसिंह भाटी ने कहा कि कुलपति के खिलाफ कार्रवाई से पहले सुनवाई का मौका दिया जाएगा. यदि राज्यपाल को सरकार की सूचना पर या अन्य किसी माध्यम से यह जानकारी में आता है कि कुलपति कोई गलत काम कर रहे हैं या शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं, या विश्वविद्यालय के अधिनियम का पालन नहीं किया, पद का दुरुपयोग किया या विश्वविद्यालयों के हितों के खिलाफ काम किया तो कुलाधिपति, जो कि राज्यपाल हैं, राज्य सरकार से परामर्श कर जांच के बाद कुलपति को हटा सकेंगे. जांच के दौरान कुलपति को निलंबित भी किया जा सकता है.

तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग ने कहा कि यह संशोधन विधेयक भारत सरकार की मंशा के अनुरूप ही राज्यपाल की अनुमति से लाया गया है. उन्होंने पिछली भाजपा सरकार पर कई आरोप लगाए.

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