देश में भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) और प्रेम विवाह करने वाले युवक-युवतियों की इज्जत की खातिर हत्या (ऑनर किलिंग) के मामले के मामले बढ़ रहे हैं. भीड़ की हिंसा में देश भर में 65 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. ऐसा करने वाले को कोई सख्त सजा मिली हो, इसके उदाहरण भी सामने नहीं आए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए कानून बनाने को कहा है. देश में राजस्थान पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग दोनों पर कानून बनाने की पहल की है. गहलोत ने अपने बजट भाषण में इस तरह का कानून बनाने की घोषणा की थी. यह समय की जरूरत है, लेकिन इस पर भी राजनीति शुरू हो गई है.

इन दोनों विधेयकों पर अब 5 अगस्त से बहस होगी. इससे पहले ही सदन के बाहर राजनीतिक बयानबाजी का सिलसिला जोर पकड़ने लगा है. भाजपा की तरफ से नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उपनेता राजेन्द्र राठौड़, विधायक अशोक लाहोटी ने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक क्रेडिट लेने के लिए हड़बड़ी में ये बिल ला रही है. विधेयक लाने के पीछे सरकार की मंशा लोगों को राहत देने से ज्यादा राजनीतिक क्रेडिट लेने की है. गौरतलब है कि कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी भीड़ की हिंसा के मामले उठाती रही है.

कटारिया ने कहा कि बिल लाने की बहुत आवश्यकता नहीं है. कानून ऐसे मामलों में हमेशा सजा देता है. सिर्फ वर्ग विशेष के साथ ऐसा होता है, ऐसा नहीं है. सरकार इसे सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बना रही है. लेकिन फिर भी बिल लाया जा रहा है तो हम इस पर चर्चा करेंगे. राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि नए कानून बनाने से अपराध नहीं रुकते. इन अपराधों के लिए आईपीसी में पहले ही प्रावधान हैं. अपराध रोकने के लिए सरकार और अफसरों की मंशा मायने रखती है.

उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा, कोई भी व्यक्ति कानून हाथ में न ले. हर व्यक्ति की सरकार सुरक्षा करे. अपराध करने वालों को सजा दिलवाए. इसको देखते हुए राज्य सरकार की ओर से ऑनर किलिंग और मॉब लिंचिंग को लेकर विधानसभा में बिल पेश किया गया है. जल्द ही ये बिल पारित हो जाएंगे. इनके लागू होने पर अपराधियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि अपनी इच्छा से शादी करने वाले वयस्क युवक-युवतियों को मार दिया जाता है. अब सरकार कानून के जरिए ऐसे अपराध रोकेगी. अब यह गैर जमानती अपराध बन जाएगा, जिसके लिए मौत की सजा, आजीवन कारावास और पांच लाख रु. तक के जुर्माने का प्रावधान होगा. मॉब लिंचिंग की घटनाएं भी राजस्थान में हो चुकी हैं.

इस तरह कांग्रेस इन विधेयकों को जनहित में बता रही है, जबकि भाजपा नेता इसे गहलोत सरकार का राजनीतिक क्रेडिट लेने का प्रयास बता रहे हैं. देश में भीड़ की हिंसा के जितने मामले हुए हैं, उनमें राजस्थान भी मुख्य रूप से शामिल है. मोहम्मद अखलाक से लेकर रकबर खान तक…. पिछले चार सालों में मॉब लिंचिंग के 134 मामले सामने आ चुके हैं. एक वेबसाइट के मुताबिक इन मामलों में 2015 से अब तक 68 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें दलितों पर हुए अत्याचार भी शामिल हैं. लेकिन ज्यादातर मामले गौरक्षा के नाम पर हुई भीड़ की हिंसा के हैं.

गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा के तीन मामले 2014 में सामने आए थे, जिनमें 11 लोग घायल हुए. अगले साल 2015 में ऐसे मामले बढ़कर 12 हो गए. इनमें 10 लोगों को पीट-पीटकर मार डाला गया, जबकि 48 लोग घायल हुए. 2016 में गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा दो गुना हो गई. ऐसे 24 मामलों में आठ लोगों की मौत हुई, जबकि 58 लोग घायल हुए. 2017 में ऐसी 37 घटनाओं में 11 लोगों की मौत हुई और 152 घायल हुए. 2018 में नौ घटनाओं में पांच लोग मारे गए और 16 घायल हुए. कुल मिलाकर गौरक्षा के नाम पर अब तक भीड़ की हिंसा की 85 घटनाएं हो चुकी है. इनमें 34 लोगों की हत्या कर दी गई, जबकि 289 लोगों को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया.

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