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लद्दाख को अलग प्रदेश बनाना भारत का अंदरूनी मामला

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी के सामने स्पष्ट रूप से कहा है कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य को दो भागों में बांटने का फैसला भारत का घरेलू मामला है और इसका किसी सीमा विवाद या वास्तविक नियंत्रण रेखा से लेना देना नहीं है. देश की बाहरी सीमाएं वैसी ही हैं, जैसी पहले थीं. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच द्विपक्षीय बातचीत में वांग यी ने यह मुद्दा उठाया था. बातचीत के बाद भारत की तरफ से बयान जारी किया गया कि चीन को भारत-पाकिस्तान रिश्तों की वास्तविकता समझनी चाहिए.

जयशंकर ने वांग यी से कहा कि भारत-चीन संबंधों का भविष्य सौहार्द्रपूर्ण संबंधों पर निर्भर है. दोनों देशों के बीच आपसी समझदारी होनी चाहिए. दोनों देशों के सही तरीके से एक दूसरे की समस्याओं को समझने की जरूरत है. इसी तरह मतभेद दूर किए जा सकते हैं. चीन-भारत मीडिया फोरम के सामने भी जयशंकर ने यही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि मतभेदों को विवाद का रूप नहीं दिया जाना चाहिए. जयशंकर को यह कहने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग प्रांत घोषित करने पर चीन में कई सवाल उठ रहे हैं. लद्दाख भारत और चीन का सीमावर्ती राज्य है.

जयशंकर ने वांग यी को याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वुहान में शिखर वार्ता हुई थी, जिसमें दोनों नेताओं ने मतभेद दूर करने और द्विपक्षीय संबंधों का नया सिलसिला शुरू करने पर सहमति जताई थी. इसलिए किसी भी विवाद को समझदारी से हल करने का प्रयास होना चाहिए. भारत और चीन, दोनों ही देश दुनिया की दो बड़ी आर्थिक ताकतें हैं.

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भारत के धारा 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करने के फैसले से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. फैसला होते ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी सीधे चीन से शिकायत करने बीजिंग पहुंचे थे. चीन को पाकिस्तान अपना विश्वस्त मित्र और पड़ोसी मानता है. कुरैशी ने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में चीन से पाकिस्तान का समर्थन करने का अनुरोध किया था. चीन ने उनसे कहा कि भारत के साथ सीमा विवाद संयुक्त राष्ट्र की भावना और भारत-चीन के बीच हुई द्विपक्षीय संधियों के अनुरूप सुलझाया जाएगा.

चीन के विदेश मंत्री से पाकिस्तान के विदेश मंत्री की मुलाकात के बाद भारतीय विदेश मंत्री की चीन यात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण है. जयशंकर ने वांग के साथ बातचीत में स्पष्ट किया कि भारत ने क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के मद्देनजर यह फैसला किया है. भारत किसी अन्य देश के प्रशासनिक क्षेत्र में कोई दखल नहीं दे रहा है. चीन को किसी भी तरह शंका पालने की जरूरत नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि लद्दाख क्षेत्र में भारत के साथ चीन की सीमा है. उससे संबंधित विवाद दोनों देश मिलकर सुलझा रहे हैं. इसकी प्रक्रिया जारी है.

बातचीत के दौरान चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को लेकर फैसले से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव पैदा हो सकता है. इस पर जयशंकर ने कहा कि यह भारत का अंदरूनी मामला है और इससे पाकिस्तान को परेशान होने की जरूरत नहीं है. इससे नियंत्रण रेखा पर बनी स्थिति नहीं बदलेगी. जहां तक भारत-पाकिस्तान संबंधों का सवाल है, चीन को जमीनी वास्तविकताओं के आधार पर इसका आकलन करना चाहिए.

बातचीत के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए वांग यी ने कहा कि दोनों देशों के बीच विस्तार से गंभीर बातचीत हुई. इस समय दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध बनाए रखने और एक दूसरे की स्वायत्तता का सम्मान करने की जरूरत है. दोनों देश अपने मतभेदों को समझदारी से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज भरेंगे नामांकन, बसपा ने दिया समर्थन

PoliTalks news

देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह मंगलवार को राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करेंगे. इसके लिए वे जयपुर पहुंच चुके हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उनका स्वागत करने पहुंचे. राजस्थान में मदनलाल सैनी के निधन के बाद खाली हुई सीट से कांग्रेस मनमोहन सिंह को राज्यसभा भेजेगी.  डॉ.सिंह फिलहाल किसी सदन के सदस्य नहीं हैं. कांग्रेस के पास अपने 100 विधायकों के अलावा निर्दलीय, बसपा और बीटीपी सहित 122 विधायकों का समर्थन हासिल है. बसपा सुप्रीमो मायावती राजस्थान विधानसभा में अपने विधायकों के जरिए डॉ.मनमोहन सिंह का समर्थन पहले ही कर चुकी है. माना जा रहा है कि मनमोहन सिंह के सामने बीजेपी अपना प्रत्याशी नहीं उतरेगी. ऐसे में उनका राज्यसभा पहुंचना तय है.

पाक विदेश मंत्री ने 370 पर स्वीकारी हार, कश्मीरियों ने दिया करारा जवाब

जम्मूकश्मीर और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने और जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद से ही पाकिस्तान जबरदस्त बौखलाया हुआ है और हर प्रकार से उसने अपनी खीज निकालनी चाही किन्तु कमोबेश हर मोर्चे पर उसे मात खानी पड़ी है. पाकिस्तान 370 के मुद्दे पर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घेरने की कवायद में जुटा है लेकिन उसे कामयाबी मिलती नहीं दिख रही. अब यह बात पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर ली है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने माना है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को समर्थन मिलना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में कोई हार लेकर नहीं खड़ा है और इसके लिए हमें खासा संघर्ष करना पड़ेगा. दूसरी और पाकिस्तान की ये उम्मीद कि कश्मीरी लोग ईद के मौके पर भारत का विरोध करेंगे, लेकिन यहां पर भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और कश्मीरियों ने अमन के साथ शांतिपूर्वक ईद मनाकर इमरान खान को करारा चांटा मारा है.

शाह महमूद कुरेशी ने अप्रत्यक्ष रूप से अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा, ”यूएन सुरक्षा परिषद में हमें समर्थन मिलना मुश्किल है, हमें मूखों के स्वर्ग में नहीं रहना चाहिए. पाकिस्तानी और कश्मीरियों को ये जानना चाहिए कि कोई आपके लिए खड़ा नहीं है, आपको जद्दोजहद करनी होगी, जज्बात उभारना आसान है. बाएं हाथ का काम है मुझे दो मिनट लगेंगे, लेकिन मसले को आगे ले जाना कठिन है. सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य हैं कोई भी वीटो का इस्तेमाल कर सकता है.”

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शाह महमूद कुरेशी ने आगे कहा, ‘’संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के स्‍थायी सदस्‍यों के भी निजी हित भारत से हैं और उन्‍होंने वहां पर अरबों का निवेश किया हुआ है. ऐसे में वह पाकिस्‍तान का साथ देंगे यह बेहद मुश्किल है.’’ हालांकि उन्होंने कहा कि देश कश्मीरियों के मुद्दे पर हर मंच पर लड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मैं 35-36 साल से सियासत कर रहा हूं, अपने अनुभवों से कह सकता हूं कि संयुक्त राष्ट्र में कोई हमारे लिए माला लेकर नहीं खड़ा है. हमें इसके लिए संघर्ष करना होगा. कुरैशी ने कहा कि सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य हैं और इसमें से कोई भी धारा 370 पर हमारे खिलाफ जा सकता है.

कुरैशी ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने व्यापक प्रयासों में तुर्की, ईरान और इंडोनेशिया सहित विश्व के नेताओं से संपर्क किया है, ताकि उन्हें कश्मीर पर भारत द्वारा उठाए गए एकतरफा कदम से अवगत कराया जा सके. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बुधवार को मुजफ्फराबाद का दौरा करेंगे. कुरेशी ने कहा कि इस दौरान प्रधानमंत्री आजाद जम्मू एवं कश्मीर (एजेके) विधानसभा को कश्मीरियों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए संबोधित करेंगे.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने कश्मीरियों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए सोमवार को मुजफ्फराबाद में ईद की नमाज अदा की. कुरैशी ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान 14 अगस्त को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का दौरा करेंगे और उसकी विधानसभा को संबोधित भी करेंगे. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने का निर्णय किया है और चीन ने इस उद्देश्य के लिए पूरा समर्थन देने का भरोसा दिया है.

बड़ी खबर: ‘गांधी ने गांधी को दिया इस्तीफा, फिर से गांधी बना अध्यक्ष’

गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने और जम्मूकश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद बौखलाये पाकिस्तान ने घोषणा की है कि वह 14 अगस्त को कश्मीर एकजुटता दिवस और 15 अगस्त को काला दिवस के तौर पर मनाएगा.

‘गांधी ने गांधी को दिया इस्तीफा, फिर से गांधी बना अध्यक्ष’

एक कहावत बड़ी मशहूर है ‘तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर, बोलो कितने तीतर’. ऐसा ही कुछ कांग्रेस पार्टी में हो रहा है. सोनिया गांधी ने 16 दिसम्बर, 2017 को जब गांधी परिवार के युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी की थी यानि उनको पार्टी की कमान संभलायी थी तब ये निश्चित था कि कांग्रेस केवल वंशवाद आगे बढ़ा रही है. ऐसे में तय था कि कांग्रेस की सियासत की बागड़ौर केवल गांधी परिवार के हाथों में रहेगी. लोकसभा चुनाव-2019 में मिली करारी हार के बाद नैतिकता के आधार पर जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

राहुल गांधी ने ये इस्तीफा यूपीए चैयरपर्सन सोनिया गांधी को सौंपा. यानि एक गांधी को. उसके बाद शुरू हुई नए अध्यक्ष की तलाश. राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि अब पार्टी की बागड़ौर किसी गैर गांधी को सौंपी जाए लेकिन अब हुआ पहले से भी बड़ा झोल और एक बार फिर अध्यक्ष बन गयी सोनिया गांधी. यानि गांधी के बाद फिर गांधी. ऐसे में सीधे तौर पर कहा जाए तो इस्तीफा लेने वाला भी गांधी, देने वाला भी गांधी और नया अध्यक्ष भी गांधी.

इससे पहले जिस व्यक्ति का नाम अध्यक्ष पद पर सबकी पसंद था और उसे सभी का समर्थन भी मिल रहा था, वो भी था एक गांधी यानि प्रियंका गांधी. वहीं जिस नाम का सबसे ज्यादा समर्थन किया जा रहा है, वो भी गांधी. सीधे तौर पर कहा जाए तो कांग्रेस में फिर से गांधियों का वंशवाद शुरू हो गया जो बड़ी मुश्किल से लाइन पर आने वाला था. राहुल गांधी के इस्तीफे और पार्टी कमान संभालने को प्रियंका के इनकार के बाद लगने लगा था कि अब कांग्रेस को जो नया अध्यक्ष मिलेगा, निश्चित तौर पर कोई गैर गांधी ही होगा. इस लिस्ट में अशोक गहलोत सबसे आगे रहे लेकिन उन्होंने साफ तौर पर मना कर दिया.

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वजह रही कि राजनीति के जादूगर गहलोत को साफ तौर पर पता था कि वे कांग्रेस अध्यक्ष भले ही बन जाएं लेकिन पर्दे के पीछे और महत्वपूर्ण फैसलों में कलम केवल राहुल-सोनिया-प्रियंका यानि गांधी परिवार की ही चलेगी. ऐसे में उन्होंने बड़ा पद लेने की जगह राजस्थान की राजनीति में ही ध्यान देना उचित समझा. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह का भी यही सोचना है. अपनी बेबाकी के लिए जाने जाने वाले अमरिन्दर के हितों का टकराव सीधे गांधी परिवार से होगा, इसलिए उन्होंने अपना नाम कभी आगे ही नहीं आने दिया. इसके दूसरी ओर, उन्होंने प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने का विकल्प भी सुझा दिया.

कांग्रेस अध्यक्ष के नए नाम की इस लिस्ट में मुकुल वासनिक, सुशील शिंदे और मलिकार्जुन खडगे का नाम भी शामिल था लेकिन 5 ग्रुप की बैठक के बावजूद इनमें से किसी का नाम तय न हो सका. वहीं इस लिस्ट में युवाओं के तौर पर राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी था लेकिन सीनियर्स के अनुभव के सामने न तो युवाओं की रणनीति काम आयी और न ही उनकी युवा सोच.

अगर सीड्ब्ल्यूसी की एक ही दिन में दो बैठकों के बाद भी अगर कोई निष्कर्ष न निकलता तो पार्टी फिर से विपक्ष के निशाने पर आ जाती. शायद इसी डर से सोनिया गांधी को नए अध्यक्ष के चुनाव होने तक अंतरिम अध्यक्ष का दायित्व सौंप दिया. अब गौर करने वाली बात ये है कि चाहे कांग्रेस के नेता ये सोचकर खुश हो रहे हो कि चलो अब कुछ समय के लिए पार्टी के नए कप्तान की चिंता खत्म हुई लेकिन यह समस्या केवल टली है और वो भी कुछ समय के लिए. ज्यादा से ज्यादा चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने तक सोनिया अंतरिम अध्यक्ष का पद संभाल सकती हैं. उसके बाद से कांग्रेस की ये नोटंकी फिर से शुरू होगी और फिर से शुरू होगा गांधी बनाम गांधी का खेल.

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अब ये खेल कितना लंबा चलेगा, ये तो समय भी बताएगा लेकिन जो भी हुआ या जो होने वाला है, उससे एक बात तो एकदम साफ है कि गांधी परिवार के लोगों से पार्टी की बागड़ौर इतनी आसानी से नहीं फिसलने वाली. अगर जरा सी फिसल भी गयी जैसे कि राहुल गांधी के साथ हुआ है तो कांग्रेस के सिपेसालार फिर से इसे किसी न किसी गांधी के हाथों में थमा देंगे, फिर चाहें वो प्रियंका गांधी हो या सोनिया गांधी या फिर से राहुल गांधी.

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वेंकैया नायडू की नई किताब- लिसनिंग, लर्निंग, लीडिंग

उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वैंकैया नायडू ने अंग्रेजी में अपने दो वर्षों के कार्यकाल के अनुभवों पर आधारित एक किताब लिखी हैं जिसका शीर्षक है- लिसनिंग, लर्निंग, लीडिंग. चेन्नई में इस किताब का लोकार्पण हुआ. समारोह में गृहमंत्री अमित शाह भी उपस्थित थे. किताब में नायडू ने दावा किया है कि उनकी विचारधारा निरंतर भारत के रूपांतरण की प्रक्रिया से जुड़ी हुई है.

नायडू के कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक उन्होंने 330 प्रमुख सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लिया. राज्यसभा में 123 बैठकों की अध्यक्षता की और 19 देशों की यात्राएं की. एक साल में 365 दिन होते हैं. दो साल में इतनी गतिविधियां सक्रियता की मिसाल है. इनमें कई कार्यक्रम और समारोह ऐसे होंगे, जिनमें एक दिन से ज्यादा समय लगा होगा. 19 देशों की यात्राओं में कम से कम एक महीने का समय तो लगा ही होगा. इससे लगता है कि उप राष्ट्रपति बिलकुल भी फुरसत में नहीं रहते हैं.

नायडू की किताब 257 पेज की है, जिसमें 232 तस्वीरें हैं. एक अध्याय राज्यसभा की गतिविधियों को समर्पित है. नायडू ने राज्यसभा में शिकायतों और प्रश्नों को ऑनलाइन दर्ज करवाने की परिपाटी शुरू की थी. किताब में उनके इस ई-नोटिस अभियान की सफलता की विस्तार से चर्चा है. हाल ही संपन्न हुए राज्यसभा सत्र के दौरान सदन को सांसदों की तरफ से 9000 से ज्यादा नोटिस ऑनलाइन मिले. इनमें से करीब 60 फीसदी कार्यवाही में शामिल किए गए.

अनुच्छेद 370 पर वायको का विवादित बयान, कहा – कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा

कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद विवादित बयानों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. इस बार विवादित बयान एमडीएमके चीफ की तरफ से आया है. मरुमलारची द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी के मुखिया और राज्यसभा सांसद वायको ने कहा कि जब भारत अपना 100वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा तो कश्मीर भारत के साथ नहीं होगा. उन्होंने यह बयान तिरुवन्नमलई जिले में पार्टी के एक समारोह में दिया. बता दें, वायको ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के केंद्र सरकार के कदम का संसद में विरोध किया था और इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया था. हाल में चेन्नई की एक अदालत ने श्रीलंका के आतंकी संगठन लिट्टे के समर्थन में बयान देने पर वायको को देशद्रोह के एक मामले में दोषी ठहराया था. अदालत ने बाद में सजा पर रोक लगा दी.

राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति इसी माह

राजस्थान में मदन लाल सैनी के निधन के बाद उनकी जगह नए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति इस महीने होने की संभावना है. उनके निधन के बाद से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद खाली है. हालांकि इससे भाजपा को कोई ज्यादा असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है. प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बगैर ही सदस्यता अभियान जोरशोर से जारी है. संगठन चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है. सदस्यता अभियान समाप्त होने के बाद संगठन चुनाव का कार्यक्रम घोषित कर दिया जाएगा.

विश्वसनीय सूत्रों से खबर मिली है कि प्रदेश उपाध्यक्ष राजेन्द्र गहलोत को संगठन चुनाव प्रभारी और प्रदेश महामंत्री कैलाश मेघवाल को सह प्रभारी बनाया जा रहा है. जल्दी ही इनकी नियुक्ति की घोषणा हो सकती है. संगठन चुनाव की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति होगी. रविवार को प्रदेश भाजपा कार्यालय में सदस्यता अभियान को लेकर बैठक हुई, जिसमें संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और अभियान के संयोजक सतीश पूनिया ने सभी जिलों की समीक्षा की.

बीजेपी के जिन नेताओं का नाम प्रदेशाध्यक्ष के लिए चर्चा में है, उनमें सतीश पूनिया का नाम सबसे ऊपर माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान में बीजेपी की कमान सतीश पूनिया के हाथों में सौंपने के बारे में मन बना लिया है. पूनिया वर्तमान में आमेर से विधायक हैं और संगठन में उनके पास प्रदेश प्रवक्ता का जिम्मा है. पूनिया संघ पृष्ठभूमि से हैं और उन्हें संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है. वे लगातार चार बार बीजेपी के प्रदेश महामंत्री रहे हैं.

हालांकि एक चर्चा यह भी है कि बीजेपी किसी जाट को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर राजपूतों की नाराज नहीं करना चाहेगी. इस स्थिति में किसी ब्राह्मण नेता को मौका दिया जा सकता है. यदि इस दिशा में विचार होता है तो अरुण चतुर्वेदी का नाम सबसे ऊपर है. संघ पृष्ठभूमि से जुड़े चतुर्वेदी पहले भी प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं. वे पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार में मंत्री भी रहे हैं. किसी ब्राह्मण नेता के प्रदेशाध्यक्ष बनने की संभावना इसलिए भी है, क्योंकि परंपरागत रूप से बीजेपी की समर्थक मानी जानी वाली इस जाति को मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है.

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एक संभावना यह भी है कि जयपुर ग्रामीण से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. अमित शाह उनके पक्ष में बताए जाते हैं, इसीलिए इस बार उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है. चूरू के विधायक राजेन्द्र राठौड़ का नाम भी चल रहा है, लेकिन उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना इसलिए कम है, क्योंकि वह जनता दल छोड़कर भाजपा में आए हैं. राज्यवर्धन सिंह राठौड़ नए भाजपा नेता हैं, इसलिए उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना भी कम ही है. बताया जाता है कि भाजपा संघ की पृष्ठभूमि के किसी व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता है.

भाजपा का एक खेमा राजसमंद की विधायक दीया कुमारी का नाम आगे कर रहा है. इस खेमे के नेताओं का मानना है कि जयपुर राजघराने से जुड़ी दीया कुमारी वसुंधरा राजे को चुनौती दे सकती है. बहरहाल यह सिर्फ कयास है. मदन लाल सैनी को जब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, तब राजनीतिक परिस्थितियां अलग थीं. राजस्थान में भाजपा सरकार थी और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थीं. अब सत्ता में कांग्रेस है.

मीडिया में खबरें नारायण लाल पंचारिया को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाने की आ रहीं हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी चाहती हैं कि भाजपा के राज्यसभा सांसद नारायण पंचारिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए. पंचारिया के नाम पर सहमति हो सकती है, क्योंकि वह भी मदन लाल सैनी की तरह पार्टी में निर्विवाद नेता हैं. पंचारिया संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं और लंबे समय से दिल्ली में सक्रिय हैं. बताया जाता है कि भाजपा इस बार संघ की पृष्ठभूमि के व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है.

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यह जरूर तय है कि प्रदेशाध्यक्ष का फैसला मोदी-शाह ही करेंगे. आपको बता दें कि पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष पद पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी नेतृत्व के बीच जबरदस्त खींचतान देखने को मिली थी. पिछले साल अप्रेल में यह घटनाक्रम उस समय सामने आया जब दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी. इस हार की गाज वसुंधरा राजे के ‘यस मैन’ माने जाने वाले अशोक परनामी पर गिरी. उन्होंने अमित शाह के कहने पर 16 अप्रेल को प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भी राजे को किनारे करने का सिलसिला जारी है. उनसे अदावत रखने वाले नेताओं को चुन-चुनकर ताकतवर बनाया गया है. जिन गजेंद्र सिंह शेखावत को वसुंधरा ने प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने दिया वे मोदी के मंत्रिमंडल में राजस्थान के इकलौते कैबिनेट मंत्री हैं. जिन ओम बिरला को कोटा से टिकट देने का राजे ने विरोध किया, वे लोकसभा के अध्यक्ष बन चुके हैं और अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल अभी तक का सर्वश्रेष्ठ कार्यकाल माना जा रहा है. इस स्थिति में यह लगता नहीं है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह प्रदेशाध्यक्ष के मामले में वसुंधरा राजे से कोई राय-मशविरा भी करेंगे. अब तो वही मुमकिन होगा जो मोदी-शाह चाहेंगे.

खैर, राजस्थान प्रदेश भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में करीब एक दर्जन नेता और भी शामिल हैं, जिनमें सीपी जोशी, मदन दिलावर, वासुदेव देवनानी और कैलाश मेघवाल प्रमुख आदि प्रमुख हैं.

विश्व आदिवासी दिवस एवं मीना महिला महासभा की झलकियां

विश्व आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को दौसा के आदिवासी मीणा हाई नांगल प्यारीबास में आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया गया. यहां राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा सहित अन्य मीना समुदाय के लोगों ने जमकर नाच-गाना किया. इस मौके पर दौसा सांसद जसकौर मीणा, बांदीकुई कांग्रेस विधायक गजराज खटाना और दौसा विधायक ​मुरारी लाल मीना सहित मीना समाज के सैंकड़ों लोग उपस्थित रहे.

(वीडियो देखने के लिए ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करें)

वहीं दूसरी ओर, जयपुर के बिड़ला सभागार में राजस्थान प्रदेश आदिवासी कांग्रेस की ओर से आदिवासियों के लिए एक समारोह का आयोजन हुआ जिसमें आदिवासी समुदाय की ओर से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए. इस मौके पर राजस्थान प्रदेश आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष शंकर लाल मीना, डिप्टी सीएम सचिन पायलट और धीरज गुर्जर सहित अन्य गणमान्य लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी.

अगले दिन मीना छात्रावास प्रताप नगर में ट्राइबल महिला संघ राजस्थान के बेनर तले आदिवासी समाज की महिलाओं की एक बैठक हुई जिसमें पूर्व मंत्री गोलमा देवी, सविता मीना और भाजपा राष्ट्रीय महिला मोर्चा की अनिता मीना के साथ सैंकड़ों महिलाओं ने भाग लिया. इस दौरान सभी उपस्थित आदिवासी महिलाओं ने बाल विवाह, विधवा विवाह, दहेज प्रथा की रोकथाम के साथ आदिवासी महिला शिक्षा पर अपने विचार रखे. इस मौके पर महिलाओं ने नृत्य प्रस्तुतियों का समां बांध दिया.

श्रीराम के पुत्र लव ने की थी लाहौर (लव-कोट) की स्थापना, मेवाड़ राजघराने का दावा ‘हम लव के वंशज’

शनिवार को जयपुर राजघराने की तरफ से दीया कुमारी ने भगवान राम के वंशजों में से कुश का वंशज होने का दावा करने के बाद अब मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्यों ने दावा किया है कि वे कुश के भाई लव के वंशज हैं. भगवान श्रीराम के दो पुत्र थे लव और कुश. कुश से कुशवाहा राजपूतों की वंश परंपरा आगे बढ़ी थी. जयपुर का राजगद्दी पर कुछवाहा या कच्छवाहा का अधिकार रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि अयोध्या विवाद मामले में विचाराधीन एक पक्ष रामलला का भी है. रामलला विराजमान नाम से याचिका लगी हुई है. इस पर सुनवाई के दौरान जज ने रामलला के वकील से पूछा था कि राम के कोई वंशज हैं क्या? वकील ने कहा, कोई जानकारी नहीं है. इस पर जयपुर राजपरिवार ने अपने को श्रीराम का वंशज बताते हुए पुराने दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं. इसके तहत जयपुर का राजघराना श्रीराम के पुत्र कुश के वंश से संबंधित है.

मेवाड़ राजघराने के महेन्द्र सिंह ने कहा कि श्रीराम के पुत्र लव ने लव-कोट (लाहौर) की स्थापना की थी, जो कि अब पाकिस्तान में है. समय गुजरने के साथ ही लव के वंशज आहाड़ पहुंचे थे, जो मेवाड़ का पुराना नाम है. यहां उन्होंने सिसोदिया सम्राज्य की स्थापना की थी. इतिहासकारों के मुताबिक मेवाड़ राज परिवार के रीति-रिवाज, शिव उपासक और सूर्यवंशी होना उनके श्रीराम के वंशज होने का प्रमाण है.

महेन्द्र सिंह के मुताबिक मेवाड़ में उनकी 76 पीढ़ियों का इतिहास दर्ज है, जबकि राजघराने का इतिहास और भी पुराना है. मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के लक्ष्य राज सिंह ने भी कहा कि हम लव के वंशज हैं. कर्नल जेम्स टाड की पुस्तक एनल्स एंड एंटीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में लिखा है- श्रीराम की राजधानी अयोध्या थी. उनके बेटे लव ने लव-कोट (लाहौर) बसाया था. लव के वंशज कालांतर में गुजरात होते हुए आहाड़ यानी मेवाड़ में आए, जहां सिसोदिया साम्राज्य की स्थापना की. चित्तौड़ के बाद उदयपुर को राजधानी बनाया था. मेवाड़ का राज प्रतीक सूर्य रहा है. श्रीराम शिव उपासक थे और मेवाड़ राज परिवार भी एकलिंगनाथ (शिवजी) का उपासक है. लक्ष्य राज सिंह का कहना है कि ये मेवाड़ राज परिवार के सूर्यवंशी श्रीराम के वंशज होने के पुख्ता प्रमाण हैं.

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महेन्द्र सिंह मेवाड़ का सवाल है कि श्रीराम के वंशजों की वंशावली अयोध्या विवाद का मुद्दा है ही नहीं, फिर इसकी मांग क्यों हो रही है? जयपुर राजघराने ने 25 साल पहले भी वंशावली दी थी, उसका क्या हुआ? पूर्व राज परिवार से जुड़े इतिहासकार प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा और डॉ. अजातशत्रु सिंह शिवरती के अनुसार मेवाड राज परिवार का राज प्रतीक सूर्य है और वे शिव के उपासक रहे हैं. ये दोनों समानताएं श्रीराम के वंश में रही हैं. मेवाड़ राजपरिवार के सूर्यवंशी होने की वंशावली भी मौजूद है. श्रीराम के बड़े पुत्र लव (पाटवी) ने लव कोट (लाहौर) की स्थापना की थी और कालांतर में बप्पा रावल ने रावलपिंडी बसाया था, जो कि अब पाकिस्तान में है. मेवाड़ का साम्राज्य पाकिस्तान तक फैला हुआ था. चतुरसिंह बावजी ने चतुर चिंतामणि में भी महाराणा प्रताप को श्रीराम का पोता (वंशज) और रघुवंशी लिखा है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के मसले पर चल रही सुनवाई के बीच जयपुर के पूर्व राजपरिवार की ओर से श्रीराम का वंशज होने का दावा किया गया है. पूर्व राजपरिवार की सदस्य और भाजपा सांसद दीया कुमारी ने कहा कि वे भगवान राम के वंशज हैं. उन्होंने पोथीखाना में उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर इसका दावा किया है. उन्होंने कहा कि जयपुर राजपरिवार की गद्दी भगवान राम के पुत्र कुश के वंशजों की राजधानी है.

वहीं पूर्व राजमाता पद्मनी देवी ने बताया कि साल 1992 में पूर्व महाराजा स्व. भवानी सिंह ने मानचित्र सहित सभी दस्तावेज कोर्ट को सौंप दिए थे. भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज होने से ढूंढाड़ के राजा कछवाहा कहलाने के साथ राम की 309वीं पीढ़ी में मानते हैं. जयपुर के पूर्व राजपरिवार का दावा है कि रामजन्म भूमि को लेकर सिटी पैलेस के कपड़ा द्वारा में सुरक्षित दस्तावेजों आधार पर यह साफ होता है कि अयोध्या में राम मंदिर की भूमि जयपुर रियासत के अधिकार में रही है.

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प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर आरनाथ ने शोध ग्रंथ की पुस्तक स्ट्डीज इन मिडीवल इंडियन आर्केटेक्चर में दस्तावेजों के साथ साबित किया गया है कि अयोध्या में ‘कोट राम’ जन्मस्थान जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई जय सिंह द्धितीय के अधिकार में रहा था।

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