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हरियाणा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने खेला बड़ा दांव

हरियाणा चुनाव करीब हैं. इसी के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी ने फोगाट परिवार पर बड़ा दांव खेला है. महावीर फोगाट सोमवार को जेजेपी का साथ छोडकर बीजेपी में शामिल हो गए. उन्होंने अपने बेटी और रेस्लर बबीता फोगाट को भी भाजपा में शामिल कराया. बबीता ने हाल में हरियाणा पुलिस के इंस्पेक्टर पद से इस्तीफा दिया है. महावीर फोगाट के बीजेपी में शामिल होने से दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को बडा झटका लगा है. महावीर जेजेपी में स्पोर्ट विंग का चार्ज संभाल रहे थे. बबीता का युवाओं में पॉपुलर फेस होने और हरियाणा चुनाव को देखते हुए महावीर और बबीता में से किसी न किसी को ​बीजेपी की ओर से विधानसभा का टिकट मिलने के पूरे पूरे आसार हैं. बबीता और महावीर फोगाट ने केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू की मौजूदगी में बीजेपी का हाथ थामा. इस दौरान बीजेपी के नेता अनिल जैन, रामविलास शर्मा और अनिल बलूनी भी मौजूद रहे.

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बात करें बबीता फोगाट की तो बबीता कॉमनवेल्थ की गोल्ड मेडलिस्ट हैं. उन्होंने 2009, 2011 और 2018 के कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक विजेता रही. साथ ही 2013 की एशियन रेस्लिंग टूर्नामेंट में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता. गौरतलब है कि एक समय में जब हरियाणा में लड़कियों का पैदा होना भी एक अभिशाप माना जाता था, उस ​कठिन दौर में नौकरी छोड़ महावीर फोगाट ने अपनी बेटियों को पुरूष प्रधान खेल कुश्ती में पारंगत किया बल्कि उन्हें विश्व स्तर पर पहुंचाया.

महावीर फोगाट खुद भी एक रेस्लर रह चुके हैं, ऐसे में उन्होंने ही अपनी बेटियों के कोच की जिम्मेदारी निभायी. इतना करने के बाद भी उन्हें उतनी ख्याति नहीं मिली लेकिन आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ ने महावीर सिंह और और बबीता की जिंदगी को दर्शकों एवं युवा वर्ग के सामने रखा. साथ ही बबीता को एक यूथ आइकन के तौर पर पहचान दिलायी.

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बता दें, हाल में बबीता फोगाट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद बीजेपी सरकार की तारीफ की थी. बबीता ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के एक भाषण को रिट्वीट करते हुए कहा, ‘मेरे मन में जरा भी कन्फ्यूजन नहीं था कि अनुच्छेद 370 हटना चाहिए या नहीं. मैं मानती हूं कि 370 से देश और कश्मीर का भला नहीं हुआ. इसे बहुत पहले ही हट जाना चाहिए था. 370 हटने के बाद कश्मीर में आतंकवाद खत्म होगा और कश्मीर विकास के मार्ग पर आगे बढ़ेगा.’

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दिग्गी ने शिवराज को बताया नेहरू के पैरों की धूल

जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने के बाद नेताओं की छीटाकशी और जुबानी जंग तेज हो गयी है. हाल ही में मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर टिप्पणी करते हुए उन्हें ‘अपराधी’ करार दिया. अब उनके इस बयान पर कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्गविजय सिंह और प्रदेश के वर्तमान सीएम कमलनाथ ने पलटवार किया. दोनों ने शिवराज पर निशाना साधा है.

बता दें, शनिवार को ओडिशा में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिवराज सिंह ने कहा, ‘जब भारतीय सेना कश्मीर में पाकिस्तानी कबायलियों को खदेड़ रही थी, तभी नेहरू ने संघर्ष विराम का ऐलान कर दिया. इस वजह से कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया. अगर ऐसा नहीं होता तो पूरा कश्मीर भारत का होता. जवाहर लाल नेहरू का दूसरा अपराध अनुच्छेद 370 था. भला एक देश में कैसे दो निशान, दो विधान (संविधान) और दो प्रधान अस्तित्व में हो सकते हैं? यह केवल देश के साथ अन्याय नहीं बल्कि अपराध भी है.’

इस बयान का जवाब देते हुए दिग्गविजय सिंह ने शिवराज सिंह को नेहरूजी की पैरों की धूल बताया. उन्होंने कहा, ‘नेहरू के पैरों की धूल भी नहीं हैं शिवराज. शर्म आनी चाहिए उनको.’ साथ ही दिग्गी ने कहा, ‘सरकार ने आर्टिकल 370 हटाकर अपने हाथ आग से जला लिया है. कश्मीर को बचाना हमारी प्राथमिकता है. मैं मोदी, अमित शाह और अजित डोभाल से अपील करता हूं कि सावधान रहें, वरना हम कश्मीर खो देंगे.’

इसी मुद्दे पर एमपी के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए लिखा, ‘देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है, जिन्होंने आज़ादी के लिये संघर्ष किया,जिनके किये गये कार्य व देश हित में उनका योगदान अविस्मरणीय है. उनको मृत्यु के 55 वर्ष पश्चात आज अपराधी कह कर संबोधित करना बेहद आपत्तिजनक व निंदनीय है.’

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने हाल में जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाते हुए राज्य को जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. जम्मू कश्मीर में विधानसभा को यथावत रखा है जबकि लद्दाख बगैर विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश रहेगा. इस पर प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए बताया था कि शांति को देखते हुए ऐसा किया गया है. ज्यादा समय तक ऐसा नहीं रहने वाला. हमारे इस फैसले से न केवल देश में शांति पनपेगी, विकास भी चरम पर होगा.

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अगले साल गर्मियों तक ही हो पाएंगे

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अब अगले साल गर्मियों तक ही होने के आसार हैं. इससे पहले उम्मीद थी कि महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव होंगे, लेकिन केंद्र सरकार के धारा 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन करने के फैसले के बाद यह उम्मीद समाप्त हो गई है. इसका पहला संकेत यही है कि हाल ही भाजपा ने महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में चुनाव प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रभारी नियुक्त नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि 31 जुलाई को भाजपा कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा की अध्यक्षता में भाजपा की जम्मू-कश्मीर समन्वय समिति की बैठक हुई थी, जो तीन घंटे चली थी. इसमें अविनाश राय खन्ना को जम्मू-कश्मीर का प्रभारी बनाया गया था, जिन्हें बाद में चुनाव प्रभारी बनाया जाना था. यह काम अब टल गया है. क्योंकि अब किसी भी स्थिति में अक्टूबर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव नहीं हो सकते, क्योंकि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 31 अक्टूबर से प्रभावी होगा.

अधिनियम लागू होने के बाद चुनाव आयोग परिसीमन आयोग का गठन करेगा. संसदीय क्षेत्रों और विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होगा. इसमें समय लगेगा. जनता की राय भी मांगी जाएगी. जनता की राय मिलने के बाद परिसीमन के मसौदे की अधिसूचना जारी होगी. इसमें दो-तीन महीने का समय लग सकता है. इसके बाद सर्दियों का मौसम शुरू हो जाएगा. कश्मीर घाटी में इस दौरान बर्फबारी होती है और कड़ाके की ठंड पड़ती है. इन परिस्थितियों में अगले साल जून से पहले चुनाव होने की संभावना नहीं बनती है.

अधिनियम में पुनर्गठन के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सात सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव है. इसके बाद जम्मू क्षेत्र में कश्मीर से ज्यादा सीटें हो जाएंगी. पिछले नवंबर में भंग की गई जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीर की 46, जम्मू की 37 और लद्दाख की चार सीटें थीं. इसके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें खाली रखी गई थी. लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से यहां की चार विधानसभा सीटों समाप्त हो जाएंगी. अब लद्दाख से अलग जम्मू-कश्मीर विधानसभा का गठन होगा.

परिसीमन में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण पर जोर दिया गया है. परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 114 सीटें होंगी. इनमें पीओके की 24 खाली सीटें भी शामिल हैं. फिलहाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके को छोड़ कर लद्दाख की चार सीटों सहित कुल 87 सीटें हैं. जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की नई विधानसभा में परिसीमन के बाद विधानसभा सीटों की संख्या 90 पार हो सकती है.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुरुवार को राष्ट्र को दिए गए संदेश में स्पष्ट कर चुके हैं कि केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर को बाद में पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा. लेकिन यह वहां की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर निर्भर है. अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं रही तो जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश ही बना रहेगा. केंद्र सरकार यही चाहेगी कि राज्य की कानून-व्यवस्था उसी के हाथ में रहे.

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सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के फैसले कौ चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के फैसले को नेशनल कांफ्रेंस के दो सांसदों ने चुनौती दी है. जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा राष्ट्रपति के आदेश से समाप्त किया गया है और इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने धारा 370 का इस्तेमाल करते हुए जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाई है और यह फैसला असंवैधानिक है.

जम्मू-कश्मीर के अखबार कश्मीर टाइम्स के कार्यकारी संपादक ने भी राज्य में संचार सुविधाएं बंद करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने अपनी याचिका में मांग की है कि जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों और मीडिया के लोगों को आने-जाने की और संवाद भेजने की सुविधा होनी चाहिए. गौरतलब है कि कश्मीर में एक हफ्ते से भी ज्यादा समय से फोन और इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, जिससे पत्रकारों के लिए क्षेत्र के समाचार भेजना मुश्किल हो रहा है.

नेशनल कांफ्रेंस के बारामूला के सांसद मोहम्मद अकबर लोन और अनंतनाग के सांसद हसनैन मसूदी ने कहा है कि धारा 370 हटाने के लिए धारा 370 का ही इस्तेमाल किया गया है. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 (1) (डी) का विशेष प्रावधान धारा 370 के तहत ही समाप्त किया गया है. इस तरह धारा 370 में संशोधन किया गया है. इससे पहले कोई विचार विमर्श नहीं किया गया जम्मू-कश्मीर की जनता को भी विश्वास में नहीं लिया गया.

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला उस समय किया है, जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है. इस तरह केंद्र सरकार ने गलत तरीके से देश के संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया है. जम्मू-कश्मीर को लेकर जो भी फैसले लिए जा रहे हैं, उसमें स्थानीय लोगों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा है. स्थानीय लोगों को रातोंरात इनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है.

याचिकाकर्ता सांसदों ने जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान को निरस्त करते हुए वहां अचानक भारतीय संविधान लागू करने के फैसले पर भी एतराज किया है. उन्होंने कहा कि यह कार्य क्रमबद्ध तरीके से आवश्यकतानुसार किया जाना था. इसके लिए राज्य के संविधान को निरस्त करने की आवश्यकता नहीं थी. केंद्र सरकार का राष्ट्रपति शासन के दौरान कानून के शासन के नाम पर संघीय ढांचे में फेरबदल करने का फैसला ठीक नहीं है.

जयपुर राजघराने का दावा- हम राम के वंशज हैं

राम-जन्म भूमि अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सप्ताह में पांच दिन सुनवाई चल रही है. जज साहब ने शुक्रवार को रामलला के वकील से पूछा था कि क्या भगवान राम का कोई वंशज अयोध्या में है या नहीं. इस पर वकील ने इसकी कोई जानकारी नहीं होने की बात कही थी. अब इस पर जयपुर से दीया कुमारी ने ट्वीट किया है कि हम भगवान राम के वंशज हैं. जयपुर की गद्दी भगवान राम के पुत्र के कुछ वंशजों की राजधानी है. राजपरिवार के पोथी खाने में इससे संबंधित दस्तावेज मौजूद हैं.

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान राम के वंशजों का प्रश्न सामने आने के बाद जयपुर राजघराने की पूर्व महारानी ब्रिगेडियर भवानी सिंह की पत्नी पद्मिनी देवी के निर्देश पर सिटी पैलेस के कपड़द्वार में सुरक्षित रखे रिकॉर्ड को सार्वजनिक किया गया. इसमें अयोध्या और राम जन्म भूमि के पुराने मानचित्र हैं. प्राचीन दस्तावेजों के अनुसार भगवान राम के पुत्र कुश के नाम पर कुशवाहा वंश की नींव पड़ी. इस वंश की वंशावली के आधार पर 62वें वंशज दशरथ थे, 63वें वंशज राम और 64वें वंशज कुछ थे. 289वें वंशज आमेर-जयपुर के सवाई जय सिंह, ईश्वरी सिंह, सवाई माधो सिंह और पृथ्वी सिंह थे. भवानी सिंह 307वें वंशज थे.

सुप्रीम कोर्ट में इस तथ्य को मान्यता मिलेगी या नहीं, कह नहीं सकते, लेकिन जयपुर में मौजूद प्राचीन दस्तावेजों के अनुसार जिस जमीन पर राम जन्म भूमि स्थल बताया जाता है, वह जयपुर के कच्छवाहा वंश के अधिकार में थी. 1707 में औरंगबेज की मौत के बाद सवाई जय सिंह द्वितीय ने देश के हिंदू धार्मिक इलाकों में बड़ी-बड़ी जमीनें खरीदी थीं और वहां निर्माण कार्य करवाए थे. इसी के तहत 1717 से 1725 के दौरान अयोध्या में राम जन्म स्थान मंदिर बनवाया था.

इतिहासकार आर नाथ ने कपड़द्वार में रखे 9 दस्तावेजों और 2 मानचित्रों के आधार पर अपनी किताब स्टडीज इन मीडिवल इंडियन आर्कीटेक्चर में लिखा है कि अयोध्या में कोट राम जन्मस्थान सवाई जय सिंह द्वितीय के अधिकार में रहा था. पद्मिनी देवी ने बताया कि ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने 1992 में ही मानचित्र सहित अन्य दस्तावेज अदालत को सौंप दिए थे. जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा फर्ज था.

आर नाथ का दावा है कि राम जन्मस्थान जयसिंह पुरा में है. इसकी जमीन औरंगजेब की मौत (1707) के बाद 1727 में हासिल की गई थी. जय सिंह को इस जमीन पर निर्माण की अनुमति दी गई थी. प्राचीन मानचित्र में अयोध्या में हवेली, सरईपुर और कटला भी दर्शाए गए हैं. अवध के तत्कालीन नायब नाजिम कल्याण राय का हुकुमनामा भी है. सवाई जयसिंहपुरा परकोटे से घिरा था. जय सिंह ने सरयू नदी पर धार्मिक अनुष्ठान भी करवाया था. मानचित्र में अयोध्या के विहंगम दृश्य दर्शाए गए हैं. सारे निर्माण कार्य आठ साल में पूरे किए गए थे. किला महल औऱ रामकोट भी जयसिंहपुरा में शामिल था. इसमें धनुषाकार प्रवेशद्वार था. भगवान राम की खड़ाऊ का स्थान भी था. जानकीजी का स्नानागार और नौ मंजिला महल था. सप्तसागर महल में राम के शिक्षा ग्रहण करने का स्थान और सीता का अग्निकुंड भी था.

जयसिंहपुरा की जमीन के पट्टे और अनेक दस्तावेज कपड़द्वार में सुरक्षित हैं. खरीद के पेटे जयपुर रियासत ने रकम का भुगतान किया था, इसके दस्तावेज भी हैं. सवाई जय सिंह ने जमीन खरीदने के बाद सुरक्षा के लिए परकोटा बनवाया था. सारा इलाका सैन्य सुरक्षा से घिरा था और इसमें किसी अन्य व्यक्ति को निर्माण की अनुमति नहीं थी. यहां का किला कोट रामचंद्रपुरा सरयू तट से करीब 40 फीट ऊंचाई पर बनाया गया था. इससे पहले सवाई जय सिंह ने राम जन्म स्थान का जीर्णोद्धार करवा दिया था. हिंदू शैली के मंदिर में तीन शिखर भी बनवाए थे. पूरा निर्माण कार्य हिंदू धर्म शास्त्रों के आधार पर करवाया गया था.

1776 में तत्कालीन नवाब आसफउद्दौला राजा भवानी सिंह को हुक्म दिया था कि अयोध्या और इलाहाबाद स्थित जयसिंहपुरा में कोई दखल नहीं किया जाएगा. ये जमीनें हमेशा कच्छवाहा वंश के अधिकार में रहेगी. इसके बाद अब इस जमीन की क्या स्थिति है, इसको लेकर कोर्ट में विवाद चल रहा है. इस विवाद में जयपुर में मौजूद दस्तावेजों का भी उल्लेख होना चाहिए.

जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता पद्मिनी देवी का कहना है कि अयोध्या के राम जन्म भूमि विवाद का जल्दी समाधान होना चाहिए. कोर्ट ने पूछा है कि भगवान राम के वंशज कहां हैं, इसलिए हम सामने आए हैं. हम उनके वंशज हैं. दस्तावेज सिटी पैलेस के पोथीखाने में मौजूद हैं. हम नहीं चाहते कि वंश का मुद्दा बाधा पैदा करे. राम सबकी आस्था के प्रतीक हैं. दीया कुमारी ने कहा कि दुनिया भर में राम के वंशज हैं. इसमें हमारा परिवार भी शामिल है, जो भगवान राम के बेटे कुश का वंशज है. यह इतिहास की खुली किताब की तरह है.

इतिहास में कुशवाहा वंश सूर्यवंशी राजपूतों की एक शाखा बताया जाता है. इसे मिलाकर क्षत्रियों के कुल 36 वंशों के प्रमाण मिलते हैं. इनमें दस सूर्यवंशी, दस चंद्रवंशी, 12 ऋषि वंसी और चार अग्निवंशी क्षत्रिय हुआ करते थे. समय गुजरने के साथ ही चौहान वंश 24 अलग वंशों में बंट गया. इसके बाद क्षत्रियों के कुल 62 वंश माने जाते हैं. इन्हीं में से एक कुशवाहा वंश है, जिसे कच्छवाहा भी कहते हैं. कच्छवाहा राजपूतों की देश भर में 65 खापें हैं.

एक बार फिर गांधी परिवार के पास ही कांग्रेस की कमान, सोनिया गांधी बनीं अंतरिम अध्यक्ष

एक बार फिर गांधी परिवार के पास ही कांग्रेस की कमान, सोनिया गांधी बनीं अंतरिम अध्यक्ष

शनिवार शाम को हुई कांग्रेस वर्किंग कमिटी की दूसरी बैठक में सर्वसम्मति से फैसला लिया गया की यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेसी नेताओं के पांच पैनल के आधार पर ली गई राय में सोनिया गांधी का नाम ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सामने आया. पहले तो सोनिया गांधी ने मना किया, लेकिन पार्टी नेताओं के आग्रह पर उन्होंने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए हां कर दी.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद और हरीश रावत ने बैठक ख़त्म होने के बाद जानकारी देते हुए कहा कि सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया गया है और अध्यक्ष पद से दिया गया राहुल गांधी का त्यागपत्र भी स्वीकार कर लिया गया है.

बैठक के बाद कांग्रेस महासचिव वेणुगोपाल और पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस को सम्बोधित करते हुए बताया कांग्रेस कार्यसमिति की दूसरी बैठक में सर्वसम्मति से तीन प्रस्ताव पारित किए गए.

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पहला प्रस्ताव यह पारित हुआ कि राहुल गांधी उम्मीद की नई किरण के रूप में सामने आए और पार्टी का शानदार नेतृत्व किया. इसके लिए पार्टी ने उनका धन्यवाद किया. लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने इसकी ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दिया था. उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया है. हालांकि उनसे गुज़ारिश की गई है कि वो पार्टी को आगे भी रास्ता दिखाते रहें. राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में व्यापारियों, किसानों, मजदूर, दलित, महिलाओं, आदिवासियों के लिए आवाज उठाई.

दूसरा, कार्यसमिति ने कांग्रेस के सभी प्रदेश नेताओं के विचार जाने और प्रस्ताव पारित किया कि सभी की इच्छा है कि राहुल अपने पद पर बने रहें. राहुल गांधी को इस्तीफ़ा वापिस लेने के लिए अपील की गई जिसे उन्होंने ठुकरा दिया और कहा कि ज़िम्मेदारी की कड़ी की शुरुआत उनसे होनी चाहिए. इसके बाद सर्वसम्मति से सोनिया गांधी से अपील की गई कि वो पार्टी का कार्यभार संभालें और उन्हें तब तक के लिए पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया है जब तक एक पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता.

तीसरा, कार्यसमिति में जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा हुई और तीसरा प्रस्ताव पारित किया गया कि सरकार से गुज़रिश की जाएगी कि विपक्षी पार्टियों के एक दल को हालात का जायज़ा लेने के लिए जम्मू कश्मीर भेजा जाए. बैठक के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बैठक से बाहर आकर मीडिया को बताया कि बैठक में कश्मीर मुद्दे पर चर्चा हुई.

राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को चुनने के लिए चल रही बैठक के बीच में जम्मू कश्मीर के कुछ इलाकों में हिंसा होने और कुछ लोगों की मौत की ख़बरें आईं जिसके बाद उन्हें वहां बैठक में बुलाया गया और इसीलिए वो बैठक में आए. राहुल गांधी ने मीडिया को बताया कि “जम्मू कश्मीर में हालात काफी ख़राब हो गए हैं जिसके बाद बैठक में जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा हुई. ज़रूरी है कि पूरी पारदर्शिता के साथ प्रधानमंत्री और सरकार देश को बताएं कि जम्मू कश्मीर में क्या हालात हैं.”

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इससे पहले शनिवार सुबह हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में नेताओं के पांच समूह बनाए गए थे, जिन्होंने देश भर के नेताओं की राय जानी. इन पांच समूहों की रिपोर्ट शाम को हुई बैठक में रखी गई. सूत्रों के मुताबिक लगभग सभी नेताओं ने राहुल गांधी से अध्यक्ष बने रहने की मांग की थी. राहुल के विकल्प पर नेताओं ने ये भी कहा कि नया अध्यक्ष राहुल गांधी या फिर सीडब्ल्यूसी तय करे.

इसके बाद शनिवार शाम को दूसरी बार रात 8 बजे कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई, जिसमें यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, ज्योतिरादित्य सिंधिया और एके एंटनी समेत कई बड़े नेता मौजूद रहे. बैठक में काफी देर तक राहुल गांधी नहीं पहुंचे, हालांकि सभी बैठक में राहुल गांधी का इंतजार करते रहे. काफी कहने के बाद राहुल गांधी बैठक में पहुंचे.

गौरतलब है कि सोनिया गांधी इससे पहले 1998 में पार्टी की तब बागडोर संभाल चुकी हैं. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की थी और 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस की अगुआई में केन्द्र में यूपीए की सरकार भी रही. सोनिया गांधी के नाम सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रहने का रेकॉर्ड है. वह 1998 में अध्यक्ष बनीं और 2017 तक वह इस पद पर बनी रहीं. इसके बाद राहुल गांधी ने पार्टी की बागडोर अपने हाथ में ली, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

‘महिलाएं पुरुषों के स्वामित्व वाली संपत्ति नहीं हैं’

Bechendra Modi
Bechendra Modi

जब से जम्मू कश्मीर से धारा 370 और धारा 35ए समाप्त हुई है, नेताओं की कश्मीरी युवतियों को लेकर छिटाकशी थमने का नाम नहीं ले रही. हाल में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी कश्मीरी युवतियों को लेकर एक टिप्पणी की जिस पर जमकर बवाल हो रहा है. फतेहाबाद में गए थे खट्टरजी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान पर चर्चा करने लेकिन टिप्पणी कर आए कश्मीर से बहू लाने की.

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इसके बाद नेताजी की इतनी फजीय​त हुई कि उन्हें माफी तक मांगनी पड़ी. शादी-ब्याह पर टिप्पणी करने वाले खट्टरजी को यहां तक कहना पड़ा कि वहां की लड़कियां तो मेरी बेटियों के समान हैं. लेकिन उन्होंने माफी मांगने में काफी देर कर दी. इससे पहले राहुल गांधी, बंगाल सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने सोशल मीडिया पर उनके इस व्यवहार पर जमकर सुनाया. मालीवाल ने तो खट्टर के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कराने की सलाह दी.

इस मामले पर राहुल गांधी, ममता बनर्जी और स्वाति मालीवाल ने सोशल मीडिया पर ट्वीट किए जिनपर यूजर्स ने जमकर मनोहर लाल खट्टर की क्लास लगायी. हालांकि यूजर्स का एक तबका वो भी है जो खट्टर के बचाव में आ गया लेकिन अन्य यूजर्स का ये कहना भी गलत नहीं कि अगर हरियाणा सीएम गलत नहीं तो उन्होंने माफी क्यों मांगी. यानि दाल में पक्का कुछ काला है.


इससे पहले मुजफ्फरनगर के बीजेपी विधायक विक्रम सोनी भी कुछ इसी तरह का बयान देकर चर्चा में रह चुके हैं. एक कार्यक्रम में सोनी ने ये कहकर हंगामा कर दिया था कि अब हमारे कुंवारे कार्यकर्ता कश्मीर जाकर प्लॉट खरीद सकते हैं और शादी भी कर सकते हैं. इस पर बॉलीवुड एक्ट्रस ऋचा चड्ढा ने उन्हें ‘सेक्स का भूखा डाइनोसॉर’ कहकर संबोधित किया.

जनता की कमर तोड़ने की तैयारी कर रही है गहलोत सरकार

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