होम ब्लॉग पेज 3138

‘अधिकतम सदस्यता दिवस’ मनाकर दी वाजपेयी को श्रद्धांजलि

शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजली देते हुए राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी ने इस दिन को ‘अधिकतम सदस्यता दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया. जिसमें पार्टी के सभी सदस्य, जिला संयोजक, जिला प्रवासी, प्रभारी, विभिन्न मोर्चो, इकाइयों व कार्यकर्ताओं ने पार्टी के अधिक से अधिक सदस्य बनाये. अधिकतम सदस्यता अभियान के तहत आज प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित पार्टी के कई वरिष्ट नेता प्रदेशभर में प्रवास पर रहे एवं विभिन्न बूथों पर जाकर पार्टी के लिए अधिकतम सदस्य बनाये.

गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा इन दिनों देशव्यापी सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है. बीजेपी ने पार्टी के और सदस्य बढ़ाने के लिए 6 जुलाई को देशव्यापी सदस्यता अभियान की शुरुआत की थी, शुरूआत में यह अभियान 11 अगस्त तक चलने वाला था, लेकिन जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद पार्टी से जुडने वाले लोगो की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हुआ, जिसे देखकर पार्टी ने इस अभियान को बढाकर प्रदेश में 20 अगस्त तक कर दिया. पार्टी से वंचित लोगों को जोड़ने के लिए भाजपा ने इस अभियान की शुरुआत की थी. इस सदस्यता अभियान के तहत राजस्थान में पार्टी के तमाम सांसद, विधायक, पदाधिकारी और कार्यकर्ता जोरशोर से ‘भाजपा सदस्यता अभियान’ के तहत मिस्ड कॉल और फॉर्म के जरिये लोगो को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवा रहे है.

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कि प्रथम पुण्यतिथि पर भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों द्वारा श्रद्धांजली देते हुए राजस्थान में ‘अधिकतम सदस्यता दिवस अभियान’ चलाया गया जिसमें पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री वसंधरा राजे जयपुर के शाहपुरा में अधिकतम सदस्यता अभियान के तहत प्रवास पर रही. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया पाली, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड बीकानेर देहात, प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर करौली, पूर्व मंत्री अरूण चतुर्वेदी नागौर शहर, सदस्यता अभियान के प्रदेश प्रभारी व विधायक सतीश पूनियां जयपुर के झोटवाडा, भीलवाडा सांसद सीपी जोशी राजसमंद, राज्यसभा सांसद नारायण पंचारिया कोटा शहर, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र गहलोत नागौर देहात, प्रदेश महामंत्री भजन लाल शर्मा दौसा के प्रवास पर रहे. इस दौरान इन सभी नेताओं ने बूथ पर जाकर अधिकतम लोगो को पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाते हुए पूर्व प्रधाानमंत्री वाजपेयी को श्रद्धाजली दी.

राजस्थान में भाजपा सदस्यता अभियान के प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया ने शुक्रवार को प्रदेश भाजपा मुख्यालय पर पत्रकार वार्ता में बताया कि प्रदेश में पार्टी के इस सदस्यता अभियान में अब तक करीब 35 लाख सदस्य बनाये जा चुके है और हमारा लक्ष्य प्रदेश में अधिक से अधिक सदस्य बनाने का है जबकी राष्ट्रीय नेतृत्व ने प्रदेश को 10 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया था.

पूनिया ने आगे बताया कि पिछले दिनों हुई वीडियो कांफ्रेंस में राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने राजस्थान को सदस्यता अभियान में अव्वल बताया था. पूनिया ने बताया कि राजस्थान में हमने पार्टी के सभी अग्रिम संगठनों के साथ अभियान चला रखा है इस अभियान के तहत युवा मोर्चा, महिला मोर्चा सहित सभी अग्रिम संगठनों ने कैम्प लगा कर सदस्यता अभियान चलाया है. यही कारण है कि प्रदेश में अब तक 35 लाख सदस्य जोड़ने में पार्टी सफल हुई है.

जींद में अमित शाह के तेजस्वी भाषण के साथ ही विधानसभा चुनाव का बजा बिगुल

संसद के मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों में अपनी जबरदस्त ताल ठोक चुकी बीजेपी अब साल के आखिर में होने वाले हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को हरियाणा के जींद से इसकी शुरुआत की.

केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को हरियाणा के एकलव्‍य स्‍टेडियम में आयोजित आस्‍था रैली में ‘भारत माता की जय’ के जयकारे के साथ आगामी महीनों में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया. अमित शाह के भाषण का अधिकांश हिस्सा कश्मीर से अनुच्छेद370 को हटाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ पर रहा. शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने देश की जनता और सरदार बल्‍लभ पटेल के सपने को पूरा किया है. मोदी सरकार ने देश को एक किया और जम्‍मू-कश्‍मीर से 370 हटाकर वहां विकास की राह खोली. उन्‍हाेंने चीफ ऑफ आर्मी स्‍टाफ को देश की सुरक्षा को मजबूत करने वाला कदम बताते हुए दुश्‍मन के लिए वज्र के समान बताया.

कांग्रेस पर सीधा निशाना साधते हुये बीजेपी के चाणक्य ने कहा कि 70 साल तक कांग्रेस की सरकार वोटबैंक के लालच में जम्मू कश्मीर में ये सब नहीं कर पाई. नरेंद्र मोदी वोट बैंक की राजनीति नहीं करते और उनको बस मां भारती की परवाह है. यही कारण है कि उन्होंने जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 खत्‍म करने का निर्णय किया और जो काम 70 साल में नहीं हुआ वो मोदी जी ने 75 दिनों में कर दिखाया.

बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं हरियाणा में जब भी आया यहां की जनता ने हमेशा मेरी झोली कमल के फूलों स्व भरी दी. विधानसभा चुनाव में आया तो यहां पहली बार भाजपा की सरकार बना दी. लोकसभा चुनाव में आया तो जनता ने अपार प्यार दिया और मोदी जी के नेतृत्व में 300 पार की फिर से सरकार बना दी. इस बार आया हूँ तो मुझे विश्वास है कि इस बार भी जब चुनाव होंगे तो वीरभूमि के लोग 75 सीटों के साथ मनोहर लाल खट्टर को आशीर्वाद देंगे.’

गृहमन्त्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ ऑफ आर्मी स्‍टाफ की नियुक्ति का बड़ा कदम उठाया है. यह देश की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा कदम है. इससे देश की तीनों सेनाएं बेहतर तालमेल से काम कर सकेंगी. यह दुश्‍मन के लिए वज्र के समान साबित होगा. अमित शाह ने कहा, आज कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक एकसूत्र में बंध चुका है. पीएम मोदी ने मां भारती का गौरव बढ़ाया है. आज पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की आत्‍मा ऊपर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अनुच्‍छेद 370 को हटाने के लिए आशीर्वाद दे रही होगी.

अमित शाह ने हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहरलाल की भी जमकर तारीफ की और हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की. उन्‍होंने कहा कि जाति व वर्ग की राजनीति करने वाले नेताओं ने हरियाणा में नफरत और भेदभाव का माहौल बना रखा था. मनोहरलाल की सरकार ने इसे खत्‍म कर पूरे राज्‍य का समान विकास कराया और जनता में उम्‍मीद की लौ जलाई. साथ ही उन्‍होंने कांग्रेस और चौटाला परिवार पर जमकर हमले किए. उन्‍होंने कहा कि कांग्रेस और चौटाला परिवार ने हरियाणा का सत्‍यानाश किया. मनोहरलाल की सरकार ने नौकरियों में भेदभाव और भ्रष्‍टाचार खत्‍म किया.

अमित शाह ने हुड्डा और चौटाला को खुले मंच से चुनौती देते हुए कहा कि वह विकास के लिए खर्च पैसों का हिसाब किताब और आंकड़े लेकर जनता के बीच जाएं, हमारे मुख्यमंत्री उनसे बहस करने को तैयार हैं. उन्‍होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और चौटाला सरकारों पर उठाए सवाल. उन्‍होंने कहा, पूर्व सरकारों में हरियाणा जमीन के व्यापार के लिए जाना जाता था. सरकारें बिल्डरों के हाथ में कठपुतलियां बनकर खेलती थी और नौकरियां व्यवसाय थीं. लेकिन, मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार ने भ्रष्टाचार को भूतकाल बना दिया है.

अमित शाह ने कहा कि हरियाणा से सभी लालों के जाने के बाद हमारा लाल (मनोहरलाल) आया है. हरियाणा में अब जातिवाद खत्‍म हो चुका है. जाति के आधार पर नौकरियों नहीं मिलती हैं और न ही जाति व क्षेत्र के आधार पर विकास होता है. तबादलों में पारदर्शिता लाकर मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल ने जनता को भारी राहत दी. लिंगानुपात में सुधार हो या ऑनलाइन तबादले या आशा वर्करों और आंगनबाडी वर्करों के मानदेय में इजाफा, मनोहर सरकार ने शानदार काम किया है.

इससे पहले रैली में पहुंचने पर अमित शाह का नारों से जोरदार स्‍वागत किया गया. रैली के आयोजक पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने अमित शाह हो ‘स्‍टील मैन’ करार दिया. अमित शाह का रैली स्‍थल पर हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहरलाल, प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष सुभाष बराला और बीरेंद्र सिंह ने अगवानी की. मुख्‍यमंत्री मनोहरलाल ने अमित शाह का स्‍वागत किया और उनको लौह पुरुष बताया. बीरेंद्र सिंह ने जम्‍मू-कश्‍मीर से 370 हटाने के लिए अमित शाह काे हरियाणवी लठ भेंट किया.

गौरतलब है कि इस आस्था रैली का आयोजन जींद में बीजेपी के राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह द्वारा करवाया गया. जींद चौधरी बीरेंद्र सिंह का गृह जिला भी है और चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता जींद जिले की उचाना सीट से विधायक हैं. हिसार संसदीय क्षेत्र से उनके बेटे बृजेंद्र सिंह भी सांसद हैं. इस रैली में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, हरियाणा के प्रभारी महासचिव अनिल जैन सहित तमाम मंत्री और नेता मौजूद रहे.

पहलू खान पर मायावती ने साधा गहलोत पर निशाना, प्रियंका ने बताया चौकानें वाला फैसला

अलवर के बहरोड़ में मॉब लिंचिंग का शिकार हुए पहलू खान और हाल में आए अलवर कोर्ट के फैसले पर अब राजनीति शुरू हो गयी है. पहलू खान मामले में एडीजे कोर्ट ने इस मामले से जुड़े सभी 6 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. मॉब लिंचिंग को लेकर राज्य में किसी कोर्ट का पहला फैसला है. अब इस मामले में बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान की गहलोत सरकार पर निशाना साधा है. वहीं प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दे को उछाला है.

यह भी पढ़ें: पहलू खान मॉब लिंचिंग मामले में सभी आरोपी बरी, अलवर जिला कोर्ट ने सुनाया फैसला

सोशल मीडिया पर मायावती ने लिखा, ‘राजस्थान कांग्रेस सरकार की घोर लापरवाही व निष्क्रियता के कारण बहुचर्चित पहलू खान माब लिंचिंग मामले में सभी 6 आरोपी वहां की निचली अदालत से बरी हो गए. यह अतिदुर्भाग्यपूर्ण है. पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के मामले में वहां की सरकार अगर सतर्क रहती तो क्या यह संभव था, शायद कभी नहीं.’


गौरतबल है कि एक अप्रैल, 2017 को हरियाणा के नूह मेवात जिले के जयसिंहपुरा गांव निवासी पहलू खान अपने बेटों के साथ जयपुर के पशु हटवाड़ा से गौवंश लेकर अलवर जा रहा था. बहरोड़ में गौतस्करी के संदेह के चलते कुछ लोगों ने पहलू खान की जमकर पिटाई की जिसमें पहलू खान गंभीर रूप से घायल हो गया. 4 अप्रैल को अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी. इस केस में जो वीडियो पेश किया गया था, उसमें आरोपियों के चेहरे साफ तौर पर नहीं दिखायी दे रहे थे. ऐसे में जज सरिता स्वामी ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभा देते हुए बरी करने का फैसला सुनाया.

पहलू खान पर अलवर एडीजे के फैसले के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने बयान में कहा कि पहलू खान को न्याय दिलाना सरकार की पहली प्राथमिकता है. सरकार एडीजे के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेगी और निष्पक्ष जांच का भरोसा दिलाया.

वहीं पीड़ितों के वकील योगेंद्र सिंह खड़ाना ने भी इशारा किया था कि फैसले की कॉपी मिलने के बाद इसका अध्ययन किया जाएगा और उसके बाद ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाएगी.

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की. प्रियंका गांधी ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, ‘पहलू खान मामले में लोअर कोर्ट का फैसला चौंका देने वाला है. हमारे देश में अमानवीयता की कोई जगह नहीं होनी चाहिए और भीड़ द्वारा हत्या एक जघन्य अपराध है.’

उन्होंने गहलोत सरकार द्वारा मॉब लिंचिंग कानून बनाए जाने की सराहना करते हुए कहा कि राजस्थान सरकार द्वारा भीड़ द्वारा हत्या के खिलाफ कानून बनाने की पहल सराहनीय है. आशा है कि पहलू खान मामले में न्याय दिलाकर इसका अच्छा उदाहरण पेश किया जाएगा.

भाजपा के संगठन चुनाव का कार्यक्रम तय

भाजपा के संगठन चुनाव का कार्यक्रम तय हो गया है. चुनाव प्रक्रिया 11 सितंबर से शुरू होगी और अगले साल की शुरूआत में भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा. फिलहाल अमित शाह भाजपा अध्यक्ष हैं. उनके गृहमंत्री बनने के बाद जेपी नड्डा को अंतरिम तौर पर कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. मंगलवार 13 अगस्त को दिल्ली में भाजपा के 33 राज्यों के चुनाव अधिकारियों की कार्यशाला हुई थी. इसमें संगठन चुनाव की रूपरेखा विस्तार से बताई गई.

कार्यशाला में भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव प्रभारी पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह, कार्यवाहक अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन चुनाव के प्रभारी महासचिव बीएल संतोष मौजूद थे. भाजपा का संगठन चुनाव पार्टी का तीन वर्ष का सदस्यता अभियान पूरा होने के बाद कराया जा रहा है. भाजपा में हर तीन साल में नया सदस्यता अभियान चलाया जाता है.

बड़ी खबर: कांग्रेस को अब सोनिया गांधी से फायदा कम, नुकसान ज्यादा

बैठक के बाद राधामोहन सिंह ने पत्रकारों को बताया कि संगठन चुनाव की प्रक्रिया 11 सितंबर से शुरू होगी. शुरू में बूथ अध्यक्ष चुने जाएंगे और बूथ समिति के सदस्यों का चुनाव होगा. ये चुनाव हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में होंगे. उन्होंने कहा कि भाजपा की चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह लोकतांत्रिक और पारदर्शी है. यहां जमीनी स्तर के कार्यकर्ता पदाधिकारियों का चुनाव करते हैं. तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने से वहां की मौजूदा प्रदेश इकाइयों को काम करने में बाधा न हो, इसलिए वहां संगठन चुनाव स्थगित रखा गया है. सिंह ने कहा कि पार्टी इन राज्यों में प्रयोग करना नहीं चाहती. इन राज्यों में बाद में संगठन चुनाव कराए जाएंगे

बूथ स्तर के चुनाव होने के बाद मंडल स्तर के चुनाव होंगे. मंडल अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया 11 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक चलेगी. नवंबर में जिला इकाइयों के चुनाव होंगे. इसके बाद प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होगा. प्रदेश इकाइयों के चुनाव संपन्न होने के बाद एक नई चुनाव समिति गठित की जाएगी, जो राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करवाने की जिम्मेदारी संभालेगी. सिंह ने सभी प्रदेश इकाइयों को इस संबंध में पत्र लिख दिया है.

गौरतलब है कि भाजपा का संगठन चुनाव करवाने के लिए जुलाई में नई टीम बनाई गई थी, जिसका प्रभार पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह को सौंपा गया है. लोकसभा सांसद विनोद सोनकर, पूर्व सांसद हंसराज अहिर और कर्नाटक के पूर्व विधायक सीटी रवि राधामोहन सिंह की मदद कर रहे हैं. भाजपा का संगठन चुनाव कराने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है.

कांग्रेस को अब सोनिया गांधी से फायदा कम, नुकसान ज्यादा

कांग्रेस को लेकर जो घटनाक्रम चल रहा है, उससे लगता है कि सोनिया गांधी के अलावा कांग्रेस को और कोई नहीं संभाल सकता. अब कांग्रेस बिखरेगी, क्योंकि राजनीति में सोनिया गांधी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही. अब सोनिया की मौजूदगी से कांग्रेस को फायदा कम, नुकसान ही ज्यादा होगा. सोनिया गांधी ने बड़े जतन से कांग्रेस अध्यक्ष संभाला था, यह सोचकर कि उनके बाद उनका बेटा राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएगा. देश पर परिवार का राज कायम रहेगा. राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन भी गए, लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हुआ. कांग्रेस की हालत ‘ढाक के तीन पात’ जैसी हो गयी है. एक सोनिया गांधी, दूसरे राहुल गांधी और तीसरी प्रियंका गांधी वाड्रा. ये तीनों कांग्रेस की ढाक के तीन पात बाकी रह गए हैं.

राहुल गांधी ने मई के अंत में लोकसभा चुनाव एक बार फिर बुरी तरह हारने के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए घोषणा की थी कि पार्टी अब किसी अन्य नेता को संभालनी चाहिए. चयन प्रक्रिया में वह, उनकी मां या उनकी बहन में से किसी का दखल नहीं रहेगा. उन्हें मनाने की बहुत कोशिशें हुईं, लेकिन नतीजा सिफर रहा. इतनी पुरानी और इतनी महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी में एक भी माई का लाल ऐसा नेता नहीं निकला जो इस डूबता जहाज बनी पार्टी को तिनके का सहारा दे सके. कोई पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष तक बनने के लिए तैयार नहीं है.

यह लोकतंत्र में एक राजनीतिक पार्टी के विकट केंद्रीकरण का दुष्परिणाम है. कांग्रेस ने भारतीय लोकतंत्र में परिवार आधारित पार्टी का चलन शुरू किया, जिससे अन्य पार्टियों ने भी प्रेरणा ली. आज ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों की बागडोर किसी प्रमुख व्यक्ति या उनके परिवार के पास है. मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी, अजीत सिंह का लोकदल, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, टी चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति, मायावती की बहुजन समाज पार्टी. इस तरह की कई पार्टियां अपने देश में है. इन सभी पार्टियों में लोकतंत्र का नाटक अवश्य होता है. चुनाव होते हैं, अध्यक्ष चुने जाते हैं. लेकिन अध्यक्ष वही बनता है, जो पार्टी चलाता है.

यह भी पढ़ें: सूखते पोखर में बैठी भैंस की तरह हो चुकी है कांग्रेस

देश की जनता लोकतंत्र चाहती है, लोकतंत्र का नाटक नहीं. वह देश के साथ ही पार्टियों में भी लोकतंत्र चाहती है. भाजपा के रूप में जनता को विकल्प मिला तो कांग्रेस सहित बाकी सभी पार्टियों की लोकसभा चुनाव में क्या हालत हुई, सबके सामने है. पिछली मोदी सरकार में हुई नोटबंदी से जनता को परेशानी अवश्य हुई, लेकिन फिर भी उन्होंने भाजपा को वोट देकर नरेन्द्र मोदी में भरोसा जताया क्योंकि जिस तरह सोनिया गांधी के इशारे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार दस साल चली, उसमें हुए आर्थिक घोटालों की खबरें लोगों की याद में अभी भी ताजा हैं. लोग यही समझते हैं कि मोदी सरकार में जनता को थोड़ी बहुत तकलीफ भले ही हो रही हो, लेकिन वह कम से कम इस स्तर पर भ्रष्टाचार तो नहीं करेगी. हो सकता है यह प्रचार माध्यमों के जरिए लोगों की यह धारणा बनी हो, लेकिन फिलहाल देश की बहुसंख्यक जनता को मोदी पर भरोसा है.

कांग्रेस लगातार दो बार लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद भी गांधी परिवार के दायरे से बाहर नहीं निकल पाई है. गांधी परिवार अपने हिसाब से राजनीति कर रहा है. वह अपने अलावा और किसी अन्य पार्टी को विपक्ष समझता ही नहीं है, इसी लिए प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चुनाव प्रचार करने उतरी और वहां की प्रमुख विपक्षी पार्टियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की संभावनाओं में भी पलीता लगा गई. कांग्रेस को तो खैर जीतना ही नहीं था. अमेठी और रायबरेली की सीटें कांग्रेस के लिए सुरक्षित मानी जाती थी. अमेठी से राहुल गांधी भी हार गए.

इस तरह गांधी परिवार ने मोदी सरकार को भारी बहुमत से जिताने में कांग्रेस की तरफ से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इससे राहुल गांधी की मेहनत पर भी पानी फिरा, जो कि प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में उभर रहे थे और कभी अखिलेश से तो कभी किसी अन्य विपक्षी पार्टी से संपर्क बढ़ा रहे थे. लेकिन जब कांग्रेसी कठपुतलियों की डोर पूरी तरह सोनिया गांधी के हाथ में है तो राहुल क्या कर सकते थे? इस तरह पार्टी नहीं चल सकती, इस बात को समझते हुए ही उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया. राहुल गांधी अपनी मर्जी से पार्टी को चला ही नहीं सकते थे. जब राहुल गांधी ने तेवर दिखाने शुरू किए, तब प्रियंका को उत्तर प्रदेश के चुनाव मैदान में कूदने की जरूरत क्यों पड़ी? उन्होंने मोदी सरकार को नुकसान पहुंचाने की बजाय उलटे अपने भाई को ही हरवा दिया.

अब पतझड़ हो रही है. कांग्रेस के तमाम नेता भाजपा में शामिल होने के लिए कतार लगाए हुए हैं. भाजपा भी इस अवसर का राजनीतिक लाभ उठाने में जुट गई है. कांग्रेस के नेता समझ रहे थे कि राहुल गांधी मान जाएंगे और अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे, लेकिन दो महीने में भी राहुल टस से मस नहीं हुए. उन्हें उनकी मां सोनिया गांधी ने भी समझाया होगा, लेकिन बात नहीं बनी. दो महीने बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें राहुल गांधी का इस्तीफा मंजूर किया गया. पहले तय हुआ कि राहुल और सोनिया अंतरिम अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया से अलग रहेंगे, लेकिन दिन ढलते-ढलते फैसला सोनिया गांधी पर आकर ही टिका. सोनिया गांधी से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनने का अनुरोध किया गया और उन्होंने मान भी लिया. राहुल गांधी की यह बात गलत साबित हो गई कि अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया से वह, सोनिया और प्रियंका अलग रहेंगे. अब कांग्रेस में भी कौन राहुल गांधी की बात पर भरोसा करेगा?

बड़ी खबर: प्रियंका ने निभाया वादा, सरकार ने बताया राजनीतिक स्टंट

इस तरह सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल गांधी के राजनीतिक करियर पर पूर्ण विराम लगाते हुए कांग्रेस को अपनी जायदाद घोषित कर दिया है. कांग्रेस के सभी बड़े-बड़े नेता सोनिया गांधी के साथ हैं. राहुल गांधी के साथ कौन बचा? अब पार्टी में राहुल गांधी के समर्थकों को भी परेशानी होगी, जो आगे बढ़कर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. जैसे सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, रणदीप सिंह सुरजेवाला और अन्य. जो युवा नेता राहुल गांधी से टिकट लेकर कांग्रेस सांसद बन गए हैं, उनमें भी निराशा फैल जाएगी. समझ सकते हैं कि कांग्रेस का क्या होने वाला है?

अगर नरेन्द्र मोदी चुनावी भाषणों में संकल्प व्यक्त करते रहे हैं कि देश को कांग्रेस मुक्त बनाना है तो उनका संकल्प पूरा होने में अब ज्यादा समय बाकी नहीं बचा है. सोनिया गांधी ने इसके संकेत दे दिए हैं. सोनिया की अध्यक्षता में कांग्रेस अब अपने अस्तित्व के सबसे आखिरी पायदान पर है. जनता को अब एक नए विपक्ष की तलाश करनी पड़ेगी.

जयपुर राजघराना, मेवाड़ राजघराना, करणी सेना, राजस्थान कांग्रेस प्रवक्ता, के बाद अब परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का दावा- ‘हम भी हैं भगवान राम के वंशज’

स्वतंत्रता दिवस पर पायलट ने किया स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान

देश भर में 73वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया गया. पूरे देश में झंडारोहण के साथ-साथ विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित हुए. स्वतंत्रता दिवस के इस पावन पर्व पर आज जयपुर स्थित इंदिरा गांधी भवन स्थित राजस्थान प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर झंडारोहण किया गया प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किया गया.

73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने प्रात: 7:30 बजे प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर ध्वजारोहण किया. इस अवसर पर उपस्थित कांग्रेस जनों को संबोधित करते हुए पायलट ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए समाज के कमजोर, पिछड़े व गरीब वर्ग का कल्याण करना आज सबसे बड़ी चुनौती है और कांग्रेस जनों को इस कसौटी पर खरा उतरना है.

अपने संबोधन में आगे पायलट ने कहा कि आज देश में आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी समस्याएं देश की एकता एवं अखण्डता के लिए खतरा है. इसलिए हम सभी कांग्रेस जनों का दायित्व है कि अलगाववादी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर देश में एकता बनाये रखें. पायलट ने कांग्रेस जनों को आजादी के संघर्ष में पार्टी के योगदान तथा बलिदानों का स्मरण कराते हुए कहा कि कांग्रेस ने आजादी के बाद देश में विकास के जो नए आयाम स्थापित किये उसके फलस्वरूप 21 वीं सदी के भारत का प्रगतिशील निर्माण हुआ है. देश के समक्ष आने वाली सभी चुनौतियों का सामना कांग्रेस में निहित मूल्यों एवं सिद्धांतों के अनुपालन से ही हो सकता है.

झंडारोहण के पश्चात् प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर स्वतंत्रता सैनानियों का सम्मान किया गया. राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं राज्य के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने स्वतंत्रता सैनानी श्री रामू सैनी, श्रीमती सुन्दर देवी आजाद, श्री रामेश्वर चौधरी, श्री राजेन्द्र नाथ भार्गव एवं श्री कालीदास स्वामी का सूत की माला पहना ओर श्रीफल भेंटकर एवं शॉल पहनाकर सम्मान किया.

प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर आयोजित इस समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष डॉ. अर्चना शर्मा सहित अनेकों विधायक व वरिष्ठ कांग्रेस नेता उपस्थित रहे.

गाँधी के दो आगे गाँधी, गाँधी के दो पीछे गाँधी, बोलो कितने गाँधी?

शपथ ग्रहण के 18 दिन बाद भी मंत्रिमंडल का गठन तक न कर सके येदियुरप्पा, कांग्रेस के निशाने पर राज्यपाल

कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारास्वामी के इस्तीफा देने के बाद येदियुरप्पा ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. तब से वे अकेले ही सरकार चला रहे हैं. मंत्रिमंडल का गठन न होने पर कर्नाटक कांग्रेस ने प्रदेश गवर्नर वजूभाई वाला पटेल की चुप्पी पर सवाल उठाए. 

कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद की शपथ ग्रहण किए पूरे 18 दिन हो चुके हैं लेकिन वे अभी तक सरकार का मंत्रिमंडल तक गठित नहीं कर पाए हैं. ऐसे में येदियुरप्पा के साथ कर्नाटक के राज्यपाल वजूभाई वाला पटेल विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं. कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारास्वामी के इस्तीफा देने के बाद येदियुरप्पा ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. तब से वे अकेले ही सरकार चला रहे हैं.

दो हफ्ते से ज्यादा होने पर भी मंत्रिमंडल का गठन न होने पर कर्नाटक कांग्रेस ने प्रदेश गवर्नर वजूभाई वाला पटेल की चुप्पी पर सवाल उठाए. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता वीएस उगरप्पा ने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के 18 दिन हो गए. येदियुरप्पा अभी तक मंत्रिमंडल का गठन तक नहीं कर पाए हैं. मैं राज्यपाल से पूछना चाहता हूं कि क्या संविधान के अनुसार राज्य में कोई सरकार है? उन्होंने इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल से सरकार को बर्खास्त करने की मांगी की.

यह भी पढ़ें: सूखते पोखर में बैठी भैंस की तरह हो चुकी है कांग्रेस

गौरतलब है कि कर्नाटक में 16 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफा देने के चलते सत्ताधारी सरकार अल्पमत पर आ गयी. इस्तीफा देने वालों में 13 कांग्रेस और तीन जेडीएस पार्टी के विधायक थे. पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी के विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार 106 वोट के मुकाबले 100 वोटों से गिर गयी. इसके चलते कुमारास्वामी ने 23 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस घटनाक्रम के ठीक दो दिन बाद बीएस येदियुरप्पा ने राजभवन में राज्यपाल वजूभाई पटेल के समक्ष सीएम पद की शपथ ली. इस दौरान उसके साथ बीजेपी का कोई भी नेता मौजूद नहीं रहा. ऐसे में अब प्रदेश की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना वाजिब है. इस बारे में गवर्नर की चुप्पी पर कांग्रेस और जेडीएस ने लामबंद होना शुरू कर दिया है.

याद दिला दें, हाल में कुमारास्वामी ने अपने राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने की ओर इशारा भी किया था. उन्होंने कहा था कि मैं गलती से राजनीति में आ गया और मुख्यमंत्री भी बन गया. अब इस राजनीतिक करियर को आगे ले जाना मुश्किल लग रहा है.

सूखते पोखर में बैठी भैंस की तरह हो चुकी है कांग्रेस

गई भैंस पानी में और कहां जाएगी? कांग्रेस की यही हालत है. कांग्रेस के पास ऐसा कोई दमदार नेता नहीं बचा, जो पार्टी को संभाल सके. बेचारी सोनिया को ही बुढ़ापे में इतना बड़ा बोझ उठाना पड़ेगा. एक निष्प्राण हो रही पार्टी को सोनिया कैसे प्राणदान दे सकती हैं? सबकुछ उनका ही किया धरा मालूम पड़ता है. भुगतना भी उन्हें ही पड़ेगा. उन्हीं की वजह से कांग्रेस आज एक सूखते पोखर में बैठी हुई भैंस की तरह हो गई है. उसको सोनिया गांधी के अलावा कोई नहीं संभाल सकता. कांग्रेस की ऐसी हालत कैसे हुई? इस तरह के दुर्दिन क्यों आए?

कांग्रेस अच्छी भली पार्टी थी. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों को टक्कर देती थी. देश आजाद होने के बाद उसने देश का शासन संभाला और कई वर्षों तक संभाला. यह देश आज जो कुछ है, वह कांग्रेस की ही बदौलत है. कांग्रेस में कई बार विभाजन हुए. देश आजाद होने से पहले कांग्रेस से समाजवादी अलग हो गए थे. लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस का विभाजन हुआ. इसके बाद राजीव गांधी के समय कांग्रेस का विभाजन हुआ. नरसिंहराव के प्रधानमंत्री रहते समय भी कुछ लोगों ने अलग पार्टी बना ली थी. लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस का अस्तित्व बना हुआ था. इस बार ऐसा कोई चमत्कार नहीं होने वाला है कि कांग्रेस फिर से उठकर खड़ी हो जाए और केंद्र में सरकार बनाने का दावा पेश कर सके.

व्यक्ति की लोकप्रियता के आधार पर जितने दिन शासन किया जा सकता था, उतना जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने कर लिया. उनके बाद उनकी विरासत उनके परिवार के कब्जे में है. राजीव गांधी को इंदिरा गांधी के पुत्र होने के कारण जनता ने भारी बहुमत दिया. छल कपट नहीं होने के कारण वह भारी बहुमत वाली सरकार भी ठीक से नहीं चला पाए. विपक्ष में बैठे. बाद में विश्वनाथ प्रतापसिंह की सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर को समर्थन देकर कांग्रेस के समर्थन से केंद्र में सरकार बनवाई. चंद्रशेखर को गठबंधन रास नहीं आया. उन्होंने इस्तीफा दे दिया. आम चुनाव की परिस्थितियां बनीं. चुनाव प्रचार के दौरान ही 21 मई 1991 को राजीव गांधी की एक आत्मघाती बम धमाके में मौत हो गई. उसके बाद नरसिंहराव ने कांग्रेस की सरकार बनाई थी और अच्छी तरह चलाई.

यह भी पढ़ें: ‘गांधी ने गांधी को दिया इस्तीफा, फिर से गांधी बना अध्यक्ष’

नरसिंहराव की सरकार के दौरान परिवार भक्त कांग्रेसियों ने उनके काम में कई अड़ंगे लगाए. नरसिंहराव की सरकार को अगले लोकसभा चुनाव में दो सौ से कम सीटें मिली थी. उन पर आरोप लगा कि वे पार्टी को बहुमत नहीं दिलवा पाए. उनको हटाया जाए. सितंबर 1996 में वह कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिए गए और तीन जनवरी 1997 को सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया. दिसंबर 1997 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस में प्रवेश करने का फैसला किया और परिस्थितियां बदल गई.

केसरी ने अध्यक्ष पद छोड़ने से इनकार किया तो उनकी हटाने की रणनीति बनी. मार्च 1998 में एक दिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रस्ताव पारित कर सोनिया गांधी से अध्यक्ष पद संभालने का अनुरोध किया गया. सोनिया गांधी जब पार्टी कार्यालय में अध्यक्ष पद संभालने पहुंची, तब केसरी को टायलेट में बंद कर दिया गया था. बाद में उन्हें निकाल कर धक्के मारकर पार्टी मुख्यालय से बाहर निकाला गया. केसरी को इसलिए हटाया गया कि उनके अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस 150 से कम सीटें जीत सकी थी.

सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए जब लोकसभा चुनाव हुए, तब कांग्रेस को 120 सीटें भी नहीं मिल पाई थी. उस पर किसी को एतराज नहीं हुआ. उस समय सोनिया गांधी को विदेशी मूल की बताते हुए शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़ दी थी. बदलती परिस्थितियों में कांग्रेस भी अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों से गठबंधन करने लगी. नरसिंहराव का निधन 23 दिसंबर 2004 को हुआ था. उनकी पार्थिव देह को दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय लाने की अनुमति नहीं दी गई. शव फुटपाथ पर रखा गया था. उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली में नहीं हो पाया. उन्हें आंध्र प्रदेश ले जाया गया. इससे पहले 24 अक्टूबर 2000 को सीताराम केसरी का निधन हो चुका था. उस समय भी कांग्रेस की तरफ से उनका सम्मान नहीं किया गया, जबकि वह आजीवन कांग्रेस के समर्पित सिपाही रहे थे. दस साल तक कोषाध्यक्ष भी रह चुके थे.

इसके बाद से कांग्रेस पूरी तरह सोनिया गांधी के कब्जे में है और उन्होंने पहले से तय कर रखा था कि भविष्य में पार्टी पर उनके पुत्र राहुल गांधी का नियंत्रण रहेगा. राहुल करीब पंद्रह साल से सांसद हैं और पार्टी को चला रहे हैं. उन्होंने साबित कर दिया है कि वह राजनीति में बहुत कच्चे खिलाड़ी हैं. अब वह मैदान छोड़कर भागना चाहते हैं और सुकून की जिंदगी बिताना चाहते हैं, लेकिन स्थिति विकट है.

2019 का लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद ही राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि पार्टी किसी योग्य नेता का चुनाव करे. चयन प्रक्रिया में उनका, इनकी मां सोनिया या बहन प्रियंका का कोई दखल नहीं रहेगा. जो कांग्रेस कार्यसमिति पीवी नरसिंहराव और सीताराम केसरी को इस मुद्दे पर हटा चुकी कि वे लोकसभा चुनाव में पार्टी को जीतने लायक सीटें नहीं दिला पाए, वही कांग्रेस कार्यसमिति बुरी तरह हार के बाद भी राहुल गांधी का इस्तीफा मंजूर नहीं कर पा रही थी.

यह भी पढ़ें: मध्यप्रदेश में भाजपा के सहयोग से ज्योतिरादित्य सिंधिया बन सकते हैं मुख्यमंत्री!

राहुल गांधी जब इस्तीफा देने पर अड़ ही गए और दो महीने तक भी कोई फैसला नहीं हो पाया तो आखिरकार कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलानी पड़ी और सोनिया गांधी से अनुरोध करना पड़ा कि वही अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी को संभालें. सोनिया गांधी ने अनुरोध मान भी लिया. उन्होंने अपने पुत्र की बात नहीं रखी. सोनिया गांधी के फैसले के बाद कांग्रेस में राहुल गांधी का क्या महत्व रह गया है?

अब यह तय है कि राहुल गांधी, जो युवा युवा की रट लगाते थे, अब कांग्रेस में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह देखे जाएंगे. कांग्रेस की बागडोर सोनिया समर्थकों के हाथ में रहेगी. पार्टी उसी मकड़जाल में फंसी रहेगी, जिसे कांग्रेस ने खुद नरसिंहराव और केसरी के साथ दुर्व्यवहार करते हुए तैयार किया है. नरसिंहराव और केसरी का जो हस्र हुआ, उसे देखते हुए कोई भी नेता कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने की हिम्मत नहीं कर सकता. देखना है सोनिया कब तक पार्टी को बचा पाती है.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat