गई भैंस पानी में और कहां जाएगी? कांग्रेस की यही हालत है. कांग्रेस के पास ऐसा कोई दमदार नेता नहीं बचा, जो पार्टी को संभाल सके. बेचारी सोनिया को ही बुढ़ापे में इतना बड़ा बोझ उठाना पड़ेगा. एक निष्प्राण हो रही पार्टी को सोनिया कैसे प्राणदान दे सकती हैं? सबकुछ उनका ही किया धरा मालूम पड़ता है. भुगतना भी उन्हें ही पड़ेगा. उन्हीं की वजह से कांग्रेस आज एक सूखते पोखर में बैठी हुई भैंस की तरह हो गई है. उसको सोनिया गांधी के अलावा कोई नहीं संभाल सकता. कांग्रेस की ऐसी हालत कैसे हुई? इस तरह के दुर्दिन क्यों आए?
कांग्रेस अच्छी भली पार्टी थी. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों को टक्कर देती थी. देश आजाद होने के बाद उसने देश का शासन संभाला और कई वर्षों तक संभाला. यह देश आज जो कुछ है, वह कांग्रेस की ही बदौलत है. कांग्रेस में कई बार विभाजन हुए. देश आजाद होने से पहले कांग्रेस से समाजवादी अलग हो गए थे. लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस का विभाजन हुआ. इसके बाद राजीव गांधी के समय कांग्रेस का विभाजन हुआ. नरसिंहराव के प्रधानमंत्री रहते समय भी कुछ लोगों ने अलग पार्टी बना ली थी. लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस का अस्तित्व बना हुआ था. इस बार ऐसा कोई चमत्कार नहीं होने वाला है कि कांग्रेस फिर से उठकर खड़ी हो जाए और केंद्र में सरकार बनाने का दावा पेश कर सके.
व्यक्ति की लोकप्रियता के आधार पर जितने दिन शासन किया जा सकता था, उतना जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने कर लिया. उनके बाद उनकी विरासत उनके परिवार के कब्जे में है. राजीव गांधी को इंदिरा गांधी के पुत्र होने के कारण जनता ने भारी बहुमत दिया. छल कपट नहीं होने के कारण वह भारी बहुमत वाली सरकार भी ठीक से नहीं चला पाए. विपक्ष में बैठे. बाद में विश्वनाथ प्रतापसिंह की सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर को समर्थन देकर कांग्रेस के समर्थन से केंद्र में सरकार बनवाई. चंद्रशेखर को गठबंधन रास नहीं आया. उन्होंने इस्तीफा दे दिया. आम चुनाव की परिस्थितियां बनीं. चुनाव प्रचार के दौरान ही 21 मई 1991 को राजीव गांधी की एक आत्मघाती बम धमाके में मौत हो गई. उसके बाद नरसिंहराव ने कांग्रेस की सरकार बनाई थी और अच्छी तरह चलाई.
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नरसिंहराव की सरकार के दौरान परिवार भक्त कांग्रेसियों ने उनके काम में कई अड़ंगे लगाए. नरसिंहराव की सरकार को अगले लोकसभा चुनाव में दो सौ से कम सीटें मिली थी. उन पर आरोप लगा कि वे पार्टी को बहुमत नहीं दिलवा पाए. उनको हटाया जाए. सितंबर 1996 में वह कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिए गए और तीन जनवरी 1997 को सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया. दिसंबर 1997 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस में प्रवेश करने का फैसला किया और परिस्थितियां बदल गई.
केसरी ने अध्यक्ष पद छोड़ने से इनकार किया तो उनकी हटाने की रणनीति बनी. मार्च 1998 में एक दिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रस्ताव पारित कर सोनिया गांधी से अध्यक्ष पद संभालने का अनुरोध किया गया. सोनिया गांधी जब पार्टी कार्यालय में अध्यक्ष पद संभालने पहुंची, तब केसरी को टायलेट में बंद कर दिया गया था. बाद में उन्हें निकाल कर धक्के मारकर पार्टी मुख्यालय से बाहर निकाला गया. केसरी को इसलिए हटाया गया कि उनके अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस 150 से कम सीटें जीत सकी थी.
सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए जब लोकसभा चुनाव हुए, तब कांग्रेस को 120 सीटें भी नहीं मिल पाई थी. उस पर किसी को एतराज नहीं हुआ. उस समय सोनिया गांधी को विदेशी मूल की बताते हुए शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़ दी थी. बदलती परिस्थितियों में कांग्रेस भी अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों से गठबंधन करने लगी. नरसिंहराव का निधन 23 दिसंबर 2004 को हुआ था. उनकी पार्थिव देह को दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय लाने की अनुमति नहीं दी गई. शव फुटपाथ पर रखा गया था. उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली में नहीं हो पाया. उन्हें आंध्र प्रदेश ले जाया गया. इससे पहले 24 अक्टूबर 2000 को सीताराम केसरी का निधन हो चुका था. उस समय भी कांग्रेस की तरफ से उनका सम्मान नहीं किया गया, जबकि वह आजीवन कांग्रेस के समर्पित सिपाही रहे थे. दस साल तक कोषाध्यक्ष भी रह चुके थे.
इसके बाद से कांग्रेस पूरी तरह सोनिया गांधी के कब्जे में है और उन्होंने पहले से तय कर रखा था कि भविष्य में पार्टी पर उनके पुत्र राहुल गांधी का नियंत्रण रहेगा. राहुल करीब पंद्रह साल से सांसद हैं और पार्टी को चला रहे हैं. उन्होंने साबित कर दिया है कि वह राजनीति में बहुत कच्चे खिलाड़ी हैं. अब वह मैदान छोड़कर भागना चाहते हैं और सुकून की जिंदगी बिताना चाहते हैं, लेकिन स्थिति विकट है.
2019 का लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद ही राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि पार्टी किसी योग्य नेता का चुनाव करे. चयन प्रक्रिया में उनका, इनकी मां सोनिया या बहन प्रियंका का कोई दखल नहीं रहेगा. जो कांग्रेस कार्यसमिति पीवी नरसिंहराव और सीताराम केसरी को इस मुद्दे पर हटा चुकी कि वे लोकसभा चुनाव में पार्टी को जीतने लायक सीटें नहीं दिला पाए, वही कांग्रेस कार्यसमिति बुरी तरह हार के बाद भी राहुल गांधी का इस्तीफा मंजूर नहीं कर पा रही थी.
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राहुल गांधी जब इस्तीफा देने पर अड़ ही गए और दो महीने तक भी कोई फैसला नहीं हो पाया तो आखिरकार कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलानी पड़ी और सोनिया गांधी से अनुरोध करना पड़ा कि वही अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी को संभालें. सोनिया गांधी ने अनुरोध मान भी लिया. उन्होंने अपने पुत्र की बात नहीं रखी. सोनिया गांधी के फैसले के बाद कांग्रेस में राहुल गांधी का क्या महत्व रह गया है?
अब यह तय है कि राहुल गांधी, जो युवा युवा की रट लगाते थे, अब कांग्रेस में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह देखे जाएंगे. कांग्रेस की बागडोर सोनिया समर्थकों के हाथ में रहेगी. पार्टी उसी मकड़जाल में फंसी रहेगी, जिसे कांग्रेस ने खुद नरसिंहराव और केसरी के साथ दुर्व्यवहार करते हुए तैयार किया है. नरसिंहराव और केसरी का जो हस्र हुआ, उसे देखते हुए कोई भी नेता कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने की हिम्मत नहीं कर सकता. देखना है सोनिया कब तक पार्टी को बचा पाती है.