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आडवाणी के बाद जोशी का पत्ता साफ, बीजेपी को भारी न पड़ जाए दिग्गजों की नाराजगी

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सत्ता में वापसी करने के लिए बीजेपी आलाकमान एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है. यही वजह है कि पार्टी सोच विचार कर प्रत्याशियों को लोकसभा चुनावी दंगल में उतार रही है. इस रणनीति से पार्टी को जरूर फायदा हो सकता है, लेकिन कुछ दिग्गज नेताओं की नाराजगी भी बीजेपी को झेलनी पड़ रही है. लालकृष्ण आडवाणी के बाद अब पार्टी ने वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को भी टिकट न देने का मन बना लिया है, जिस बात पर जोशी नाराज हो गए हैं.

दरअसल, बीजेपी के संगठन महासचिव रामलाल ने जोशी से मुलाकात कर उन्हें जानकारी दी कि पार्टी आपको चुनाव नहीं लड़वाना चाहती. पार्टी यह भी चाहती है कि आप पार्टी ऑफिस आकर चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान करें. इस बात को सुनकर जोशी नाराज हो गए और पार्टी की इस अपील को साफ तौर पर नकार दिया.

जोशी ने बेबाक अंदाज में कहा कि यह पार्टी के संस्कार नहीं हैं. वह पार्टी दफ्तर आकर चुनाव न लड़ने का ऐलान नहीं करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव न लड़वाने का फैसला हुआ है तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को हमें आकर सूचित करना चाहिए.

बता दें कि इससे पहले लालकृष्ण आडवाणी का गांधीनगर से टिकट कटने पर काफी बवाल हुआ था. इस सीट पर आडवाणी की जगह अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं. आडवाणी का टिकट कटने पर पार्टी के कई नेताओं ने सवाल खड़े किए थे.

यूपी में हार के डर से सीट छोड़ भाग रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता

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यूपी में टिकट मिलने के बाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेता लगातार अपनी-अपनी सीटों पर उम्मीदवारी छोड़ पार्टी की छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. इसका ताजा उदाहरण है कांग्रेस के बड़े नेता राशिद अल्वी, जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अमरोहा सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. ध्यान देने वाली बात यह है कि अल्वी खुद इस सीट पर कई महीनों से सक्रीय रहे. अब उनकी जगह सचिन चौधरी इस सीट से चुनाव लड़ेंगे.

ऐसा ही कुछ यूपी की मुरादाबाद सीट पर भी देखने को मिला था यहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को प्रत्याशी घोषित किया गया था, लेकिन अब वह ये सीट छोड़कर फतेहपुर सीकरी पहुंच गए. कांग्रेस के दिग्गजों के इस तरह अपनी सीट छोड़कर भागने या सीट बदलने की वजह मानी जा रही है बसपा-सपा गठबंधन ‘साथी’. अधिकतर नेता यही मानकर चल रहे थे कि यूपी में बीजेपी की मौजूदा स्थिति देखते हुए कांग्रेस-बसपा-सपा का गठबंधन हो जाएगा, लेकिन बसपा-सपा ने 38-38 सीटों पर गठबंधन करते हुए कांग्रेस को केवल 2 सीटों पर भागीदार बनाया है. ऐसे में गठबंधन प्रत्याशियों की मजबूत ​दावेदारी को देखते हुए दिग्गज भी घबराने लगे हैं. यही उनके सीट बदलने या छोड़ने की प्रमुख वजह है.

जैसा कि राज बब्बर के साथ हुआ है. मुरादाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी किसी मुस्लिम प्रत्याशी को उतार सकती है. ऐसे में राज बब्बर को यह आभास तो हुआ ही होगा कि उन्हें मुस्लिम वोट नहीं मिल रहे. ऐसे में उन्होंने फतेहपुर सीकरी सीट चुनी जहां तीनों प्रत्याशी हिंदू हैं और मुस्लिम वोट बैंक की कोई भूमिका नहीं है.

ऐसी ही कुछ कहानी है कांग्रेस के दिग्गज नेता जितिन प्रसाद की जो धरहरा सीट पर चुनाव नहीं लड़ना चाहते. वजह है यहां से बहुजन समाज पार्टी ने एक मुस्लिम लेकिन मजबूत प्रत्याशी उतारा है. ऐसे में अपना गढ़ होने के बावजूद जितिन प्रसाद को हार का डर सता रहा है. जितिन प्रसाद पिछला चुनाव यही से हारे थे. चर्चा है कि वह अब लखनऊ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं.

‘चौकीदारी में दिलचस्पी है तो मैं उन्हें चौकीदार की टोपी और सीटी भेंट करूंगा’

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‘चौकीदारी में दिलचस्पी है तो मैं उन्हें चौकीदार की टोपी और सीटी भेंट करूंगा’

– अकबरुद्दीन ओवैसी

हैदराबाद से AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. ओवैसी ने कहा, ‘मैंने ट्विटर पर ‘चौकीदार नरेंद्र मोदी’ देखा है. उन्हें उसे अपने आधार कार्ड और पासपोर्ट में भी ‘चौकीदार’ का भी उल्लेख करना चाहिए. और पीएम चाहिए, चायवाला पकौड़ेवाला नहीं. अगर मोदी को दिलचस्पी है तो उन्हें मेरे पास आना चाहिए. मैं उन्हें चौकीदार की टोपी और सीटी भेंट करूंगा.

‘चौकीदार चोर है, चौकीदार फ्रॉड भी है’

– फिरदौस टाक

प्रधानमंत्री मोदी के बारे में बयान देते हुए जम्मू-कश्मीर पिपुल्स डमोक्रेटिक पार्टी के फिरदौस टाक ने कहा, चौकीदार चोर है क्योंकि कितने ही लोग देश को लूट कर चले गए. चौकीदार फ्रॉड भी है. मैं राफेल डील की बात कर रहा हूं. चौकीदार कातिल भी है. मैं अखलाक की बात कर रहा हूं. चौकीदार रेपिस्ट भी है. मैं आसिफा की बात कर रहा हूं.

भोपाल में होगी बिग फाइट, दिग्विजय के सामने ताल ठोकेंगे शिवराज!

कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार घोषित करने के बाद बीजेपी उनके सामने शिवराज सिंह को उतारने पर विचार कर रही है. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारे जाने के बाद लगने लगा है कि तीन दशक से बीजेपी की गढ़ रही भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस इस बार किसी भी तरह बीजेपी को वॉकओवर देने के मूड में नहीं है. बीजेपी ने भी इस सीट पर दिग्विजय सिंह का तोड़ तलाशना तेज कर दिया है.

बता दें कि भोपाल लोकसभा सीट पिछले 30 सालों से यानी 1989 से बीजेपी के पास है. पूर्व नौकरशाह रहे सुशील चंद्र वर्मा से लेकर उमा भारती और कैलाश जोशी सभी भोपाल से सांसद बने. यहां से वर्तमान में आलोक संजर बीजेपी सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में संजर ने कांग्रेस के पीसी शर्मा को 3 लाख 70 हजार के भारी वोट अंतर से शिकस्त दी थी. इन सालों में कांग्रेस के लाख जतन करने के बाद भी यह सीट बीजेपी पाले में ही रही.

कांग्रेस के ‘दिग्विजयी दांव’ के बाद बीजेपी में मंथन तेज हो गया है. बदले हुए समीकरण के लिहाज से बीजेपी ने इसका तोड़ तलाशना तेज कर दिया है. बताया जा रहा है कि पार्टी शिवराज के नाम पर ही विचार कर रही है. इस मामले में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर चुके हैं. बता दें कि भोपाल लोकसभा सीट पर कायस्थ, ब्राम्हण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं.

दिग्विजय सिंह के इस सीट पर उतरते ही शिवराज सिंह ने उनपर हमला बोलना शुरू कर दिया है. तंज कसते हुए उन्होंने दिग्विजय सिंह को बंटाधार रिटर्न बताते हुए कहा कि बीजेपी के सामने कोई चुनौती नहीं है और मैं किसी व्यक्ति को इतना महत्व नही देता हूं. उन्होंने कहा कि भोपाल ही नहीं, मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर बीजेपी की जीत होगी.

हालांकि शिवराज सिंह के अलावा भी बीजेपी की तरफ से कई उम्मीदवारों के नाम सामने आ रहे हैं जिसमें सबसे उपर साध्वी प्रज्ञा भारती हैं. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि दिग्विजय को हारने के लिए कुछ भी कर सकती हैं. राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी इस सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं. इस मामले में बीजेपी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि ‘मिस्टर बंटाधार’ के राज में सड़क, बिजली, पानी और कर्मचारियों की नाराजगी के साथ ही तुष्टिकरण की सियासत को हवा दी जाएगी.’

वहीं भोपाल के स्थानीय बीजेपी नेताओं के अनुसार इस सीट पर किसी स्थानीय उम्मीदवार को ही टिकट मिलना चाहिए. इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज बीजेपी नेता बाबूलाल गौर ने बयान भी दिया है कि भोपाल से बीजेपी ही जीतेगी, लेकिन पार्टी को सोच-समझकर उम्मीदवार उतारना चाहिए.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भोपाल लोकसभा सीट पर दिग्विजय सिंह को उतारा कांग्रेस ने न केवल इस सीट पर मुकाबले को दिलचस्प बनाया है, बल्कि बीजेपी को रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया है. अब यह देखना मजेदार रहेगा कि अपने गढ़ को बचाने के लिए बीजेपी किस महारथी को मैदान में उतारती है. शिवराज सिंह चौहान को टिकट मिलेगा या पार्टी किसी दूसरे नेता को मौका देगी.

BJP की वेबसाइट पर चोरी का टेम्पलेट, आंध्रप्रदेश की कंपनी ने लगाया आरोप

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आंध्र प्रदेश की एक वेब डिज़ाइन कंपनी ड्ब्ल्यू-3 लेआउट्स ने बीजेपी पर अपना एक टेम्पलेट चुराने का आरोप लगाया है. यह टेम्पलेट पार्टी की अधिकारिक वेबसाइट पर लगा हुआ है. स्टार्ट-अप कंपनी ड्ब्ल्यू-3 लेआउट्स ने आरोप लगाया है कि बीजेपी आईटी सेल ने कंपनी का टेम्पलेट का उपयोग किया है लेकिन बिना कोई क्रेडिट दिए.

कंपनी के मुता​बिक बीजेपी के आईटी सेल ने जानबूझकर बैकलिंक को हटा दिया है. इस बारे में लिखे एक ब्लॉग में कंपनी ने कहा, ‘हम शुरू में खुश और उत्साहित थे कि बीजेपी आईटी सेल हमारे डिजाइन का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन जब हमे यह पता चला कि बीजेपी ने बिना कोई भुगतान किए और क्रेडिट दिए कंपनी के बैकलिंक को हटाकर इसे इस्तेमाल में ले लिया है तो हमे दुख हुआ.’

कंपनी ने ब्लॉग में आगे लिखा है, ‘हम आश्चर्यचकित हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल इस प्रकार की चोरी और सीनाजोरी कैसे कर सकता है. वह भी ऐसा दल जिसका नेतृत्व एक ऐसा नेता करता है जो खुद को देश का चौकीदार कहता है.’

हालांकि बीजेपी ने कंपनी के आरोप का खंडन किया है. पार्टी ने कहा, ‘यह टेम्पलेट उपयोग करने के लिए निशुल्क था. बैकलिंक पर जोर देने के बाद उनका कोड गिरा दिया गया. इसमें चोरी जैसा कुछ भी नहीं है. हम कंपनी की ओर से बनाए गए टेम्पलेट का उपयोग नहीं कर रहे हैं.’

उडीसा: BJP ने जारी की 2 लोकसभा और 9 विधानसभा उम्मीदवारों की सूची

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भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए उड़ीसा की दो सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है. साथ ही प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए एक सूची जारी की है. इस सूची में कुल 9 नाम हैं. लोकसभा सीट कंधमाल से महामेघाभम ऐरा खरबेला स्वैन और कटक से प्रकाश मेहरा को टिकट मिला है.

विधानसभा चुनावों के लिए जारी तीसरी सूची में 9 प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं. सूची के अनुसार झारसुगुडा से दिनेश जैन, रैराखोल से देबेन्दर मोहापात्रा, बांदरीपोखारी से बद्रीनारायण धल, भद्रक से प्रदीप नाईक, फुलबनी से देबनारायण प्रधान को टिकट मिला है. वहीं, पारादीप से संपद स्वैन, जयदेव से नरेंद्र नायक, जैतानी से बिसवारंजन बदाजना और बैगुनिया से रिषभ नंदा को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है.

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बिहार: एनडीए की आपसी लड़ाई में फंसी ये अहम सीटें

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बिहार में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी यानी एनडीए ने बीते शनिवार को 40 में से 39 उम्मीदवारों की सूची जारी की. कुछ सीटों पर मौजूदा सांसदों पर भरोसा जताया गया है, तो कुछ पर पर नए उम्मीदवारों को मौका दिया गया है. इस बार बिहार एनडीए के लिए काफी अहम राज्य है, क्योंकि बीजेपी को उत्तर प्रदेश में एसपी, बीएसपी और आरएलडी के बीच महागठबंधन होने के बाद यह आशंका सताने लगी है कि पिछली बार जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी.

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से बीजेपी ने 71 पर फतह हासिल की थी. बीजेपी को भी अंदरखाने यह लग रहा है कि इस बार उत्तर प्रदेश में लड़ाई कांटे की है. ऐसी सूरत में इस नुकसान की भरपाई बिहार से की जा सकती है. यही वजह भी थी कि 2014 में 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने जेडीयू को गठबंधन में रखने की खातिर अपनी जीती हुई पांच सीटें कुर्बान कर दीं. महज दो सीटें जीतने वाले जेडीयू को 17 और एलजेपी को छह सीटें देनी पड़ीं.

जैसे-तैसे गठबंधन बचाने में सफल हुए बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी उम्मीदवारों की घोषणा में चूक गए हैं. आपसी खींचतान की वजह से कई अहम सीटों पर कमजोर प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. दरअसल, बिहार में चुनावी जीत केवल पार्टी की लोकप्रियता और उसके चुनाव चिन्ह से तय नहीं होती है. उम्मीदवार की अपनी छवि और जातिगत समीकरण भी इसमें अहम किरदार निभाते हैं. राजनीति के जानकारों की मानें, तो एनडीए इस मोर्चे पर कहीं न कहीं चूक गया है और इसका खामियाजा उसे सीट खोकर चुकाना पड़ सकता है.

नीतीश कुमार ने दरभंगा सीट बीजेपी को सौंप कर अपने विश्वस्त सिपाहसालार संजय झा को दरकिनार कर दिया है, जबकि उनकी क्षेत्र अच्छी पकड़ी थी. वही, सीतामढ़ी से जेडीयू ने वरुण कुमार को उम्मीदवार बनाया है. इसको लेकर स्थानीय नेता विनोद बिहारी के समर्थकों ने नीतीश कुमार पर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया है. विनोद बिहार के समर्थकों का कहना है कि वरुण कुमार बाहरी हैं जबकि विनोद बिहारी स्थानीय नेता हैं, मगर उन्हें टिकट नहीं दिया गया. इससे पार्टी को नुकसान होगा.

इसी तरह बांका लोकसभा सीट से जेडीयू ने गिरधारी यादव को टिकट दिया है, जिनके बारे में कहा जाता है कि जमीनी स्तर पर उनका पकड़ कमजोर है. सूत्र बताते हैं कि इस सीट से दिवंगत नेता दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी निर्दलीय चुनाव लड़ सकती हैं. ऐसा होता है कि इस सीट पर जेडीयू की जीत मुश्किल होगी.

इसी तरह एलजेपी ने नवादा सीट से इस बार चंदन कुमार को टिकट दिया है. चंदन के बारे में तो ज्यादातर स्थानीय लोगों को पता ही नहीं था कि आखिरी वे हैं कौन. बाद में पता चला कि वे एलजेपी के बाहुबली नेता सुरजभान सिंह के भाई हैं. चंदन न तो नवादा के रहने वाले हैँ और न ही पहले यहां सक्रिय रहे हैं. बता दें कि नवादा सीट पर पिछले चुनाव में गिरिराज सिंह ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार उन्हें बेगूसराय से मैदान में उतारा गया है.

नवादा में इस बार जोरदार मुकाबला देखने को मिल सकता है, क्योंकि आरजेडी ने यहां से राजवल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को मैदान में उतारा है जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में जहानाबाद सीट से जीत दर्ज करने वाले अरुण कुमार ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. यदि मुकाबला त्रिकोणीय होती हो तो सबसे ज्यादा दिक्कत एलजेपी के चंदन कुमार को ही होगी.

भागलपुर सीट जेडीयू के मिलने पर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि यहां ज्यादा जनाधार बीजेपी का है. यहां से सैयद शाहनवाज हुसैन ने कई बार जीत दर्ज की है. हालांकि 2014 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले के चलते आरजेडी उम्मीदवार बुलू मंडल ने बाजी मार ली थी, लेकिन हार का अंतर बहुत कम था. इस बार मुकाबला आमने-सामने का है पर सवाल ये है कि बीजेपी के वोटर जेडीयू को वोट देंगे कि नहीं. यदि ऐसा नहीं हुआ तो जेडीयू उम्मीदवार अजय मंडल के लिए जीत आसान नहीं होगी, क्योंकि मल्लाहों का वोट आरजेडी और जेडीयू में बंटेगा जबकि यादव और मुस्लिमों का वोट आरजेडी की झोली जाएगा.

राम विलास पासवान की परंपरागत सीट हाजीपुर में भी समीकरण गड़बड़ा गए हैं. यह सीट एलजेपी को मिली है, लेकिन इस बार पासवान मैदान में नहीं हैं. उनकी जगह पार्टी के वरिष्ठ नेता पशुपति कुमार पारस को टिकट दिया गया है. पारस अलौली से कई बार विधायक रह चुके हैं, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में उनकी हार हुई. बाद में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़ कर एनडीए के साथ सरकार बनाई, तो पारस को एमएलसी बना पशुपालन विभाग दे दिया गया. हाजीपुर के जमीनी स्तर के नेताओं का कहना है कि राम विलास पासवान को लेकर यहां की पिछड़ी जातियों में जो क्रेज था, वह पशुपति कुमार पारस को लेकर नहीं है, इसलिए पार्टी को नुकसान भी हो सकता है.

ऐसे ही और भी कई सीटें हैं, जिनको लेकर राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि एनडीए ने गलत चाल चल दी है और इसकी कीमत हार के रूप में चुकानी पड़ सकती है. अब देखना ये है कि वोटर किस उम्मीदवार पर भरोसा जताते हैं और किसके बोरी-बिस्तर बांधते हैं.

कांग्रेस की नौवीं सूची जारी, चिदंबरम के बेटे कार्ति को शिवगंगा से मिला टिकट

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कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की नौवीं सूची जारी कर दी है. सूची में कुल 10 नाम हैं. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम तमिलनाडु की शिवगंगा से टिकट मिला है जबकि तारिक अनवर को बिहार की कटिहार सीट से उम्मीदवार बनाया गया है. वहीं, बीके हरिप्रसाद को बेंगलुरु साउथ सीट से टिकट दिया गया है.

पढ़ें 10 उम्मीदवारों की पूरी सूची:

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