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कांग्रेस ने जारी की 20 लोकसभा और 9 विधानसभा उम्मीदवारों की सूची

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कांग्रेस ने देर रात अपने 29 उम्मीदवारों की नई सूची जारी की है. इसमें 20 लोकसभा चुनाव और ओडिसा विधानसभा चुनावों के 9 प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं. लोकसभा सूची में गुजरात के 4, हिमाचल प्रदेश से एक, झारखंड से तीन, कर्नाटक से दो और पंजाब के आठ, ओडिसा के दो और दादरा एंड हवेली के एक उम्मीदवार का नाम है.

लोकसभा सूची के अनुसार, गुजरात की गांधीनगर लोकसभ सीट से डॉ.सी.जे.चावड़ा, अहमदाबाद पूर्व से गीताबैन पटेल, सुरेंद्र नगर से सोमाभाई पटेल और जामनगर से मुरूभाई कनडोरिया को टिकट मिला है. हिमाचल प्रदेश की कांगरा सीट से पवन कजल के कांग्रेस उम्मीदवार बनाया है. झारखंड की राजधानी रांची से सुबोध कांत सहाय, सिंहभूम (एससी) सीट से गीता कोरा और लोहरदगा सीट से सुखडेओ भगत को टिकट मिला है. कर्नाटक के धरवाड़ से विनय कुलकर्णी और दावनगेरे सीट से एच.बी. मलजप्पा कांग्रेस उम्मीदवार बने हैं. ओडिसा के जाजपुर (एससी) सीट से मानस जेना और कटक से पंचानन को टिकट मिला है.

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पंजाब की बात करें ते यहां की गुरदासपुर सीट से सुनिल जाखड़, अमृतसर से गुरजीत सिंह, जलंदर (एससी) से संतोख सिंह चौधरी, होशियारपुर (एससी) से डॉ.राजकुमार छब्बेवाल, लुधियाना से रवनीत सिंह बिट्टू, पटियाला से प्रनीत कौर और चंड़ीगढ़ से पवन कमार बंसल को ​कांग्रेस चेहरा बनाया है. दादरा एंड हवेली (एसटी) से प्रभु रतनभाई टोकिया को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया है.

इसी प्रकार कांग्रेस की ओडिसा के विधानसभा चुनाव के लिए जारी सूची के अनुसार, बालासोर सीट से मानस दास पटनायक, धर्मशाला से स्मृति पाही, जेजपुर से संतोष कुमार नंदा, हिंडोल—एससी से त्रिनाथ बेहरा, कामाख्या नगर से बहबानी शंकर मोहापात्रा, बाराम्बा से बोबी मोहंती, पारादीप अरिन्दम सरकेल, पिपिली से युधिष्ठर सामंत्री, बेगुनिया से पृथ्वी बल्लभ पटनायक को टिकट मिला है.

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दो-दो सीटों से चुनाव लड़ने की है पुरानी परंपरा, वाजपेयी से हुई थी शुरूआत

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी संसदीय सीट अमेठी के अलावा केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं. एक से ज्यादा सीट से चुनाव लड़ने का ट्रेंड कोई नया नहीं है. पहले भी नेता ऐसा करते रहे हैं. बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने भी दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था. वह उत्तर प्रदेश की वाराणसी और गुजरात की वड़ोदरा सीट से प्रत्याशी थे. मोदी दोनों जगहों से चुनाव जीते लेकिन इसके बाद उन्होंने खुद के काशी सीट से ही प्रतिनिधि रहने का फैसला किया. एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने की परंपरा के इतिहास में अगर देखा जाए तो इसकी शुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी.

1952 में हुए उपचुनाव में लखनऊ लोकसभा सीट से हारने के बाद उन्होंने 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सहित तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. वह बलरामपुर सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे थे जबकि लखनऊ में दूसरे स्थान पर थे. मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई थी. दरअसल एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने की यह व्यवस्था रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 33 में की गई है. इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में कहा गया है कि चुनाव लड़ने के बाद वह एक बार में केवल एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. ऐसे में साफ है कि एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड़ने के बावजूद प्रत्याशी को जीत के बाद एक ही सीट से अपना प्रतिनिधित्व स्वीकार करना होता है. उन सीटों को उपचुनाव के जरिए भरा जाता है.

देश में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी आश्चर्यजनक रूप से रायबरेली सीट से अपना चुनाव हार गई थीं. 1980 के चुनावों में उन्होंने किसी भी तरह का जोखिम न लेते हुए रायबरेली के साथ मेडक (अब तेलंगाना में) से नामांकन भरा. यहां उन्होंने दोनों सीटों से चुनाव जीत लेकिन प्रतिनिधित्व करने के लिए रायबरेली सीट बरकरार रखी और मेड़क सीट छोड़ दी. इसी तरह तेलगू देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामा राव ने 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. उन्होंने गुडीवडा, हिंदुपुर और नलगोंडा सीट से दावेदारी की थी. एनटीआर तीनों सीटें जीतने में सफल रहे थे. बाद में उन्होंने हिंदुपुर सीट को बरकरार रखा और बाकी दोनों सीटें छोड़ दी थीं.

एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वालों में हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री देवी लाल का नाम भी शामिल है. 1991 के चुनावों में उन्होंने एक साथ तीन लोकसभा और एक विधानसभा सीट से नामांकन भरा था. उन्होंने सीकर, रोहतक और फिरोजपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवारी पेश की जबकि घिराई विधानसभा सीट से भी प्रत्याशी थे. देवी लाल सभी सीटों पर चुनाव हार गए थे. वैसे 1996 के पहले तक अधिकतम सीटों की संख्या तय नहीं थी. बस केवल यही नियम था कि जनप्रतिनिधि केवल ही एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया कि कोई भी उम्मीदवार अधिकतम दो सीटों पर चुनाव लड़ सकता है लेकिन प्रतिनिधित्व एक ही सीट पर कर सकता है.

दो सीटों से चुनाव लड़ने वाले दिग्गज

  • अटल बिहारी वाजपेयी (1991) : विदिशा और लखनऊ. दोनों ही जगहों से जीते. लखनऊ से सांसदी बरकरार रखी.
  • लाल कृष्ण आडवाणी (1991) : नई दिल्ली और गांधीनगर. दोनों ही जगहों से जीते. गांधीनगर से सांसदी बरकरार रखी.
  • अटल बिहारी वाजपेयी (1996) : लखनऊ और गांधीनगर. दोनों ही जगहों से जीते. लखनऊ से सांसदी बरकरार रखी.
  • सोनिया गांधी (1999) : बेल्लारी और अमेठी. दोनों ही जगहों से जीतीं. अमेठी ही सांसदी बरकरार रखी.
  • लालू प्रसाद यादव (2004) : छपरा और मधेपुरा. दोनों ही जगहों से जीते. छपरा सीट बरकरार रखी.
  • लालू प्रसाद यादव (2009) : सारण और पाटलीपुत्र. सारण सीट जीतने में सफल रहे. पाटलीपुत्र हार गए.
  • अखिलेश यादव (2009) : कन्नौज और फिरोजाबाद. दोनों सीटें जीतीं. कन्नौज सीट बरकरार रखी.
  • मुलायम सिंह यादव (2014) : आजमगढ़ और मैनपुरी. दोनों से जीते. आजमगढ़ से सांसद रहे.

‘आप जम्मू-कश्मीर के लिए अलग पीएम चाहते हो तो मैं समुद्र पर चलना चाहता हूं’

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यूं तो आए दिन सोशल मीडिया पर ट्वीट वॉर चलता रहता है लेकिन कई बार ट्वीट वार एक युद्धस्तर पर भी बदल जाता है. फिर यह ट्वीट वॉर दूसरों के लिए ट्रोल करने का काम बखूबी कर देता है. ऐसा ही कुछ हुआ जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला और नए नवेले बीजेपी नेता गौतम गंभीर के बीच. अब्दुल्ला की जम्मू के लिए अलग पीएम चाहने वाली बात पर गौतम ने ट्वीट किया, ‘अगर आप जम्मू-कश्मीर के लिए अलग पीएम चाहते हो तो मैं समुद्र पर चलना चाहता हूं. बात समझ नहीं आती तो पाकिस्तान चले जाएं’. ट्वीट का जवाब देते हुए उमर अब्दुल्ला ने उन्हें क्रिकेट खेलने की ही सलाह दी. वहीं बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साध दिया.

@GautamGambhir

@OmarAbdullah

@ShatruganSinha

प्रियंका गांधी वाड्रा के बच्चे भी यही बोलेंगे ‘गरीबी हटाओ’

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लोकसभा चुनाव करीब आते ही नेताओं के तीखे बयानों की बारिश भी तेज हो चली है. आज के बयानों में भी ऐसे ही कुछ खास बयान चर्चा में रहें. सबसे अधिक चर्चा में यूपी के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा रहे जिन्होंने गांधी परिवार सहित प्रियंका गांधी के बच्चों तक पर निशाना साध दिया. मायावती ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को आड़े हाथ ले लिया. वहीं यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस के 55 पेज के चुनावी घोषणा पत्र को 55 साल की नाकामी बताया. उमर अब्दुल्ला और सेम पित्रोदा के बयान भी चर्चा में बने रहे.

‘प्रियंका गांधी वाड्रा के बच्चे भी यही बोलेंगे ‘गरीबी हटाओ’
– दिनेश शर्मा

उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने गांधी परिवार को निशाना बनाते हुए बयान दिया है कि नेहरू जी ने कहा था ‘गरीबी हटाओ’, इंदिरा जी ने कहा था गरीबी हटाओ, राजीव जी ने कहा था गरीबी हटाओ, सोनिया जी ने कहा गरीबी हटाओ. उनके बेटे ने कहा गरीबी हटाओ. अब वाड्रा जी (प्रियंका) कहेंगी गरीबी हटाओ. उसके बाद उनके बच्चे मिराया और ​रहान भी कहेंगे गरीबी हटाओ. लेकिन क्या गरीबी दूर हुई? आजादी के 70 साल हो चुके हैं. इसकी 3/4वीं अवधि के लिए कांग्रेस सरकार थी लेकिन गरीबी दूर नहीं हुई। गरीब और गरीब हो गया. अमीर और अमीर हो गया गरीबों का केवल शोषण किया गया.

’55 साल की नाकामियों को 55 पेजों में व्यक्त किया’
– योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस के आज जारी किए चुनावी घोषणा पत्र पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस नेताओं का यह झूठ दोबारा बेनकाब होगा और जनता इसका जोरदार जवाब कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को देगी. उन्होंने अपना 55 वर्षों की नाकामियों को 55 पेजों के अपने घोषणा पत्र के माध्यम से व्यक्त किया है.

‘कांग्रेस बोफोर्स व बीजेपी राफेल में शामिल है’
– मायावती

कांग्रेस और भाजपा दोनों से टक्कर ले रही यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने दोनों प्रमुख पार्टियों पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से पीएम मोदी की सरकार ने जल्दबाजी में जीएसटी और नोटबंदी लागू किया, उससे छोटे कारोबार प्रभावित हुए. इसके कारण बेरोजगारी में भी वृद्धि हुई। कांग्रेस बोफोर्स में शामिल थी और अब भाजपा सरकार राफेल में शामिल है.

‘पब्लिक सेफ्टी एक्ट को कानूनी दायरे से बाहर निकाल देंगे’
– उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तीखा बयान देते हुए कहा है कि मैंने यहां के लोगों से वादा किया है. अगर विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को सत्ता मिलती है तो हम पब्लिक सेफ्टी एक्ट को कानून के दायरे से बाहर निकाल फेकेंगे.

बीजेपी का विश्वास ‘नमो’ पर तो कांग्रेस ‘शक्ति’ पर कर रही भरोसा

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एक चुनावी दौर तब था जब नेता क्षेत्र में घूम-घूमकर प्रचार करने को ही अपनी जीत का आधार मानते थे. नेताओं का जमीन पर संपर्क ही उनके लिए अहम था. अब यह चुनावी लड़ाई जितनी जमीन पर लड़ी जा रही है, उतनी ही सोशल मीडिया पर. यही वजह है कि सभी राजनीतिक दलों ने मोबाइल ऐप्लिकेशन पर भरोसा दिखा रहे हैं. बीजेपी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘नमो ऐप’ के माध्यम से जनता में पैठ बना रही है तो कांग्रेस का भरोसा ‘शक्ति ऐप’ पर है. इनके अलावा भी कुछ अन्य ऐप भी इन राजनीतिक दलों ने लॉन्च किए हैं, जिनके माध्यम से लोगों से संपर्क स्थापित किया जा रहा है. इनसे राजनीतिक पार्टियों को मतदाताओं की राय भी मिल रही है.

जमीन पर संगठन की घटती ताकत और कार्यकर्ताओं से बढ़ती दूरी को देखते हुए कांग्रेस ने शक्ति ऐप लॉन्च किया था. इस पर आने वाली राय और सुझावों को लेकर पार्टी ने अपनी रणनीतियों में बदलाव किया है. इसके बाद शक्ति ऐप से जुड़े लोगों से दोतरफा संपर्क के लिए कांग्रेस ने ‘आईएनस आवाज ऐप’ लांच किया. इसमें बूथ, विधानसभा और लोकसभा स्तर के अलग-अलग ग्रुप तैयार किए गए हैं. इस ऐप को वही लोग इंस्टॉल कर सकते हैं जो पहले से शक्ति ऐप पर रजिस्टर हों. वहीं भाजपा ने सबसे ज्यादा भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही ऐप पर दिखाया है. उनकी बड़ी फैन फॉलोइंग को इस्तेमाल करते हुए पार्टी ने तमाम सुझावों को माना और इसे अपनी रणनीति में इस्तेमाल किया है. इसके अलावा पार्टी का अपना भी आधिकारिक ऐप है. यह भी समर्थकों और कार्यकर्ताओं से जुड़ने के साधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

कैंपेन के लिए भी लॉन्च किए ऐप्स
जब कांग्रेस ने अपना चुनावी अभियान घर-घर कांग्रेस लॉन्च किया था तो पूरे अभियान की सफलता और समर्थकों व कार्यकर्ताओं से दो तरफा संवाद के लिए ‘घर-घर कांग्रेस ऐप’ लॉन्च किया. इसी प्रकार, जब भाजपा ने ‘मैं भी चौकीदार अभियान’ की शुरुआत की तो प्ले स्टोर पर चौकीदार नरेंद्र मोदी 2019 ऐप दिखाई देने लगा. प्ले स्टोर पर अखिलेश यादव का भी एक ऐप मौजूद है.

सेल्फी वालों को भी लुभा रहे
युवाओं में सेल्फी लेने का चलन खासा है. सभी चाहते हैं कि अपने पसंदीदा नेताओं के साथ वे सेल्फी लें लेकिन यह इतना आसान नहीं होता. ऐसे में उनकी हसरत पूरी करने के लिए तमाम तरह के सेल्फी और फोटो फ्रेम्स वाले ऐप्लीकेशंस प्ले स्टोर पर मौजूद हैं. इन ऐप्स पर राजनीतिक दलों के विज्ञापन भी दिखते हैं. डीपी और फोटो फ्रेम्स भी यूजर्स को काफी लुभाते हैं.

तमाम ऐप्स पर विज्ञापन, आसान कर रहे पहुंच
तमाम चर्चित ऐप्लीकेशंस पर भी राजनीतिक दलों की निगाहें हैं. जिन ऐप्लीकेशंस को लोग ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, उनका इस्तेमाल राजनीतिक दल अपने प्रचार के लिए करते हैं. कुछ समय के बाद विज्ञापन फ्लैश होते हैं और इससे पार्टी अपनी बात कह पाने में सफल होती है. एक निश्चित अंतराल के बाद युवाओं तक लोगों तक अपनी पहुंच इनके लिए बेहतर होती है.

700 से 1000 विज्ञापन हमेशा रहते हैं तैयार
टेक एक्पर्ट्स की मानें तो तमाम विज्ञापन एजेंसियां 700 से 1000 विज्ञापन हमेशा ही तैयार रखती हैं. राजनीतिक दलों की डिमांड पर इन्हें थोड़ा मोडीफाई करके इस्तेमाल किया जाता है. ऐप्स पर इस्तेमाल होने वाले विज्ञापन खासे छोटे और फाइल साइज में छोटे रखे जाते हैं ताकि लोगों का मोबाइल न हैंग हो और छोटे होने पर उन्हें वे देखें न कि स्किप करें.

  • इसलिए ऐप्स पर प्रचार
  • एक बार में लाखों युवाओं तक पहुंच
  • विज्ञापन के दूसरे माध्यमों के बजाए सस्ता
  • इसपर प्रचार के लिए कोई समय सीमा नहीं
  • किसी क्षेत्र विशेष के सीमा की भी कोई बाध्यता नहीं
  • प्रचार के लिए ये ऐप्स ज्यादा होते हैं इस्तेमाल
  • न्यूज ऐप्स
  • ट्रैवेल ऐप्स
  • ज्योतिष से जुड़े ऐप्स
  • सोशल मीडिया ऐप्स
  • गानों के ऐप्स
  • क्रिकेट ऐप्स
  • विडियो गेमिंग ऐप्स
  • चैटिंग ऐप्स
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