Thursday, January 16, 2025
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अयोध्या मामला-23वां दिन: ‘पूजा करने से हिंदूओं का जमीन पर मालिकाना हक नहीं हो सकता’

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अयोध्या (Ayodhya) के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हुई 23वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने हिंदूओं के जमीन पर मालिकाना हक और दावे का विरोध किया. मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी और सुन्नी वक्फ बोर्ड के पक्ष के राजीव धवन (Rajiv Dhawan) ने जिरह को आगे बढ़ाते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष कहा कि यदि कोई सूर्य की पूजा करता है तो इससे सूर्य पर उसका अधिकार नहीं हो जाता. इसी तरह अगर हिंदू पक्ष विवादित स्थल पर केवल पूजा करने के कहकर मालिकाना हक का दावा करता है तो इससे उनका जमीन पर अधिकार नहीं हो जाएगा. मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने निर्मोही अखाड़ा के दावे को भी झुठलाते हुए कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि निर्मोही अखाड़ा वहां प्राचीकाल से मौजूद है.

शुक्रवार को पीठ के सामने दलीलों की शुरूआत करते हुए राजीव धवन (Rajiv Dhawan) ने रामलला और जन्मस्थान के नाम पर दाखिल याचिका का विरोध करते हुए कहा कि किसी को भी देवता के नाम पर केस दाखिल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. धवन ने ये भी कहा कि लोगों का विश्वास है कि विवादित स्थल पर 11 हजार साल पहले भगवान राम का जन्म हुआ था लेकिन विवादित जमीन को श्रीराम जन्मभूमि पहली बार 1989 में कहा गया. इससे पहले ऐसा दावा कभी नहीं किया गया.

उन्होंने रामलला विराजमान की ओर से दी गई दलील पर कहा कि हिंदू नदियों, पहाड़ों की पूजा करते आय हैं और इसी तर्ज पर रामजन्म भूमि को वंदनीय मानते हैं लेकिन यह केवल एक वैदिक अभ्यास है और कुछ नहीं. इस दौरान जब धवन एक छोटे ब्रेक पर गए, उस समय मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने बाबरी मस्जिद में 1945-46 में तरावीह की नमाज पढ़ाने वाले हाफिज के बयान का जिक्र किया. जिलानी ने एक गवाह का बयान पढ़ते हुए कहा कि उसने 1939 में मगरिब की नमाज बाबरी मस्जिद में पढ़ी थी. जिलानी ने बयान के माध्यम से संविधान पीठ को यह बताने की कोशिश की कि 1934 के बाद भी विवादित स्थल पर नमाज पढ़ी जाती रही है जबकि हिंदू पक्ष की ओर से जिरह के दौरान बार-बार ये दलील दी गई है कि 1934 के बाद वहां नमाज नहीं पढ़ी गयी.

वहीं जिलानी ने ये भी कहा कि निर्मोही अखाड़ा ने अपनी दायर याचिका में भी विवादित जमीन पर मस्जिद होने की बात कही है. यह हिस्सा अब विवादित स्थल का भीतरी आंगन के नाम से जाना जाता है. उन्होंने कहा कि अखाड़े ने 1942 के अपने मुकदमे में भी मस्जिद का जिक्र किया है. वरिष्ठ वकील ने पीड्ब्ल्यूडी की उस रिपोर्ट का हवाला भी दिया जिसमें कहा गया कि 1934 के सांप्रदायिक दंगों में मस्जिद के एक हिस्से को कथित रूप से क्षतिग्रस्त किया गया था और पीड्ब्ल्यूडी ने उसकी मरम्मत कराई थी.

उन्होंने संविधान पीठ को बताया कि 1934 से 19498 के बीच विवादित स्थल पर नियमित रूप से नमाज अता होती थी. उसके पक्ष में वरिष्ठ वकील ने कुछ दस्तावेज भी पेश किए.

पिछली सुनवाई के लिए यहां पढ़ें

मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

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