मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति के चलते गजेंद्र सिंह शेखावत, पीपी चौधरी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और अर्जुनराम मेघवाल की घर में ही घिर गए हैं. मोदी के इन अप्रत्यक्ष चेहरों को घर में ही घेरने के लिए कांग्रेस के वार रूम में खास रणनीति बनी है और इस पूरी रणनीति के पीछे जादूगर कहे जाने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही है. यही कारण है कि स्टार प्रचारकों में शामिल ये पांचों मंत्री अभी तक अपने संसदीय क्षेत्र में ही अटके हुए हैं. पाली से पीपी चौधरी और बीकानेर से अर्जुन मेघवाल, जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्धन और जोधपुर से गजेन्द्र सिंह मोदी की कैबिनेट के वो चेहरे हैं जो राजस्थान में चुनाव लड़ रहे हैं.
दूसरी ओर, लोकसभा चुनाव में अपनी जीत को लेकर बीजेपी दावा कर रही है कि देशभर में पार्टी का एक ही प्रत्याशी चेहरा है नरेंद्र मोदी. वजह है – भाजपा को लगता है कि प्रत्याशी की बजाय नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने से फायदा होगा ताकि अगर कहीं प्रत्याशी को लेकर कोई विरोध है तो उसे मोदी के नाम पर डायवर्ट कर संभावित नुकसान को भरा जा सकता है. इसको दूसरे लिहाज से देखा जाए तो मोदी की कैबिनेट के सदस्य जहां से चुनाव लड़ रहे हैं वो निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी कहे जा सकते हैं
गजेंद्र सिंह शेखावत:
जोधपुर से कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो गजेन्द्र सिंह का मुकाबला कर सके. इसी वजह से यहां खुद मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत को मैदान में उतारा गया. इसका कारण था कि जोधपुर में अशोक गहलोत खुद का प्रभाव तो है ही, मुख्यमंत्री होने के चलते वोटों का ध्रुवीकरण करने में भी मदद मिलेगी. अब इस बात का कितना फायदा मिलेगा या नहीं यह तो परिणाम बताएगा, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस ने अपनी पहली रणनीति जो कि गजेन्द्र सिंह को घर में ही घेरने की थी उसमें सफलता हासिल कर ली.
पीपी चौधरी:
साल 2009 के लोकसभा चुनावों में पाली से पहली बार सांसद चुने गए बद्रीराम जाखड़ ने पुष्प जैन को हराया था. तब उन्होंने 54 प्रतिशत से भी ज्यादा मत हासिल किए थे, लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस ने और भाजपा ने अपने प्रत्याशी क्रमश: बद्री जाखड़ की बेटी और पीपी चौधरी के रूप में बदले तो चौधरी ने 62 प्रतिशत मत हासिल करते हुए चार लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की। लेकिन इस बार खुद के घर में ही मोदी के मंत्री चौधरी घिर गए हैं.
टिकट वितरण से पहले जहां खुद की पार्टी के लोग ही उनकी टिकट कटवाने में लगे हुए थे. इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने फिर एक बार बद्री जाखड़ पर दांव खेला है. पाली लोकसभा क्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्र में तीन जोधपुर जिले में आते हैं. ओसियां, बिलाड़ा और भोपालगढ़ तीनों ही जाट बहुल क्षेत्र हैं. लेकिन भोपालगढ़ और बिलाड़ा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो जाने से वहां जाट चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं. लेकिन जाट समाज का दबदबा इन सीटों पर पहले से ही रहा है और इसी कारण पाली लोकसभा क्षेत्र से अपनी दावेदारी जता रहे है. यही कारण है कि सीरवी जाति से आने वाले पीपी चौधरी के सामने कांग्रेस ने जाट चेहरे को मैदान में उतारकर दांव खेलते हुए कहीं ना कही भाजपा की अंदरखाने के विरोध को हवा देते हुए चौधरी को घर में ही घेर लिया है.
राज्यवर्धन सिंह राठौड़:
पिछले लोकसभा चुनाव में निशानेबाज राज्यवर्धन ने जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता सीपी जोशी को बड़े अंतर से हराकर राजनीति का पहला मैच न केवल बड़ी आसानी से जीता, बल्कि मोदी के कैबिनेट में मंत्री भी बने. मूल रूप से बीकानेर के लूणकरनसर तहसील के गारबदेसर गांव के राज्यवर्धन पहली बार सांसद का चुनाव लड़े तो 62 फीसदी वोट हासिल किए. हालांकि मोदी लहर के साथ ही कहीं ना कहीं राज्यवर्धन की सेना के कर्नल से ज्यादा खिलाड़ी की छवि उनको जिताने में महत्वपूर्ण रही. यही वजह रही कि एक-एक सीट पर विचार मंथन कर टिकट बांटने वाली कांग्रेस का सबसे वाला चौंकाने वाला नाम जयपुर ग्रामीण पर रहा. राज्यवर्धन के मैडल जीतकर देश का नाम बढ़ाने वाली छवि का तोड़ भी कहीं न कहीं कांग्रेस ने उसी रूप में ढूंढ़ा और आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने को लेकर महिला के रूप में डिस्क्स थ्रोअर कृष्णा पूनियां को मैदान में उतारा।
राठौड़ और पूनियां दोनों ही कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने-अपने खेल में गोल्ड जीत चुके हैं. यहां से लालचंद कटारिया और रामेश्वर डूडी के नाम ज्यादा चर्चा में थे, लेकिन कटारिया चुनाव लडऩा नहीं चाहते थे और डूडी रणनीति के हिस्से में फिट नहीं बैठे. इसलिए कांग्रेस ने एनवक्त पर कृष्णा पूनियां का नाम घोषित कर सबको चकित कर दिया. बात दें, मीडिया की सुर्खियों से लेकर पैनल में कहीं भी कृष्णा पूनियां का नाम नहीं था.
अर्जुनराम मेघवाल:
बीकानेर में लगातार तीन बार जीतने का रिकॉर्ड भाजपा के पास रहा है. हालांकि पूर्व महाराजा करणीसिंह यहां से लगातार पांच बार जीते लेकिन कांग्रेस-भाजपा की बात करें तो कांग्रेस भी लगातार तीन बार यहां से जीत नहीं पाई. अलबत्ता कांग्रेस के मनफूल सिंह भादू तीन बार बीकानेर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. जाट और एससी बहुल मानी जाने वाली इस सीट पर परिसीमन से पहले जाट और राजपूत समाज का ही कब्जा रहा और दूसरी कोई जाति का यहां सांसद नहीं बना। लेकिन 2009 में सुरक्षित सीट होने के बाद आईएएस से राजनीति में आए अर्जुन मेघवाल जीते और अब तीसरी बार जीत की हैट्रिक की उम्मीद को लेकर मैदान में है।
इस बार एक रणनीति के तहत काम कर रही कांग्रेस ने यहां से अर्जुन के ही मौसेरे भाई और पूर्व आईपीएस मदन मेघवाल को मैदान में उतारा है. जाट नेता रामेश्वर डूडी की पसंद के रूप में मदन मेघवाल को उतारकर कांग्रेस ने जाट वोटों को ध्रुवीकरण करने की कोशिश तो की ही है. जिले के दो मंत्रियों डॉ. बीडी कल्ला के सहारे ब्राह्मण वोटों पर सेंध और भंवरसिंह भाटी के जरिये राजपूत वोटों में सेंध लगाने का भी प्रयास किया है. वहीं कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी की अर्जुन मेघवाल को लेकर हुई नाराजगी को भी कांग्रेस इन्कैश करने में लगी हुई है.
बीकानेर लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस कितनी सक्रिय है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आचार संहिता लगने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट 5 विधानसभा सीटों पर दौरा कर सभाएं कर चुके हैं. वहीं अंदखाने में खुद कांग्रेस में हुए विरोध को अपने बीकानेर दौरे के दौरान रात्रि विश्राम बीकानेर में करते हुए गहलोत ने सैटल कर दिया है. उस दौरे के बाद विरोध के स्वर गायब हो गए हैं.
कुल मिलाकर ये सारे समीकरण बता रहे हैं कि प्रचार के मामले में भाजपा को पछाड़ते हुए मोदी के चारों मंत्रियों को कांग्रेस ने घर में ही उलझा कर रख दिया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि सत्ता के इस खेल में राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के ये दांव निशाने पर लग पाते हैं या नहीं. लेकिन इतना जरूर है कि कांग्रेस की सक्रियता के बाद इन मंत्रियों का स्टार प्रचारक के रूप में अन्य सीटों पर निकलना संभव नहीं लग पा रहा है.