‘रावण’ की नई पार्टी की घोषणा भर से यूपी की राजनीति में आया भूचाल, बसपा के साथ सपा की भी उड़ी नींद

जल्द पार्टी की घोषणा करेंगे चंद्रशेखर, दलित वोट बैंक के साथ युवा ब्रिगेड पर अच्छी खासी पकड़ है चंद्रशेखर की जिससे बड़ी पार्टियों के वोट बैंक में सेंध लगना तय, राजभर से मुलाकत से बसपा की भी नींद उड़ी

Chandra Shekhar Azad (रावण)
Chandra Shekhar Azad (रावण)

पॉलिटॉक्स न्यूज/उत्तरप्रदेश. भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण उत्तर प्रदेश के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में ताल ठोकने की तैयारी में हैं. चूंकि अब चुनावों को करीब दो साल रह गए हैं, ऐसे में उन्होंने तैयारियां शुरु कर दी है. लखनऊ के घंटा घर पर नागरिकता कानून के विरोध में चल रहे प्रदर्शन को संबोधित करते हुए चंद्रशेखर ने आगामी 15 मार्च को राजनीति पार्टी बनाने की घोषणा की. साथ ही समान विचारों वाले दलों के साथ मिलकर 2020 में यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने की बात भी कही. माना जा रहा है कि कांशीराम जयंती के मौके पर उनकी भीम आर्मी को ही राजनीतिक पार्टी का दर्जा दिया जाएगा और संभवत: उसका ही नया नामकरण कर राजनीतिक पार्टी का चोला पहनाया जाएगा.

चंद्रशेखर के राजनीतिक पार्टी बनाने की बातभर से ही उत्तर प्रदेश में सियासी भूचाल सा आ गया है. सपा, बसपा सहित अन्य दलों में हलचल शुरु हो गई है. वजह ये है कि चंद्रशेखर की दलितों के साथ साथ युवा बिग्रेड पर पकड़ काफी मजबूत है. ऐसे में बड़ी पार्टियों के वोट बैंक का विभाजन होना तय है.

चंद्रशेखर के चुनावी समर में उतरने की सूचना भर से यूपी में किस कदर तुफान छा गया है, वो घोषणा के दिन ही साफ पता चल गया जब भीम आर्मी चीफ ने एक बंद कमरे में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात की. निश्चत तौर पर ये मिटिंग चंद्रशेखर के राजनीतिक भविष्य को लेकर हुई है लेकिन राजभर से रावण की महज आधा घंटे की मुलाकात और बढ़ती निकटता से बसपा और पार्टी चीफ मायावती की बेचैनी जरूर बढ़ी है.

वजह ये है क्योंकि मायावती हमेशा एसटी और एसटी दलितों का मुद्दा लेकर चुनावी मैदान में उतरती आई है. यूपी में बसपा का प्रभाव भी काफी ज्यादा है लेकिन चंद्रशेखर के एक राजनीतिज्ञ के तौर पर उतरने के बाद बसपा का प्रभाव और वोट बैंक का बंटना तो तय है. क्योंकि भीम आर्मी भी हमेशा से खासतौर पर दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते आई है.

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हालांकि ये भी सच है कि पहले भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने कहा था कि उनका संगठन पूर्ण रूप से गैर राजनीतिक संगठन है और वह भविष्य में कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे लेकिन राजनीति में सब जायज है. यही टैग लाइन में चलते हुए अब चंद्रशेखर ने सार्वजनिक ये घोषणा की कि 2022 में उनकी पार्टी चुनावी मैदान में कूदेगी. अपनी राजनीतिक समीकरण कैसे बिठाने हैं, ये भी चंद्रशेखर अच्छी तरह जानते हैं. यही वजह है कि उन्होंने राजभर से मुलाकात को मित्रतापूर्ण मुलाकात तो बताया, साथ ही ये भी कहा कि इसके राजनीतिक गठबंधन में भी बदला जा सकता है अपनी पार्टी में वे एससी, एसटी, मुस्लिम वर्ग और खासतौर पर सीएए एवं भाजपा विरोधी लोगों को शामिल करेंगे, ये भी निश्चित है.

जैसाकि उन्होंने अपनी सभा में बताया ‘सीएए विरोध आंदोलन में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोग अहम भूमिका निभाएंगे. देश एवं प्रदेश का माहौल बिगड़ने के लिए भाजपा जिम्मेदार है. अगर गृहमंत्री चाहते तो दिल्ली की हिंसा को रोका जा सकता था.’ सियासी हलचल के बीच कांग्रेस और समाजवार्दी पार्टी में भी खलबली मचना स्वभाविक है. एससी, एसटी और मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस का परम्परागत वोटर है जबकि ओबीसी पर सपा की पकड़ काफी मजबूत है. ऐसे में दोनों पार्टियों सहित बसपा का वोटर बंटेगा, ये पक्का है. चूंकि चंद्रशेखर की पार्टी में युवाओं की संख्या अधिक है, ऐसे में बीजेपी को भी आगामी चुनावों में वोटर्स का नुकसान होना निश्चित है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में कम समय में मजबूत पकड़ बनाने वाली प्रियंका गांधी के लिए भी ये खबर अच्छी नहीं है.

जहां तक बात की जाए चंद्रशेखर और उनकी पार्टी की पॉपुलर्टी तो उनकी पार्टी चार साल पुरानी है लेकिन पॉपुलर्टी काफी अधिक है. फतेहपुर थाना क्षेत्र के गांव छुटमलपुर के रहने वाले सहारनपुर में एडवोकेट चंद्रशेखर ने जुलाई 2015 में भीम आर्मी भारत एकता मिशन का गठन किया था. उस समय यह संगठन दलित समाज के बच्चों को पढ़ाने के लिए शुरू किया गया था. 2016 में जब घड़कौली प्रकरण हुआ और वहां गांव के बाहर द ग्रेट चमार लिखने को लेकर ठाकुर और दलित बिरादरी के बीच विवाद गहराया तो पहली बार भीम आर्मी संगठन सामने आया.

यहीं से भीम आर्मी का प्रचार और विस्तार हुआ. घड़कौली प्रकरण के बाद तेजी से युवाओं ने भीम आर्मी ज्वाइन की. उस समय भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने कहा कि भीम आर्मी का मकसद दलितों की सुरक्षा करना और उनका हक उन्हें दिलवाना है. इस नारे ने दलित समाज के युवाओं को प्रभावित किया और तेजी से भीम आर्मी सहारनपुर से पूरे देश में फैल गई. 5 मई को बड़गांव थाना क्षेत्र के गांव शब्बीरपुर में दलित और राजपूत बिरादरी के बीच हिंसा भड़क गई. इस जातीय हिंसा की आग में सहारनपुर जल उठा और रामनगर में वाहन फूंक दिए गए. उस समय शब्बीरपुर में भी दलितों के कई घर जल गए थे.

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इस घटना के बाद सहारनपुर पुलिस ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए और पुलिस की इस कार्यवाही में भीम आर्मी को पूरे देश में सुर्खियां दिला दी. इसी मामले में चंद्रशेखर को मई, 2017 में सहारनपुर में जातीय दंगा फैलाने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासूका) के तहत जेल भेजा गया. 16 महीने बाद 14 दिसम्बर को रात 2:30 बजे जेल से रिहा किया गया. जहां सैंकड़ों समर्थकों ने उनका माला पहनाकर स्वागत किया. यही से उनकी पॉपुलर्टी का पता चला. पिछले साल दिल्ली के जंतर मंतर पर सीएए के विरोध में हजारों की भीड़ को मस्जिद के बाद धारा 144 लगने के बावजूद उन्होंने इक्कठ्ठा कर अपनी ताकत का अहसास कराया था.

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