बसपा से कांग्रेसी बने 4 विधायक पहुंचे दिल्ली, राहुल से करेंगे फाइनल बात, 2 ने जताया गहलोत में विश्वास

जा सकती है विधानसभा की सदस्यता, सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को दिया चार सप्ताह का समय, हमारी प्राथमिकता सदस्यता बचाना है, राहुल क्या माया अमित शाह जो भी सहारा देगा उसी से मिल लेंगे, सभी 6 विधायक भी एकमत नहीं, 4 में 2 को सीएम गहलोत पर विश्वास, गहलोत सरकार पर नहीं है कोई खतरा लेकिन बढ़ेगा दबाव

बसपा से कांग्रेसी बने 6 में 4 विधायक पहुंच गए हैं दिल्ली
बसपा से कांग्रेसी बने 6 में 4 विधायक पहुंच गए हैं दिल्ली

Politalks.News/Rajasthan. पंजाब और छत्तीसगढ़ कांग्रेस में जारी सियासी बवाल के बाद अब राजस्थान कांग्रेस में भी बगावती सुर उठने शूरू हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए सभी छह विधायकों से दलबदल कानून के तहत जवाब मांगे जाने के बाद अब इन विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ गई है, जिसे बचाने के लिए इन विधायकों ने अब कानूनी और राजनीतिक विकल्प तलाशने में शुरू कर दिए हैं. बसपा से कांग्रेसी बने 6 में 4 विधायक दिल्ली पहुंच गए हैं, जबकि नदबई विधायक जोगिंदर अवाना ने सीएम गहलोत और पार्टी में विश्वास जताते हुए दिल्ली जाने से इनकार कर दिया है, वहीं दीपचन्द खेरिया तबियत नासाज होने के कारण दिल्ली नहीं जा पाए हैं. दिल्ली गए चारों विधायक राहुल गांधी सहित अन्य पार्टियों के लीडर्स से भी मुलाकात कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया चार सप्ताह का समय
दरअसल, बीते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने राजस्थान में बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए सभी 6 एमएलए के दल-बदल केस में संबंधित पक्षकारों काे जवाब के लिए अंतिम माैका देते हुए चार सप्ताह का समय दिया है. साथ ही कहा है कि यह अवधि पूरी होने के बाद रजिस्ट्री इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्द कर देगी. काेर्ट के रजिस्ट्रार राजेश कुमार गोयल ने यह निर्देश बसपा व अन्य की एसएलपी पर दिया.

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आपको बता दें, बसपा ने एसएलपी में हाईकोर्ट की एकलपीठ के 24 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें अदालत ने बसपा की याचिका खारिज कर उसे दलबदल केस स्पीकर के समक्ष ही उठाने के लिए कहा था. एसएलपी में बसपा का कहना है कि वह एक राष्ट्रीय पार्टी है और राष्ट्रीय पार्टी का विलय राष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है. इसलिए बसपा के कांग्रेस में गए छह एमएलए का विलय गलत हुआ है. आपको याद दिला दें कि सितंबर 2019 में छह बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

हमारी प्राथमिकता सदस्यता बचाना है, हमें तो सहारा चाहिए, जो भी सहारा देगा उसी से मिलेंगे
अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा खुद की सदस्यता रद्द होने से बचाने के लिए विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा, वाजिब अली, संदीप कुमार, लाखन सिंह एक ही गाड़ी में दिल्ली गए हैं. वहीं गहलोत मंत्रिमंडल फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने से नाराज इन विधायकों ने राहुल गांधी से मिलने का भी समय मांगा है. हालांकि अभी तक राहुल गांधी ने उन्हें मिलने का समय नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है आज दोपहर या फिर शाम को उन्हें राहुल गांधी से मिलने का समय मिल सकता है. वहीं इस मामले में विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने का कहना है कि, ‘हम सदस्यता बचाने के कानूनी उपाय तलाशने दिल्ली जा रहे हैं. हमारा तो अब न घर बचेगा न ठिकाना. हमारी प्राथमिकता अब सदस्यता बचाने की है. राहुल जी सहित जो भी मिलेंगे सबसे मिल लेंगे.’

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वहीं विधायक संदीप यादव और वाजिब अली ने कहा कि, ‘हमें तो तिनके का सहारा चाहिए. मायावती, अमित शाह या राहुल गांधी जो भी सहारा देगा, हम उन सबसे मिल लेंगे. इनमें से जो हमारी सदस्यता बचाएगा, हम उसके पास चले जाएंगे. सदस्यता बचाना हमारी प्राथमिकता है. जनता ने विकास के लिए चुनकर भेजा है. हम किसी भी कीमत पर सदस्यता नहीं खोएंगे.’

सभी 6 विधायक भी एकमत नहीं, 4 में 2 को गहलोत पर विश्वास
आपको बता दें, बसपा से कांग्रेस में आए सभी 6 विधायक भी एकमत नहीं हैं. इनमें से दो विधायकों के सुर दिल्ली जाने वाले चार विधायकों से अलग हैं. विधायक जोगिन्द्र सिंह अवाना और दीपचंद खैरिया दिल्ली नहीं गए हैं, बल्कि सूत्रों की मानें तो इन दोनों विधायकों ने रात को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की है. इस मामले में जोगिंद्र सिंह आवाना का कहना है कि, ‘कांग्रेस पार्टी के पास अच्छे वरिष्ठ वकील साथी मौजूद हैं. नोटिस का जवाब कैसे देना है, इसके बारे में पार्टी हाईकमान चर्चा कर तय करेगा. हमने कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद ही स्टेप उठाया था. नोटिस को लेकर साथियों में डर हो सकता है. मेंबरशिप जाने का डर सबको है लेकिन इसके लिए प्रभारी पैरवी की जा रही है. किसने क्या कहा इस पर नहीं जाना चाहता, मुझे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर पूरा विश्वास है. कुछ साथी दिल्ली गए हैं, मेरे क्षेत्र में कल कार्यक्रम है इसलिए मैं क्षेत्र में रहूंगा.’

मंत्रिमंडल फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने से नाराजगी
दरअसल, गहलोत सरकार में मंत्रिमंडल फेरबदल/विस्तार और प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियों के नहीं होने से बसपा में कांग्रेस में आए इन विधायकों की नाराजगी बढ़ रही है. इनका कहना है कि कांग्रेस में विलय करते समय उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने का वादा किया गया था लेकिन डेढ़ साल के बाद भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है. गहलोत सरकार पर आए सियासी संकट के दौरान भी बसपा से कांग्रेस में आए सभी 6 विधायकों ने गहलोत सरकार का साथ देते हुए सरकार को बचाया था, लेकिन बावजूद इसके उन्हें अभी तक इसका इनाम नहीं मिल पाया है.

गहलोत सरकार पर नहीं है कोई खतरा लेकिन बढ़ेगा दबाव
आपको बता दें, 200 विधायकों की संख्या वाली राजस्थान विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायक चाहिए. अभी कांग्रेस के बसपा से आए विधायकों को मिलाकर कुल 106 विधायकों के अलावा गहलोत सरकार को 13 निर्दलीय विधायकों, 1 आरएलडी विधायक, 2 सीपीएम विधायकों का समर्थन हासिल है. दो सीट खाली हैं, जिन पर उपचुनाव होने हैं. गहलोत सरकार के पास अभी 122 विधायकों का समर्थन है. हालांकि, यदि इन छहों विधायकों की सदस्यता चली जाती है तो कांग्रेस विधायकों की संख्या केवल 100 रह जाएगी. लेकिन जब तक कांग्रेस में बगावत नहीं होती और निर्दलीय इधर-उधर नहीं होते तब तक गहलोत सरकार को खतरा नहीं होगा. हांलाकि, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा, क्योंकि ये सभी छह विधायक गहलोत समर्थक हैं.

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