PoliTalks.news/Bihar. बिहार विधानसभा चुनाव में महज ढाई से तीन महीने का वक्त शेष है और इसको देखते हुए सभी नेता सुरक्षित ठिकाना तलाशने में जुटे हैं. हालांकि ये तय है कि विधानसभा चुनाव दो प्रमुख दल जदयू और राजद के झंडे के नीचे लड़ा जाना है. राजद का महागठबंधन पहले से बड़ा और मजबूत माना जा रहा है. इस दल में कांग्रेस भी है जो बिहार की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. उधर जदयू के साथ प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी और वर्तमान में सत्ता में सहभागी बीजेपी है. अब यहां पेंच लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया चिराग पासवाग और हिंदूस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी को लेकर है. मांझी महागठबंधन से तो चिराग एनडीए गठबंधन से नाराज चल रहे हैं. हालांकि नाराजगी की वजह अलग अलग है लेकिन दोनों ही पाला बदलने में हैं. चिराग के पास दलितों का बड़ा वोटबैंक है, जिसे देखते हुए असहज महसूस कर रही जदयू मांझी को साथ लाने की कोशिशों में लगी हुई है.
वैसे देखा जाए तो बिहार के पूर्व सीएम जीतनराम मांझी की पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई. हम पार्टी ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से पार्टी केवल एक सीट पर कब्जा कर पाई थी. इधर, 42 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली लोजपा को दो सीटें मिलीं. अन्य छोटी पार्टियों में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को दो और CPI (ML) को तीन सीटें मिलीं. चार निर्दलीय भी जीतकर सदन में पहुंचे. ऐसे में 90 फीसदी सीटें चार बड़ी पार्टियों के कब्जे में आईं.
राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बिहार विधानसभा की 242 सीटों में से राजद को 80, जदयू को 71, बीजेपी को 53 और कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत मिली. कम सीट आने के बावजूद राजद ने जदयू के मुखिया नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद दिया. हालांकि सरकार केवल 6 महीने चल पाई और जदयू ने राजद से गठजोड़ तोड़ बीजेपी से हाथ मिलाकर सरकार बना ली और लगातार तीसरे बार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए.
एनडीए गठजोड़ में चिराग पासवान पिछली बार भी शामिल थे. उन्हें 42 सीटें दी गई थीं और इतनी ही सीटें भी वे इस बार भी मांग रहे हैं. जदयू और बीजेपी दोनों ही लोजपा को 20 सीटें देने पर राजी हैं लेकिन चिराग मान नहीं रहे. यहां तक की चिराग के बार बार मुख्यमंत्री पर आक्षेप लगाने से नीतीश कुमार भी असहज दिख रहे हैं. वहीं चिराग का कहना है कि उनकी हर जगह अनदेखी की जा रही है. हाल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से टकराव के बीच सांसद चिराग पासवान ने पटना में पार्टी की आपात बैठक बुलाई है. इस बैठक में उनकी पार्टी के पांच अन्य सांसद और दो विधायक शामिल हैं.
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बैठक से पहले चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा और कहा कि बिहार में बाढ़ और कोविड-19 महामारी बहुत बड़ा मुद्दा है. इसी को लेकर यह बैठक बुलाई गई है. जूनियर पासवान ने ये भी कहा कि पिछले दिनों नीतीश कुमार को बाढ़ और महामारी के मुद्दे पर दो बार पत्र भी लिखा और सरकार की विफलता के बारे में राज्य सरकार को अवगत कराया लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया. बताया जा रहा है कि चिराग पासवान के द्वारा ऐसे पत्र से नीतीश कुमार काफी नाराज हैं. इस बात से भी मुंह नहीं मोडा जा सकता कि चिराग की नीतीश कुमार के साथ टकराव की मुख्य वजह बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे का मुद्दा है.
इधर, हम पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी राजद से नाराज चल रहे हैं. वह कई बार कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग कर चुके हैं लेकिन राजद इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा. पिछले महीने भी मांझी ने अल्टीमेटम दिया था कि उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया तो वे जल्द बड़ा फैसला ले सकते हैं. इसके बाद भी राजद ने मांझी की बातों को दरकिनार कर दिया. यही वजह रही कि मांझी की नीतीश कुमार से सियासी नजदीकियां बढ़ने लगी.
बताया जा रहा है कि मांझी जल्द ही महागठबंधन का दामन छोड़ सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक जदयू से उनकी डील लगभग फाइनल हो चुकी है और इस माह के अंत तक मांझी एनडीए में शामिल हो जाएंगे. जदयू अपने कोटे की 5 से 6 सीटें मांझी को दे सकती है. हालांकि ये भी बताया जा रहा है कि मांझी इतनी कम सीटें लेने को तैयार नहीं हैं. बस केवल इसी बात पर पेंच अटक गया है. मांझी एनडीए से 20 से 30 सीटों की मांग कर रहे हैं जितनी लोजपा को दी जा रही हैं.
इधर, अगर मांझी की एनडीए में एंट्री होती है तो लोजपा का एनडीए गठबंधन से जाना तय है. ये भी सर्वविदित है कि लोजपा की ओर से हर सरकार में केंद्रीय मंत्री रहा है. लोजपा के पूर्व अध्यक्ष राम विलास पासवान अभी भी केंद्र में मंत्री हैं. चिराग भी सांसद हैं लेकिन अगर चिराग एनडीए छोड़ भी देते हैं तो भी राम विलास पासवान के मंत्रीपद को कोई आंच नहीं आने वाली. यही वजह है कि चिराग साफ तौर पर गठबंधन को आंखे दिखा रहे हैं.
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चिराग के गठबंधन छोड़ने या बगावत करने की अटकलें लंबे समय से चल रही हैं इसलिए नीतीश कुमार ने सेफ गेम खेलते हुए जीतनराम मांझी को अपने दल में मिलाने की सोची है. बिहार में दलितों का बड़ा वोटबैंक लोजपा के पास है जबकि मांझी भी इसी समाज से आते हैं.
पिछले दिनों लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान कई मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर रहे हैं. जदयू कुछ दिन तो शांत रही लेकिन फिर इधर से भी जुबानी हमले होने लगे. जदयू को इस बात का भी डर का है कि दलित वोटर उनसे नाराज न हो जाएं। इसी वजह से दलित नेता जीतनराम मांझी को अपने पाले में लाने का फैसला किया है जो करीब करीब फाइनल है.
अब मांझी के कंधों पर पिछले साल जीती गई अपनी दो सीटों के साथ लोजपा प्रभावित इलाकों की तीन से चार सीटों को दिलाने की जिम्मेदारी भी होगी. वहीं चिराग पहले भी स्वतंत्र तौर पर 40 सीटों पर चुनाव लड़ने का दम भर चुके हैं. पिछले साल हुए आम चुनावों में लोजपा के 6 सांसद जीतकर लोकसभा में पहुंचे हैं. महागठबंधन में चिराग के जाने की संभावना न के बराबर है. ऐसे में लोजपा का इतनी सीटों पर लड़ना कोई गिदड़ भभकी नहीं है.
अगर चिराग अन्य पार्टियों के साथ मिलकर तीसरा धड़ा बनाते हैं तो दोनों प्रमुख गठबंधनों को कम से कम 10 से 15 सीटों का नुकसान तय है. बस देखना ये होगा कि चिराग का अगला कदम क्या होगा. देखना ये भी रोचक होगा कि क्या जीतनराम मांझी नीतीश कुमार के लिए चिराग पासवान वाला रोल अदा कर पाएंगे या नहीं. राजद ने भी चिराग पासवान बनाम नीतीश कुमार घटनाक्रम पर अपनी नजरें गढ़ाई हुई हैं.