Tuesday, January 21, 2025
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राजस्थान में अशोक गहलोत पर कैसे भारी पड़ गई बीजेपी? जानिए 5 वजह

प्रदेश में केवल 69 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस, पिछली बार के मुकाबले 30 सीटों की गिरावट, सनातन धर्म के मुद्दे को हलके में लेना भारी पड़ा, सरकार के अधिकांश मंत्रियों की हार ने बीजेपी की जीत को किया प्रशस्त

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Rajasthan Politics: राजस्थान विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को करारी शिख्स्त का सामना करना पड़ा है. जब सीएम अशोक गहलोत विश्वास के साथ ये कह रहे थे कि हमारी सरकार आ रही है. उस समय निश्चित तौर पर लग रहा था कि प्रदेश में सत्ता पाने के लिए टक्कर कांटे की होगी. एक तरफ मोदी मैजिक तो दूसरी तरह गहलोत की जादूगरी. अंदाजा यही लगाया जा रहा था कि बेशक भारतीय जनता पार्टी शहरी इलाकों में मजबूत हो लेकिन ग्रामीण इलाकों में जादूगर की जादूगरी का कोई तोड़ नहीं है. हालांकि ऐसा हो न सका.

कांगेस के गढ़ दौसा, भरतपुर, कोटा एवं अजमेर जिले की अधिकांश सीटें बीजेपी के पाले में आ गयी. गहलोत सरकार में 17 मंत्रियों और सीपी जोशी जैसे दिग्गजों को भी हार का मुख देखना पड़ा. इस हार के पीछे कई कारण रहे लेकिन बीजेपी की जीत की पांच बड़ी वजह रही हैं.

बीजेपी की जीत के पांच बड़े कारण

  1. हिन्दूत्व और सनातन का मुद्दा

भारतीय जनता पार्टी की जीत का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है हिंदुत्व और सनातन. पिछली बार भी बीजेपी ने राजस्थान में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया था लेकिन ऐन मौके पर टिकट बदलकर युनूस खान को टोंक में सचिन पायलट के सामने खड़ा कर दिया था. इस बार उनका नाम भी काट दिया गया. ऐसा करके बीजेपी ने अपनी हिन्दूत्व छवि को कायम रखा और अपने आपको सनातन धर्म के रक्षक एवं प्रसारक होने का संदेश जनता के बीच दिया. राजस्थान में कुछ इलाकों में धार्मिक संप्रदाय को लेकर पहले से ही इसके बीज दबे पड़े थे जिसे बीजेपी ने सनातन का संदेश देकर पनपने का मौका दिया. 7 से अधिक संतों को मैदान में उतार बीजेपी ने राम राज्य की संकल्प को मूर्त रूप देने का काम किया है.

  1. मोदी मैजिक का खुमार छाया

इस बार का राजस्थान चुनाव वसुंधरा राजे के चेहरे पर नहीं ​बल्कि मोदी के चेहरे पर लड़ा गया. इसके बाद प्रदेश में चला पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का मैजिक. चुनाव में मोदी और शाह का मैजिक चला है. लोगों ने उनकी बातों पर यकीन किया है. दोनो नेताओं ने चालीस से भी ज्यादा सभाएं कर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाया. इस कड़ी में एक नाम और भी है, जो है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. उन्होंने भी झोटवाड़ा समेत प्रदेश के कई इलाकों में जनसभाएं कर हिंदूत्व से संबंधित वारों से कांग्रेस को झल्ली करने का काम किया है. उनके तीखे वारों से कांग्रेस को ऐसे घाव लगे कि वे कभी इससे उबर ही नहीं पाए.

  1. गुटबाजियों की संभावना को कहा ‘ना’

इस बार बीजेपी ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को बैक फुट पर रखा और उनके कई नजदीकी नेताओं को टिकट नहीं दिए. ​इनमें अशोक लाहौटी और युनूस खान सबसे उपर हैं. यह चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा गया जिसके चलते कुछ ऐसे उम्मीदवारों को टिकट थमाए गए जिनसे राजे का 36 का आंकड़ा माना जाता है. विद्याधर नगर से राजे के खास राजवी को हटाकर दीया कुमारी को टिकट दिया गया. राजे के पिछले राज में दीया और राजे के बीच मनमुटाव की खबरे आम रही थी. राज्यवर्धन सिंह इस कड़ी में दूसरा नाम है जिन्हें भावी सीएम के तौर पर देखा जा रहा है. गजेंद्र सिंह, सतीश पूनियां और राजेंद्र सिंह राठौड़ के भी अपने अपने गुट बने हुए हैं. ऐसे में इन सभी के बीच गुटबाजी को समाप्त करने के लिए चुनाव को ‘कमल’ के निशान और मोदी के चेहरे पर लड़ने का फैसला लिया गया. अब परिणाम सभी के सामने है.

  1. कानून-व्यवस्था के मुद्दों को भुनाया

इसमें कोई शक नहीं कि अशोक गहलोत गृहमंत्री के तौर पर पूरी तरह से फैल रहे हैं. सरकार कानून व्यवस्था में फैल रही है. अलवर में विवाहिता से सामूहिक दुष्कर्म, कन्हैयालाल मर्डर केस, भीलवाड़ा में बच्ची की हत्या जैसे कानून-व्यवस्था के मुद्दों को बीजेपी ने जमकर भुनाया. दुष्कर्मों के मामले में राजस्थान का पहले पायदान पर होना भी सरकार के विरोध में गया. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी सरकार द्वारा कोई ठोस कदम न उठाने जाने से भी जनता में नाराजगी रही. महिलाओं में खासकर सुरक्षा को लेकर असुरक्षा को लेकर हीन भावना पनप रही थी. आक्या विधायक दिव्या मदरेणा ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया था कि वे कांग्रेस काल में सुरक्षित महसूस नहीं कर पाती हैं.

  1. मोदी की गारंटियों पर जनता का भरोसा

अशोक गहलोत ने प्रदेश की जनता को कई तरह की योजनाएं देते हुए खजाने का मुंह खेाला तो पीएम नरेंद्र मोदी ने जनता को भविष्य की गारंटियों का भरोसा दिलाया. उन्होंने परकोटे में रोड शो करते हुए सभी को इन गारंटियों से रूबरू कराया. किसी भी नेता का परकोटे में किया गया ये पहला रोड शो रहा. यहां एक बार और गौर करने लायक रही कि दर्शक दीर्घा में महिलाओं की उपस्थिति पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक रही. इस बार के मतदान में भी कई इलाके ऐसे रहे जहां महिलाओं की वोटिंग पुरुषों से अधिक रही. ये दर्शाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राजस्थान की महिलाओं का विश्वास सरकार की तुलना में कहीं ज्यादा है.

यह भी पढ़ें: राजस्थान-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में खिला ‘कमल’, कांग्रेस के हाथ लगा तेलंगाना

ये कुछ कारण हैं जिनके चलते अशोक गहलोत की जादूगरी प्रदेश की जनता पर नहीं चल सकी. इसके चलते कांग्रेस के हाथों से एक बड़ा राज्य आसानी से फिसल गया. राजस्थान में कांग्रेस के फैल होने के पीछे खुद कांग्रेस का भी बड़ा हाथ है. कानून व्यवस्था की दयनीय स्थिति के साथ साथ गहलोत-पायलट की सियासी दृंद, सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र सिंह गुढ़ा द्वारा रचित लाल डायरी प्रकरण, सचिवालय की एक अलमारी और गणपति प्लाजा के लॉकर्स में करोड़ों की नकदी का खुलासा, जयपुर बम ब्लास्ट के आरोपियों का जेल से छूटना, ​पेपर लीक प्रकरण में आरपीएससी चेयरमैन की मिलीभगत और कन्हैयालाल हत्या जैसे कई बड़े घटनाक्रम गहलोत सरकार की अन्य लाभप्रद योजनाओं पर भारी पड़ गए. यहीं से राजस्थान में बीजेपी की जीत का रास्ता प्रशस्त हुआ है.

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