Politalks.News/Bharat. कांग्रेस और गुटबाजी का चोली-दामन का साथ है. कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का मसला नहीं सुलझा पा रही है साथ ही जिन गिने-चुने राज्यों में सरकार है वहां की गुटबाजी जबरदस्त तरीके से हावी है. वहीं जिन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार नहीं है वहां भी नेताओं के आपस में उलझने की खबरें आ रही हैं. इस पूरी स्थिति को लेकर कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता परेशान है. लेकिन इनकी मुसीबत ये है कि अपने मन की बात कहें तो किसे कहें? हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि राहुल गांधी को स्थाई रूप से पार्टी अध्यक्ष पद संभालना चाहिए क्योंकि पंजाब, यूपी, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और गोवा में चुनाव प्रस्तावित हैं. अगर अब कांग्रेस ने देरी की तो अहम राज्य उसके हाथ से निकल जाएंगे जिसकी भरपाई करना कठिन होगा. इसलिए कांग्रेस को कारगर कार्ययोजना बनानी होगी
कांग्रेस पार्टी को कई राज्यों में अपना झगड़ा सुलझाना है. अगले साल विधानसभा चुनाव वाले राज्यों पंजाब, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस के नेता आपस में लड़ रहे हैं. हरियाणा में पार्टी के नेता आपस में लड़ रहे हैं तो केरल में अलग झगड़ा छिड़ा हुआ है, राजस्थान में गहलोत और पायलट कैंप खुलकर आमने-सामने है. पंजाब में अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू में तो तलवारें खिंची हैं. दोनों खुलकर एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. झारखंड का झगड़ा हाल ही में दिल्ली तक पहुंचा था, वहां पार्टी जेएमएम के साथ सरकार में है पर पता नहीं किस मजबूरी में कांग्रेस अभी तक नया अध्यक्ष नहीं नियुक्त कर पाई है. बुजुर्ग नेता रामेश्वर उरांव राज्य सरकार में मंत्री भी हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. कांग्रेस के युवा नेताओं को न सरकार में जगह है और न संगठन में. कांग्रेस पार्टी यह विवाद जल्दी से जल्दी सुलझाना होगा नहीं तो अगले साल होने वाले चुनाव से पहले कुछ खेल हो सकता है.
यह भी पढ़ें-योगी के ‘चक्रव्यूह’ में फंसे अखिलेश, नामांकन के दिन ही भाजपा ने 17 सीटों पर पलट दी सपा की बाजी
राजस्थान में गहलोत और पायलट कैंप खुलकर आमने-सामने हैं, दोनों ही खेमों के सिपहरसालार आपस में खुलकर एक दूसरे को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं. राजस्थान के निर्दलीय गहलोत के पक्ष में उतरकर पायलट के खिलाफ बयानबाजी कर चुके हैं. तो बसपा से कांग्रेस में आए विधायकों की अपनी अलग पीड़ा है. राजस्थान में पूरा झगड़ा मंत्रिपरिषद विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर है. इस पूरे एपिसोड के बीच सीएम गहलोत ने खुद को 2 महीनों के लिए क्वारेंटाइन कर लिया है, तो खुद सचिन पायलट ने भी चुप्पी साध रखी है. अब राजस्थान के कांग्रेस के जमीनी नेता और कार्यकर्ताओं को कोई आसरा नजर नहीं आ रहा है.
उत्तराखंड में इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद नेता विपक्ष का पद खाली है. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को नेता विपक्ष बना दिया जाए. लेकिन प्रीतम सिंह किसी हाल में प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं छोड़ना चाहते हैं. दूसरी ओर पार्टी आलाकमान ने चुनाव के समय हरीश रावत को पंजाब में लगा रखा है. पंजाब में रावत कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि कैप्टेन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू दोनों सीधे सोनिया, राहुल और प्रियंका से बात करते हैं. पंजाब में अगले साल चुनाव है और उससे पहले कैप्टेन व सिद्धू का झगड़ा सुलझ नहीं रहा है. अगर इसी तरह झगड़ा चलता रहा और अंत नतीजा सिद्धू के अलग होकर नई पार्टी बनाने का निकलता है तो कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल होगी.
यह भी पढ़ें-राजस्थान में वैक्सिनेशन पर आया संकट, सीएम गहलोत ने पीएम मोदी को तो रघु ने लिखा हर्षवर्धन को पत्र
पंजाब की तरह हरियाणा में अगर भूपेंदर सिंह हुड्डा को पूरी कमान नहीं सौंपी जाती है तो उनको अलग होने में देर नहीं लगेगी. वे और उनके करीबी इस बात से परेशान हैं कि पार्टी आलाकमान ने रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और कैप्टेन अजय यादव के साथ साथ प्रभारी विवेक बंसल को उनके पीछे लगा रखा है. केरल का झगड़ा खुद राहुल गांधी सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी को पार्टी आलाकमान ने दिल्ली बुला कर बात की है लेकिन चांडी और रमेश चेन्निथला दोनों नाराज हैं. राहुल की बनाई वेणुगोपाल, सतीशन और सुधाकरण की तिकड़ी से सारे नेता नाराज हैं.
मध्यप्रदेश में आपसी झगड़े में कमलनाथ सरकार की बलि चढ़ गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. ज्योतिरादित्य राहुल के करीबी थे. ज्योतिरादित्य के बाद अब जितिन प्रसाद का बीजेपी में जाना थी कांग्रेस नेतृत्व की कमी ही दर्शा रहा है. पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश समय समय पर बयान देते रहते हैं कि पार्टी को एक बड़ी सर्जरी की जरुरत है., कपिल सिब्बल भी कई बार ऐसी ही बात कहते सुनाई देते हैं.
यह भी पढ़ें-सौम्या के सस्पेंशन पर हाईकोर्ट की मुहर, सुप्रीम कोर्ट की शरण में जा सकती हैं निलंबित मेयर !
राजनीति के जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी को स्थाई रूप से पार्टी अध्यक्ष पद संभालना चाहिए, क्योंकि उन्होंने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच प्रभाव छोड़ा है और उन्होंने कोविड की दूसरी लहर से निपटने में असमर्थता पर मोदी सरकार पर हमले भी बोले हैं. कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को 1998 की तरह आगे आना होगा, उन्हें नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति कर अनिश्चितता खत्म करनी चाहिए. इससे पार्टी कार्यकर्ता मजबूत होंगे और भाजपा के खिलाफ कमर कस सकेंगे. राहुल टीम बिखर गई है. जितिन प्रसाद के पार्टी छोडऩे के बाद सचिन पायलट, नवजोत सिंह सिद्धू आदि के भी खोने का डर मंडरा रहा है. पूरे देश में कांग्रेस की राष्ट्रीय पहचान है. अगले वर्ष कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो दूसरी तरफ वरिष्ठ नेताओं और युवा पीढ़ी में पार्टी के प्रति आकर्षण कम हो रहा है. ऐसे में ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ को सुधारात्मक कदम उठाने और ‘संकट प्रबंधन रणनीति’ अपनाने की जरूरत है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि नुकसान से बचने के लिए नियमित अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक संकट प्रबंधन समूह का गठन किया चाहिए. जो किसी आसन्न संकट से निपट सके. इससे पार्टी में सही संदेश पहुंचेगा. प्रियंका यूपी के लिए पार्टी की पसंद हैं, तो इस योजना को तत्काल प्रभावी बना देना चाहिए. कोई भी देरी संकट को ही बढ़ाएगी. राज्य चुनावों के लिए रणनीति को अंतिम रूप देने की भी जरूरत है.