UP में 5वें फेज में फिर कम पड़े वोट, कड़े मुकाबले की सीटों पर ‘खामोश’ ट्रेंड किसका बिगाड़ेगा गेम?

उत्तरप्रदेश में चुनाव समापन की और...चार चरणों की तरह फिर घटा मतदान, पांचवें फेज में पिछले चुनाव से 1 प्रतिशत कम हुई वोटिंग, सियासी गलियारों और पार्टी मुख्यालयों में रणनीतिकारों के उड़े होश, कड़े मुकाबले वाली सीटों पर भी घटा मतदान, पिछली बार 3 फीसदी वोट बढ़ा था तो भाजपा की हुई थी बल्ले-बल्ले, सपा को हुआ था भारी नुकसान

UP में 5वें फेज में फिर कम पड़े वोट
UP में 5वें फेज में फिर कम पड़े वोट

Politalks.News/UttarPradeshAssemblyElections2022. उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) अब समापन की ओर बढ़ रहा है. रविवार को यूपी में पांचवे चरण का मतदान हुआ लेकिन हैरानी की बात यहा है कि इस चरण में मतदान का प्रतिशत 60 के आंकड़े को पार नहीं कर पाया. पिछले चार चरणों में भी मतदाताओं में 2017 और 2012 जैसा उत्‍साह देखने को नहीं मिला. अब वोटिंग परसेंटेज कम रहने का किसे नुकसान होगा और किसे फायदा सियासी गलियारों (political corridors) में इसको लेकर गुणा-भाग लगाया जा रहा है. पार्टियों के रणनीतिकार (party strategists) भी इस पर माथापच्‍ची कर रहे हैं. 2017 के मुकाबले इस फेज में 1 फीसदी वोट कम गिरे हैं, इस गिरे हुए वोट प्रतिशत ने पार्टियों की नींद उड़ा दी है. पिछली बार इन सीटों पर तीन फीसदी वोट बढ़कर गिरे थे तो भाजपा (BJP) की बल्ले-बल्ले हो गई थी. लेकिन कड़े मुकाबले वाली इन सीटों पर इस बार मतदान गिरने से समीकरण बिगड़ते दिख रहे हैं. हालांकि तस्वीर तो 10 मार्च को ही साफ होने वाली है.

पांचवें चरण में 61 सीटों पर 57.32 फीसदी हुआ मतदान
यूपी में रविवार को अवध क्षेत्र के अयोध्‍या से बुंदेलखंड के चित्रकूट तक जिन 61 सीटों के लिए मतदान हुआ. आपको बता दें कि इन सीटों पर कुर्मी वोटों का अच्‍छा-खासा प्रभाव माना जाता है. इस बार इन सीटों पर 57.32 फीसदी मतदान हुआ है जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां 58.27 प्रतिशत मतदान हुआ था. पिछले बार के चुनाव से इस बार 1 फीसदी वोट कम गिरे हैं. कहने को यह सिर्फ एक फीसदी की गिरावट है लेकिन सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार सीटों पर जीत-हार का अंतर काफी कम रहने वाला है और ऐसे में एक फीसदी का अंतर भी परिणाम पर बड़ा फर्क डाल सकता है. मतदान पर नज़र बनाकर रखने वाले लोगों का कहना है कि इस बार शहरी क्षेत्र के बूथों पर वैसा उत्‍साह देखने को नहीं मिला जैसा पिछली बार दिखा था.

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किस जिले में कितना मतदान हुआ?
अवध से लेकर बुंदेलखंड की सीटों पर चुनाव हुए, जहां पर कुर्मी और पासी निर्णायक है. अमेठी में 55.86 फीसदी, अयोध्या में 58.01 फीसदी, बहराइच में 57.07 फीसदी, बाराबंकी में 54.65 फीसदी, चित्रकूट में 61.34 फीसदी और गोंडा में 56.03 फीसदी मतदान हुआ. कौशांबी में 59.56 फीसदी, प्रतापगढ़ में 52.65 फीसदी, प्रयागराज में 53.77 फीसदी, रायबरेली में 56.60 फीसदी, श्रावस्ती में 57.24 फीसदी और सुल्तानपुर में 56.42 फीसदी वोटिंग रही.

प्रयागराज में सबसे कम मतदान, वोटर खामोश!
पांचवें चरण में सबसे कम प्रयागराज में वोटिंग हुई है जबकि चित्रकूट की दो सीटों पर भले ही औसत से ज्यादा 59 फीसदी वोट पड़े, लेकिन इस बार वोटर ‘खामोशी’ अख्तियार कर रखा है. पांचवें फेज में बाराबंकी से लेकर चित्रकूट तक जिन जिलों में वोटिंग हुए है, वहां पर कुर्मी वोटर सबसे अहम रोल में है. बीजेपी ने 2017 में गैर-यादव ओबीसी का कार्ड चला था, जिसके चलते कुर्मी वोटर एकमुश्त उसके साथ गया था. हालांकि, इस बार कुर्मी वोटों को लिए विपक्षी दलों ने भी सियासी समीकरण बनाए हैं.

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2017 के चुनाव से करीब 1 फीसदी कम हुई है वोटिंग
आपको बता दें कि 2012 के चुनाव में इन्‍हीं 61 सीटों पर 55.12 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. 2017 में 58.24 प्रतिशत के साथ इसमें करीब तीन फीसदी की वृद्ध‍ि दर्ज की गई थी. अब इस बार के चुनाव में एक फीसदी कम मतदान हुआ है. सियासी जानकारों का कहना है कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ने या घटने से किसे लाभ होगा और किसे नुकसान यह बहुत कुछ सीट विशेष की स्थितियों पर निर्भर करता है लेकिन ज्‍यादातर देखा गया है वोटिंग प्रतिशत में इजाफे का लाभ विपक्ष को मिलता है. कई बार ज्‍यादा वोटिंग बदलाव का संकेत देती है. इसके साथ ही कांटे की टक्‍कर वाली सीटों पर भी ज्‍यादा वोटिंग होती है क्‍योंकि वहां मुख्‍य प्रतिद्वंदी उम्‍मीदवार अपने पक्ष के ज्‍यादा से ज्‍यादा वोट पोल कराने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं.

61 में से 23 सीटों पर 500 से 20 हजार का रहा था हार-जीत का अंतर
आपको यह भी बता दें कि पांचवें चरण की 61 में से 23 सीटें ऐसी थीं, जहां हार जीत का फर्क 500 से 20 हजार वोटों के बीच था. ऐसे में वोटों सियासी दलों के लिए पांचवें चरण का चुनाव बड़ा उल्टफेर कर सकता है. पांचवें चरण में जिन 12 जिलों में वोटिंग हुए, उसमें औसत देखें तो दलित 24 फीसदी वोटर हैं, लेकिन चार जिले ऐसे हैं जहां 26 से 36 फीसदी तक हैं. इसमें जाटव और पासी सबसे अहम है. कौशांबी में 36 फीसदी दलित वोटर हैं, जिनमें पासी की संख्या ज्यादा है. रायबरेली, अमेठी, बाराबंकी में 30 फीसदी दलित जाति के वोटर हैं, जिसमें पासी समुदाय सबसे अहम है. इन पासी बहुल सीटों पर वोटिंग औसत से ज्यादा रही है. बहराइच और श्रावस्ती में मुस्लिम वोटर 30 फीसदी के करीब है. इन दोनों ही जिले की 9 सीटें हैं, जहां पर औसत से ज्यादा वोटिंग हुई है.

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2017 में वोट प्रतिशत बढ़ने से भाजपा की हुई थी बल्ले-बल्ले!
पिछले विधानसभा चुनाव 2017 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने से भाजपा को जबरदस्‍त फायदा हुआ था और उस समय सत्‍ता में रही समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. उस चुनाव में भाजपा ने 61 में से 50 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि दो अन्‍य सीटें उसकी सहयोगी अपना दल को मिली थीं. 2012 के विधानसभा चुनाव को देखें तो 61 में से भाजपा को सात, सपा को 41, कांग्रेस को छह और अन्‍य को एक सीट मिली थी. तीन फीसदी वोटों की बढ़त से भाजपा को कुल 42 सीटों का फायदा मिला था जबकि सपा को 36, कांग्रेस को पांच और बसपा को पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. अब एक प्रतिशत कम वोटिंग का फायदा और नुकसान किसको होने वाला है ये तो 10 मार्च को ही साफ हो पाएगा. लेकिन जानकारों का कहना है कि इस चरण में मुकाबला कड़ा रहेगा.

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