Politalks.News/StateElections. पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव (5 state assembly elections) समापन की ओर बढ़ रहा है. तीन अहम राज्यों- उत्तराखंड(Uttrakhand Election2022), पंजाब (Punjab Assembly Election 2022) और गोवा (Goa Assembly Election) में मतदान संपन्न हो चुका है. जबकि उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) में आज पांचवें चरण में 61 सीटों पर मतदान हो रहा है. उसके बाद सूबे में दो चरण में मतदान होना बाकी है. एक अन्य राज्य मणिपुर की 60 सीटों पर भी दो चरण में मतदान होना है, जो 28 फरवरी और पांच मार्च को होगा. इन पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में एक खास बात जो देखने को मिली है, उसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चा जारी है कि ये चुनाव पिछले सात-आठ साल में हुए चुनावों से कुछ अलग तरह से लड़े गए हैं. इन चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद, राममंदिर, तीन तलाक और धारा 370 जैसे मुद्दों पर वोट नहीं पड़ रहे हैं. जबकि स्थानीय मुद्दे हावी रहे हैं. सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि भाजपा विरोधी पार्टियों ने इस पर खास तौर पर काम किया. भाजपा (BJP) की लाख कोशिश के बावजूद कांग्रेस (Congress) और स्थानीय पार्टियों ने चुनाव को इन मुद्दों की ओर डायवर्ट नहीं होने दिया है. हालांकि अभी ये केवल कयास लगाए जा रहे हैं, परिणाम आने के बाद ही इस बात पर पुख्ता मुहर लगेगी.
सियासी जानकारों का कहना है कि सभी पांच राज्यों में चुनाव लगभग पूरी तरह से स्थानीय मुद्दों पर लड़ा गया. प्रदेश के मुद्दों पर ही पार्टियों ने प्रचार किया और विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों पर ले जाने का भाजपा का प्रयास लगभग विफल रहा है. पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में, जहां भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा का बड़ा मुद्दा बनाना चाहा, पीएम की सुरक्षा चूक जैसे मामले उछाले लेकिन वहां भी उसे कामयाबी नहीं मिली. सीमवर्ती राज्य होने, पाकिस्तान की ओर से ड्रोन से नशीले पदार्थ और हथियार भेजे जाने के कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के प्रचार का भी ज्यादा असर नहीं हुआ. पंजाब से जुड़े राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रदेश में चुनाव बेअदबी से लेकर नशे के प्रसार और किसानों के मुद्दे तक ही सीमित रहा है.
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बात करें गोवा की तो भाजपा यहां भी कोई राष्ट्रीय मुद्दा नहीं उठा पाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि (आभामंडल), विश्व नेता के रूप में उनका महत्व, अनुच्छेद 370 या अयोध्या में मंदिर जैसा कोई मुद्दा गोवा में नहीं उठा. यहां तक की किसी भी भाजपा नेता ने इनका जिक्र भी नहीं हुआ है. गोवा में बात हुई अवैध खनन, विकास, कैथोलिक ईसाई समुदाय का ध्रुवीकरण, भाजपा की 10 साल पुरानी सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी जैसे मुद्दों की. यहीं स्थिति मणिपुर की है, जहां मोटे तौर पर सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा पर चुनाव लड़ा जा रहा है. वहीं उत्तराखंड में जरूर भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा, सेना, पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मौत आदि का मुद्दा बनाया लेकिन वहां भी लोग महंगाई, बेरोजगारी और स्थानीय समस्याओं पर टिके रहे.
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उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े और संवेदनशील राज्य में भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दों का कोई नैरेटिव नहीं बन पा रहा है. अयोध्या में, जहां राम मंदिर बन रहा है वहां भाजपा के उम्मीदवार को जिताने के लिए राम जन्मभूमि की मिट्टी बांटी जा रही है. साधु-संतों से अपील करवाई जा रही है. इसी तरह से बात करें वाराणसी की तो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के बावजूद भाजपा मुश्किल में नजर आ रही है. सूबे में कोई अनुच्छेद-370 हटाने या नागरिकता कानून बनाने की चर्चा नहीं कर रहा है. यूपी के सियासी जानकारों की माने तो चुनाव के पहले तीन चरण में किसानों का मुद्दा छाया रहा तो चौथे और पांचवें चरण में आवारा पशुओं (छुट्टा जानवर) का मुद्दा सबसे हावी रहा. यह मुद्दा इतना ज्यादा हावी रहा कि प्रधानमंत्री मोदी को इस पर सफाई देनी पड़ी और वादा करना पड़ा. बसपा सुप्रीमो मायावती ने पांचवें चरण के मतदान से ठीक पहले सही कहा कि महंगाई और बेरोजगारी चुनाव का मुद्दा हैं और यह अच्छी बात है.