संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में कश्मीर के मुद्दे पर बंद कमरे में बैठक होने के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार को कठघरे में लाने की कोशिश की है. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों से कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जो कुछ हो रहा है, उससे हम बहुत हैरान हैं. यह पूरे भारत के लिए चिंता का विषय है. इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और यहां कानून में कोई भी बदलाव भारत का आंतरिक मामला है. लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि 55-60 साल के बाद पहली बार इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिशें हो रही हैं.

बैठक से पहले सिंघवी ने कहा था, हम प्रधानमंत्री से हाथ जोड़कर आग्रह करते हैं कि वे हमारे मित्र देशों के यहां फोन करें और इस बैठक को निरस्त कराएं. इस मुद्दे पर सभी सरकार के साथ हैं, लेकिन यह बैठक सरकार की बहुत बड़ी कूटनीतिक नाकामी है, रणनीतिक नाकामी है.

गौरतलब है कि चीन के अनुरोध पर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर शुक्रवार शाम न्यूयार्क में बंद कमरे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद बैठक हुई थी. पाकिस्तान यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में ले गया और चीन के कहने से सयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हुई. हालांकि बातचीत के नतीजे अब तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. बताया जाता है कि यूएनएससी के अधिकांश सदस्यों ने चीन और पाकिस्तान की यएनएससी की पूर्ण बैठक बुलाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. बैठक में कोई प्रस्ताव तैयार नहीं हुआ और ज्यादातर सदस्य इस संबंध में संयुक्त बयान जारी करने पर भी तैयार नहीं हुए. बैठक शुरू होने से पहले संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने इसे अपनी जीत बताया था.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की अध्यक्ष जोआना रोनाका ने बुधवार को बताया था कि बैठक का औपचारिक आवेदन चीन की तरफ से मिला था. चीन संयुक्त राष्ट्र परिषद का स्थायी सदस्य है. चीन ने पाकिस्तान का समर्थन करते हुए इस मुद्दे पर बंद कमरे में बातचीत करने का अनुरोध किया था. भारतीय समयानुसार शुक्रवार शाम 7.30 बजे शुरू हुई बैठक में सुरक्षा परिषद के पांच अस्थायी और 10 अस्थायी सदस्यों ने भाग लिया. भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस बैठक में शामिल नहीं हुए.

रूस ने बैठक में भाग लेने से पहले ही स्पष्ट किया कि यह भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है. संयुक्त राष्ट्र के रिकॉर्ड के मुताबिक सुरक्षा परिषद ने पिछली बार 1965 में जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर चर्चा की थी. 16 जनवरी 1965 को पाकिस्तानी प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखा था, जिसमें कश्मीर के मुद्दे पर तत्काल बैठक बुलाने का अनुरोध किया था. इसमें कश्मीर के विशेष दर्जे को लेकर शिकायत की गई थी.

गौरतलब है कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की लगातार कोशिश करता रहा है. पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि भारत के धारा 370 हटाने के फैसले से न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति को खतरा पैदा हुआ है. हालांकि भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि यह आंतरिक मामला है और इसमें किसी भी अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन नहीं किया गया है.

बैठक के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि जम्मू-कश्मीर पर लिया गया सरकार का फैसला देश का आंतरिक मामला है और यह वहीं के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए लिया गया है. अनुच्छेद 370 का अंतरराष्ट्रीय मामले से कोई लेना-देना नहीं है. हम धीरे-धीरे वहां लगी पाबंदियां खत्म कर रहे हैं. पाकिस्तान जेहाद की बात कर हमारे देश में हिंसा फैला रहा है. जब तक आतंक खत्म नहीं होगा, तब तक बातचीत संभव नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि झांग जुन ने एक अलग प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया.

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