सोमवार को लोकसभा में ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल- 2019 मतलब ‘उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक-2019’ कुछ प्रमुख पार्टियों के विरोध के बाद पास हो गया. जब ये बिल सदन के पटल पर रखा गया तो कांग्रेस, डीएमके और टीएमसी सांसदों ने इसके खिलाफ नारेबाजी की लेकिन सरकार ने विरोध को नजरंदाज करते हुए बिल पास कर दिया.

सबसे पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने 19 जुलाई को लोकसभा में इस बिल को पेश किया था. बिल ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के अधिकारों को परिभाषित करता है. बिल में थर्ड जेंडर के साथ हो रहे शारीरिक हिंसा और यौन हिंसा जैसे अपराध और हर स्तर के भेदभाव को रोकने के लिए प्रावधान‍ किए गए हैं. सदन में ‘उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक-2019’ को रखते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने कहा कि उभयलिंगी व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए यह विधेयक लाया गया है.

इस बिल को लेकर किन्नर समुदाय में विरोध के सुर उठने लगे हैं और देशभर में इस बिल का विरोध हो रहा है. बिल के पास होने पर ट्रांसजेंडर कम्युनिटी ने इस दिन को ‘जेंडर जस्टिस मर्डर डे’ का नाम दिया. ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट ग्रेस बानू ने द न्यूज मिनट को दिए बयान में कहा कि ये बिल 2014 में आए फैसले को खत्म कर रहा है. ये हमारे समुदाय ट्रांस लोगों की हत्या करने के जैसा है.

ग्रेस बानू ने कहा कि हमारे लिए ये बिल केवल एक कोरा कागज है. ये ट्रांसजेंडर लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं लाने वाला है. इसमें 2014 के फैसले की तरह सेल्फ-आइडेंटिफिकेशन राइट नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रांसजेंडर को OBC का दर्जा दिया जाए लेकिन इसमें ट्रांसजेंडर्स को रिजर्वेशन के दायरे में नहीं रखा गया.

ट्रांसजेंडर बिल क्या है और क्यों हो रहा है इसका विरोध

बिल कहता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जोकि न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, अथवा वह महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन है, अथवा न तो महिला है और न ही पुरुष. इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता और जिसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष), ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री) और इंटरसेक्स भिन्नताओं एवं लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति भी आते हैं.

एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान को मान्यता देने और बिल के तहत प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिए पहचान का सर्टिफिकेट हासिल करना होगा. ऐसा सर्टिफिकेट उसे स्क्रीनिंग कमिटी के सुझाव पर जिला अधिकारी द्वारा प्रदान किया जाएगा. इस कमिटी में मेडिकल ऑफिसर, साइकोलॉजिस्ट या साइकैट्रिस्ट, जिला कल्याण अधिकारी, एक सरकारी अधिकारी और एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल होगा.

बिल शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से किए जाने वाले भेदभाव को प्रतिबंधित करता है. यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश देता है कि इन क्षेत्रों में कल्याण योजनाओं की व्यवस्था की जाए. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भीख मंगवाने, उन्हें सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने से रोकने, उनका शारीरिक और यौन उत्पीड़न करने, इत्यादि अपराधों के लिए दो वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान है.

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि अपने लिंग की स्वयं पहचान करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और स्वायत्तता के अधिकार का ही एक हिस्सा है. लेकिन अगर किसी व्यक्ति की हकदारी की पात्रता साबित करनी है तो उस व्यक्ति के लिंग को निर्धारित करने के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड की जरूरत पड़ सकती है.

बिल कहता है कि एक व्यक्ति को ‘स्वयं अनुभव की गई’ लिंग पहचान का अधिकार होगा. लेकिन वह ऐसे किसी अधिकार को अमल में लाने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं करता. जिला स्क्रीनिंग कमिटी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान से जुड़े सर्टिफिकेट जारी करेगी.

बिल में परिभाषित ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ की परिभाषा, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और भारत के विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत की गई परिभाषा से भिन्न है.

बिल ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ की परिभाषा में ‘ट्रांस-मेन’, ‘ट्रांस-विमेन’ और ‘इंटरसेक्स भिन्नताओं’ एवं ‘लिंग विलक्षणताओं’ जैसे शब्दों को शामिल करता है. लेकिन बिल में इन शब्दों की व्याख्या नहीं की गई है.

वर्तमान में देश में जितने भी आपराधिक और व्यक्तिगत कानून हैं, उनमें ‘पुरुष’ और ‘महिला’ के लिंगों को मान्यता दी गई है. यह अस्पष्ट है कि ऐसे कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर कैसे लागू होंगे जो इन दोनों लिंगों में से किसी से आइडेंटिफाई नहीं करते.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘ट्रांसजेंडर’ एक अंब्रेला टर्म है जिसमें वे सभी लोग शामिल हैं जिनकी लिंग की अनुभूति जन्म के समय उन्हें नियत किए गए लिंग से मेल नहीं खाती. उदाहरण के लिए पुरुष के तौर पर जन्म लेने वाला व्यक्ति दूसरे लिंग यानी महिला से आइडेंटिफाई कर सकता है. 2011 की जनगणना के अनुसार, जो लोग ‘पुरुष’ या ‘महिला’ के तौर पर नहीं, ‘अन्य’ के तौर पर खुद को आइडेंटिफाई करते हैं, उनकी संख्या 4,87,803 है (कुल जनसंख्या का 0.04% भाग). ‘अन्य’ की श्रेणी में ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल हैं और यह श्रेणी उन सभी लोगों पर लागू होती है जो खुद को पुरुष या महिला के तौर पर आइडेंटिफाई नहीं करते.

ट्रांसजेंडर बिल की प्रमुख विशेषताएं

किसी ट्रांसजेंडर से जबरन काम कराने खासकर बंधुआ मजदूरी कराने की शिकायत अपराध की श्रेणी में आएगी. इसके अलावा उन्हें घर, गांव-गली, मुहल्ले से निकालना या सार्वजनिक जगहों से हटाना भी अपराध होगा. उनके साथ किसी भी तरह की हिंसा, शारीरिक यौन हिंसा, शोषण या गाली-गलौच करने पर कानूनी कार्रवाई होगी. इन अपराधों में आरोपी को छह माह से दो साल तक की सजा मिल सकती है.

ट्रांसजेंडर्स के साथ सरकारी स्कूल, कॉलेजों, सरकारी या प्राइवेट ऑफिसों में होने वाले भेदभाव को पूरी तरह गैरकानूनी बनाया गया है. उन्हें नौकरी देने या प्रमोशन देने में भेदभाव नहीं होने दिया जाएगा. इसके लिए शिकायत अधिकारी नियुक्त होगा. इसी तरह उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं भी आसानी से मुहैया कराई जाएंगी. इसके अलावा एचआईवी टेस्ट सेंटर्स और सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी सुविधा मिलेगी. साथ ही उन्हें रहने, पुनर्वास और प्रॉपर्टी खरीदने का पूरा अधिकार मिलेगा.

ट्रांसजेंडर्स को अपने परिवार के साथ अपने घर में रहने का अधिकार है. अगर उसका परिवार उसकी केयर करने में नाकाम होता है तो वो रीहबिलटैशन सेंटर में रह सकता है. इसके अलावा वो किराए का घर लेकर भी रह सकता है. उसे कोई भी मकान मालिक इस आधार पर घर देने से मना नहीं कर सकता कि वो ट्रांसजेंडर है. वो खुद के नाम प्रॉपर्टी भी खरीद सकता है.

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