लोकसभा चुनाव के रण में कोई जातिगत समीकरणों के भरोसे है तो कोई जाति के झंडाबरदारों के भरोसे. राजस्थान की टोंक-सवाई माधोपुर सीट पर भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. बीजेपी ने यहां सुखबीर सिंह जौनपुरिया को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने नमोनारायण मीणा को टिकट दिया है. बीजेपी और कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक के अलावा जहां जौनपुरिया को गुर्जर वोटों पर भरोसा है, वहीं नमोनारायण को मीणा मतदाताओं से उम्मीद है.
बीजेपी उम्मीदवार की बात करें तो 2014 के चुनाव में टोंक-सवाई माधोपुर सीट से आसानी से जीत दर्ज करने वाले सुखबीर सिंह जौनपुरिया गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बीजेपी में शामिल होने से उत्साहित हैं. उन्हें उम्मीद है कि बैंसला के पार्टी में आने से गुर्जरों के एकमुश्त वोट उनको मिलेंगे. बैंसला राजस्थान में हुए गुर्जर आरक्षण आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे रहे हैं. उनकी अगुवाई में ही गुर्जरों ने कई दौर का आंदोलन किया. गुर्जर जाति पर उनकी पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
ऐसे में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बीजेपी में शामिल होने के बाद लोगों के जहन में एक ही सवाल उठ रहा है कि उनकी घर वापसी से पार्टी को कितना फायदा होगा. टोंक-सवाई माधोपुर उन सीटों में शामिल हैं, जहां के सियासी समीकरणों पर बैंसला असर डाल सकते हैं. वैसे गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान बीजेपी प्रत्याशी सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी खासे सक्रिय रहे थे. चाहे आंदोलन में मारे गए गुर्जरों को परिजनों को आर्थिक सहायता देने की बात हो या कोटपूतली में स्मारक बनाने का मामला, जौनपुरिया हमेशा आगे रहे.
जौनपुरिया गुर्जर शहीद सम्मान रैली में हजारों की भीड़ इकट्ठी कर चर्चा में आए. इससे पहले पुष्कर मेंं हुई अखिल भारतीय गुर्जर संघर्ष समिति की बैठक में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. इसी दौर में जौनपुरिया कर्नल बैंसला के संपर्क में आए. उन्होंने टोंक-सवाई माधोपुर में अपने लिए सियासी संभावना तलाशने के लिए गंगापुर सिटी विधायक मान सिंह गुर्जर और देवली-उनियारा विधायक राजेंद्र गुर्जर से मेलजोल बढ़ाया.
सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने 2009 के चुनाव में टोंक-सवाई माधोपुर से टिकट मांगा था, लेकिन बीजेपी ने उन्हें यहां से मौका नहीं दिया. पार्टी ने यहां से कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को मैदान में उतारा. उनके सामना कांग्रेस के नमोनारायण मीणा से हुआ. इस मुकाबले में बैंसला महज 313 वोटों से चुनाव हारे. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की कांग्रेस सरकार के दबाव में राज्य निर्वाचन आयोग ने गड़बड़ी कर मीणा को जिताया. बैंसला ने चुनाव परिणाम को कोर्ट में भी चुनौती दी, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली.
कुछ समय बाद किरोड़ी सिंह बैंसला ने बीजेपी को अलविदा कह सक्रिय राजनीति से नाता तोड़ लिया. लोकसभा चुनाव से पहले उनके कांग्रेस में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे. वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिले भी, लेकिन आखिर में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. दस साल बाद किरोड़ी सिंह बैंसला एक बार फिर टोंक-सवाई माधोपुर की सियासत में चर्चा के केंद्र में हैं, लेकिन उम्मीदवार की हैसियत से नहीं, बल्कि संरक्षक की भूमिका में.
इलाके की राजनीति को जानने वालों की मानें तो जौनपुरिया और बैंसला के गठजोड़ से बीजेपी उन गुर्जर वोटों में सेंध लगा सकती है जो सचिन पायलट की वजह से कांग्रेस में चले गए थे. यदि सुखबीर सिंह जौनपुरिया गुर्जर वोटों को साधने में कामयाब हो जाते हैं तब भी उनकी राह आसान नहीं है. उन्हें पार्टी के भीतर खेमेबंदी और गुटबाजी से जूझना पड़ रहा है. पूर्व विधायक दीया कुमारी चुनाव लड़ने के लिए राजसमंद कूच कर चुकी हैं.
पूर्व मंत्री प्रभूलाल सैनी और मालपुरा विधायक कन्हैया लाल चौधरी उनके साथ नहीं लग रहे. वहीं, उनियारा नगर पालिकाध्यक्ष राकेश बढ़ाया, मालपुरा में उप जिला प्रमुख अवधेश शर्मा, आत्मज्योति गुर्जर और छोगालाल विधानसभा चुनावों में ही कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं. अब सुखबीर सिंह जौनपुरिया के सामने कांग्रेस उम्मीदवार के निपटने के अलावा अपनी पार्टी में जारी खेमेबंदी और गुटबाजी से पार पाना बड़ी चुनौती है. चुनाव में हार-जीत इस बात पर काफी निर्भर करेगी कि जौनपुनिया इन सबसे कैसे निपटते हैं.