PoliTalks.News/Bihar Special. लोजपा पार्टी के पूर्व अध्यक्ष रामविलास पासवान को राजनीति का बड़ा खिलाडी या फिर चुनावी मौसम वैज्ञानिक भी कह सकते हैं. पासवान 1970 से अब तक 9 बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं. सरकार किसी भी दल की हो, पासवान उसमें मंत्री जरूर होते हैं. पासवान का चुनावी फार्मूला ऐसा होता है, जो पूरी तरह सटीक बैठता है. वो राजनीकि समीकरणों को बारीकी से केवल समझते ही नहीं है बल्कि उसे गढ़ते भी है.
कमाल के गुणा-भाग से भरा रहा है पासवान का सफर
जरा याद किजिए 1989 का वो चुनाव जिसमें विश्वनाथ प्रतापसिंह की अगुवाई में संयुक्त मोर्चा बना था. कई दलों ने बोफोर्स के मुददे पर कांग्रेस के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ा था. संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी थी. विश्वनाथ प्रतापसिंह प्रधानमंत्री बने. उनकी केबिनेट में रामविलास पासवान थे. इसके बाद 1996 में कांग्रेस के खिलाफ राष्टीय जनतांत्रिक गठबंधन बना. अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी. रामविलास पासवान इसमें भी केबिनेट मंत्री थे. इसके बाद हुए चुनाव में इस गठबंधन के खिलाफ बने यूपीए की सरकार बनी. प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह थे लेकिन उनकी भी सरकार में पासवान केबिनेट मंत्री थे. यूपीए की सरकार गई तो एनडीए की सरकार आई. मनमोहनसिंह की जगह नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, लेकिन इसमें भी पासवान केबिनेट मंत्री बने.
अलग-अलग दलों से 9 बार सांसद, 6 बार केंद्रीय मंत्री
इसे आप राजनीतिक चमत्कार कहें या फिर रामविलास पासवान की राजनीतिक जौहरी वाली नजर. राजनीतिक क्षेत्र के बड़े-बडे दिग्गज इसी बात को लेकर रामविलास पासवान के कायल है. वो देश के बड़े दलित नेताओं में गिने जाते हैं. लेकिन एक खासियत है, 9 बार सांसद और 6 बार केंद्रीय मंत्री रहने बाद भी उन्होंने बिहार से बाहर यानि देश में जाकर राजनीति नहीं की. उन्होंने लोजपा संगठन बनाया लेकिन बिहार तक ही सीमित रखा. पासवान बिहार की राजनीति में एक अहम किरदार हैं.
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पिछले 25 सालों में सत्ता का कोई भी ऐसा समीकरण नहीं है, जिसमें पासवान की छाप ना दिखाई देती हो. आप यूं भी कह सकते हैं कि रामविलास पासवान किसी के लिए भी सत्ता की सीढी से कम नहीं. यानि किसी को भी सत्ता की उंचाई तक पहुंचना हो तो उसे पासवान का साथ लेना ही होगा. पासवान भी मजबूत राजनीतिक स्थिति को टटोलने के बाद उस दल के साथ खड़े दिखाई देते है.
कब-कब और किस-किस पार्टी से लड़ा चुनाव
आपातकाल के समय 1977 में जनता पार्टी से चुनाव लड़कर सांसद बने. 3 साल बाद 1980 में एक बार फिर जनता पार्टी से चुनाव लडकर जीते. 1984 की इंदरा गांधी लहर में पासवान चुनाव हार गए. 1989 के चुनाव में पासवान जीते लेकिन इस बार उनकी पार्टी जनता पार्टी नहीं बल्कि जनता दल थी. 1996 और 1998 में वो जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते. वाजपेई सरकार के गिरने के बाद 1999 में हुए चुनाव में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव जीता. 2004 में जेडीयू से एक बार फिर सांसद बने. पासवान 8वीं बार लोकसभा के लिए चुने गए. 2019 में पासवान ने चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय किया. लेकिन केंद्र में बनी मोदी सरकार उन्हें केबिनेट में पासवान को शामिल किया गया.
ऐसे शुरू हुआ पासवान का राजनीतिक सफर
1969 में जनता पार्टी के टिकट से बिहार विधानसभा के विधायक बने. पासवान हर बार एक नई सीढी पर चढते नजर आए. 1977 में जेपी आंदोलन का चेहरा बने. बड़े दलित नेताओं में उनकी गिनती होने लगी. 1977 में पहली बार लोकसभा सांसद बने. इसके बाद शुरू हुआ सफर कभी नहीं रूका. पासवान का प्रभाव बढने लगा और वो खुद के साथ-साथ दूसरों की राजनीतिक दिशा भी तय करने लगे.
शानदार रहा पासवान का राजनीतिक सफर
पासवान का राजनीतिक सफर काफी शानदार रहा. पासवान 9 बार लोकसभा सदस्य, 1 बार राज्यसभा सदस्य, 6 बार केन्द्र में मंत्री रहे. अभी छठवीं बार बिना लोकसभा चुनाव लड़े फिर से मंत्री बने हैं. पासवान के राजनीतिक सफर की शुरूआत 1969 में हुई. वो पहली बार एमएलए बने. 1977 में पहली बार रिकॉर्ड वोट से लोकसभा चुनाव जीते. 1977, 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में हाजीपुर लोकसभा लोकसभा सीट से 8वीं बार चुनाव जीते. वर्ष 1999 में रोसड़ा संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते. साल 2010 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने.
साल दर साल आगे ही बढ़ते चले गए पासवान
1977-79 में छठी लोक सभा के पहली बार सांसद बने. बिहार के हाजीपुर से रिकार्ड 4,24,545 वोटों से जीतने पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज हुआ. दूसरी बार 1980-84में सांसद बनने के साथ लोक सभा लोक दल के नेता बने. तीसरी बार 1989-91 में सांसद बने. सांसद बनने के साथ पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में श्रम एवं कल्याण मंत्री बने. चैथी बार 1991-96 में सांसद बने. इस समय पासवान व्यवसाय सलाहकार समिति और गृह कार्य समिति के सदस्य रहे. पांचवी बार सांसद 1996-98 में बने. इस समय वो लोकसभा मे सदन के नेता रहे.
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इसके साथ ही रेलमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री बने. छठवीं बार 1998-99 में सांसद बने. इस समय पासवान नेता, जनता दल संसदीय पार्टी, सदस्य, सामान्य प्रयोजन समिति, सदस्य, रेलवे समिति और गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य रहे. सातवीं बार 1999-2004 में सांसद रहे. इस समय पासवान केंद्रीय संचार मंत्री और केंदीय खनन एवं कोयला मंत्री बने. आठवीं बार 2004-2009 में सांसद रहे. इस दौरान केंदीय रसायन, उर्वरक और इस्पात मंत्री रहे. 2010 में राज्यसभा सांसद के तौर पर चुने गए. इस दौरान कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन संबंधी समिति, याचिका समिति और शहरी विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य रहे.
2014 से 2019 में एक बार फिर यानि 9वीं बार लोकसभा सांसद बने. इस दौरान पासवान केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री बने. 2019 में चुनाव नहीं लड़ा लेकिन उन्हें एक बार फिर केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री बनाया गया.
चार प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में 6 बार मंत्री बने पासवान
1989 में विश्वनाथ प्रतापसिंह की सरकार में पहली बार केंद्र में श्रम मंत्री बने. 1996 में राष्टीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में बनी. पासवान इस सरकार में रेलमंत्री बने. 1999 में अटल बिहारी फिर से प्रधानमंत्री बने. इस सरकार में पासवान संचार मंत्री बने. 2002 में यूपीए गठबंधन के नेतृत्व में मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री बने. इस सरकार में पासवान कोयला मंत्री बने. 2014 में एनडीए गठबंधन की मोदी सरकार बनी. इसमें पासवान खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बने. 2020 में मोदी सरकार में एक बार फिर से यानि छठी बार केबिनेट मंत्री बने.
साल 2000 में बनाई लोक जनशक्ति पार्टी
पासवान के राजनीतिक सफर में उनका कई पार्टियों से नाता रहा. साल 2000 में उन्होंने लोकजन शक्ति पार्टी का गठन किया. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय दलित और अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष बने. इससे पहले राजनीति के शुरूआती समय में 1970 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, बिहार के सचिव बने. वहीं 1974 में लोकदल बिहार, 1985 में लोकदल, के राष्ट्रीय महासचिव बने. 1983 से दलित सेना के संस्थापक अध्यक्ष हैं. इसके साथ ही 1987-88 में जनता पार्टी, 1988-90 में जनता दल,के महासचिव रहे. 1988-90 में नेशनल फ्रंट के सचिव रहे.
गुजरात दंगों को लेकर दिया था केंद्रीय मंत्री से इस्तीफा
साल 2002 में पासवान अटल बिहारी वाजपेई सरकार में केंद्रीय मंत्री थे लेकिन उन्होंने गुजरात दंगों को लेकर संसद में आने वाले निंदा प्रस्ताव से पहले कंेद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उस समय पासवान ने कहा है कि वे गुजरात में चल रहे सांप्रदायिक दंगों को रोकने में केंद्र सरकार की नाकामी से नाराज होकर इस्तीफा दे रहे हैं. इसके साथ ही सत्ताधारी जनतांत्रिक गठबंधन से भी अलग होने की घोषणाा की थी.
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राजनीतिक हलकों में उनका फैसला इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि वाजपेई सरकार को गुजरात दंगो के मामले पर निंदा प्रस्ताव का सामना करना था. रामविलास पासवान ने कहा था गुजरात की घटनाओं से देश-विदेश में हमारा सिर शर्म से झुक गया है. हम मूक-दर्शक बने बैठे हैं. उल्लेखनीय है कि उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. यही नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने और पासवान उनकी सरकार में मंत्री बने. 2019 में नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बने और पासवान भी मंत्री बने.
एनडीए के साथ रहेंगे या नहीं फैसला बेटा करेगा
पसवान खुद तो एनडीए की सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं. वहीं उनका पुत्र चिराग पासवान लोजपा अध्यक्ष है. चुनाव से पहले की राजनीतिक बारिकी समझिए. बिहार में एनडीए गठबंधन की स्थिति कमजोर होने की चर्चाओं के बीच. लोजपा गठबंधन से किनारा करती नजर आ रही है. बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लोजपा और जेडीयू के बीच राजनीतिक नूरा कुश्ती शुरू हो चुकी है. एनडीए से चल रही खींचतान से जुड़े मसले पर जब रामविलास पासवान से पूछा गया कि क्या लोजपा एनडीए के साथ रहेगी. तो रामविलास पासवाना का जवाब था कि यह लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ही तय करेंगे. चिराग और पार्टी का पार्लियामेंटी बोर्ड जो भी तय करेगा, वह मान्य होगा. यानि बिहार चुनाव से पहले नए समीकरण का साफ संकेत दे दिया गया है.
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इससे पहले भी साल 2018 में यूपी सहित कई अन्य स्थानों पर हुए विधानसभा चुनाव के उपचुनाव में बीजेपी की हार के बाद चिराग पासवान अपने ही गठबंधन की पार्टी बीजेपी को लेकर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि बीजेपी नेतृत्व को सोचना चाहिए कि उनकी हार क्यों हो रही है. भाजपा आला कमान को सोचना होगा कि देश की जनता का मिजाज क्यूं बदल रहा है.
बाद में रामविलास पासवान ने भी चिराग की बात का समर्थन करते हुए कहा था कि मेरे बेटे ने सही कहा है, यह भाजपा के लिए चिंता की बात है. यह बात उस समय कही गई थी, जब यूपी में योगी राज के दौरान हुए उपचुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. जबकि कुछ समय पहले ही यूपी की जनता ने बीजेपी को छप्परफाड़ वोट देकर योगी सरकार बनाई थी.
बिहार चुनाव के लिए बनाया जा रहा है नया समीकरण
नीतिश सरकार के खिलाफ आए दिन चिराग पासवान के जवाब आ रहे हैं. लोजपा को अधिक सीटें दिलाने के लिए चिराग पासवान जदयू और बीजेपी पर दबाव बना रहे हैं. जिसके चलते तनातनी बढ़ती जा रही है. लोजपा और जदयू के नेताओं की तरफ से बयानबाजी हो रही है. इस बीच बीजेपी के सुशील मोदी का भी बड़ा बयान आया है. सुशील मोदी ने कहा है कि किसी जाने से चुनाव की स्थितियों पर कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ने वाला है. यानि अब तस्वीर साफ होती जा रही है कि बिहार चुनाव से पहले एनडीए में कुछ न कुछ जरूर नया होगा.
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जो भी है, राजनीति का घटनाक्रम चलता रहेगा. इस सबके बीच राम विालस पासवान खामोशी के साथ फिर से अगले चुनाव में उनकी खास भूमिका तय करने में लगे हैं. वो मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री है. बहुत कम मौकों पर ही कोई बयान देते हैं. उनका मंत्रालय 80 करोड़ लोगों के लिए नवंबर तक मुफत अनाज उपलब्ध कराने के बड़े काम में जुटा है. इसके साथ ही उनकी पार्टी लोजपा बिहार की जनता के लिए भी विशेष योजनाओं पर काम कर रही है.