मरुधरा में नहीं बदला रिवाज! राज बदलने की पूरी घटनाक्रमों पर सियासी टिप्पणी

राजस्थान में भाजपा ने जोरदार जीत हासिल की है, मरुधरा में एक बार फिर हर पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड जारी है, राजस्थान में राज भी बदला, लेकिन रिवाज नहीं बदला

bjp rajasthan
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Rajasthan Politics: राजस्थान में केसरिया रंग छा गया है. चुनावों में भाजपा ने दमदार जीत दर्ज की है तो कांग्रेस को सरकार से हाथ धोना पड़ा. इस बार का चुनाव टिकट वितरण, प्रचार, मतदान और आज के परिणाम हर मामले में रोचक रहा है. मरुधरा में एक बार फिर हर पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड जारी है. प्रदेश में राज भी बदला, लेकिन रिवाज नहीं बदला. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल किया.

सबसे पहले बात कांग्रेस की हार की कर ली जानी चाहिए. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई बार कहते थे कि कुर्सी उन्हें नहीं छोड़ती, वह कुर्सी छोड़ना चाहते हैं. इस बात को जनता ने सुन लिया और जनता ने उनसे यह कुर्सी छुड़वा दी, कांग्रेस की गारंटियां फैल हो गई है. ओपीएस और फ्री योजनाएं, पीएम मोदी की गारंटी के सामने टिक नहीं पाई. खुद मुख्यमंत्री गहलोत के खास सिपहसालार और चुनावी दिग्गज भी चुनाव हार गए हैं. जिनमें विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी हार गए हैं. इसके साथ ही परसादी लाल मीणा, प्रताप सिंह खाचरियावास सहित कांग्रेस के 25 में से 17 मंत्री हार गए हैं. लेकिन मजे की बात यह है कि पीएम मोदी सहित भाजपा नेताओं के चुनावी कंपैन में निशाने पर रहने वाले शांति धारीवाल जीत गए हैं.

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दूसरी तरफ भाजपा ने जीत तो दर्ज कर ली है, लेकिन संयोग यह भी रहा कि नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया सियासी अखाड़े में मात खा गए. भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 7 सांसद मैदान में उतार थे. 3 हारे 4 जीते, भागीरथ चौधरी, नरेंद्र खीचड़ और देवजी पटेल को हार का सामना करना पड़ा. किरोड़ीलाल मीणा, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, दीया कुमारी और बाबा बालकनाथ ने जीत दर्ज की है.

हालांकि चुनाव से पहले भाजपा में बिखराव देखने को मिला था, लेकिन आलाकमान ने इन इनफाइटिंग को मात दी. दिल्ली के नेताओं ने कमान संभाली और टिकट वितरण में सावधानी बरती. दूसरी तरफ चुनाव पूरी तरह से पीएम मोदी के फेस पर लड़ा गया. कन्हैयालाल, महिला सुरक्षा, पेपरलीक जैसे मुद्दों के इर्द गिर्द अपने चुनावी अभियान को आगे बढ़ाया.

हालांकि चुनाव को लेकर एक आंकलन ये भी सामने आ रहा है कि अगर पेपर लीक, बेरोजगारी मुद्दा था तो शाहपुरा से भाजपा प्रत्याशी उपेन यादव क्यों हारे भाजपा की लहर थी तो सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़ जैसे दिग्गज क्यों हारे?..सियासी जानकारों का मानना है कि इस चुनाव में जातिवाद, स्थानीय मुद्दे हावी रहे.

वहीं चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आशावादिता की सभी सीमाओं को पार करते हुए. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि, ठीक 20 साल पहले, कांग्रेस, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हार गई थी, जबकि केवल दिल्ली में जीत हासिल की थी, लेकिन कुछ ही महीनों में पार्टी ने वापसी की और लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और केंद्र में सरकार बनाई.

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