राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच बंटे विधायकों की बयानबाजी के बाद अब पीसीसी पदाधिकारियों में भी पावरगेम शुरु हो गया है. आलम ये है कि अब सीएम और डिप्टी सीएम के पदाधिकारियों के बीच जंग शुरु हो गई है. पीसीसी में हाल का बदला नजारा बहुत कुछ बयां कर गया. दरअसल पीसीसी उपाध्यक्ष मुमताज मसीह जिस कमरे में पिछले 20 साल से बैठते आए थे, रातोरात उन्हें उस कमरे से रुखसत कर दिया गया. उनके पुराने वाले रुम को वरिष्ठ उपाध्यक्ष कक्ष में तब्दील कर दिया गया. इतना ही नहीं, रातोंरात कमरे के आगे नई प्लेट भी लगा दी गई.
खास बात ये है कि अपने निष्ठावान और वरिष्ठ पदाधिकारी को कमरा बदलने की सूचना तक नहीं दी गई. कांग्रेस भले ही इसे सामान्य घटनाक्रम बता रही है लेकिन करारी हार के बाद आए भूचाल के बीच यह जंग हल्के में नहीं मानी जा सकती.
20 साल बैठने वाले कमरे को नहीं भुला पाए मशीह
दिन हो रात या फिर कैसा भी मौसम हो, पीसीसी उपाध्यक्ष मुमताज मशीह पिछले 20 साल से इसी रुम में आकर बैठते थे. शुक्रवार को भी मशीह हमेशा की तरह पीसीसी आए और अपने रुम की तरफ बढ़ने लगे. इतने में किसी ने आकर मशीह को कमरा बदलने की सूचना दी. यह सुनकर मुमताज मशीह अचानक ठिठक गए.
सिर उठाकर देखा तो वाकई नेमप्लेट भी वरिष्ठ उपाध्यक्ष कक्ष की लगा दी गई और अंदर कुर्सी पर विराजमान थे वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोपाल सिंह ईडवा. इससे पहले यही ईडवा मशीह के सामने कुर्सी पर बैठे रहते थे. मुमताज मशीह का कहना है कि उन्हें कमरा बदलने की सूचना तक नहीं दी गई. वहीं ईडवा ने इसे सामान्य बदलाव बताया.
ईडवा पायलट के तो मशीह गहलोत के हैं खास
बात सामान्य बदलाव की होती तो मान लेते लेकिन दोनों वरिष्ठ नेता अपने-अपने नेताओं के कट्टर समर्थक हैं. मुमताज मसीह सीएम अशोक गहलोत के करीबी हैं और वरिष्ठ उपाध्यक्ष की नेम प्लेट लगाने वाले गोपाल सिंह ईडवा सचिन पायलट के खास हैं. ईडवा को हाल ही में पायलट के चलते चितौड़गढ़ का टिकट मिला था. वहीं गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में मशीह को राजनीतिक नियुक्ति दी थी.
मशीह पार्टी के निष्ठावान नेता हैं और कईं पीसीसी चीफ के साथ काम करते आ रहे हैं. यहां तक की कांग्रेस में जब दो फाड़ हो गई थी, तब भी उन्होंने एक पेड़ के नीचे बैठकर पार्टी का कामकाज देखा था. कांग्रेस गलियारों में दिनभर इस घटनाक्रम की चर्चा होती रही. जानकार इसे गुटबाजी से जोड़कर मानकर चल रहे हैं. लेकिन एक बात तो साफ है कि अगर कांग्रेस हार के कारणों पर मंथन के बजाय ऐसे ही आपस में लड़ती रही तो उसके लिए मुश्किलें और बढ़ती जाएगी.