कश्मीर (Kashmir) का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर (International Level) पर पूरी तरह पक गया है. जल्दबाजी में भारत (India) ने पूरे जम्मू-कश्मीर में अचानक एक दिन में धारा 370 (Article 370) हटाने और राज्य को दो भागों में विभाजित करने का जो फैसला कर दिया है, उसके बाद पाकिस्तान की आक्रामक कूटनीति से विश्व में उसके प्रति सहानुभूति की भावना बनने लगी है. चीन पहले से पाकिस्तान के साथ है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिनके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की तटस्थ रहने वाली विदेश नीति को परे रखते हुए एक बड़े मंच से उनके पक्ष में भारतीयों से चुनावी अपील कर दी है, वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति इमरान खान के साथ भी घुलमिलकर बात कर रहे हैं. वह मान रहे हैं कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव है और दोनों देशों को आपस में बात करनी चाहिए.
नरेन्द्र मोदी को ट्रंप के पक्ष में प्रचार करते हुए देख अमेरिका की विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के लोगों को अच्छा नहीं लगा. अमेरिका का मीडिया भारत की तरह नहीं है, वहां की मीडिया कंपनियां सत्तारूढ़ पार्टी की गोद में नहीं बैठती है. वहां राष्ट्रपतियों के घोटाले भी मीडिया के कारण सामने आते रहे हैं. अमेरिका की तुलना में न भारतीय मीडिया ऐसा है और न ही पाकिस्तान का मीडिया. दोनों जगह का मीडिया किसी भी तरह से सिर्फ अपना पक्ष मजबूत बनाए रखने के लिए काम करता है. डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी और खान, दोनों से मजाक किया है कि आप खुशकिस्मत हैं, आपके यहां अच्छे पत्रकार हैं जो आपका समर्थन करते रहते हैं.
गृहमंत्री अमित शाह ने पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य के दो हिस्से करने की घोषणा संसद में की थी. उसके तत्काल बाद से कश्मीर में कई तरह की पाबंदियां लगा दी गई थीं. कश्मीर में मौजूद बाहर के तमाम लोग घर पहुंचा दिए गए. महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला सहित कई विपक्षी नेताओं को नजरबंद कर दिया गया. सभी इंटरनेट और फोन सेवाएं स्थगित हो गईं. श्रीनगर सहित कश्मीर के विभिन्न इलाकों के लोग अपने घरों में बंद हो गए. अतिरिक्त संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गई. विभिन्न नेताओं के कश्मीर दौरे रोक दिए गए. एक महीने बाद से सरकार लगातार घोषणाएं कर रही हैं, जल्दी ही पाबंदियां हटेंगी, चरणबद्ध तरीके से हटेंगी सरकार के फैसले के विरोध की आशंकाएं समाप्त होते ही पाबंदियां हटा ली जाएंगी.
भारत में मोदी सरकार की वाहवाही हो रही है. आज भारत में पाकिस्तान हरेक के निशाने पर है. कोई उसे कमजोर और लाचार बता रहा है तो कोई उसे भारत के फैसले से बौखलाया हुआ बता रहा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की कूटनीति सफल हो रही है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोदी सरकार के खिलाफ जो स्टैंड ले रखा है, उसकी तरफ लोगों का ध्यान जा रहा है. भारत में हो सकता है सभी मोदी सरकार का समर्थन करें, लेकिन विदेशों में भारत और पाकिस्तान को लेकर निष्पक्षता है. कश्मीर की वस्तुस्थिति पर न तो भारत के मीडिया में विमर्श हो रहा है और न ही पाकिस्तान में. दोनों देशों में एक गैरजरूरी उन्माद की स्थिति बन रही है.
भारत की घोषित नीति है कि पाकिस्तान की जमीन पर आतंकवादी फल फूल रहे हैं, जो भारत के खिलाफ आतंकी हरकतें करते रहते हैं. पाकिस्तान के आतंकवादी गिरोहों को वहां की सरकार का समर्थन है. भारत के खिलाफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई लंबे समय से सक्रिय है. ऐसे में भारत का पाकिस्तान से बात नहीं करना सही है. भारत के बात नहीं करने से पाकिस्तान को बहुत असुविधा है, क्योंकि वह भारत से अलग हुआ ही देश है. उसका इतिहास भी 1947 के विभाजन के बाद ही शुरू होता है. भारतीय इतिहास प्राचीन है. यहां भारतीय संस्कृति है, जिसे कांग्रेस ने धर्म निरपेक्षता के ढांचे में ढालने का प्रयास किया है.
अभी तक भारत के कूटनयिक प्रयासों से कश्मीर को लेकर पाकिस्तानी दुष्प्रचार रुका हुआ था. वहां की सरकारें कुछ नहीं कर पा रही थीं. हालात इतने बिगड़े हुए भी नहीं थे. सिर्फ कश्मीर घाटी में कुछ आतंकी जड़ जमाए हुए थे और वह भारत के खिलाफ स्थानीय लोगों को भड़काने के तरीके निकालते रहते थे. उनकी वजह से कश्मीरी पंडितों को वतन बदर होना पड़ा. सुरक्षा बलों और सेना पर पथराव का नया सिलसिला शुरू हुआ. वहां तीन पक्ष हैं, एक कट्टरपंथ, दूसरा उदारवाद और तीसरा अलगाववाद. कश्मीर घाटी में समस्या ज्यादा है. भारत यह फैसला चरणबद्ध तरीके से कर सकता था, लेकिन अब जो हो गया, वह हो गया. सभी को इस मामले में सरकार के साथ ही रहना होगा.
न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मेलन चल रहा है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति की तस्वीर साफ तौर पर सामने आ रही है. इमरान खान ने ब्रिटेन, तुर्की और इस्लामी देशों के संगठन का समर्थन जुटा लिया है. ये देश कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर इमरान खान के आरोपों का समर्थन कर रहे हैं. तुर्की के राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया. ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने कश्मीर को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया है. भारत ने उस प्रस्ताव की आलोचना की है. चीन पहले से पाकिस्तान के साथ है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी भारत-पाकिस्तान के बीच सुलह कराने की तैयारी दिखाने लगे हैं. इस बीच भारत के खिलाफ पाकिस्तान की पैंतरेबाजी जारी है.
संयुक्त राष्ट्र में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) से जुड़े देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारतीय विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर अपना पक्ष रख चुके हैं कि भारत के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत करना संभव नहीं है. भारत के साथ नाराजगी जाहिर करते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्री एसएम कुरैशी जयशंकर के संबोधन के दौरान सार्क की मंत्री स्तरीय बैठक से जान-बूझकर गैरहाजिर रहे. इसके साथ ही पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने ट्वीट किया- पीटीआई के एसएम कुरैशी ने सार्क मंत्री परिषद में विदेश मंत्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर के भाषण के दौरान उपस्थित रहने से इनकार कर दिया है.
जयशंकर गुरुवार दोपहर 1.01 (भारतीय समयानुसार 10.31) बजे सार्क की बैठक में पहुंचे थे. 1.19 बजे पीटीआई का ट्वीट आ गया. जयशंकर 1.48 बजे बैठक से चले गए. तब तक कुरैशी नहीं पहुंचे थे. वह 1.54 बजे बैठक में पहुंचे. हालांकि जयशंकर के भाषण के दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल, जो दक्षिण एशिया मामलों के डीजी भी हैं, बैठक में उपस्थित थे. इस दौरान भारतीय विदेश सचिव (पश्चिम) गीतेश सरमा भी मौजूद थे. जयशंकर ने बैठक से बाहर निकलते समय मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया.
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सार्क की बैठक के दौरान भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व्यस्तता बताते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्री के भाषण से पहले बैठक से चली गई थीं. इस बार जयशंकर के भाषण के दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्री जानबूझकर गैरहाजिर रहे. उनकी पार्टी ने ट्वीट करते हुए इसका खुलासा भी कर दिया कि एसएम कुरैशी ने जयशंकर का भाषण सुनने से इनकार कर दिया है. अब तक भारत कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की पंचायती से बचाने में सफल रहा है, लेकिन इस साल संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में कश्मीर के मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है और पाकिस्तान भी अपने पक्ष में समर्थन जुटाने में व्यस्त है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अब भारत के साथ लड़ाई हुई तो आखिरी सांस तक लड़ने की बात करने लगे हैं. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पर आरएसएस से जोड़ते हुए सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाने लगे हैं. कश्मीर में लंबे समय से पाबंदियां लगे रहने की बात जग जाहिर है. ऐसे में पाकिस्तान को सहानुभूति मिलने लगी है. इस वातावरण में आगे क्या होगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है.