पॉलिटॉक्स ब्यूरो. केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा धारा 370 हटाये जाने के बाद बदले महौल से चिंतित राजस्थान की गहलोत सरकार ने दो दिन पहले नगर निकाय चुनाव पर यु-टर्न लेने के बाद अब इन चुनावाें काे लेकर एक अाैर बड़ा निर्णय लिया है. जिसके तहत अब पार्षद के चुनाव में हिस्सा लिए बिना अथवा यह चुनाव हारा हुअा प्रत्याशी भी मेयर (Mayor), सभापति (Chairman) या पालिकाध्यक्ष चुना जा सकेगा. गहलोत सरकार ने महापौर, सभापति और पालिकाध्यक्ष बनने के लिए पार्षद चुनाव लडऩे की अनिवार्यता समाप्त कर दी है. अब निकाय क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति दावेदारी कर सकेगा, लेकिन जिस वर्ग के लिए सीट आरक्षित होगी, उसी वर्ग का उम्मीदवार होना अनिवार्य होगा. नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल की मंजूरी के बाद राज्य सरकार ने बुधवार काे राजस्थान नगरपालिका (निर्वाचन) नियम, 1994 में संशोधन करते हुए नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया.
सम्भवतः राजस्थान देश में पहला ऐसा राज्य होगा जहां निकाय चुनाव में सीधे पैराशूटर प्रत्याशी उतारने के इस हाईब्रिड माॅडल काे लागू किया गया है. यह बिल्कुल वैसा ही हाेगा, जैसे विधायक या सांसद का चुनाव लड़े बिना ही या जीते बिना ही मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुन लिए जाते हैं फिर उनको 6 माह में विधायक या सांसद का चुनाव जीतकर अाना हाेता है. हालांकि, प्रदेश में मेयर (Mayor), सभापति (Chairman) या पालिकाध्यक्ष बनने के लिए कितने समय बाद चुनाव लड़कर जीतना हाेगा, इस पर अभी सरकार ने निर्णय नहीं लिया है. लेकिन सरकार के इस निर्णय के बाद अब वे सभी बड़े नेता महापौर के लिए दावेदारी कर सकेंगे, जो पार्षद का चुनाव लडऩे से हिचकिचा रहे थे. इस नई व्यवस्था की सबसे खास बात, जो व्यक्ति या महिला वार्ड पार्षद का चुनाव हार जाएंगे वो भी निकाय प्रमुख चुनाव में उम्मीदवार बन सकेंगे.
हाल ही में गहलोत मंत्रिमण्डल की सोमवार को हुई बैठक में सरकार ने निकाय प्रमुख के चुनाव प्रणाली पर यू-टर्न लेते हुए इनका चुनाव जनता की बजाय पार्षदाें से कराने का निर्णय लिया था. निर्णय की पालना में नगरपालिका संस्थाओं में अध्यक्ष, सभापति एवं महापौर के पदों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष प्रणाली से करवाने के लिए राजस्थान नगरपालिका (निर्वाचन) नियम, 1994 में संशोधन कर दिया गया है. इसकी अधिसूचना बुधवार को स्वायत्त शासन विभाग द्वारा जारी कर दी गई. महापौर या सभापति का चुनाव निर्वाचित सदस्यों या पार्षदों की पहली बैठक में ही किया जाएगा. इसमें अध्यक्ष-सभापति-महापौर (Mayor) (Chairman) के निर्वाचन के लिए दावेदारी जताने वाला भी भाग ले सकेगा, लेकिन अगर जीता हुअा नहीं है ताे मतदान नहीं कर सकेगा. वर्तमान व्यवस्था के तहत किसी वार्ड से चुनाव जीतकर आने वाले पार्षदों में से ही सर्वसहमति से पार्टी की तरफ से तय कैंडिडेट को ही महापौर, सभापति या पालिकाध्यक्ष चुना जाता है.
पार्टी सुत्रों केअनुसार महापौर (Mayor), सभापति (Chairman) और अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण के लिए राज्य सरकार की ओर से 19 अक्टूबर को लॉटरी निकाली जा सकती है. ऐसे में इस लॉटरी से पहले राज्य सरकार ने यह दूसरा बड़ा निर्णय लिया है. निकाय प्रमुख पद के लिए मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल से काेई प्रत्याशी है ताे उसे नामांकन की अंतिम तिथि के दिन दाेपहर तीन बजे तक पार्टी का अधिकृत प्रपत्र प्रस्तुत करना होगा. अभ्यर्थी को अपने नामांकन पत्र पर किसी निर्वाचित सदस्य-पार्षद के हस्ताक्षर प्रस्तावक (प्रपोजर) के रूप में करवाना अनिवार्य होगा. चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार को निर्धारित अमानत राशि भी जमा करानी होगी. निकाय प्रमुख का नामांकन भरने के लिए दो दिन, नामांकन की जांच के लिए एक दिन और उम्मीदवारी वापस लेने के लिए एक दिन का समय निर्धारित किया गया है.
बता दें, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आने घोषणा पत्र में निकाय प्रमुखों के सीधे चुनाव कराने को मुद्दा बनाया था और राजस्थान की सत्ता में आने के तत्काल बाद गहलोत सरकार ने निर्णय किया था कि निकाय प्रमुखों (Mayor), सभापति (Chairman) का चुनाव पार्षदों द्वारा नहीं बल्कि सीधे जनता द्वारा किया जाएगा. लेकिन मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद देश के बदले हालात को लेकर कांग्रेस पार्टी में चिंता जाहिर की जा रही थी कि शहरी निकायों के इन चुनाव में बड़ी शिकस्त मिल सकती है. इसका सीधा असर राज्य सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इमेज पर भी होगा. इसी के मद्देनजर गहलोत सरकार ने चुनाव में अपनी साख बनाए रखने के लिए यह बड़े कदम उठाए हैं.
धनबल के आधार पर होगी पार्षदों की बाड़ाबंदी
राज्य सरकार द्वारा निकाय प्रमुख (Mayor), सभापति (Chairman) के चुनाव के लिए पार्षद के अलावा किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने के फैसले से पार्षदों की खरीद फरोख्त को बढ़ावा मिलेगा. जहां भी बराबरी या फिर बहुमत में कम अंतर होगा, वहां बड़े स्तर पर पार्षदों में तोडफ़ोड़ करने की कोशिशें की जाएंगी. निकाय प्रमुखों के चुनाव के बाद धनबल के आधार पर पार्षदों की बाड़ाबंदी पर विशेष जोर रहेगा. अपनी-अपनी पार्टी के पार्षदों की बाड़ाबंदी करने के बाद बहुमत के लिए पार्षदों को अपने पक्ष में करने को लेकर उच्च स्तर तक के प्रयास होंगे. ऐेसे में निकाय प्रमुख के पदों पर बड़े नेता या फिर धनबल में मजबूत व्यक्ति के महापौर, सभापति और अध्यक्ष बनने की प्रबल सम्भावना रहेगी. इन हालात में प्रदेश में राजनीतिक रूप से स्थिति बिगडऩे का हालात बन सकते हैं.