केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) अनुच्छेद 370 के बाद एक और क्रांतिकारी कदम उठाने का फैसला करने जा रहे हैं. शाह ने सोमवार को देश के सभी नागरिकों के लिए ‘एक कार्ड एक पहचान’ का आइडिया दिया. दिल्ली में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (Registrar General of India) के नए दफ्तर का शिलान्यास करते हुए उन्होंने कहा कि आखिर हमारे पास आधार, पासपोर्ट, बैंक अकाउंट, ड्राइविंग लाइसेंस और वोटर कार्ड के लिए एक ही कार्ड क्यों नहीं हो सकता है. ऐसा सिस्टम होना चाहिए कि सभी डेटा को एक ही कार्ड में रखा जा सके.

इस मौके पर उन्होंने एक बहुउद्देश्यी पहचान पत्र (one card one identity) का विचार रखा है जिसमें आधार, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस और बैंक खाते जैसी सभी जरूरी सुविधाएं जुड़ी हों. कहने का मतलब है कि अमित शाह ने ऐसे कार्ड के लिए कहा है जिसके बाद आधार, डीएल, पासपोर्ट जैसे कई कार्ड संभाल कर रखने की जगह एक कार्ड ही वैद्य कर दिया जाए जिसमें इन सभी की जानकारी मिल जाए.

अमित शाह के इस प्रस्ताव के पीछे वजह ये है कि इस तरह की प्रणाली देश में होनी चाहिए जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु होते ही ये जानकारी अपने आप जनसंख्या आंकड़ों में अपडेट हो जाए. उन्होंने ये बात आगामी जनगणना (Census-2021) के संदर्भ में कही है.

शाह ने कहा कि आधार, पासपोर्ट, बैंक खाते, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर कार्ड जैसी सभी सुविधाओं के लिए एक कॉमन कार्ड हो सकता है और इसकी संभावनाएं भी है.’

एक कार्ड एक पहचान का प्रस्ताव रखने के साथ ही अमित शाह ने डिजिटल इंडिया की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए अगली जनगणना को डिजिटल करने की बात कही. उन्होंने कहा कि 2021 में होने वाली जनगणना मोबाइल ऐप के जरिए की जाएगी. इससे जनगणना अधिकारियों को कागज और पेन लेकर नहीं घूमना होगा. शाह ने कहा, ‘जनगणना कोई बोरिंग काम नहीं होता है. इससे सरकार को अपनी स्‍कीम लोगों के लिए लागू करने में मदद मिलती है. राष्‍ट्रीय जनसंख्‍या रजिस्‍टर (NPR) कई मुद्दों को सुलझाने में सरकार की मदद करता है. ये देश के इतिहास में पहली बार होगा, जब जनगणना का काम एप के जरिए होगा.’ एक कार्ड से जनगणना का कार्य भी आसानी से संभव होगा.

जनगणना की आगामी योजना पर प्रकाश डालते हुए गृहमंत्री ने कहा कि 2021 की जनगणना का डेटा भविष्य के भारत की योजना का आधार होगा. डिजिटल जनगणना से आंकड़ों के संग्रह में आसानी होगी और उनका इस्तेमाल किया जा सकेगा. देशभर में 16 भाषाओं में जनगणना का काम होगा और इस पर कुल 12,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी. पहाड़ी राज्य जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में 1 अक्टूबर, 2020 से जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी, जबकि शेष भारत में 1 मार्च, 2021 से जनगणना होगी.

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