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सीकर और टोंक के बाद करौली-धौलपुर लोकसभा सीट भी कांग्रेस जीतकर मानकर चल रही है. इसकी वजह है कि तमाम विरोध के बावजूद बीजेपी ने मौजूदा सांसद मनोज राजोरिया को टिकट थमा दिया. मतदाता एवं संगठन सांसद की कार्यशैली और निष्क्रियता से बेहद नाराज हैं. लिहाजा वें चुनाव में राजोरिया के रंग में रंगने को तैयार नहीं है. कांग्रेस ने संजय जाटव को टिकट दिया है. जातिगत और सियासी समीकरणों से कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति में है. लोकसभा क्षेत्र की आठ में से छह सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं. पिछली बार मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस इस सीट पर कड़े मुकाबले में केवल 27 हजार से हार गई थी. ऐसे में सांसद के खिलाफ भयंकर नाराजगी और महज एक पार्टी विधायक होने के चलते इस बार बीजेपी के लिए यहां से जीत दर्ज करना नाको चने चबाने जैसा साबित हो रहा है.

सियासी समीकरण
कहना गलत न होगा कि बीजेपी ने मनोज राजोरिया को फिर टिकट देकर सियासी समीकरण साधने पर जरा भी ध्यान नहीं दिया. बीजेपी अगर राजोरिया के अलावा किसी अन्य चेहरेे पर दांव खेलती तो मोदी लहर में यह सीट भी आसानी से निकल सकती थी. लेकिन सांसद के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी के बावजूद पार्टी को वसुंधरा राजे की पसंद के चलते राजोरिया को टिकट देना पड़ा. राजोरिया को टिकट मिलते ही कांग्रेस पहले दिन से ही मजबूत स्थिति में आ गई थी. इस क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से बीजेपी की एकमात्र विधायक धौलपुर से शोभारानी कुशवाहा है. करौली सीट बसपा के खाते में गई है.

शेष राजाखेड़ा, बाड़ी, बसेड़ी, हिंडौन, टोडाभीम और सपोटरा सीटों पर कांग्रेस के विधायक विराजमान है. कर्नल किरोड़ी बैंसला के बीजेपी में आने से हिंडौन में बीजेपी की स्थिति अब सुधर सकती है. धौलपुर और करौली में बीजेपी पहले से मजबूत दिख रही है. शेष पांच सीटों पर कांग्रेस को बढ़त मिलने के पूरे आसार है. हालांकि बीजेपी को मोदी और राष्ट्रवाद फैक्टर पर ही जीत की उम्मीदें हैं. यहां कांग्रेस में गुटबाजी से जुड़ी बात भी सामने नहीं आई. मंत्री रमेश मीणा, गिरिराज मलिंगा, खिलाड़ी बैरवा और भरोसीलाल जाटव जैसे पार्टी के स्थानीय नेता कांग्रेस की जीत के लिए जुटे हुए हैं.

जातिगत समीकरण
इस संसदीय क्षेत्र में अनुसूचित जाति के करीब पांच लाख मतदाता हैं जिनमें चार लाख जाटव और बैरवा वोटर्स हैं. शेष एक लाख अन्य दलित जातियों के हैं. कांग्रेस का प्रत्याशी जाटव है. ऐसे में कांग्रेस को बढ़त मिलते दिख रही है. अगर जातीय और क्षेत्रीय आधार पर मतदान हुआ तो यह बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. यहां बैरवा भी प्रभावशाली हैं क्योंकि कांग्रेस के पूर्व सांसद खिलाड़ी लाल बैरवा करौली विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं, लेकिन वह धौलपुर जिले के बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. लिहाजा उन्हें बैरवा समुदाय के मत मिलने की संभावना है.

2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की कुल जनसंख्या 26 लाख 69 हजार 297 है जिसका 82.56 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 17.44 प्रतिशत हिस्सा शहरी है. कुल आबादी का 22.52 फीसदी अनुसूचित जाति और 14.39 फीसदी अनुसूचित जनजाति का है. इस लिहाज से इस सीट पर एक तिहाई से ज्यादा आरक्षित वर्ग के लोग हैं जिनकी भूमिका किसी भी दल की हार-जीत तय करने में निर्णायक है. कांग्रेस का फोकस मीणा, माली, मुस्लिम और जाटव वोटों पर अधिक है. बीजेपी ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत और गुर्जर वोटों की जुगत में है.

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भी यहां पूरी ताकत लगा दी है. गुर्जर वोटर निर्णायक हैं. किरोड़ी बैसला खुद करौली क्षेत्र से आते हैं इसलिए ज्यादातर गुर्जर बीजेपी की ओर जा सकते हैं. वहीं गुर्जर समाज सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाने से बेहद नाराज है. जाटव वोट बैंक में यहां कांग्रेस के साथ अगर भीतरघात होता है तो हार-जीत का अंतर ज्यादा नहीं रहेगा.

वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा का सवाल
धौलपुर-करौली सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा जुड़ी है क्योंकि यह उनका गृह क्षेत्र है. मौजूदा सांसद मनोज राजोरिया को फिर टिकट राजे का ही आशीर्वाद माना जा रहा है. हैरिटेज के नाम पर करौली-धौलपुर नेरोगेज लाइन का गेज परिवर्तन रुकवाना, बिलोनी नदी में चंबल लिफ्ट परियोजना का पानी नहीं मिलना और सांसद निधि खर्च करने में सबसे पीछे रहने जैसे मुद्दे इस बार राजोरिया की परेशानी बढ़ा रहे हैं. फिर भी राजे ने राजोरिया की राजनीति चमकाते हुए टिकट दे दिया.

हालांकि लक्खीराम बैरवा को टिकट नहीं देने पर बैरवा समाज ने खुलकर नाराजगी भी जताई थी लेकिन समय रहते कांग्रेस ने मामले को संभाल किया. बसपा ने यहां अपना उम्मीदवार भी खड़ा किया है लेकिन मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में ही है. अब देखना होगा कि राजोरिया पर नाराजगी पार्टी को भारी पड़ेगी या उन्हें फिर मोदी लहर का सहारा मिल जाएगा. लेकिन इस सीट का कह सकते है कि चुनाव मोदी लहर पर नहीं बल्कि स्थानीय, जातिगत, क्षेत्रीय और सांसद की नाराजगी जैसे फैक्टर पर लड़ा जा रहा है जिसके चलते बीजेपी साफ तौर पर नुकसान में दिखाई दे रही है.

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