पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली आजीवन सुविधाएं देने पर रोक के हाईकोर्ट के आदेशों की पालना नहीं होने पर दायर अवमानना याचिका पर मुख्य सचिव ने लिखित में जवाब प्रस्तुत करते हुए हाईकोर्ट को बताया है कि पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडि़या ने 21 जनवरी को अस्पताल रोड स्थित बंगला नंबर 5 खाली कर दिया है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे विधायक की हैसियत से अभी बंगले में रहने की हकदार हैं और वह अभी सिविल लाइंस स्थित 13 नंबर बंगले में ही रह रही हैं.
बता दें, राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्रियों को राजस्थान मंत्री वेतन एक्ट-2017 के तहत मिलने वाली सभी सरकारी सुविधाओं पर पिछले दिनों हाईकोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार मिलापचंद डांडिया व विजय भंडारी की जनहित याचिकाओं को मंजूर करते हुए असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट के आदेश के बाद गहलोत सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर दखल देने से इनकार करते हुए सरकारी एसएलपी को खारिज कर दिया था. इधर राज्य सरकार की एसएलपी दायर होने से पहले ही डांडिया ने हाईकोर्ट के आदेशों की पालना नहीं होने पर एक अवमानना याचिका दायर कर दी थी.
सोमवार को सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव ने हाईकोर्ट को बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिया और वसुंधरा राजे दोनों ने ही राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाएं लौटा दी हैं. हाईकोर्ट के 4 सितंबर, 2019 के आदेश की पालना में 17 और 19 जनवरी के आदेशों से वसुधंरा राजे को दिया गया स्टॉफ हटा लिया है. सामान्य प्रशासन विभाग के नोटिस के बाद जग्गनाथ पहाडिया के यहां तैनात दो कर्मचारियों को उनके मूल विभाग में भेज दिया है. वहीं वसुंधरा राजे के विशेषाधिकारी गजानंद शर्मा को 21 सितंबर, 2019 को सैटलमेंट कमिश्नर के पद पर लगाया जा चुका है. पूर्व सीएम पहाड़िया और वसुंधरा राजे दोनों ही बीती 19 जनवरी को सरकारी वाहन व ड्राइवर लौटा चुके हैं.
मुख्य सचिव ने बैंच को बताया कि हाईकोर्ट के 4 सितंबर, 2019 के आदेश की पालना में दोनों पूर्व सीएम को राजस्थान मंत्री वेतन एक्ट की धारा-7 बीबी और 11 के तहत मुफ्त में दी गईं सभी सुविधाएं वापिस ले ली हैं, अत: अवमानना याचिका रद्द की जाए. इस पर याचिकाकर्ता मिलापचंद डांडिया की ओर से एडवोकेट विमल चौधरी और योगश टेलर ने जवाब देने के लिए समय मांगा तो जस्टिस सबीना और जस्टिस एन.एस. ढड़्ढ की कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 20 अप्रेल को तय की है.
सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता मिलापचंद डांडिया के वकील विमल चौधरी ने पत्रकारों से रूबरू होते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा दिये गये जवाब से साफ जाहिर होता है कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिया को बंगला खाली करने के नोटिस दिये थे, परन्तु वसुंधरा राजे को नहीं, राज्य सरकार ने दोनों के बीच भेदभाव क्यों किया है? आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार बंगला नंबर 13, पूर्व मुख्यमंत्री होने की हैसियत से वसुंधरा राजे को आवंटित किया गया था. फिर 2013 से 2018 तक वह उसी बंगले में रही, जबकि उन्हें मुख्यमंत्री होने के तौर पर दूसरा बंगला आवंटित था.
विमल चौधरी ने आगे कहा कि 13 दिसंबर 2018 को राज्य सरकार ने फिर से बंगला नंबर 13 वसुंधरा राजे को पूर्व मुख्यमंत्री होने की हैसियत से आवंटित कर दिया परंतु हाईकोर्ट ओर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला आवंटित किए जाने के लिए संविधान में न तो कोई प्रावधान था न ही कोई अनुच्छेद. राज्य सरकार ने अपने जवाब में इस तथ्य को छिपाया है कि उसने वसुंधरा राजे से एक विधायक होने की हैसियत से न तो कभी कोई बंगला आवंटित किये जाने के लिए अर्जी प्राप्त की है ओर न ही राज्य सरकार ने बंगला आवंटित किये जाने के आदेश दिए है.
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इसके साथ ही विमल चौधरी ने बताया कि जब तक राज्य सरकार नियम अनुसार वसुंधरा राजे को बंगला नंबर 13, विधायक होने की हैसियत से आवंटित नहीं करती है, तब तक राज्य सरकार अदालती आदेश की अवहेलना करती रहेगी. उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे को किस नीति के तहत यह बंगला आवंटित किया गया था. यह राज्य सरकार के जवाब से स्पष्ट नहीं होता. राज्य सरकार का यह तर्क है कि क्योंकि वसुंधरा राजे वर्तमान में विधायक है, इसलिए वह उसी बंगले पर काबिज होने की हकदार है, तो पिछली सरकार के मंत्रीयों को अपने पुराने बंगले पर विधायक होने की हैसियत से रहने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए और राज्य सरकार को पिछली सरकार के सभी मंत्रियों को उनके पुराने बंगले में भेजा जाना चाहिए.
बता दें, हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर 2019 को पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सभी सुविधाओं को रदद करने का फैसला सुनाया था. इसके बाद से ही बंगला नम्बर 13 प्रदेश भर में सुर्खियों में आ गया. हाइकोर्ट के आदेश के बावजूद सीएम गहलोत का पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से बंगला खाली करवाने के प्रति लचड रवैया रहा है. इस मामले में मीडिया के बार बार पूछने पर सीएम गहलोत एक बार भी यह नहीं कह पाये कि सरकार पूर्व सीएम को मिलने वाली सुविधाएं वापिस लेंगी या नहीं. बजाए इसके राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इससे साफ जाहिर हुआ कि सीएम गहलोत की मंशा राजे से बंगला खाली कराने की है ही नहीं.