यूपी उपचुनावों में हारकर भी जागी कांग्रेस के लिए उम्मीद, बसपा के लिए बढ़ी चिंता

बिहार के साथ यूपी उपचुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन रहा बेहद फीका, पार्टी को आत्मचिंतन की जरूरत लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस को अंदरूनी बढ़त, राजनीतिक विश्‍लेषकों ने भी आगामी विस चुनावों में बताई कांग्रेस की संभावनाएं

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Politalks.News/UP. बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं रहा. यहां कांग्रेस का प्रदर्शन स्थानीय और छोटी पार्टियों से भी खराब रहा. पिछले चुनाव में 27 सीटों के मुकाबले इस बार कांग्रेस केवल 19 सीटें जीत सकी. कई सीटों पर तो कांग्रेस तीसरे या चौथे स्थान पर रही. महागठबंधन के सत्ता हासिल करने के सपनों को चूर चूर करने के लिए अब कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. वजह रही कि कांग्रेस 25 फीसदी सीटें ही जीत पाई जबकि 70 सीटों पर महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के उम्मीदवार मैदान में थे. यूपी में सात सीटों पर हुए उपचुनावों में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला. इस हार के बावजूद यूपी में कांग्रेस के लिए उम्मीद जागी है, लेकिन बसपा के लिए चिंता बढ़ते हुए दिख रही है.

उपचुनावों में बीजेपी ने 6 जीतों पर कब्जा जमाया. समाजवादी पार्टी ने एक सीट जीतकर 2017 की अपनी उपलब्धि को बरकरार रखा लेकिन बहुजन समाज पार्टी अपने पिछले प्रदर्शन से पीछे रह गई. उपचुनाव में बांगरमऊ, देवरिया, टूंडला, बुलंदशहर, नौगांव सादात और घाटमपुर सीटों पर बीजेपी जबकि मल्‍हनी सीट पर सपा को जीत मिली है. वर्ष 2017 में कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन इस उपचुनाव में सभी प्रमुख दलों ने अपने-अपने उम्‍मीदवार उतारे. यहां कांग्रेस के लिए संतोष की बात यह रही है कि वह दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रही. राजनीतिक विश्‍लेषकों ने उपचुनाव के परिणामों के हवाले से 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए संभावना जताई है.

उपचुनाव में कांग्रेस को भले ही एक भी सीट पर जीत नहीं मिली लेकिन उन्‍नाव जिले की बांगरमऊ और कानपुर की घाटमपुर सीट पर कांग्रेस उम्‍मीदवार दूसरे स्‍थान पर रहे. वहीं नजर डाले 2017 में तो उक्त सात सीटों में कांग्रेस सिर्फ घाटमपुर में लड़ी थी और तीसरे नंबर पर रही. वैसे ये जरूर है कि कांग्रेस को कम से कम दो सीटें जीतने की आस थी लेकिन इस बार भी उनके हाथ खाली रह गए. उप चुनाव परिणामें पर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह ने दावा किया कि राज्य में धीरे-धीरे मतदाताओं का कांग्रेस के प्रति झुकाव दिख रहा है। उन्होंने कहा कि हम दो सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे जबकि बसपा काफी पीछे रह गई.

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मौजूदा उपचुनाव में 53 फीसदी से ज्‍यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. बात करें बसपा कि तो उपचुनाव के परिणाम में बसपा सिर्फ बुलंदशहर में दूसरे स्‍थान पर रही. 2017 में बसपा के उम्‍मीदवार बुलंदशहर, टूंडला और घाटमपुर में दूसरे स्‍थान पर थे. दलित राजनीति के विश्‍लेषकों का कहना है कि बसपा के मतदाताओं के एक तबके का पार्टी से मोह भंग हो रहा है और पुनर्विचार शुरू हो गया है. अभी ऐसे मतदाता पूरी तरह भले ही कांग्रेस के साथ न जाए लेकिन वे कांग्रेस को एक विकल्‍प के रूप में देख रहे हैं.

इधर, समाजवादी पार्टी ने 2017 में जौनपुर जिले की मल्‍हनी विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की थी और इस बार उप चुनाव में भी उसे बचाने में कामयाब रही. 2017 में कांग्रेस के समर्थन के बाद सपा ने नौगांव सादात, बांगरमऊ और देवरिया में दूसरा स्‍थान हासिल किया था. इस बार उप चुनाव में नौगांव सादात, टूंडला और देवरिया में सपा के उम्‍मीदवार दूसरे स्‍थान पर रह‍े. इसे सपा की मजबूती को लेकर देखा जा रहा है. माना ये भी जा रहा है कि बीजेपी के बाद सपा दूसरे नंबर की मजबूत पार्टी बन रही है. लेकिन प्रियंका की मेहनत को देखते हुए समीकरण बदलने की बात से इनकार नहीं किया जा रहा.

हालांकि उप चुनाव के परिणामों को लेकर सपा मुखिया और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादवन ने सत्‍तारुढ़ भाजपा पर धांधली का आरोप लगाया है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आरोपों को बेबुीनियाद बताते हुए इस जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया है. योगी ने कहा कि प्रदेश के साथ-साथ देश के भीतर हुए चुनावों के सुखद परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोक कल्‍याण, गरीब कल्‍याण, राष्‍ट्रीय सुरक्षा, वैश्विक मंच पर भारत को प्रदान की जा रही प्रतिष्‍ठा और जनहित में किये गये कार्यक्रमों के प्रति जनविश्‍वास का प्रतीक है.

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उपचुनाव में मिले वोट प्रतिशत की बात करें तो निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक ,उपचुनाव में भाजपा को 36.73 प्रतिशत वोट मिले जो सबसे अधिक है. दूसरे नंबर पीर सपा रही जिसे 23.61 प्रतिशत मत मिले हैं. बसपा को 18.97 और कांग्रेस को 7.53 वोट मिले है. इस बार समाजवादी पार्टी छह सीटों पर लड़ी और बुलंदशहर में राष्‍ट्रीय लोकदल को समर्थन दिया था. कांग्रेस पार्टी भी छह सीटों पर ही लड़ी क्‍योंकि टूंडला में उसके उम्‍मीदवार का नामांकन पत्र निरस्‍त हो गया था.

इसके अलावा, असदुद़दीन ओवैसी की पार्टी आल मजलिस-ए-इत्‍तेहादुल मुस्लिम (AIMIM) और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने भी बुलंदशहर में अपने उम्‍मीदवार उतारे. बुलंदशहर में ओवैसी के उम्‍मीदवार को पांच हजार से कम मत मिले वहीं आजाद समाज पार्टी के उम्‍मीदवार मोहम्‍मद यामीन को 13 हजार से अधिक मत मिले. दोनों दल यूपी में अपनी सियासी जमीन को पक्का करने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार विस चुनावों में पांच सीटें जीतने के बाद ओवैसी खासे उत्साहित हैं और पश्चिम बंगाल एवं यूपी में पहले ही उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर रहे हैं.

जिस तरह के परिणाम बिहार में रहे, अगर ऐसे ही परिणाम ओवैसी को यूपी में मिलते हैं तो वे किंगमेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं. वहीं कांग्रेस दो सीटों पर दूसरे नंबर पर आकर आगामी विस चुनावों में अपनी जमीन मजबूत करने में लगी है. प्रियंका की पॉपुलर्टी जिस तरह यूपी में बन रही है, उससे प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस के अच्छा करने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं योगी आदित्यनाथ और प्रियंका की बढ़ती लोकप्रियता कम ही सही लेकिन मायावती की टेंशन बढ़ा रही है.

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