राजस्थान की गहलोत सरकार एक तरफ तो इस बात का प्रचार करती है कि वह राज्य की जनता की बेहतरी के लिए काम कर रही, लेकिन पर्दे के पीछे वह जनता पर आर्थिक भार बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं. बजट में पेट्रोल और डीजल पर चार फीसदी सेस लगाते हुए करीब छह रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी पहले ही कर दी गई है. अब बिजली दरें बढ़ाने की कवायद शुरू हो गई है. राज्य की तीनों बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है. इस संबंध में विद्युत विनियामक आयोग में याचिका पेश कर दी गई है, जिस पर आयोग जल्दी ही विचार करेगा.
गहलोत सरकार ने विधानसभा सत्र जारी रहने के कारण बिजली दरें बढ़ाने का फैसला रोक रखा था, क्योंकि इससे हंगामा हो जाता. इस समस्या से बचने के लिए प्रदेश की जनता को जोर का झटका धीरे से देने की तैयारी चल रही है. बिजली का पहला झटका उस समय लगा था जब सरकार ने ईंधन सरचार्ज में 55 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की थी. दूसरा झटका यह था कि अडानी पावर के 2700 करोड़ रुपए चुकाने का भार उपभोक्ताओं पर डाला गया और 36 माह तक पांच पैसे प्रति यूनिट वसूल करने का फैसला किया गया. तीसरा झटका यह है कि डिस्कॉम ने बिजली की दरें बढ़ाने की रूपरेखा बना ली है.
बिजल की दरें बढ़ाने का प्रस्ताव डिस्कॉम ने अक्टूबर में ही तैयार कर राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग को भेज दिया था. बाद में उसे यह कहते हुए रोक लिया गया कि डिस्कॉम बिजली आपूर्ति के नियमों में बदलाव करने के बाद नया प्रस्ताव भेजेगी. अब यह प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है. इस पर मुहर लगने का इंतजार है. डिस्कॉम राज्य सरकार की अनुमति के बाद यह प्रस्ताव आयोग के पास भेजेगा. इसके तहत बिजली की दरें अधिकतम 10-11 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है. फिक्स चार्ज भी बढ़ जाएगा.
इस प्रस्ताव को सरकार और आयोग से मंजूरी मिलने के बाद राज्य के करीब 75 लाख घरेलू और 15 लाख व्यावसायिक उपभोक्ताओं को बिजली का बढ़ा हुआ बिल चुकाना पड़ेगा. इस बढ़ोतरी से 50 यूनिट प्रतिमाह तक उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को अलग रखा गया है. इसके साथ ही औद्योगिक उपयोग करने पर बिजली की दरें दिन और रात में अलग-अलग रखने का प्रस्ताव है. कृषि क्षेत्र में बिजली की दरें 80 पैसे प्रति यूनिट बढ़ाने का प्रस्ताव है, लेकिन सरकार किसानों को बिजली दरों पर सब्सिडी देने की घोषणा कर चुकी है, इसलिए इसका भार किसानों पर नहीं आएगा. यह भार सरकार उठाएगी.
राजस्थान में घरेलू उपभोक्ताओं के लिए उपभोग के हिसाब से पांच स्लैब में अलग-अलग दरें तय हैं. इसके तहत 50 यूनिट तक 3.81 रुपए, 51 से 150 यूनिट तक 6.10 रुपए, 151 से 300 यूनिट तक 6.40 रुपए, 301 से 500 यूनिट तक 6.70 रुपए और 500 यूनिट से ज्यादा बिजली का उपयोग करने वालों से 7.15 रुपए प्रति यूनिट वसूले जाते हैं.
नए प्रस्ताव में पहली और दूसरी स्लैब में 150 यूनिट तक बिजली के उपभोग पर दर 5.75 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी. 151 से 300 यूनिट तक बिजली उपभोग की दरें 6.40 रुपए से बढ़ाकर 7.35 रुपए प्रति यूनिट करने का प्रस्ताव है. 301 से 500 यूनिट बिजली खर्च करने वालों से प्रति यूनिट 7.65 रुपए वसूलने का प्रस्ताव है. एक माह में 500 यूनिट से ज्यादा बिजली का उपभोग करने वालों को इससे नीचे की सभी स्लैब के तहत सस्ती बिजली का लाभ नहीं मिलेगा. ऐसे उपभोक्ताओं को बिजली की कुल खपत पर 7.95 रुपए प्रति यूनिट के दर से भुगतान करना पड़ेगा.
इससे पहले तक की व्यवस्था यह है कि कोई उपभोक्ता अगर 500 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च करता है तो उसे नीचे की स्लैब की सस्ती दर का लाभ मिलता है. सिर्फ 500 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च होने पर अतिरिक्त दर वसूली जाती है. डिस्कॉम के इस प्रस्ताव से मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को झटका लगेगा. एक तरफ उन्हें बिजली का बढ़ा हुआ बिल चुकाना पड़ेगा और निचली स्लैब के तहत सस्ती बिजली का लाभ भी नहीं मिलेगा. गौरतलब है कि कई मध्यमवर्गीय परिवारों में आम तौर पर 500 यूनिट से ज्यादा ही बिजली खर्च होती है.
इसी तरह व्यावसायिक उपयोग के लिए बिजली की दरें बढ़ाने का भी प्रस्ताव है. इसके तहत 200 यूनिट तक खर्च होने पर आठ रुपए, 200 से 500 यूनिट तक खर्च होने पर 8.35 रुपए और 500 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च होने पर बिजली की दर 9.30 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी. हालांकि डिस्कॉम ने उद्योगों को थोड़ी राहत देने का प्रयास किया है. लघु-मध्यम और दीर्घ श्रेणी के उद्योगों की बिजली दरें यथावत रहेंगी, लेकिन घरेलू और व्यावसायिक की तर्ज पर इन श्रेणियों में भी फिक्स चार्ज बढ़ा दिया जाएगा. बड़े उद्योगों के लिए दिन में बिजली दरें अलग होंगी और रात में अलग होंगी. दिन और रात में बिजली की दरें अलग-अलग रखने का प्रस्ताव पहली बार लाया गया है.
उद्योगों के मिलने वाली बिजली रात 12 बजे से सुबह छह बजे तक 10 फीसदी सस्ती होगी. सुबह सात बजे से रात 11 बजे तक बिजली की दर 10 फीसदी महंगी हो जाएगी. डिस्कॉम ने कपड़ा, इस्पात सहित कुछ अन्य क्षेत्रों के उद्योगों को राहत देने के लिए उन्हें अलग पॉवर इन्सेंटिव श्रेणी में रखने का प्रस्ताव पेश किया है, जिनमें बिजली का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है. इन उद्योगों में बिजली दरों में करीब 1.30 रुपए प्रति यूनिट तक छूट रहेगी. गौरतलब है कि बिजली महंगी होने के कारण ऐसे कई उद्योग इन दिनों बंद होने की कगार पर हैं. ऐसी कई उद्योगों ने राजस्थान से कारोबार समेटकर अन्य राज्यों में जाने की तैयारी कर ली है.
डिस्कॉम के प्रमुख और ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव नरेशपाल गंगवार ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से बिजली दरों में परिवर्तन नहीं किया गया है. बिजली उत्पादन की लागत से तालमेल बैठाने के लिए बिजली की दरों में बदलाव किया जा रहा है. अलग-अलग स्लैब में अलग-अलग बदलाव होने से सीधे यह नहीं बताया जा सकता कि बिजली की दरों में कुल कितने प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.
राजस्थान में बिजली आपूर्ति की जिम्मेदारी पहले बिजली बोर्ड पर थी. वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड को भंग कर राज्य को तीन क्षेत्रों में बांटकर तीन डिस्कॉम का गठन किया गया. इसके बाद से अब तक सात बार बिजली की दरें बढ़ चुकी हैं. डिस्कॉम के तहत आठवीं बार बिजली की दरें बढ़ाई जा रही हैं. डिल्कॉम का गठन होने के एक साल बाद 2001 में बिजली दरें 10 फीसदी बढ़ीं. तीन साल बाद 2004 में फिर 10 फीसदी दरें बढ़ा दी गई. बिजली की दरों में 2011 में 23 फीसदी, 2012 में 18 फीसदी, 2013 में 13 फीसदी, 2015 में 16 फीसदी और 2016 में नौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. इस तरह डिस्कॉम के अस्तित्व में आने के बाद बिजली की दरें 16 वर्षों में 99 फीसदी बढ़ चुकी है.
राजस्थान में 1.52 करोड़ बिजवी उपभोक्ता हैं. इनमें 54 लाख ऐसे हैं, जो बीपीएल श्रेणी में हैं और 50 यूनिट से कम बिजली खर्च करते हैं. इनकी दरें बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है. 14.41 लाख कृषि उपभोक्ता हैं. उनके लिए भी दरें बढ़ेंगी, लेकिन उसका भार सरकार वहन करेगी. औद्योगिक उपभोक्ताओं की संख्या 3.54 लाख है. इन पर सिर्फ फिक्स चार्ज बढ़ेगा. बाकी करीब 80 लाख उपभोक्ताओं को बिजली के लिए ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा, जो कि अधिकांश मध्यम वर्ग के लोग हैं. ये लोग गहलोत सरकार की बिजली महंगी करने की तैयारी से आहत हैं.
डिस्कॉम की याचिका अब राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग के पास विचाराधीन है. डिस्कॉम के प्रस्ताव पर आयोग आम जन से आपत्ति मांगेगा, जन सुनवाई होगी, इसके बाद आयोग बिजली की दरें बढ़ाने पर फैसला करेगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि आयोग मध्यमवर्गीय परिवारों की तकलीफों को समझेगा और इस पर गंभीरता से विचार करेगा कि डिस्कॉम ने किस तरह चतुराई से लोगों को महंगाई के भार से दबाने का प्रयास कर रहा है.