हरियाणा (Haryana) विधानसभा चुनाव (Assembly Election) से पहले इस राज्य का राजनीतिक वातावरण एकदम रंग-बिरंगा है. दो पार्टियों के सीधे मुकाबले की स्थिति कहीं नहीं है. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग दिग्गजों का असर है. कहीं कहीं चारकोणी मुकाबला भी देखा जा रहा है. इस परिस्थिति में भाजपा (BJP) जीत के प्रति आश्वस्त है, जिसने 2014 में हरियाणा में भारी बहुमत से अपनी सरकार बनाई थी और मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया था. अब भाजपा की सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है और एक बार फिर जनादेश प्राप्त करने के लिए चुनाव मैदान में है.
मोदी लहर में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पांच माह के भीतर विधानसभा चुनाव (Assembly Election) हो रहे हैं और भाजपा को भरोसा है कि मोदी लहर अभी तक कायम है और लोग उसी के आधार पर भाजपा का समर्थन कर देंगे. लोकसभा चुनाव जीतते ही मोदी सरकार ने तीन तलाक के विरोध में कानून बनवा लिया है और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा दी है. इसे मोदी सरकार का पराक्रम माना जा रहा है और अधिकतर भाषणों में भाजपा (BJP) नेता इसे चुनावी मुद्दा बना रहे हैं.
पहले भाजपा छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेते हुए जनाधार बढ़ाती थी. बाद में उसने अपना जनाधार बढ़ जाने के बाद सहयोगी पार्टियों को उभरने से रोकने का काम शुरू कर दिया. इसी क्रम में 1996 में पहले उसने पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी के साथ तालमेल किया था, उसके बाद वह पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी से समर्थन लेने लगी. इसी बीच उसने हरियाणा (Haryana) के गैर जाट पंजाबी भाषी क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाया. इस तरह वह पूरे हरियाणा में लोगों का समर्थन जुटाने में सफल रही थी.
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इस समय हरियाणा (Haryana) (Assembly Election) में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार मैदान में हैं और चारों को अपने-अपने संबंधित क्षेत्रों में दबदबा है. पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के परिवार का प्रभाव भिवानी क्षेत्र तक सीमित है. तोषाम से बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी मैदान में हैं, जो पहले दिल्ली की कांग्रेस विधायक रह चुकी है. बंसीलाल की पोती श्रुति भिवानी-महेन्द्रगढ़ संसदीय सीट से पिछला लोकसभा चुनाव हार चुकी है. रोहतक और झज्जर क्षेत्रों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का असर है. भूपेन्द्र सिंह के पुत्र दीपेन्द्र सिंह रोहतक से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. इस बार भूपेन्द्र सिंह हुड्डा प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के हटने के बाद फिर से प्रभावशाली हो गए हैं.
पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के परिवार का प्रदेश की राजनीति में अच्छा खासा असर रह चुका है. लेकिन इस समय देवीलाल के पुत्र ओम प्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल काट रहे हैं. उनके खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला भी चल रहा है. इसके साथ ही उनके परिवार का दबदबा हरियाणा की राजनीति में धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है. चौटाला परिवार में फूट पड़ गई है. ओम प्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली है. फिर भी हिसार और सिरसा क्षेत्रों में चौटाला परिवार का असल बना हुआ है.
पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल पहले ही कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा जनहित कांग्रेस बना चुके थे. भजन लाल के निधन के बाद उनके दो बेटों कुलदीप बिश्नोई औऱ चंद्रमोहन में मतभेद पैदा हो गए थे. चंद्रमोहन के फिजा से शादी करने से परिवार की अलग बदनामी हुई थी. समय गुजरने के बाद अब दोनों भाइयों ने अपने मतभेद दूर कर लिए हैं और (Haryana) विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में एकसाथ हैं. कुलदीप बिश्नोई इस समय जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं और उनके पोते भव्य बिश्नोई पिछला लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में पूरा परिवार फिर से एकजुट हो गया है.
विभिन्न क्षेत्रों में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के दबदबे के बीच भाजपा मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है. इस बार विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की परिस्थितियां पिछले 2014 से अलग हैं. हालांकि मोदी लहर पहले भी थी और इस बार भी बताया जाता है कि मोदी लहर बरकरार है. देखना है कि (Haryana) चुनाव के बाद क्या नतीजे आते हैं.