Tuesday, January 21, 2025
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मोदी भरोसे वैतरणी पार करने में प्रहलाद गुंजल का रोड़ा बनी धारीवाल की ‘विकास धारा’

कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र से एक-दूसरे को एक-एक बार हार का स्वाद चखा चुके हैं दोनों प्रत्याशी, वहीं मतदाता अभी नहीं खोल रहे पत्ते, दोनों ही प्रत्याशी जमकर बहा रहे जनसंपर्क में पसीना

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Rajasthan Election: कोटा उत्तर विधानसभा सीट पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों को अंतिम दौर में टिकट मिले. यहां गहलोत सरकार में यूडीएच मिनिस्टर शांति धारीवाल और बीजेपी प्रत्याशी प्रहलाद गुंजल के बीच कड़ा मुकाबला है. एक तरफ कांग्रेस यहां विभिन्न योजनाओं के साथ कोटा में कराए गए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांग रही है. कोटा शहर सिग्नल फ्री सिटी, रिवर फ्रंट और ऑक्सीजोन के कारण देशभर में चर्चित हुआ है. वहीं बीजेपी के गुंजल के पास केवल और केवल पीएम नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा है. बीजेपी यहां पर प्रदेश में कानून व्यवस्था के बिगड़ने, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों और मोदी के फेस के भरोसे चुनाव लड़ रही है.

यह भी पढ़ें: अजमेर उत्तर में ‘सिंधी ही विजेता’ टोटका हिट लेकिन इस बार होगा त्रिकोणीय मुकाबला

एक-एक बार एक-दूसरे को हरा चुके, तीसरे पर आमने-सामने

शांति धारीवाल बनाम प्रहलाद गुंजल की चुनावी जंग कोई नयी नहीं है. दोनों एक-दूसरे को एक-एक बार हरा चुके है. शांति धारीवाल ने पिछले साल विधानसभा चुनाव में प्रहलाद गुंजल को चारों खाने चित्त किया था. वहीं साल 2013 के विधानसभा चुनाव में प्रहलाद गुंजल मोदी लहर में धारीवाल को पटखनी दे चुके हैं. इस बार दोनों चुनावी उम्मीदवार तीसरी बार आमने-सामने हैं. जहां धारीवाल कोटा में हुए विकास कार्यों के दम पर जीत का दमखम दिखा रहे हैं, वहीं प्रहलाद गुंजल पिछले चुनाव में हुई हार का बदला लेना जरूर चाहेंगे.

दिग्गजों ने कोटा उत्तर में लगाया जोर

कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला इन दोनों के बीच ही है. शांति धारीवाल और प्रहलाद गुंजल को जिताने के लिए दिग्गजों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां चुनावी जनसभा कर चुके हैं. वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रोड शो करके सुर्खियां बटौर चुके हैं. चुनाव प्रचार का शोर खत्म हो चुका है लेकिन मतदाताओं ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं जिसके चलते दोनों दलों के प्रत्याशियों की नींदे उड़ी हुई है. हालांकि कोटा में पिछले 5 सालों में हुए विकास कार्य और चंबल पर रिवर फ्रंट बनने से स्थानीय लोगों में खुशी जरूर है. इसके बावजूद किसका पलड़ा भारी है, ये कहना थोड़ा मुश्किल है.

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