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Rajasthan Election: राजस्थान में मारवाड़ का ‘जाट लैंड’ नागौर विधानसभा क्षेत्र हमेशा से हॉट सीट रहता है. यह राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के मुखिया हनुमान बेनीवाल का संसदीय भी क्षेत्र है. प्रदेश का सियासी दल हो या फिर प्रदेश की जनता, सभी की नजरें जाटों के इस गढ़ पर टिक गयी है. इसकी एक वजह ये भी है कि यहां मुख्य मुकाबले में एक ही परिवार के चाचा और भतीजी शामिल है. इस मुकाबले को एक बागी प्रत्याशी ने त्रिकोणीय बना दिया है. ऐसे में यह चुनावी दंगल भतीजी की ओर थोड़ा सा झुक रहा है. हालांकि कांग्रेस भी कुछ कम नहीं है. यहां से बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर आयी पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा को मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने उनके रिश्ते में चाचा पूर्व मंत्री हरेंद्र मिर्धा को सामने खड़ा किया है. मिर्धा परिवार का मारवाड़ में शुरुआती दौर से ही राजनीति में खासा दबदबा होने से एक ही परिवार के दो जनों की आमने सामने की इस टक्कर से चुनाव दिलचस्प होता दिख रहा है. रही सही कसर कांग्रेस से टिकट कटने के बाद बागी होकर पूर्व मंत्री हबीबुर्रहमान अशरफी लांबा ने मैदान में डटे रहकर पूरी कर दी है. अब यहां मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है.

नागौर के पिछले चुनावी परिणामों पर एक नजर डालें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मोहनराम चौधरी ने यहां से जीत दर्ज की थी. मोहनराम को 86315 वोट मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे. कांग्रेस के हबीबुर्रहमान को मोहनराम ने 13 हजार से अधिक वोट अंतर से हराया. हबीबुर्रहमान को 73,307 वोट मिले. अबकी बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने पिछले उम्मीदवारों के टिकट काट नए प्रत्याशियों पर दांव लगाया है. ज्योति मिर्धा भी यहीं से टिकट मांग रही थी. ऐसा न होने पर उन्होंने बीजेपी की राह पकड़ ली.

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ज्योति मिर्धा को मजबूत बनाने के लिए पीएम मोदी खुद जाट लैंड में मोर्चा संभाल रहे हैं. नागौर के जिला स्टेडियम में विशाल जनसभा इसका पुख्ता सबूत है. वहीं कांग्रेस अभी तक किसी बड़े नेता की जनसभा यहां पर तय नहीं कर पायी है. हालांकि सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट जिले में सभाएं कर चुके हैं. जल्द सोनिया, प्रियंका या राहुल गांधी की जनसभा या रैली होने की संभावना जताई जा रही है. आरएलपी के हनुमान बेनीवाल भी इस क्षेत्र में खासे सक्रीय हैं.
मेल जोल में स्थानीय भाषा को तरजीह दे रहे प्रत्याशी

मारवाड़ क्षेत्र होने के चलते नागौर में मारवाड़ी भाषा का खासतौर पर चलन है. यही वजह है कि किसी भी दल का कोई भी प्रत्याशी हो, लोगों से मिलने के दौरान या फिर जन सभाओं में मारवाड़ी में भाषण देना अधिक पसंद कर रहे हैं. पीएम मोदी खुद अपने भाषण की शुरूआत मारवाड़ी से ही करते हैं और यहीं के लोकदेवता एवं लीडर्स की बातें करते हैं. यहां की जनसभाओं में उमड़े स्थानीय लोगों को भी नेताओं का भाषण मारवाड़ी में सुनना रास आता है. चुनावी प्रचार माध्यम सोशल मीडिया पर भी मारवाड़ी में बने पोस्ट जमकर वायरल हो रहे हैं.

कई समस्याओं से जूझ रहा है नागौर विस क्षेत्र

वैसे नागौर अपनी कई स्थानीय समस्याओं से जूझ रहा है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, नागौर जिले का जो विकास होना चाहिए था, वह अभी तक नहीं हो पाया है. प्रमुख समस्याओं में पीने के लिए नहर का मीठा पानी यहां उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. नागौर विकास प्राधिकरण और किसी बड़े चिकित्सालय की मांग भी यहां लंबे समय से चली आ रही है. सीवरेज लाइनों की मरम्मत की मांग भी स्थानीय स्तर पर कई बार उठ चुकी है. यहां जातिगत राजनीति हावी है जिसके चलते विकास योजनाओं को रफ्तार नहीं मिल पा रही है. पर्यटन स्तर के तौर पर नागौर को उठाने की मांग भी लंबे समय से की जा रही है.

मतदाता भांप रहे हवा का ‘रुख’

नागौरी नस्ल ने नागौर जिले को देशभर में विशेष पहचान दी है लेकिन राजनीति के चलते आज भी यह जिला अपनी पहचान को तरस रहा है. नागौर के लिए किसी बड़ी और अलग योजना की जरुरत है. दोनों प्रमुख दलों के घोषणा पत्र में इसका जिक्र नहीं किया गया है जिसके चलते स्थानीय निवासियों में थोड़ी नाराजगी तो है. विकास के क्षेत्र में नागौर को आगे लाने की मांग पर अमल नहीं किया जा रहा है. स्थानीय निवासियों के अनुसार, पर्यटन के क्षेत्र में नागौर को आगे बढ़ना चाहिए लेकिन यह किसी भी दल का मुद्दा नहीं पन पाया है. ऐसे में यह कयास लगाना अभी मुश्किल है कि किस दल या किस व्यक्ति विशेष का पलड़ा भारी है. संभावना यही है कि मतदान के समय ही यहां का मतदाता अभी मुट्ठी खोलेगा.

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