बेटे सागर को अजमेर से चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी में डॉ. रघु शर्मा
लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान अभी नहीं हुआ है, लेकिन बिगुल बज चुका है. राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और भाजपा अपने सियासी समीकरण बनाने में जुटी हैं. भाजपा के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाली अजमेर सीट को 10 साल पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट ने कांग्रेस के खाते में डाला था. उन्होंने यहां से किरण माहेश्वरी को शिकस्त दी और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने, लेकिन 2014 के चुनाव में मोदी तूफान के बीच पायलट का चुनावी जहाज डूब गया. इस चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता प्रो. सांवरलाल जाट ने पायलट को चुनाव हराया.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद पायलट ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की बागडौर संभाली. इसी दौरान कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सांसद सांवलाल जाट का बीमारी के चलते निधन हो गया. जाट के निधन के बाद अजमेर सीट पर उपचुनाव हुए. इसमें भाजपा ने सांवरलाल जाट के बेटे रामस्वरूप लांबा को उम्मीदवार बनाया जबकि कांग्रेस डॉ. रघु शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा. भाजपा को लगता था कि लांबा को सहानुभूति के वोट मिलेंगे, लेकिन राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी इस रणनीति पर भारी पड़ी. भाजपा को इस सीट की आठों विधानसभाओं में हार का सामना करना पड़ा और रघु शर्मा पहली बार संसद की देहरी चढ़े.
डॉ. रघु शर्मा सांसद तो बन गए, लेकिन सूबे की राजनीति से उनका मोह नहीं छूटा. पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने केकड़ी सीट से भाग्य आजमाया. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को हराकर 2013 में हुई हार का बदला ले लिया. बता दें कि शर्मा 2008 में इसी सीट से विधायक का चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन 2013 के चुनाव में मोदी लहर में वे अपनी सीट नहीं बचा पाए थे. इस बार रघु शर्मा चुनाव ही नहीं जीते, बल्कि अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने. उनके पास चिकित्सा जैसे अहम महकमे का जिम्मा है.
एक साल के भीतर पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शक्ति का नया केंद्र बने रघु शर्मा का नाम लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर सुर्खियों में है. वे अपने बेटे सागर शर्मा को यहां से चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं. इसके लिए वे जयपुर से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग में जुटे हैं. हालांकि प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट कई बार यह साफ कर चुके हैं कि किसी भी नेता के रिश्तेदार को टिकट नहीं मिलेगा, लेकिन सियासत संभावनाओं का खेल है. यहां नियम बनते ही टूटने के लिए हैं.
सागर शर्मा अपने पिता के मंत्री बनने के बाद से ही अजमेर की राजनीति में सक्रिय हैं. कई जगह तो सरकारी कार्यक्रमों में भी वे अतिथि की हैसियत से शिरकत कर रहे हैं. सागर को टिकट मिलेगा या नहीं, यह तो कुछ दिनों में साफ हो जाएगा, लेकिन उनकी सक्रियता ने अजमेर सीट पर कांग्रेस के दावेदारों सकते में डाल रखा है. कोई खुलकर तो नहीं बोल रहा पर अंदरखाने आलाकमान तक यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि पार्टी रघु पर आखिरकार कितनी मेहरबानी करेगी.
गौरतलब है कि अजमेर सीट से टिकट हासिल करने के लिए अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी, पूर्व मंत्री ललित भाटी, महेंद्र सिंह रलावता, राज्य सभा सांसद प्रभा ठाकुर, अजमेर देहात अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ सहित कई नेता जयपुर और दिल्ली की दौड़ में शामिल हैं. राज्यसभा सांसद रह चुकीं प्रभा ठाकुर पहले भी कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के रासा सिंह रावत के सामने लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी है. उनका दिल्ली में भी अच्छा रुतबा है.
वहीं, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव महेंद्र सिंह रलावता भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं. हालांकि उन्हें हाल ही में लोकसभा चुनाव के लिए बनी प्रदेश की चुनाव प्रचार समिति में जिम्मेदारी दी गई है. इससे संकेत मिलता है कि आलाकमान उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है. बता दें कि विधानसभा चुनाव में पार्टी ने रलावता को अजमेर उत्तर से टिकट दिया था, लेकिन भाजपा के वासुदेव देवनानी के सामने उनकी दाल नहीं गली.
कांग्रेस की ओर से सबसे मजबूत दावेदारों में अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी का नाम सबसे आगे माना जा रहा है. अजमेर संसदीय क्षेत्र में जाट जाति का अच्छा खासा वर्चस्व है. वहीं, अजमेर डेयरी का कार्यक्षेत्र जिले के सभी ग्रामीण क्षेत्रों से सीधा जुड़ा है. चौधरी का अजमेर डेयरी के माध्यम से जिले के हजारों दुग्ध उत्पादकों से सीधा संपर्क है. वे लंबे समय से लोकसभा टिकट की मांग करते रहे हैं. जिस समय सचिन पायलट ने अजमेर से चुनाव लड़ा था, उस समय भी चौधरी का नाम टिकट के प्रमुख दावेदारों मे था. चौधरी ने पहले पायलट और फिर रघु शर्मा के चुनाव के समय भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
कांग्रेस से टिकट पाने की दौड़ में कांग्रेस देहात अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ का नाम भी चर्चा में है. राठौड़ को पीसीसी अयक्ष सचिन पायलट के खेमे का माना जाता है. वे पिछले कई महीनों से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. इन दावेदारों में से किसे चुनावी मैदान में उतारा जाए, इसको लेकर कांग्रेस में चिंतन और मंथन का दौर जारी है. विभिन्न स्तरों पर रायशुमारी के बाद गेंद अब शीर्ष नेतृत्व के पाले में हैं.
राजस्थान सरकार मुफ्त में देगी पीने का पानी, 1 अप्रेल से नहीं भरना पड़ेगा बिल
लोकसभा चुनाव के लिए ‘मिशन-25’ की तैयारी में जुटे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार की ओर से आचार संहिता लगने से पहले लोकलुभावन घोषणाओं का सिलसिला जारी है. दिल्ली में केजरीवाल सरकार की तर्ज पर मुख्यमंत्री ने प्रदेश की 2.08 करोड़ ग्रामीण और 56 लाख शहरी आबादी को पीने के पानी की मुफ्त आपूर्ति की घोषणा की है. यह व्यवस्था आने वाली एक अप्रेल से लागू होगी. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इससे लोगों को सालाना 161 करोड़ रुपये की बचत होगी.
सरकार के आदेश के मुताबिक ग्रामीण ग्रामीण क्षेत्रों में 40 एलपीसीडी पानी के उपभोग तक वाटर चार्ज अब नहीं लिया जाएगा. इससे प्रदेश की करीब 2.8 करोड़ ग्रामीण आबादी लाभान्वित होगी. जबकि शहरी क्षेत्रों में चालू मीटर वाले कनेक्शन पर 15 किलो लीटर मासिक उपभोग तक वाटर चार्ज तथा वर्तमान व्यवस्था के तहत लिए जा रहे सीवरेज और विकास शुल्क अथवा सरचार्ज अब नहीं लिए जाएंगे. शहरी क्षेत्रों में जहां फ्लैट रेट बिलिंग की व्यवस्था है, वहां भी वाटर चार्ज नहीं लिया जाएगा.
साथ ही मुख्यमंत्री ने जलदाय विभाग को शहरी क्षेत्रों में सघन अभियान चलाकर अगले दो वर्ष में बंद पडे़ मीटर बदलने की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए हैं. मीटर चालू हालत में आने के बाद ऐसे शहरी कनेक्शनों पर भी प्रति कनेक्शन 15 किलो लीटर मासिक उपभोग तक कोई वाटर चार्ज नहीं लिया जाएगा. मुफ्त पानी की इस घोषणा के दायरे में बहुमंजिला इमारतें नहीं आएंगी, क्योंकि इनमें सोसाइटी के जरिये एक ही कनेक्शन दिया जाता है. ऐसे में पानी के उपभोग की गणना करना आसान नहीं होता.
ओम थानवी हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी को हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया है. उनकी नियुक्ति कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष के लिए होगी. राज्यपाल ने राज्य सरकार के परामर्श से यह नियुक्ति की है. थानवी मूल रूप से जोधपुर जिले के फलोदी कस्बे के रहने वाले हैं. उन्होंने 1978 में राजस्थान पत्रिका समूह के साप्ताहिक पत्र ‘इतवारी’ से अपने पत्रकार जीवन की शुरूआत की और संपादक के पद तक पहुंचे.
राजस्थान पत्रिका के बाद थानवी ने एक्सप्रेस समूह के हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ से जुड़े और कई वर्षों तक इसके संपादक रहे. 2015 में जनसत्ता से अलग होने के बाद थानवी ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज में अध्यापन का कार्य किया. 2018 में वे फिर से मुख्यधारा की पत्रकारिता में लौटे और राजस्थान पत्रिका के सलाहकार संपादक बने. पिछले दिनों उन्होंने इस पद से त्याग-पत्र दे दिया था. ओम थानवी का पत्रकारिता के साथ-साथ लेखन के क्षेत्र में भी दखल है. उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
गौरतलब है कि जयपुर हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय की स्थापना अशोक गहलोत के पिछले कार्यकाल में हुई थी, लेकिन वसुंधरा सरकार ने इसे बंद कर दिया था. चूंकि विश्वविद्याल में शिक्षकों की नियुक्ति हो गई थी और तीसरा सत्र शुरू हो गया था इसलिए सरकार ने इसका विलय राजस्थान विश्वविद्यालय के जनसंचार केंद्र में कर दिया. बंद करने के फैसले के पीछे भाजपा सरकार की दलील थी कि इसके संचालन में लग रही लागत, विद्यार्थियों की संख्या की तुलना में कहीं ज्यादा थी. लेकिन इसकी असली कारण सरकार की यह धारणा थी कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना गहलोत को चहेतों को नियुक्ति देने के लिए की गई.
सरकार के इस निर्णय का कांग्रेस ने विरोध किया. खासतौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी साख से जोड़ लिया. उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि कांग्रेस की सरकार बनने पर विश्वविद्यालय को फिर से शुरू किया जाएगा. सत्ता में आते ही उन्होंने ऐसा किया भी.
कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी के बैठक स्थगित, अब 11 मार्च को होगी
लोकसभा चुनाव के लिए टिकट की लॉबिंग में राजस्थान के कांग्रेस नेताओं का इंतजार और बढ़ गया है. पार्टी की आज होने वाली स्क्रीनिंग कमेटी के बैठक स्थगित हो गई है. अब यह बैठक 11 मार्च को होगी. बैठक स्थगित होने की वजह पता नहीं लगी है. राहुल गांधी के वॉर रूम में होने वाली इस बैठक में हर सीट से सामने आए दावेदारों के नामों में से सिंगल नाम का पैनल तैयार किया जाना था.
इसमें पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल, प्रदेश प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट, चारों सह प्रभारियों— विवेक बंसल, काजी निजाम, तरुण कुमार और देवेंद्र यादव को भाग लेना था. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को 25 सीटों पर 2300 नेताओं की दोवदारी सामने आई थी. प्रदेश चुनाव समिति में इनकी छंटनी होने के बाद 26 व 28 फरवरी को दिल्ली में हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में पैनल तैयार कर लिए थे.
11 मार्च को होने वाली स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में सिंगल नाम का पैनल तैयार किया जाएगा. इस पर पार्टी की इलेक्शन कमेटी अंतिम मुहर लगाएगी. हालांकि नाम तय करने में स्क्रीनिंग कमेटी का ही भूमिका रहेगी, लेकिन जिन सीटों पर आम सहमति नहीं बन पाएगी उन पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही उम्मीदवार तय करेंगे.
बता दें कि विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस पर लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने का दवाब है. पार्टी ने इसके लिए ‘मिशन—25’ तैयार किया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट सभी सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं.
खर्चे के खौफ से बीजेपी ने की राजस्थान में पीएम मोदी की सभाओं में कटौती!
आगामी लोकसभा चुनाव में राजस्थान बीजेपी नेतृत्व पिछली बार की तरह इस बार भी 25 सीटें जीतने का दावा कर रहा है, लेकिन इसके लिए तैयारी में कई झोल दिखाई दे रहे हैं. यह जानते हुए कि चुनाव में मोदी ही पार्टी का प्रमुख चेहरा हैं, स्थानीय नेता उनकी सभाओं से कतरा रहे हैं. गौरतलब है कि मोदी ने पिछले दिनों टोंक और चुरू में सभाएं की थीं. उनका तीन और सभाएं करने का कार्यक्रम तय था, लेकिन ये हो नहीं पाईं. पार्टी सूत्रों के अनुसार इसके पीछे सभाओं में होने वाले खर्च था.
आमतौर पर इस प्रकार की सभाओं के खर्च की रकम का इंतजाम पार्टी फंड से होता है और स्थानीय नेता इसमें सहयोग करते हैं मगर मदन लाल सैनी के अध्यक्ष बनने के बाद से प्रदेश में बीजेपी की तिजोरी कंगाली के दिन देख रही है. चर्चा के मुताबिक सत्ता में नहीं होने की वजह से भी पार्टी को उतना चंदा नहीं मिल रहा है, जितना मिलना चाहिए. ‘पॉलिटॉक्स’ के सूत्रों के अनुसार टोंक में हुई सभा के लिए पार्टी के प्रदेश कार्यालय से नाम मात्र का फंड जारी हुआ. सभा का ज्यादातर खर्च स्थानीय सांसद ने उठाया.
प्रदेश बीजेपी को चुरू में भी यही उम्मीद थी, लेकिन यहां के सांसद ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि कार्यक्रम पार्टी का है. जबकि विधायकों ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि कार्यक्रम प्रधानमंत्री का है इसलिए इसे सफल बनाने का जिम्मा सांसद का है. पार्टी के नेताओं के बीच पीएम की सभाओं में होने वाला खर्चा भी चर्चा का केंद्र रहा. गौरतलब है कि बीजेपी की कमान मोदी और शाह के हाथों में आने के बाद सभाओं की अलग ही रंगत नजर आती है. भव्य मंच और श्रोताओं के बैठने की बढ़िया व्यवस्था से खर्च पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गया है.
सूत्रों के अनुसार किसी के खर्च उठाने के लिए तैयार नहीं होने की वजह से राजस्थान में पीएम मोदी की तीन और सभाओं का कार्यक्रम नहीं बन पाया. हालांकि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को इसकी भनक नहीं है. उन्हें स्थानीय नेतृत्व ने यह तर्क दिया कि चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद पीएम की सभाएं ज्यादा कारगर होंगी. पीएम के कई कार्यक्रमों में व्यस्त होने की वजह से उन्होंने इसे मान भी लिया. चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद मोदी की राजस्थान में कई सभाएं होंगी, लेकिन तब इनका खर्च उठाने के लिए उम्मीदवार तो होंगे ही, केंद्रीय नेतृत्व का खजाना भी खुल जाएगा.
देश की संसद को सबसे ज्यादा हंसाने वाले सांसद के बारे में जानिए
राजनीति जहां नेता एक—दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते वहां ऐसे नेता की कल्पना की जा सकती है जो सबको हंसाता था. वो भी खुद को मजाक का केंद्र बनाकर. संभवत: आपको कोई नाम याद नहीं आए, लेकिन एक ऐसा नेता हुए हैं जो सबको हंसाते थे. इनका नाम है पीलू मोदी. सत्तर के दशक में पीलू मोदी ने भारतीय संसद को जितना हंसाया है उतना शायद अब तक किसी ने नहीं हंसाया. उनकी खूबी ये थी कि वो अपना मजाक खुद बनाते थे. कहा भी जाता है कि असली हास्य वही होता है, जिसमें खुद को भी न बख्शा जाए.
जब पीलू संसद में बोलते थे तो विरोधी भी उनकी बातों को गौर से सुनते थे. सबका ध्यान उनकी चुहलबाजी और मजाक पर रहता था. कांग्रेस सांसद जेसी जैन उन्हें अक्सर इसी वजह से छेड़ा करते थे कि वे कोई न कोई फुलझड़ी छोड़ेंगे. एक दिन पीलू को उन पर गुस्सा आ गया और उन्होंने जैन से कहा, ‘स्टॉप बार्किंग.’ यानी भौंकना बंद कीजिए. जैन यह सुनकर तमतमा गए. उन्होंने कहा, ‘अध्यक्ष महोदय, ये मुझे कुत्ता कह रहे हैं. यह असंसदीय भाषा है.’ उनकी इस आपत्ति पर सदन की अध्यक्षता कर रहे हिदायतउल्लाह ने आदेश दिया कि पीलू मोदी ने जो कुछ भी कहा वो रिकॉर्ड में नहीं जाएगा. आसन की इस व्यवस्था पर मोदी ने मजेदार प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, ‘ऑल राइट देन, स्टॉप ब्रेइंगण्’ यानी रेंकना बंद कीजिए. जेसी जैन को ब्रेइंग शब्द का मतलब समझ नहीं आया इसलिए उन्होंने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की. यह शब्द संद की कार्रवाई के रिकॉर्ड में अभी भी कायम है.
यह वह दौर था जब भारत में जो कुछ भी गलत होता था उसका दोष अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए के मत्थे मढ़ा जाता था. एक दिन पीलू मोदी को पता नहीं क्या सूझी. वे अपने गले में ‘आई एम ए सीआईए एजेंट’ लिखी तख्ती गले में लटकाकर गले में संसद पहुंच गए. उन्हें देखकर सदन में खूब ठहाके लगे. मोदी की इंदिरा गांधी से तगड़ी अदावत थी, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर दोनों के व्यक्त्गित रिश्ते बहुत अच्छे थे. इंदिरा गांधी पीलू मोदी का एक भी भाषण नहीं छोड़ती थीं. भाषण सुनने के बाद गांधी लगभग हर बार पीलू को अपने हाथ से चिट्ठी लिख कर कहती थीं कि तुमने बहुत बढ़िया बोला. पीलू मोदी उसका जवाब देते थे और चिट्ठी का समापन ‘पीएम’ शब्द से करते थे. एक दिन सदन में गांधी और मोदी के बीच किसी मुद्दे पर नोकझोंक हो गई. पीलू ने कहा, ‘आई एम ए परमानेंट पीएम, यू आर ओनली टेंपेरेरी पीएम’ इस पर इंदिरा गांधी हंसने लगीं तो पीलू मोदी ने कहा कि पीएम का मतलब ‘पीलू मोदी’ है.
इंदिरा गांधी के बारे में यह मशहूर है कि वे संसद में शाम के समय अखबार की क्रासवर्ड पजल हल किया करती थीं. इस बात का पीलू मोदी को पता चला तो उन्होंने शांति से चल रहे सदन के बीच ‘प्वाएंट ऑफ ऑर्डर’ बोलकर सबको चकित कर दिया. स्पीकर संजीव रेड्डी इस पर खूब नाराज हुए. उन्होंने गुस्से से पूछा कि सब ठीक तो चल रहा है फिर क्या ‘प्वाएंट ऑफ ऑर्डर’ है. तो मोदी बोले, ‘क्या कोई सांसद संसद में क्रॉसवर्ड पजल हल कर सकता है? यह सुनते ही इंदिरा गांधी के हाथ थम गए. बाद में उन्होंने पीलू को एक नोट लिख कर पूछा कि तुम्हें कैसे पता चला कि मैं क्रॉसवर्ड पजल हल करती हूं? इस पर पीलू ने जबाव में लिखा कि मेरे जासूस हर जगह पर मौजूद हैं.
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो पीलू मोदी के करीबी दोस्तों में शामिल थे. दोनों का बचपन मुंबई में साथ—साथ बीता और दोनों अमेरिका में साथ—साथ पढ़े भी. 1972 में जब भुट्टो शिमला समझौता करने भारत आए तो उन्होंने पीलू से मिलने की इच्छा जाहिर की. सरकार ने पीलू को शिमला बुलवाया. इस दौरान पीलू ने शिमला समझौते के कई रोचक पहलुओं पर गौर किया, जिन्हें उन्होंने अपनी पुस्तक ‘जुल्फी माई फ्रेंड’ में किया है. उन्होंने लिखा है, ‘एक क्षण के लिए जब बिलियर्ड्स रूम का दरवाजा थोड़ा सा खुला तो मैंने देखा कि जगजीवन राम बिलियर्ड्स की मेज के ऊपर बैठे हुए थे और इंदिरा गांधी मेज पर झुकी शिमला समझोते के मसौदे से माथापच्ची कर रही थीं. चव्हाण और फखरुद्दीन अली अहमद भी मेज पर झुके हुए थे और उन सब को नौकरशाहों के समूह ने घेर रखा था.’
पीलू मोदी ने आगे लिखा, ‘दस बजकर पैंतालीस मिनट पर जब भुट्टो और इंदिरा गांधी समझौते पर दस्तख्त करने के लिए राजी हुए तो पता चला कि हिमाचल भवन में कोई इलेक्ट्रॉनिक टाइप राइटर ही नहीं है. आनन-फानन में ओबेरॉय क्लार्क्स होटल से टाइप राइटर मंगवाया गया. तभी पता चला कि पाकिस्तानी दल के पास उनकी सरकारी मोहर ही नहीं है, क्योंकि उसे पहले ही पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के सामान के साथ वापस भेजा जा चुका था. अंतत: शिमला समझौते पर बिना मोहर के ही दस्तखत हुए. समझौते से पहले मैंने देखा कि कुछ भारतीय अफसर, साइनिंग टेबल पर मेजपोश बिछाने की कोशिश कर रहे थे और हर कोई उसे अलग-अलग दिशा में खींच रहा था. उन्होंने सारे बंदोबस्त की बार-बार जांच की, लेकिन जब समझौते पर दस्तखत करने का वक्त आया तो भुट्टो की कलम चली ही नहीं. उन्हें किसी और का कलम ले कर दस्तखत करना पड़ा.’
आपातकाल के समय पीलू मोदी को जेल भेज दिया गया. रोहतक की जेल में पश्चिमी कमोड नहीं होने की वजह से उन्हें निवृत्त होने में बहुत परेशानी होती थी. उन्होंने को संदेश भेजकर अपनी परेशानी इंदिरा गांधी की बताई तो उसी दिन शाम को टॉयलेट में बंदोबस्त हो गया. मोदी चाहते तो अपनी रिहाई के लिए भी गुजारिश कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. पीलू मोदी बहुत जबरदस्त मेहमाननवाज थे. लोग उनकी दावतों में शामिल होना अपनी खुशनसीबी समझते थे.
गहलोत सरकार ने घटाया लोकायुक्त का कार्यकाल, कोठारी की छुट्टी तय
प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार ने लोकायुक्त के कार्यकाल को पांच से बढ़ाकर आठ साल करने के फैसले को पलट दिया है. सरकार ने अध्यादेश के जरिये लोकायुक्त के कार्यकाल को फिर से पांच साल कर दिया है. राज्यपाल कल्याण सिंह ने इसे मंजूरी दे दी है. इस बदलाव से लोकायुक्त एसएस कोठारी पर तलवार लटक गई है. सरकार उन्हें कभी भी हटा सकती है.
बता दें कि पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार पिछले साल मार्च में कार्यकाल को आठ साल करने का अध्यादेश लेकर आई थी. विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद यह कानून बन गया. इसके खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि सरकार ने एसएस कोठारी को फायदा पहुंचाने के लिए लोकायुक्त के कार्यकाल में बढ़ोतरी की. गौरतलब है कि वसुंधरा सरकार कोठारी का कार्यकाल खत्म होने के ठीक दो दिन पहले अध्यादेश लेकर आई थी.
हाईकोर्ट इस याचिका पर कोई फैसला करता उससे पहले ही सरकार कार्यकाल घटाने का अध्यादेश ले आई. उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट में न्यायाधीश रहे एसएस कोठारी राजस्थान क 12वें लोकायुक्त हैं. उनकी नियुक्ति 25 मार्च, 2013 को हुई थी. उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. तत्कालीन राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी.
कोठारी राज्य के पहले लोकायुक्त हैं, जो पांच साल से ज्यादा अपने पद पर रहे हैं. इस दौरान शिकायतों के निपटारे की बात करें तो लोकायुक्त सचिवालय को उनके कार्यकाल में आमजन से 28,581 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 28,524 का निपटारा हो चुका है.