लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान अभी नहीं हुआ है, लेकिन बिगुल बज चुका है. राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और भाजपा अपने सियासी समीकरण बनाने में जुटी हैं. भाजपा के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाली अजमेर सीट को 10 साल पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट ने कांग्रेस के खाते में डाला था. उन्होंने यहां से किरण माहेश्वरी को शिकस्त दी और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने, लेकिन 2014 के चुनाव में मोदी तूफान के बीच पायलट का चुनावी जहाज डूब गया. इस चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता प्रो. सांवरलाल जाट ने पायलट को चुनाव हराया.

लोकसभा चुनाव में हार के बाद पायलट ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की बागडौर संभाली. इसी दौरान कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सांसद सांवलाल जाट का बीमारी के चलते निधन हो गया. जाट के निधन के बाद अजमेर सीट पर उपचुनाव हुए. इसमें भाजपा ने सांवरलाल जाट के बेटे रामस्वरूप लांबा को उम्मीदवार बनाया जबकि कांग्रेस डॉ. रघु शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा. भाजपा को लगता था कि लांबा को सहानुभूति के वोट मिलेंगे, लेकिन राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी इस रणनीति पर भारी पड़ी. भाजपा को इस सीट की आठों विधानसभाओं में हार का सामना करना पड़ा और रघु शर्मा पहली बार संसद की देहरी चढ़े.

डॉ. रघु शर्मा सांसद तो बन गए, लेकिन सूबे की राजनीति से उनका मोह नहीं छूटा. पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने केकड़ी सीट से भाग्य आजमाया. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को हराकर 2013 में हुई हार का बदला ले लिया. बता दें कि शर्मा 2008 में इसी सीट से विधायक का चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन 2013 के चुनाव में मोदी लहर में वे अपनी सीट नहीं बचा पाए थे. इस बार रघु शर्मा चुनाव ही नहीं जीते, बल्कि अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने. उनके पास चिकित्सा जैसे अहम महकमे का जिम्मा है.

एक साल के भीतर पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शक्ति का नया केंद्र बने रघु शर्मा का नाम लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर सुर्खियों में है. वे अपने बेटे सागर शर्मा को यहां से चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं. इसके लिए वे जयपुर से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग में जुटे हैं. हालांकि प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट कई बार यह साफ कर चुके हैं ​कि किसी भी नेता के रिश्तेदार को टिकट नहीं मिलेगा, लेकिन सियासत संभावनाओं का खेल है. यहां नियम बनते ही टूटने के लिए हैं.

सागर शर्मा अपने पिता के मंत्री बनने के बाद से ही अजमेर की राजनीति में सक्रिय हैं. कई जगह तो सरकारी कार्यक्रमों में भी वे अतिथि की हैसियत से शिरकत कर रहे हैं. सागर को टिकट मिलेगा या नहीं, यह तो कुछ दिनों में साफ हो जाएगा, लेकिन उनकी सक्रियता ने अजमेर सीट पर कांग्रेस के दावेदारों सकते में डाल रखा है. कोई खुलकर तो नहीं बोल रहा पर अंदरखाने आलाकमान तक यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि पार्टी रघु पर आखिरकार कितनी मेहरबानी करेगी.

गौरतलब है कि अजमेर सीट से टिकट हासिल करने के लिए अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी, पूर्व मंत्री ललित भाटी, महेंद्र सिंह रलावता, राज्य सभा सांसद प्रभा ठाकुर, अजमेर देहात अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ सहित कई नेता जयपुर और दिल्ली की दौड़ में शामिल हैं. राज्यसभा सांसद रह चुकीं प्रभा ठाकुर पहले भी कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के रासा सिंह रावत के सामने लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी है. उनका दिल्ली में भी अच्छा रुतबा है.

वहीं, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव महेंद्र सिंह रलावता भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं. हालांकि उन्हें हाल ही में लोकसभा चुनाव के लिए बनी प्रदेश की चुनाव प्रचार समिति में जिम्मेदारी दी गई है. इससे संकेत मिलता है कि आलाकमान उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है. बता दें कि विधानसभा चुनाव में पार्टी ने रलावता को अजमेर उत्तर से टिकट दिया था, लेकिन भाजपा के वासुदेव देवनानी के सामने उनकी दाल नहीं गली.

कांग्रेस की ओर से सबसे मजबूत दावेदारों में अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी का नाम सबसे आगे माना जा रहा है. अजमेर संसदीय क्षेत्र में जाट जाति का अच्छा खासा वर्चस्व है. वहीं, अजमेर डेयरी का कार्यक्षेत्र जिले के सभी ग्रामीण क्षेत्रों से सीधा जुड़ा है. चौधरी का अजमेर डेयरी के माध्यम से जिले के हजारों दुग्ध उत्पादकों से सीधा संपर्क है. वे लंबे समय से लोकसभा टिकट की मांग करते रहे हैं. जिस समय सचिन पायलट ने अजमेर से चुनाव लड़ा था, उस समय भी चौधरी का नाम टिकट के प्रमुख दावेदारों मे था. चौधरी ने पहले पायलट और फिर रघु शर्मा के चुनाव के समय भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.

कांग्रेस से टिकट पाने की दौड़ में कांग्रेस देहात अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ का नाम भी चर्चा में है. राठौड़ को पीसीसी अयक्ष सचिन पायलट के खेमे का माना जाता है. वे पिछले कई महीनों से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. इन दावेदारों में से किसे चुनावी मैदान में उतारा जाए, इसको लेकर कांग्रेस में चिंतन और मंथन का दौर जारी है. विभिन्न स्तरों पर रायशुमारी के बाद गेंद अब शीर्ष नेतृत्व के पाले में हैं.

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