नए दौर की राजनीति की लड़ाई का सबसे बड़ा मंच सोशल मीडिया है. नेता और उनकी पार्टी, सोशल मीडिया पर जो जानकारी शेयर करते हैं, वह तुरंत मुख्यधारा की मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज और हेडलाइन बन जाती है. ट्विटर इसमें टॉप पर है और भाजपा इस पर ज्यादा सक्रिय है. दूसरे दल भी सोशल मीडिया के इस प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं. पिछले दिनों राजनीति में एंट्री करने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा ट्विटर पर आ चुकी हैं, लेकिन इस पर सिवाय इसके और कुछ दिखाई नहीं देता कि वे किसे फोलो करती हैं और उनके कितने फॉलोअर्स हैं.
कोई प्रियंका गांधी वाड्रा का ट्वीट नहीं पढ़ सकता, क्योंकि उन्होंने किया ही नहीं है. शायद ट्विटर की चिड़िया भी इस इंतजार में होगी कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिश में जुटीं प्रियंका आखिर उसकी सुध कब लेगी. इंतजार उनके सवा दो लाख पार हो चुके फॉलोअर्स को भी है, जिन्होंने बिना ट्वीट के दर्शन किए उन्हें फोलो कर लिया. इंतजार कांग्रेस के नेताओं को भी है कि उनकी नेता कब ट्वीट करे और वे इसे लाइक और रीट्वीट करें.
कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपने—अपने ट्विटर हैंडल पर ‘प्रियंका गांधी फॉलोस यू’ संदेश की बाट जोह रहे हैं. बता दें कि प्रियंका गांधी ट्विटर पर जिन लोगों को फोलो करती हैं, उनकी संख्या सिर्फ सात है. इनमें एक कांग्रेस पार्टी का आधिकारिक ट्विटर हैंडल है और छह कांग्रेस के नेता हैं. एक तो स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष और उनके बड़े भाई राहुल गांधी ही हैं. उनके अलावा प्रियंका गांधी सिर्फ पांच और कांग्रेसी नेताओं को फाॅलो कर रही हैं. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि कम से कम उनकी नजर में पार्टी के अंदर ये पांच नेता सबसे ताकतवर हैं.
इन पांच नेताओं के नाम हैं— अहमद पटेल, अशोक गहलोत, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और रणदीप सुरजेवाला. कांग्रेस में बड़े नेता तो कई हैं, लेकिन प्रियंका की नजर में शायद ये पांचों की अहमियत कुछ ज्यादा ही है. बाकी बड़े नेता इस क्लब में शामिल होने के लिए कसमसा रहे हैं. इनमें से कितने नेताओं को प्रियंका गांधी फॉलो करेंगी, यह तो वे ही जानें मगर उन्हें फॉलो करने वाले लोगों का नंबर लगातार बढ़ रहा है.
गौरतलब है कि बीती 23 जनवरी को प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी बनाया गया था. कयास लगाए जा रहे हैं वे यहां की किसी सीट से चुनाव लडेंगी. प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनने से देश के सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस में जान आ गई है. यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने सपा—बसपा गठबंधन का हिस्सा नहीं बनकर अच्छा किया. पार्टी को अपने बूते पर ही खड़ा होना चाहिए.