होम ब्लॉग पेज 3255

बीजेपी से नाराज उदित राज ने थामा कांग्रेस का दामन

PoliTalks news

दिल्ली से टिकट कटने से नाराज उदित राज ने बीजेपी से नाता तोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. उदित राज राजधानी की उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद हैं. बीजेपी ने उनका टिकट काट सिंगर हंसराज हंस को ​थमा दिया है. टिकट कटने के बाद से ही उदित राज ने बागी तेवर अपनाना शुरू कर दिया था लेकिन पार्टी ने उनकी एक न सुनी. हालांकि उदित राज को कांग्रेस की तरफ से दिल्ली की किसी सीट से टिकट मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.

इसकी वजह है कि कांग्रेस ने दिल्ली के सभी टिकटों की घोषणा कर दी है. इससे पहले उदित राज ने दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में सोमवार कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें सदस्यता ग्रहण कराई.

बता दें, 2014 से पहले उदित राज की खुद की पार्टी थी जिसका नाम इंडियन जस्टिस पार्टी था. उदित राज ने फरवरी, 2014 में इस पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया. दलित बुद्ध‍िजीवी वर्ग में उदित राज का काफी सम्‍मान है. ऐसे में बीजेपी ने अपना दलित चेहरा बनाकर उन्‍हें टिकट दिया था. यहां से उन्होंने जीत हासिल की थी लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट सूफी सिंगर हंसराज हंस को दिया तो उन्होंने कल दोपहर से ही बागी तेवर अपना लिए थे. सबसे पहले उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल से अपने नाम के आगे से ‘चौकीदार’ हटाया लेकिन शाम होते-होते फिर से चौकीदार बन गए. आज सुबह उन्होंने कांग्रेस में शामिल होते हुए ‘चौकीदार’ को अपने से अलग कर लिया.

इससे पहले बीजेपी ने कल दिल्ली के तीन उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की. सूची में पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर को पूर्वी दिल्ली, हंसराज हंस को उत्तर पश्चिम और मिनाक्षी लेखी को नई दिल्ली से मैदान में उतारा. अन्य चार सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा पहले ही कर दी गई थी.

22 राज्यों में 302 सीटों पर चुनाव खत्म, तीसरे चरण में 66.4 फीसदी वोटिंग

PoliTalks news

देश में लोकसभा चुनावों का तीसरा चरण कल खत्म हो गया. तीनों चरणों को मिलकर 22 राज्यों में 302 सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम मशीनों में कैद हो गई है. मंगलवार को हुए तीसरे चरण के मतदान में 15 राज्यों की 116 सीटों पर वोटिंग हुई जिसमें 66.4 फीसदी मतदान दर्ज हुआ. हालांकि यह प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 3.71 फीसदी कम रहा. 2014 में इन 116 सीटों पर 70.11 फीसदी वोटिंग दर्ज हुई थी. हालांकि वोटिंग कम होना बीजेपी के लिए परेशानी का सबब हो सकता है.

बता दें, पिछले लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में 8.31 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी और नतीजा सबसे सामने रहा. बीजेपी एक तरफा जीत दर्ज कर सदन में बैठी. इस बार गुजरात में 63.73 फीसदी वोटिंग हुई जो 52 साल में सबसे अधिक रही. वहीं सबसे कम मतदान महबूबा मुफ्ती की संसदीय सीट अनंतनाग में हुई. यहां वोटिंग प्रतिशत केवल 12.86 फीसदी रहा. इस बार सबसे अधिक मतदान असम में हुआ. यहां वोटिंग प्रतिशत 80.75 फीसदी रहा जो पिछले चुनावों के मुकाबले 2.35 फीसदी कम रहा.

इस तरह रही राज्यों में मतदान की स्थिति

  • असम 80.75 फीसदी
  • पं.बंगाल – 80.47
  • त्रिपुरा – 79.92
  • दादर नगर – 79.59
  • गोवा – 74.31
  • केरल – 73.69
  • दमन दीव – 71.82
  • छत्तीसगढ़ – 68.41
  • कर्नाटक – 67.72
  • गुजरात – 63.73
  • ओडिशा – 62.49
  • उत्तर प्रदेश – 61.40
  • महाराष्ट्र – 60.07
  • बिहार – 59.97
  • कश्मीर – 12.86

 

क्रिकेट के बाद खेली सियासी पारी, कोई रहा नाबाद तो कोई फिसड्डी

देश की राजनीति में फिल्मी सितारों और साधु-संतों के अलावा क्रिकेटर्स ने भी अपनी किस्तम आजमाई है. इसी कड़ी में दिग्गज क्रिकेटर गौतम गंभीर भी राजनीतिक पारी खेलने के लिए चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. गंभीर बीजेपी से सियासी डेब्यू करते हुए पूर्वी दिल्ली संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. अपने घर में पूजा-पाठ के बाद गंभीर ने नामांकन दाखिल कर दिया है. गौतम गंभीर की टीम इंडिया को 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप और 2011 में 50 ओवर वर्ल्ड कप जिताने में अहम भूमिका रही है.

साल 2019 का लोकसभा चुनाव फिर एक क्रिकेटर को सियासी दंगल में लाया है. 2007 टी20 वर्ल्‍ड कप और 2011 वर्ल्‍ड कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्‍य रहे गौतम गंभीर को बीजेपी ने पूर्वी दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारा है. जहां उन्होंने नामांकन दाखिल कर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. ऐसा नहीं है कि गौतम गंभीर ने ही राजनीति की पारी खेलने का फैसला लिया हो, इससे पहले भी सियासत में कई क्रिकेटर्स की एन्ट्री हो चुकी है. जिनमें से कुछ ने राजनीति में बुलंदियों को छुआ है तो कईयों को जनता ने अस्वीकार कर दिया. नजर डालते हैं क्रिकेट के बाद पॉलीटिक्स पंसद करने वाले क्रिकेटर्स पर.

politalks news

इन दिनों अपने विवादित बयानों को लेकर एक पूर्व क्रिकेटर और नेता का नाम खासा चर्चा में है. जी हां, हम बीजेपी छोड़ वापिस कांग्रेस का दामन थामने वाले नवजोत सिंह सिद्धू की ही बात कर रहे हैं. क्रिकेट में अच्छी पारी के बाद सिद्धू को भी सियासत रास आई और वे बीजेपी से साल 2004 व 2009 में पंजाब की अमृतसर सीट से सांसद रहे. लेकिन साल 2014 के चुनावों में स्थानीय विरोध के बाद बीजेपी ने उनका टिकट काटकर राज्‍य सभा भेजा दिया. नाराज नवजोत सिद्धू बीजेपी से इस्‍तीफा देकर 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गए और इस बार वे पंजाब विधानसभा के चुनावों में अमृतसर पूर्व सीट से जीते और अब मंत्री हैं.

दिग्गज क्रिकेटर रहे मोहम्‍मद अजहरुद्दीन ने भी क्रिकेट पारी खेलने के बाद राजनीति का रूख किया और चुनावी मैदान में कदम रखते हुए साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्‍तर प्रदेश की मुरादाबाद सीट से जीतकर दिल्ली पहुंचे. लेकिन अगले चुनाव यानि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वे राजस्‍थान की टोंक-सवाई माधोपुर सीट से चुनाव हार गए. इसके बाद अब 2019 के चुनावों में उन्‍हें टिकट नहीं मिल सका. इससे पहले विनोद कांबली ने भी क्रिकेट के बाद राजनीति को चुना और लोक भारत पार्टी के टिकट पर महाराष्ट्र विधानसभा की विक्रोली सीट से चुनावी मैदान में उतरे. लेकिन मतदाताओं ने उनको अस्वीकार कर दिया.

साल 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप जीतकर देश का नाम रोशन किया. टीम के सदस्य रहे क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने वर्ल्ड कप जीत में अपनी भूमिका अदा कर क्रिकेट पारी तो बखूबी खेली ही, इसके बाद उन्होंने सियासी गलियारों में कदम रखा. आजाद को राजनीति में लगातार सफलता मिली. वे बीजेपी से तीन बार बिहार की दरभंगा सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे. हांलाकि अब वे बीजेपी छोड़ कांग्रेस के साथ हो गए हैं और झारखंड की धनबाद संसदीय सीट पर प्रत्याशी है. कीर्ति आजाद राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखते हैं, उनके पिता भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं.

इन क्रिकेटर्स के अलावा कई और भी राजनीति में अपना भाग्य आजमा चुके हैं. क्रिकेटर श्रीसंत ने भी सियासत में कदम रखने का फैसला लिया लेकिन उनको कामयाबी नहीं मिल सकी थी. वे बीजेपी में शामिल हुए और साल 2016 के केरल विधानसभा चुनावों के दंगल में उतरे और तिरूवनंतपुरम सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वहीं क्रिकेटर मोहम्‍मद कैफ ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्‍तर प्रदेश की फूलपुर सीट पर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा. लेकिन मोदी लहर में उनको करारी हार मिली और वे चौथे स्थान पर रहे.

वहीं क्रिकेटर मनोज प्रभाकर ने भी क्रिकेट के बाद करियर के लिए राजनीति को पसंद किया और एनडी तिवारी की पार्टी ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस से दक्षिण दिल्‍ली सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन प्रभाकर हार गए और राजनीति में उनका करियर वहीं थम कर रह गया. इनके अलावा चेतन चौहान ने भी बल्‍ले से कमाल करने के बाद सियासत में कमाल दिखाने का फैसला किया और बीजेपी के टिकट पर उत्‍तर प्रदेश की अमरोहा सीट से दो बार 1991 और 1998 में सांसद रहे. वहीं साल 2017 में उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्‍होंने नौगांवा सीट से जीत हासिल की और अब योगी कैबिनेट में पद पर हैं.

गौरतलब है कि इससे पहले भी भारतीय क्रिकेट टीम के महान कप्‍तानों में जाने जाने वाले मंसूर अली खान पटौदी ने भी सियासत में किस्मत आजमाई थी. उन्होंने भी क्रिकेट के बाद सियासत की पारी में दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा था. साल 1971 में विशाल हरियाणा पार्टी ने उन्हें टिकट देकर गुड़गांव से चुनाव लड़वाया. इसके बाद साल 1991 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर भोपाल से दांव खेला लेकिन दोनों ही बार जनता ने उन्हें नकार दिया और टाइगर पतौदी को हार का सामना करना पड़ा.

अशोक गहलोत मोदी पर बरसे, 8 ट्वीट कर पीएम को घेरा

politalks news

लोकसभा चुनाव के इस समर में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है. दिग्गज नेता एक-दूसरे को घेरने के लिए वार-पलटवार में लगे हैं. बीते सोमवार को पीएम मोदी द्वारा उदयपुर की चुनावी सभा के संबोधन में सीएम अशोक गहलोत को लेकर कटाक्ष कर कहा था कि उन्हें अपने बेटे की चिन्ता है, बाकी सीटों की नहीं. इसे लेकर सीएम गहलोत ने भीलवाड़ा के मांडल में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम पर जमकर हमले बोले और एक के बाद एक सवालों के 8 ट्वीट जारी कर पीएम मोदी को घेरा.

पीएम नरेंद्र मोदी के संबोधन को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भीलवाड़ा के मांडल में खासे आक्रामक दिखे. यहां चुनावी जनसभा में उन्होंने पीएम मोदी पर जमकर हमला बोले. यही नहीं इसके बाद सोशल मीडिया पर भी उन्होंने एक के बाद एक पलटवार किए. सीएम गहलोत ने पांच घंटे में 8 ट्वीट किए जिनमें पीएम मोदी पर सीधा हमला किया. ट्वीट में सीएम गहलोत ने कहा, ‘मोदी जी, #Rajasthan की सरकार बने हुए 3 महीने हुए हैं, पूरे 5 साल तक सरकार सेवा करेगी गरीबों की, मजदूरों की, किसानों की…कोई रोक नहीं सकता, जो कहेंगे, वह करेंगे यह राहुल गांधी जी का आदेश है हम सबको. हम पीछे हटने वाले नहीं हैं’.

पीएम मोदी पर हमला करते हुए सीएम गहलोत ने अगले ट्वीट में लिखा कि, ‘मैं झूठ बोलना महा पाप समझता हूं और मोदी जी सच बोलना पाप समझते हैं यह स्थिति है, इतना बड़ा फर्क है. दो दिन के दौरे में चार मीटिंग करी झूठ के अलावा कुछ बोले नहीं हैं. जिस देश में PM झूठ बोलेगा उस देश का लोकतंत्र खतरे में होगा, उस देश का संविधान खतरे में होगा, वह देश खतरे में होगा’.

गहलोत यहीं नहीं रूके. उन्होंने इसके अलावा एक और ट्वीट किया, जिसमें लिखा कि, ‘आपके यहां मैं तीसरी बार आया हूं. हम पूरे प्रदेश में लोकसभा क्षेत्र में 3-3 बार घूम चुके हैं और PM कहते हैं अशोक गहलोत अपने बेटे को बचाने के लिए जोधपुर में गली-गली में घूम रहा है, बाकि सीटों की चिंता नहीं है. बताइये आप इतना झूठ बोलने वाला PM आपने देखा है कभी? किसी ने देखा है कभी?’

मुख्यमंत्री गहलोत ने इसके बाद भी एक ट्वीट किया और लिखा कि, मोदी जी ने कहा CM बेशर्मी के साथ भारत के शौर्य की बजाए पाकिस्तान के दुष्प्रचार पर विश्वास करते हैं, बताइए आप? मोदी जी आपको तो महज 20 साल हुए हैं राजनीति में, मुझे 40 साल से ज्यादा समय हो गया, इस प्रकार की आप बातें कर रहे हो?आप भी CM रहे हो एक CM के बारे में PM का इस प्रकार बोलना?

इसके बाद सीएम गहलोत ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘मोदी जी ने कहा CM बेशर्मी के साथ भारत के शौर्य की बजाए पाकिस्तान के दुष्प्रचार पर विश्वास करते हैं, बताइए आप? मोदी जी आपको तो महज 20 साल हुए हैं राजनीति में, मुझे 40 साल से ज्यादा समय हो गया, इस प्रकार की आप बातें कर रहे हो?आप भी CM रहे हो एक CM के बारे में PM का इस प्रकार बोलना?’

ट्विटर पर सीएम गहलोत ने कहा, ‘मोदी जी जिस प्रकार से कहते हैं मैंने धोखा दे दिया जनता को, कर्जा माफ नहीं किया. राजस्थान के मुख्यमंत्री के बारे में जो झूठ बोल कर गए हैं उनको जवाब राजस्थान की जनता को देना है.’

दरअसल, सोमवार को पीएम मोदी ने उदयपुर में चुनावी सभा में मुख्यमंत्री गहलोत पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि यहां तो वंशवाद खुलकर है. मुख्यमंत्री इज्जत बचाने के लिए गली-गली घूम रहे हैं. उन्हें कांग्रेस नहीं, अपने बेटे की ज्यादा चिंता है. इसी को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज आक्रामक रूख में दिखे.

सनी देओल को गुरदासपुर और किरण खेर को चंड़ीगढ़ से टिकट

PoliTalks news

बीजेपी ने लोकसभा चुनावों के प्रत्याशियों की एक नई लिस्ट जारी की है. इस सूची में गुरदासपुर, चंड़ीगढ़ और होशियारपुर की सीटों के नाम हैं. लिस्ट के अनुसार, सनी देओल को गुरदासपुर से बीजेपी उम्मीदवार बनाया गया है. वहीं फिल्म अभिनेत्री किरण खेर को चं​ड़ीगढ़ से टिकट मिला है. तीसरा नाम सोम प्रकाश का है जिन्हें होशियारपुर से बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया है.

आपको बता दें कि बॉलीवुड के माचो मैन धर्मेद्र के बड़े सपुत्र सनी देओल ने आज सुबह ही बीजेपी ज्वॉइन की थी. उन्हें रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई थी. चर्चा थी कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चाह रहे थे कि सनी पंजाब की गुरदासपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ें. इसी संबंध में सनी कुछ दिन पहले अमित शाह से बीजेपी मुख्यालय में मिलने भी आए थे. तभी से चर्चा चल रही थी कि वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.

PoliTalks news

वैसे सनी अपने परिवार में फिल्मी जगत से राजनीति में कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं. उनसे पहले उनके पिता धर्मेद्र 2004 में लोकसभा चुनाव में विजश्री हासिल कर चुके हैं. बाद में उन्होंने राजनीति से मुंह मोड़ लिया. फिलहाल वह सिनेमा के पर्दे के साथ अपने फार्म हाउस में सक्रिय हैं. हेमा मालिनी भी मौजूदा चुनाव लड़ रही हैं. सनी के छोटे भाई बॉबी देओल बॉलीवुड में सक्रिय हैं.

’56 इंच का सीना तो पहले से था, अब 62 इंच का भी आ गया’

PoliTalks news

आज ढाई किलो के हाथ वाले सनी देओल बीजेपी में शामिल हो गए. उनके पंजाब की गुरूदासपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की संभावना जताई जा रही है. सनी के बीजेपी में शामिल होते ही ‘हैंडपंप मैन’ सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेनिंग में आ पहुंचे. उनके लिए ट्वीटर पर जैसे बाढ़ आ गई है. इन सब पर भारी पड़े गदर: एक प्रेम कथा के निर्देशक और फिल्म मेकर अनिल शर्मा. अनिल शर्मा ने सनी देओल के साथ की अपनी एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, ’56 इंच का सीना तो था. अब 62 इंच का भी आ गया. बधाई हो मेरे फेवरेट सनी देओल भाजपा जॉइन करने के लिए.’ इसके अलावा, दामिनी फिल्म का ‘तारीख पे तारीख’ डायलॉग वाला वीडियो भी जमकर ट्रेंड हो रहा है.

@Anilsharma_dir

@ananya116

@Hardism

@Javedakhtarjadu

@kamaalrkhan
Ye Aisa Pahla Chowkidar Hai, Jisko Koi Bhi Bura Bhala Kahkar Chala Jata Hai! Ab Kaya Karain, Chowkidar Ki Naukri Hi Aisi Hoti Hai! Job soch Samajhkar Leni Chahiye thi. https://t.co/egUTXKftwC

बाबरी विध्वंस बयान के जवाब से संतुष्ट नहीं EC, साध्वी प्रज्ञा की मुश्किलें बढ़ी

politalks news

मध्यप्रदेश की हॉट सीट भोपाल पर बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. बाबरी विध्वंस मामले पर बयान देकर फंसी साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया है. भोपाल के कमला नगर थाने में साध्वी के खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है. इसमें एक महीने की सजा या 200 रूपये के अर्थदंड या दोनों का प्रावधान है. बता दें कि टीटी नगर एसडीएम ने यह मामला दर्ज करवाया है.

बता दें कि बाबरी विध्वंस पर विवादित बयान देकर घिरी बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा को इससे पहले भोपाल जिला निर्वाचन अधिकारी ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. साध्वी ने इसका जवाब भी भेज दिया था लेकिन सोमवार को जिला निर्वाचन अधिकारी ने साध्वी के जवाब को संतोषजनक नहीं माना और साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुशंसा की.

साध्वी का जवाब क्यों हुआ अस्वीकार?
इस पूरे मामले के बाद से ही यह सवाल सवाल उठने लगा कि आखिर जिला निर्वाचन अधिकारी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के जवाब को अस्वीकार क्यों किया? बता दें कि जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा साध्वी प्रज्ञा को भेजे नोटिस का जवाब देते हुए लिखा,  ‘मैंने किसी जाति, धर्म, समुदाय और भाषा इत्यादि के बीच उन्माद या धार्मिक भावनाओं को आहत करने अथवा ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से बयान नहीं दिया था. मेरे द्वारा दिए गए बयान मेरी स्वयं की अंतरात्मा की आवाज को व्यक्त करता है.’ लेकिन भोपाल जिला निर्वाचन अधिकारी ने इस जवाब को संतोषजनक न मानते हुए अस्वीकार कर दिया.

इस बयान को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना गया है और भोपाल जिला निर्वाचन अधिकारी ने बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर दंडात्मक प्रकरण दर्ज करने को कहा है. निर्वाचन अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बयान भारत निर्वाचन आयोग के आदर्श आचार संहिता के अध्याय 4 का उल्लंघन है. गौरतलब है कि लंबी कश्मकश के बाद बीजेपी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के सामने मजबूत चेहरे के रूप में साध्वी प्रज्ञा पर मोहर लगाई है. 12 मई को यहां मतदान होना है जिसे लेकर जोर-शोर से चुनाव प्रचार जारी है.

सुप्रीम कोर्ट का अतीक अहमद को गुजरात जेल में ट्रांसफर करने का आदेश

lnvindia.com

सुप्रीम कोर्ट ने बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद को यूपी की नैनी जेल से गुजरात जेल में ट्रांसफर करने के आदेश दिए है. साथ ही इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के आदेश दिए है. यह आदेश रियल एस्टेट डीलर मोहित जायसवाल के कथित अपहरण और अत्याचार के मामले दिया गया है. अतीक को कुछ दिन पूर्व ही नैनी जेल ट्रांसफर किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद के खिलाफ लंबित सभी मामलों का जल्द निपटारा करने के साथ ही इससे जुड़े मामलों में सभी गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश भी दिए हैं. अतीक अहमद के खिलाफ़ 1979 से 2019 तक धारा 302, गैंगस्टर, आर्म्स और गुंडा एक्ट के तहत करीब 109 केस लंबित है.

अतीक अहमद एक कुख्यात अपराधी है जिसका जन्म 10 अगस्त, 1962 को हुआ था. वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाला हैं. अतीक अहमद का नाम अपराध की दुनिया में तेजी से आया और इसी के सहारे उसने राजनीति में कदम रखा. अतीक 1989 से 2002 तक इलाहाबाद पश्चिम सीट से विधायक रहा. 2004 में अतीक फुलपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बना. 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक को उम्मीदवार बनाया था लेकिन अखिलेश यादव के विरोध के बाद उसका टिकट काट दिया था. 2018 में हुए फुलपुर लोकसभा के उपचुनाव में अतीक ने जेल से भी चुनाव लड़ा लेकिन उसे उसे कामयाबी नहीं मिल पायी.

महबूबा मुफ्ती की कांटों भरी डगर, क्या खिसक गई है पीडीपी की सियासी जमीन?

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती की छटपटाहट इन दिनों उनके बयानों में साफ नजर आ रही है. लगता है अब महबूबा को अपनी सियासी जमीन के खिसकने का अहसास हो गया है. महबूबा कश्मीर की अनंतनाग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही है. दक्षिण कश्मीर में महबूबा अभी तक अजेय रही लेकिन इस बार हार के कगार पर नज़र आ रही हैं.

महबूबा कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी है. महबूबा अनंतानग सीट से 2009 और 2014 में सांसद रह चुकी हैं. महबूबा ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी. वह 1996 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक का चुनाव जीती. उसके बाद महबूबा दक्षिण कश्मीर में खासी सक्रिय रही. सेना द्वारा मारे गए आतंकवादियों के घर जाना, पत्थरबाजों को आर्मी कैंप्स से छुड़ाकर लाना और मानवाधिकार उल्लंघन का कड़ा विरोध करना उनकी कार्यशैली में शुमार हो गया. 1999 में महबूबा के पिता ने पीडीपी पार्टी का गठन किया. इसी समय महबूबा ने भी कांग्रेस में अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन तब तक उन्होंने दक्षिण कश्मीर की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना ली थी. उनकी तरफ कश्मीर के युवा आकर्षित होने लगे थे. कश्मीर अब्दुल्ला परिवार और कांग्रेस के विकल्प के रुप में पीडीपी को देखने लगा था.

इसी की बानगी 2002 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली और पीडीपी ने प्रदेश की 16 सीटों पर कब्जा किया. पीडीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बना ली. 2002 के बाद पीडीपी के लिए हालात और भी मुफीद हुए. पीडीपी की सीटें, वोट शेयर और साख, हर क्षेत्र में बरकत मिलने लगी. 2014 के चुनाव में पीडीपी 28 सीट जीतकर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी. पीडीपी का मानना तो ये था कि यह उसके स्वर्णिम काल की शुरुआत है लेकिन यह उसके गले की फांस बन गया. इस दौरान पीडीपी के हालात काफी दयनीय हो गए. इसकी वजह रही कि कश्मीर के हालात खराब होते गए और उसका सीधा असर मुफ्ती पार्टी पर पड़ा.

पीडीपी की सबसे अधिक धमक दक्षिणी कश्मीर में है. यहां के लोगों ने बीजेपी से दूर रहने के लिए पीडीपी को समर्थन दिया. चुनावों से पहले तक पीडीपी ने महबूबा और उनके पिता ने अपने हर भाषण में बीजेपी को निशाने पर रखा लेकिन चुनाव के बाद बीजेपी के समर्थन से ही सरकार बना ली. मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने और बीजेपी के निर्मल सिंह को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. कश्मीर की स्थानीय जनता को इस फैसले को लेकर नाराजगी थी. पीडीपी की तरफ से कहा गया कि प्रदेश के विकास के लिए गठबंधन हुआ है. हालांकि दोनों दलों का एंजेंड़ा अलग था तो गाडी कभी पटरी पर नहीं रही. राष्ट्रीय नेताओं के दखल के कारण ही गठबंधन चलता रहा. 2016 में मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बीमारी के कारण निधन हुआ. उसके बाद लगभग 6 महीने तक सरकार नहीं बनी. बाद में महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनी. बस यहीं से पीडीपी के लिए बुरे दौर की शुरुआत हुई.

हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के एनकांउटर के बाद पूरा कश्मीर उबल पड़ा. पत्थरबाज मारे जा रहे थे. तब महबूबा का बयान आया जो उनके लिए ही परेशानी का सबब बना. महबूबा मुफ्ती ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ मिलकर श्रीनगर में एक पत्रकार सम्मेलन को संबोधित किया. पत्रकारों ने उनसे नाबालिग़ बच्चों के मारे जाने पर सवाल किया. इस पर महबूबा का जवाब आया कि ये लोग क्या आर्मी के कैंप्स में दूध या टॉफी लेने गए थे? जवाब देते वक्त महबूबा इतने गुस्से में आ गईं कि राजनाथ सिंह को उनका हाथ पकड़कर उन्हें चुप कराना पड़ा था. इसके बाद भी कश्मीर के हालातों में सुधार नहीं हुआ जिसका नुकसान पीडीपी को उठाना पड़ा. बाद में बीजेपी ने भी पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया.

महबूबा ने अपने राजनीतिक जीवन में कुल 6 चुनाव लड़े और हर बाद आसानी से विजश्री हासिल की. लेकिन 2019 में उनके लिए हालात खराब है. उनको इसका अंदाजा पहले से है. मुफ्ती कई बार अपने चुनावी अभियान के दौरान रोने लग जाती है. कभी अपने परिवार के योगदान को जनता के बीच साझा करती है तो कभी अपनी पुरानी छवि को हासिल करने के लिए अनर्गल बयानबाजी करती है. बात करें उनकी अनंतनाग लोकसभा सीट की तो यह चार जिलों से बनती है – अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और पुलवामा.

अभी तक का हाल देखा जाए तो पुलवामा और शोपियां पिछले कुछ सालों में आतंकवाद का गढ़ बनकर उभरे हैं. यहां ज्यादा मतदान होने की संभावना दिखाई नहीं दे रही है. इन्ही दो जिलों की वजह से देश के इतिहास में पहली बार किसी एक लोकसभा सीट पर तीन चरण में मतदान हो रहा है. अनंतनाग में 23 अप्रैल को मतदान होगा. कुलगाम में 29 अप्रैल को और पुलवामा और शोपियां में चार मई को वोटिंग होगी. कांग्रेस ने अनंतनाग से पार्टी प्रदेशाध्यक्ष गुलाम अहमद मीर को प्रत्याशी बनाया है.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat