कहते हैं कि जिसने घर साधा, उसने सब साधा. राजसमंद लोकसभा सीट के सियासी संग्राम में यही बात चरितार्थ होती दिख रही है. इस सीट पर राजपूत और जाट कॉकटेल जीत की गारंटी होती है. ये बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पिछले दो चुनावों के आंकड़े ये साबित करते हैं. चुनावी बिसात बिछने से पहले बड़े-बड़े मुद्दों पर जुबानी जंग छिड़ी हुई थी लेकिन बाद में विकास, रोजगार, रेल, पानी जैसे मुद्दे गौण हुए और फिर से राजनीति की गाड़ी जातिगत ट्रैक पर पहुंच गई.
राजनीति में जाति के ट्रैक पर चलकर देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचने तक का सफर सबसे आसान माना जाता है. ऐसे में बड़े-बड़े दावे करने वाली विभिन्न राजनीतिक पार्टियां भी जाति को ही जहन में रखकर प्रत्याशियों पर दांव खेलती नजर आती हैं. राजसमंद संसदीय सीट पर गहन मंथन के बाद बीजेपी ने जयपुर की राजकुमारी दीया कुमारी पर दांव खेला हालांकि विपक्षी उन्हें बाहरी प्रत्याशी बताकर माइलेज लेने की कोशिश कर रहे हैं. अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो पलड़ा दीया कुमारी के पक्ष में काफी हद तक झुकता दिख रहा है.
राजसमंद लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाता मतदाता है जिनमें करीब दो लाख से ज्यादा रावत, पौने दो लाख जाट, पौने दो लाख राजपूत, सवा लाख ब्राह्मण, ढाई लाख के करीब एससी-एसटी, करीब एक लाख महाजन, एक लाख मुस्लिम, 57 हजार कुमावत, 55 हजार गुर्जर, 60 हजार खरबड़, 29 हजार काठात के अलावा चार लाख अन्य मतदाता भी हैं. इस बार 39 हजार नए वोटर्स भी इस लिस्ट में शामिल हुए हैं.
इन आंकड़ों पर गौर करें तो यहां रावत, राजपूत और खरबड़ वोटों को आंकड़ा साढे चार लाख के उपर है. इस लिहाज से, जिसने रावत-राजपूत वोटों को साध लिया, उसने मैदान मार लिया. आमतौर पर रावत समाज को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है. देवगढ़, भीम और ब्यावर में इनका बाहुल्य है जहां दोनों ही पार्टियां इन्हें अपने पक्ष में करने में जुटी हैं. लेकिन एससी और जाट समीकरण खेल बना और बिगाड़ सकता है.
बीजेपी से भीम-देवगढ़ के पूर्व विधायक हरिसिंह रावत टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने दीया कुमारी को उनपर तरजीह दी. हालांकि हरिसिंह को इस बार विधानसभा चुनाव में सुदर्शन सिंह के हाथों शिकस्त खानी पड़ी थी. अब उन्होंने दीया कुमारी के समर्थन में चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल रखा है. कांग्रेस से वर्तमान विधायक सुदर्शन सिंह रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने राजसमंद जिलाध्यक्ष देवकीनंदन गुर्जर पर दांव खेल दिया. वैसे भी माना जाता है कि देवकीनंदन गुर्जर सीपी जोशी के खेमे से आते हैं जिनकी लक्ष्मण सिंह से अदावत जग जाहिर है.
राजसमंद लोकसभा सीट राजसमंद, अजमेर, नागौर और पाली जिले के कई हिस्सों को मिलाकर बनी है. यह सीट मेवाड़ और मारवाड़ के मध्य की सीट है जिसके एक तरफ नागौर, दूसरी तरफ पाली और तीसरी तरफ अजमेर संसदीय सीट है. यहां 29 अप्रैल को मतदान होना है. यहां तीसरी बार चुनाव होने जा रहा है. पिछले दो चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने एक-एक बार इस सीट पर कब्जा जमाया है.
इस संसदीय सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिनमें नाथद्वारा, राजसमंद, कुंभलगढ़, भीम, ब्यावर, जैतारण, मेड़ता और डेगाना शामिल हैं. 467 किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाता हैं जिनमें 81.94 फीसदी ग्रामीण और 18.06 फीसदी शहरी मतदाता शामिल है. कुल आबादी का 23 फीसदी हिस्सा एससी-एसटी का है. इसके बाद भी दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की नजरें रावत वोट बैंक पर ही गढ़ी हुई है जिसके जरिये देश की सबसे बड़ी पंचायत की सीढ़ी को लांघा जा सके.