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प्रधानमंत्री मोदी का वाराणसी में शक्ति प्रदर्शन, कल करेंगे नामांकन दाखिल

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज दोपहर 3 बजे से वाराणसी में रोड शो कर शक्ति प्रदर्शन करेंगे. रोड शो से पहले पीएम मोदी बनारस हिंदू विश्वविद्याल में पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे. इसके बाद बीएचयू के बाहर से रोड शो की शुरुआत करेंगे. मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव में वाराणसी के साथ गुजरात की वड़ोदरा सीट से चुनाव लड़ा था जहां दोनों सीटों से उन्हें विजयश्री हासिल हुई. बाद में उन्होंने वड़ोदरा सीट छोड़ दी थी.

बात करें रोड शो की तो पांच किमी. लंबे इस रोड शो के दौरान एनडीए और बीजेपी के तमाम बड़े नेता मौजूद रहेंगे. इस मौके पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण, सुषमा स्वराज, पियूष गोयल, योगी आदित्यनाथ आदि शामिल होंगे. इनके अलावा, एनडीए के नेता शिरोमणी अकाली दल के मुखिया प्रकाश सिंह बादल, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया राम विलास पासवान भी उपस्थित रहेंगे.

शक्ति प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री मोदी शाम को गंगा आरती में शामिल होंगे. मोदी कल वाराणसी सीट से अपना नामांकन दाखिल करेंगे. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी के अ​रविंद केजरीवाल को तीन लाख सत्तर हजार वोटों से हराया था.

मौजूदा चुनावों में प्रियंका गांधी के मोदी के खिलाफ इस संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की संभावना है. हालांकि अभी तक पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं किया है. समाजवादी पार्टी ने यहां से शालिनी यादव को प्रत्याशी बनाया है.

ग्राउंड रिपोर्ट: डूंगरपुर-बांसवाड़ा में मोदी-बीटीपी के बीच फंसी कांग्रेस

इस बार के लोकसभा चुनाव में शायद डूंगरपुर-बांसवाड़ा संसदीय सीट ही राजस्थान की इकलौती सीट है जहां करीब एक दशक बाद त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है. यहां के आदिवासियों में बीटीपी पार्टी बेहद लोकप्रिय होती जा रही है. विधानसभा में 2 सीट जीतकर आयी भारतीय ट्राइबल पार्टी लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को कड़ी टक्कर दे रही है. बीटीपी पड़ोसी राज्य गुजरात की एक पार्टी के तर्ज पर यहां पनपी थी. बीटीपी से कांतिलाल रोत मैदान में है. बीजेपी ने पूर्व मंत्री कनकमल कटारा और कांग्रेस ने तीन बार सांसद रहे ताराचंद भगोरा को इस सीट से टिकट दिया है.

भगोरा कभी नहीं हारे लेकिन इस बार बीटीपी चुनौती
ताराचंद भगोरा ने अब तक तीन लोकसभा चुनाव लड़े और तीनों में विजयश्री हासिल की है. कोई चुनाव अभी तक गंवाया नहीं है लेकिन इस बार बीटीपी ने समीकरण बिगाड़ दिए हैंं. यहां तक की कांग्रेस के वोटर भी बीटीपी की बात कर रहे हैंं. गुटबाजी बैलेंस करने के लिए सीएम अशोक गहलोत इसी महीने में दो बार बांसवाड़ा आ चुके हैं. बागीदौरा विधायक महेन्द्रजीत सिंह इस बार पत्नी रेशमा मालवीय को टिकट नहीं देने से अंदरखाने नाराज चल रहे हैं. वहीं मंत्री बनने से यहां अर्जुन बामनिया का एक अलग गुट खड़ा हो गया है. लिहाजा स्थिति सुधारने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बेणेश्वर में सभा करानी पड़ी.

कनकमल को इस बार भी मोदी लहर का आसरा
बीजेपी को सिर्फ दो बार यहां जीती मिली वो भी सिर्फ घाटोल और बांसवाड़ा विधानसभा के दम पर. 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर में मानशंकर निनामा 91,916 वोटों से जीते थे. घाटोल से ही 46 हजार वोट की लीड थी. इस बार बीटीपी ने फांस रखा है. बीजेपी ने संघ से जुड़े कनकमल कटारा को इस बार टिकट दिया और निनामा का वोट काट दिया. कटारा को पूरी तरह से मोदी नाम पर ही जीत का आसरा है.

यूथ में अच्छी पकड़ वाले कांतिलाल रोत मैदान में
बीटीपी ने यहां से कांतिलाल रोत को उतारा है जो बांसवाड़ा और डूंगरपुर के कॉलेजों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा का वर्चस्व कायम कर चुके हैं. यूथ में उनकी अच्छी खासी पकड़ है. उन्हें आदिवासी हित की बातों से वोट मिल रहे हैं. बीटीपी की मजबूती का आधार यूथ और आदिवासियों का मिल रहा समर्थन है. बीटीपी दोनों दलों को बराबर नुकसान पहुंचा रही है. जानकारों की मानें तो ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता दिख रहा है. यही वजह है कि स्थानीयजन कांग्रेस के तीसरे स्थान पर रहने तक का दावा करने लग रहे हैं. उधर, बीजेपी मोदी फैक्टर के चलते बीटीपी से नुकसान होना नहीं मान रही.

बांसवाडा-डूंगरपुर चुनाव के मुद्दे
मुद्दों की बात करें तो यहां सबसे बड़ा मुद्दा है डूंगरपुर-रतलाम वाया बांसवाड़ा रेल परियोजना के काम को फिर से शुरू कराना, उदयपुर-अहमदाबाद अवाम परिवर्तन और नेशनल हाइवे 927 स्वरुपगंज से रतलाम वाया डूंगरपुर-बांसवाड़ा का काम है. इसके साथ ही सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा सहित आधारभूत सुविधाओं का विकास करना और आदिवासी समूदाय को विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जाना भी प्रमुख मुद्दों में शामिल है लेकिन चुनाव के दौरान ये मुद्दे मोदी शोर और बीटीपी की एंट्री के जोर के बीच गायब हो गए हैं.

सीटों का इतिहास
डूंगरपुर-बांसवाड़ा संसदीय सीट के इतिहास की बात करें तो यहां अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में से 12 बार कांग्रेस, दो बार बीजेपी और दो बार जनता पार्टी को जीत मिली है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के मानशंकर निनामा ने कांग्रेस के रेशम मालवीय को 91,916 मतों से पराजित किया था. निनामा को 5,77,433 और मालवीय को 4,85,517 वोट मिले थे.

1952-57 – भीखा भाई – कांग्रेस
1957-62 – पीबी भोगजी भाई- कांग्रेस
1962-67 – रतन लाल – कांग्रेस
1967-71 हीरजी भाई – कांग्रेस
1971-77 हीरा लाल डोडा – कांग्रेस
1977-80 हीरा भाई – जनता पार्टी
1980-84 भीखा भाई – कांग्रेस
1984-89 प्रभु लाल रावत – कांग्रेस
1989-91 हीरा भाई – जनता पार्टी
1991-96 प्रभु लाल रावत – कांग्रेस
1996-98 ताराचंद भगोरा – कांग्रेस
1998-99 महेंद्रजीत सिंह मालवीय – कांग्रेस
1999-04 ताराचंद भगोरा – कांग्रेस
2004-2009 धन सिंह रावत – भारतीय जनता पार्टी
2009-2014 ताराचंद भगोरा – कांग्रेस
2014 – अब तक मानशंकर निनामा – भारतीय जनता पार्टी

क्या हैं यहां का जातीय समीकरण
जातिगत समीकरणों पर गौर करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 29,51,764 है जिसका 92.67 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 7.33 प्रतिशत हिस्सा शहरी आबादी है. आदिवासी बहुल बांसवाड़ा संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित मेवाड़-वागड़ क्षेत्र का हिस्सा है. अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या कुल आबादी का 75.91 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जाति 4.16 फीसदी हैं.

 

राजसमंद में जातीय समीकरणों को साधने में जुटे दीया-देवकी

कहते हैं कि जिसने घर साधा, उसने सब साधा. राजसमंद लोकसभा सीट के सियासी संग्राम में यही बात चरितार्थ होती दिख रही है. इस सीट पर राजपूत और जाट कॉकटेल जीत की गारंटी होती है. ये बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पिछले दो चुनावों के आंकड़े ये साबित करते हैं. चुनावी बिसात बिछने से पहले बड़े-बड़े मुद्दों पर जुबानी जंग छिड़ी हुई थी लेकिन बाद में विकास, रोजगार, रेल, पानी जैसे मुद्दे गौण हुए और फिर से राजनीति की गाड़ी जातिगत ट्रैक पर पहुंच गई.

राजनीति में जाति के ट्रैक पर चलकर देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचने तक का सफर सबसे आसान माना जाता है. ऐसे में बड़े-बड़े दावे करने वाली विभिन्न राजनीतिक पार्टियां भी जाति को ही जहन में रखकर प्रत्याशियों पर दांव खेलती नजर आती हैं. राजसमंद संसदीय सीट पर गहन मंथन के बाद बीजेपी ने जयपुर की राजकुमारी दीया कुमारी पर दांव खेला हालांकि विपक्षी उन्हें बाहरी प्रत्याशी बताकर माइलेज लेने की कोशिश कर रहे हैं. अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो पलड़ा दीया कुमारी के पक्ष में काफी हद तक झुकता दिख रहा है.

राजसमंद लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाता मतदाता है जिनमें करीब दो लाख से ज्यादा रावत, पौने दो लाख जाट, पौने दो लाख राजपूत, सवा लाख ब्राह्मण, ढाई लाख के करीब एससी-एसटी, करीब एक लाख महाजन, एक लाख मुस्लिम, 57 हजार कुमावत, 55 हजार गुर्जर, 60 हजार खरबड़, 29 हजार काठात के अलावा चार लाख अन्य मतदाता भी हैं. इस बार 39 हजार नए वोटर्स भी इस लिस्ट में शामिल हुए हैं.

इन आंकड़ों पर गौर करें तो यहां रावत, राजपूत और खरबड़ वोटों को आंकड़ा साढे चार लाख के उपर है. इस लिहाज से, जिसने रावत-राजपूत वोटों को साध लिया, उसने मैदान मार लिया. आमतौर पर रावत समाज को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है. देवगढ़, भीम और ब्यावर में इनका बाहुल्य है जहां दोनों ही पार्टियां इन्हें अपने पक्ष में करने में जुटी हैं. लेकिन एससी और जाट समीकरण खेल बना और बिगाड़ सकता है.

बीजेपी से भीम-देवगढ़ के पूर्व विधायक हरिसिंह रावत टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने दीया कुमारी को उनपर तरजीह दी. हालांकि हरिसिंह को इस बार विधानसभा चुनाव में सुदर्शन सिंह के हाथों शिकस्त खानी पड़ी थी. अब उन्होंने दीया कुमारी के समर्थन में चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल रखा है. कांग्रेस से वर्तमान विधायक सुदर्शन सिंह रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने राजसमंद जिलाध्यक्ष देवकीनंदन गुर्जर पर दांव खेल दिया. वैसे भी माना जाता है कि देवकीनंदन गुर्जर सीपी जोशी के खेमे से आते हैं जिनकी लक्ष्मण सिंह से अदावत जग जाहिर है.

राजसमंद लोकसभा सीट राजसमंद, अजमेर, नागौर और पाली जिले के कई हिस्सों को मिलाकर बनी है. यह सीट मेवाड़ और मारवाड़ के मध्य की सीट है जिसके एक तरफ नागौर, दूसरी तरफ पाली और तीसरी तरफ अजमेर संसदीय सीट है. यहां 29 अप्रैल को मतदान होना है. यहां तीसरी बार चुनाव होने जा रहा है. पिछले दो चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने एक-एक बार इस सीट पर कब्जा जमाया है.

इस संसदीय सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिनमें नाथद्वारा, राजसमंद, कुंभलगढ़, भीम, ब्यावर, जैतारण, मेड़ता और डेगाना शामिल हैं. 467 किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाता हैं जिनमें 81.94 फीसदी ग्रामीण और 18.06 फीसदी शहरी मतदाता शामिल है. कुल आबादी का 23 फीसदी हिस्सा एससी-एसटी का है. इसके बाद भी दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की नजरें रावत वोट बैंक पर ही गढ़ी हुई है जिसके जरिये देश की सबसे बड़ी पंचायत की सीढ़ी को लांघा जा सके.

‘मोदी बायोपिक’ रिलीज पर रोक बरकरार, चुनाव आयोग ने बताया ‘हैजियोग्राफी’

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लोकसभा चुनाव में आदर्श आचार संहिता की कड़ाई से पालना को लेकर निर्वाचन आयोग का कड़ा रूख देखा जा रहा है. नेताओं के विवादित बयानों पर सख्ती दिखाने के साथ-साथ पीएम नरेंद्र मोदी पर आधारित वेब सीरीज पर भी आयोग की गाज गिर चुकी है. इसके अलावा विवेक ओबरॉय स्टारर पीएम नरेंद्र मोदी की बायोपिक की रिलीज भी फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने बायोपिक देखकर इसे ‘हैजियोग्राफी’ दिया है और मतदान तक रिलीज पर रोक बरकरार रखी है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ पर आचार संहिता के उल्लंघन को देखते हुए रिलीज पर रोक बरकरार रखी गई है. गौरतलब है कि पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन विभाग को पीएम नरेंद्र मोदी पर आधारित अभिनेता विवेक ओबरॉय अभिनीत फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ देखने को कहा था. जिस पर बीते 17 अप्रैल को निर्वाचन आयोग ने यह बायोपिक देखने के बाद 22 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में अपना फैसला सौंपा है. सूत्रों के अनुसार आयोग ने चुनाव समाप्ति के बाद ही इस फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दी है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी पर आधारित यह फिल्म अब देश में 19 मई को लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद ही रिलीज हो सकेगी. जिसके बाद अब निर्देशक ओमंग कुमार द्वारा डायरेक्ट की गई इस बायोपिक मूवी की रिलीज ठंडे बस्ते में चली गई है. अंग्रेजी अखबार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में निर्वाचन आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट में लिखा गया है कि, यह ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ फिल्म बायोग्राफी से ज्यादा एक हैजियोग्राफी (जिसमें किसी संत का गुणगान किया गया हो) है. फिल्म की रिलीज चुनावी संतुलन को बिगाड़ेगी, बीजेपी को फायदा पहुंचेगा. जिसके बाद अब इस फिल्म की रिलीज टल गई है.

इसके अलावा आयोग की रिपोर्ट में लिखा है- ”फिल्म में नरेंद्र मोदी का करेक्टर साफ तौर पर स्पष्ट है. कई सीन्स ऐसे हैं जिमसें विपक्ष को भ्रष्ट और गलत रोशनी में दिखाया गया है. उनके नेताओं को इस तरह पेश किया गया है कि उनकी असली पहचान साफ तौर पर जाहिर होती है. इस पर कमेटी के विचार में आचार संहिता की अवधि के दौरान फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ की पब्लिक स्क्रीनिंग विशेष राजनीतिक दल को फायदा पहुंचाएगी. इसलिए फिल्म को 19 मई से पहले रिलीज होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.”

बता दें कि चुनाव आयोग की कमेटी के मुताबिक 135 मिनट की यह ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ एक राजनीतिक माहौल बनाती है. फिल्म में एक शख्स को सीन्स, स्लोगन और सिंबल के माध्यम से बहुत बड़े पद पर खड़ा करती है. फिल्म अंत में एक खास शख्स को संत का दर्जा देती है. गौरतलब है कि ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ फिल्म पहले 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी. लेकिन अब चुनाव आयोग के अंतिम फैसले के बाद दर्शकों को पीएम मोदी की इस बायोपिक के लिए चुनाव खत्म होने तक का तो इंतजार करना ही पड़ेगा.

गुजरात में पीएम मोदी के रोड़ शो पर चुनाव आयोग ने मांगी रिपोर्ट

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अहमदाबाद में तीसरे चरण के मतदान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड़ शो के मामले में चुनाव आयोग ने गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट तलब की है. कांग्रेस ने चुनाव आयोग में इस मामले को लेकर शिकायत की थी. साथ ही चुनाव आयोग से मांग की थी कि पीएम मोदी के चुनाव प्रचार पर 72 घंटे की रोक लगाई जाएं.

बता दें कि तीसरे चरण में गुजरात की सभी सीटों के लिए वोट डाले गऐ थे. इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी वोट डालने अहमदाबाद पहुंचे थे. वोट देने के बाद पीएम मोदी ने यहां खुली जीप में यात्रा की थी और कुछ देर वो पैदल भी चले थे. साथ ही उन्होंने यहां खड़े लोगों और पत्रकारों से भी मुलाकात भी की थी. इसे लेकर कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेस कर पीएम मोदी पर आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लगाए. जिस पर ध्यान देते हुए चुनाव आयोग ने इस मामले पर गुजरात मुख्य निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट तलब की है.

इसके साथ ही चुनाव आयोग ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बयान पर भी रिपोर्ट तलब की है. बता दें कि पश्चिम बंगाल के कृष्णा नगर में एक चुनावी रैली के दौरान अमित शाह ने वायु सेना को मोदी की वायुसेना कहकर संबोधित किया था. जिसे लेकर आयोग ने रिपोर्ट मांगी है. चुनाव आयोग आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर बहुत सख्त है. आयोग ने हाल ही में मायावती, योगी आदित्यनाथ, आजम खान, मेनका गांधी, नवजोत सिंह सिद्दु को आचार संहिता उल्लंघन करने पर निश्चित समय के लिए चुनाव प्रचार पर बैन लगाया था.

चुनावी परिणाम खराब तो छिनेंगे पद, कटेंगे टिकट: कैप्टन अमरिंदर

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देश में लोकसभा चुनाव का रोमांच चरम पर है. हर दल अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित है. बीजेपी सत्ता में बरकरार रहना चाहती है वही कांग्रेस सत्ता में वापसी को बेकरार है. चुनाव जीतने की कोशिश में दोनों दल किसी भी प्रकार की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. कांग्रेस को पंजाब से सबसे ज्यादा उम्मीद है. यहां साल 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस भारी बहुमत के साथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थी. अब पार्टी इन लोकसभा चुनाव में साल 2017 का प्रदर्शन दोहराना चाहती है. इसे लेकर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर ने खास रणनीति बनाई है.

पंजाब सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी सरकार के सभी मंत्रियों व विधायकों को सख्त चेतावनी दी है. कैप्टन ने साफ कहा कि जिन सीटों पर पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं करेगी, उन इलाकों के मंत्रियों की मंत्रिमण्डल से छुट्टी कर दी जाएगी. वहीं ये चेतावानी विधायकों भी दी गई है. जिन विधायकों के क्षेत्र में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहेगा. आने वाले विधानसभा चुनाव में उसका टिकट काट दिया जाएगा.

बता दें कि पंजाब में कुल 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण यानी 12 मई को मतदान होना है. पंजाब में इस बार कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बीजेपी-अकाली दल के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. पंजाब में साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिरोमणि अकाली दल को 6 सीट, कांग्रेस को 3 और आम आदमी पार्टी को 4 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 77 सीट, आम आदमी पार्टी को 20 सीट, शिरोमणी अकाली दल 15 सीट, बीजेपी को 3 सीट और लोक इंसाफ पार्टी को 2 सीट मिली थी. बीजेपी और अकाली दल ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था.

बीजेपी ने पंजाब की गुरदासपुर संसदीय सीट से मशहूर फिल्मी हस्ती को चुनाव मैदान में उतारकर हॉट सीट बना दिया है. बीजेपी ने इस बार गुरदासपुर से फिल्म अभिनेता सनी देओल को उम्मीदवार बनाया है. यहां उनका मुकाबला कांग्रेस के सुनील जाखड़ से होगा जो वर्तमान में गुरदासपुर से सांसद है. मशहूर अभिनेता विनोद खन्ना भी इस सीट से 4 बार सांसद रह चुके है. विनोद खन्ना के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यहां कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने जीत हासिल की थी.

साध्वी प्रज्ञा को राहत, कोर्ट ने खारिज की चुनाव लड़ने पर रोक की याचिका

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मालेगांव बम धमाकों की आरोपी और भोपाल से बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा को एनआईए कोर्ट ने राहत दी है. कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर चुनाव लड़ने से रोकने की याचिका को खारिज किया है. मुंबई की एनआईए कोर्ट में सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने अपना हस्ताक्षर ही नहीं किया है. याचिकाकर्ता के वकील की ओर से कोर्ट में कहा गया कि साध्वी प्रज्ञा को स्वास्थ्य के आधार पर जमानत दी गई है. लेकिन वो आराम से चुनाव प्रचार कर रही है. साध्वी ने एक इंटरव्यू में भी अपने सेहत में सुधार होने की बात को स्वीकारा है.

साध्वी के खिलाफ मालेगांव धमाकों के एक पीड़िता के पिता ने एनआईए कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें साध्वी के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की गई थी. कोर्ट ने इस मामले में साध्वी से जवाब मांगा था. जिसमें साध्वी की तरफ से कहा गया कि याचिका राजनीति से ओत-प्रोत है. कोर्ट का समय जाया करने पर याचिकाकर्ता के ऊपर जुर्माना लगाना चाहिए. वहीं साध्वी के वकील ने कोर्ट को कहा कि वे इलाज ले रहीं हैं और उनकी सेहत में सुधार भी है. वहीं एक डॉक्टर हमेशा उनके साथ रहता है. साध्वी विचारधारा और देश के आधार पर चुनाव लड़ रही हैं. वह साबित करना चाहती है कि भगवा आतंकवाद जैसा कुछ भी नहीं है.

बता दें कि महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में बम धमाका हुआ था जिसमें 8 लोगों की जान चली गई थी साथ ही 100 से अधिक लोग घायल हुए थे. इस मामले में साध्वी प्रज्ञा समेत अनेक लोगों को आरोपी बनाया गया था. एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट दी थी. ये मामला अभी कोर्ट में लंबित है. साध्वी प्रज्ञा अभी जमानत पर बाहर है. साध्वी प्रज्ञा को बीजेपी ने मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. उनका सामना इस सीट पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह से है. दिग्विजय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.

ग्राउंड रिपोर्ट: उदयपुर सीट पर मोदी के शोर में दबे स्थानीय मुद्दे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से सटी उदयपुर सीट पर लोगों की जुबान से स्थानीय मुद्दे गायब हैं और मोदी का शोर है. ‘पॉलिटॉक्स’ ने यहां के सैकड़ों लोगों से बात की और ज्यादातर ने मोदी को वोट देने की बात कही. इनमें से कई ने मौजूदा सांसद अर्जुनलाल मीणा के कामकाज को अच्छा नहीं बताया, फिर भी मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए उन्हें फिर से वोट देने की बात कही. 
 
जनता के इस रुख से बीजेपी उम्मीदवार अर्जुन मीणा का चेहरा चमका हुआ है और कांग्रेस प्रत्याशी रघुवीर मीणा मायूस हैं. एक दौर था जब यह सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. अब तक हुए 16 चुनाव में कांग्रेस ने 10 बार जीत दर्ज की है लेकिन ये आंकड़े रघुवीर मीणा का हौसला नहीं बढ़ा रहे. कांग्रेस के कार्यकर्ता खुले मन से यह स्वीकार कर रहे हैं कि मुकाबले में पार्टी की स्थिति कमजोर है.
 
डॉ. सीपी जोशी और गिरिजा व्यास की नाराजगी के चलते रघुवीर मीणा अकेले ही चुनाव की कमान संभाले हुए हैं. रही-सही कसर विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर जीत दर्ज कर सबको चौंका देने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी की सक्रियता ने पूरी कर रखी है. बीटीपी ने बिरधी लाल को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस को यह आशंका है कि बिरधी लाल आसपुर और खेरवाड़ा विधानसभा क्षेत्रों में रघुवीर मीणा के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे.
 
मतदान से पहले ही खुद को मुकाबले से बाहर मान रही कांग्रेस संघर्ष की स्थिति तक पहुंचने के जतन कर रही है. पार्टी के उम्मीदवार रघुवीर मीणा को यह डर सता रहा है कि पिछले चुनाव की तरह मुकाबला एक तरफा नहीं हो जाए. आपको बता दें कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अर्जुन मीणा ने कांग्रेस के रघुवीर मीणा को 2,36,762 मतों के भारी अंतर से पराजित किया था. अर्जुन को 6,60,373 वोट तो रघुवीर को 4,23,611 वोट मिले थे. 
 
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट आदिवासी बाहुल्य है. यहां लगभग 20 लाख मतदाता हैं. इनमें 55 से 60 प्रतिशत एसटी वर्ग, 10 प्रतिशत ओबीसी, 7 प्रतिशत ब्राह्मण, 6 प्रतिशत राजपूत और 5 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग के वोटर हैं. पहले के चुनावों के ट्रेंड पर नजर डालें तो राजपूत, ब्राह्मण, वैश्यों का झुकाव बीजेपी के पक्ष में और जाट, गुर्जर, मीणा और दलितों का झुकाव कांग्रेस के पक्ष में रहा है. वहीं अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों का मत स्थानीय समीकरण के हिसाब से दोनों दलों में बंटता रहा है. 
 
उदयपुर लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीटों पर भी आदिवासी मीणा समुदाय के वोटर सर्वाधिक हैं. बीटीपी के मुकाबले में आने के बाद मीणा आदिवासी समाज के वोट तीन जगह बंटते हुए दिखाई दे रहे हैं. तीनों दल इसमें से ज्यादा संख्या अपने पक्ष में करने के लिए पसीना बहा रहे हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि आदिवासी वोट बराबर बंटने पर भी उसका पलड़ा भारी रहेगा, क्योंकि बाकी जातियों के एकमुश्त वोट उसे मिलेंगे. 
 
बीजेपी उम्मीदवार अर्जुन मीणा की बात करें तो उनके चुनाव प्रचार की कमान पूरी तरह से नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के हाथों में है. वे ही अर्जुन के रणनीतिकार हैं. कटारिया का मेवाड़ में कितना प्रभाव है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बावजूद इस क्षेत्र में पार्टी का प्रदर्शन कांग्रेस से अच्छा रहा.  
 
मेवाड़ और वागड़ में दोनों दलों के दिग्गज सभाएं कर चुके हैं. पीएम नरेंद्र मोदी की उदयपुर में सभा से बीजेपी के पक्ष में माहौल और पुख्ता हुआ है. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बेणेश्वर में सभा हो चुकी है. हालांकि इससे बाद भी कांग्रेस उत्साहित नहीं है. सत्ता होने के बावजूद राहुल की सभा में 30 हजार लोग बमुश्किल जुट पाए. 
 
ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि मतदान के दिन लोगों का रुख क्या रहता है. उदयपुर में बीजेपी के अनुकूल दिख रहा माहौल बरकरार रहता है या कांग्रेस मुकाबले में आने में सफल होती है? फिलहाल तो इस सीट पर बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है. 

बीजेपी मंत्री ने पार्टी पर लगाया गौ हत्या करने का आरोप

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बीजेपी सरकार में एक मंत्री ने खुद अपनी ही पार्टी पर गौ हत्या करने के आरोप लगाएं हैं. मंत्री ने लोकसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद अपने ट्वीटर हैंडल से पार्टी पर निशाना साधते हुए यह आरोप लगाया. नेता का नाम है केन्द्रीय मंत्री विजय सांपला. उन्होंने अपने ट्वीटर अकाउंट से ‘चौकीदार’ भी हटा लिया है.

सांपला मोदी सरकार में सामाजिक न्याय अधिकारिता महकमें के मंत्री है. सांपला ने 2014 के चुनाव में पंजाब की होशियारपुर लोकसभा से चुनाव जीता था लेकिन पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटकर फगवाड़ा के विधायक सोमप्रकाश को थमा दिया. सोमप्रकाश इस सीट से 2009 में भी चुनाव लड़ चुके है लेकिन तब उन्हें मामूली अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा था.

सांपला ने अपने ट्वीटर में कहा, ‘बहुत दुख हुआ भाजपा ने गऊ हत्या कर दी.’ इससे पहले किए एक ​ट्वीट में उन्होंने अपने कार्यकाल में क्षेत्र में कराए विकास कार्यों को गिनाते हुए पार्टी से पूछा कि बिना किसी गलती के उनका टिकट क्यों काटा गया. क्या सांसद के तौर पर उनके प्रदर्शन में कोई कमी थी?

बता दें, विजय सांपला बीजेपी के बड़े नेता है और पंजाब बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके है. 2014 में वह पंजाब की होशियारपुर सीट से सांसद चुने गए. सांपला ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत सरपंच से की थी. सांपला 1998 में सोफी गांव के सरपंच के पद पर निर्वाचित हुए थे. सोमप्रकाश से सांपला की अदावत पुरानी है. सांपला रविदास सम्प्रदाय से आते है जिसकी संख्या पंजाब के दोआबा इलाके में बहुत ज्यादा है जिसका नुकसान बीजेपी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है.

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