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बीजेपी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जैसे गूंगे-बहरे दलित चाहिए : उदित राज

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उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से भाजपा की लोकसभा का टिकट नहीं मिलने पर नाराज उदित राज के कांग्रेस में आते ही सुर बदल गए हैं. जयपुर में प्रेसवार्ता के दौरान उदित राज ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लेकर विवादास्पद बयान दिया है. सांसद राज ने कहा कि भाजपा को सिर्फ दलित चाहिए, लेकिन दलित नेता नहीं चाहिए. भाजपा को रामनाथ कोविन्द जैसे गूंगे-बहरे दलित चाहिए, जो ना तो बोल सके और ना दलितों की आवाज उठा सके. बताइए कोविंद में कौन सी योग्यता है?

इससे आगे बढ़ते हुए उदित राज ने कहा कि यदि मैं जुबान नहीं खोलता तो शायद मैं भी भाजपा में प्रधानमंत्री बन जाता. उन्होंने सीधे तौर पर राष्ट्रपति पर निशाना साधते हुए कहा कि कोविंद साल 2014 में मेरे पास सिफारिश कराने आए थे. मेरे अलावा कोई भी पार्लियामेंट दलितों के मामलों में नहीं बोला.

वहीं उदित राज ने कहा कि, पिछले साल दो अप्रैल को हुए भारत बंद में भी मैं शामिल था, क्योंकि सरकार ने गलत किया था. बीजेपी पर निशाना साधते हुए उदित बोले कि, अमित शाह ने कहा था कि सबरीमाला मन्दिर मामले में अदालत को ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए. मुस्लिम महिलाओं के लिए तो बोलते हैं लेकिन क्या हिन्दू महिलाओं पर इनके दोहरे मापदंड हो जाते हैं.

उदित राज ने बीजेपी नेताओं पर निशाना साधते हुए आगे कहा कि, ये लोग राष्ट्र भक्त नहीं बल्कि दलित विरोधी है. मैं भाजपा की 15 से 20 सीट कम करवाने के लिए कांग्रेस में आया हूं. अगर मुझे संसद में नहीं पहुंचाओगे तो मैं ऐसा ही करूँगा. ये गिव एंड टेक का मामला है. वहीं, उदित राज ने सीधे तौर पर पीएम मोदी पर हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में राष्ट्र सुरक्षित नहीं है.

गौरतलब है कि इससे पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता व राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी राष्ट्रपति को लेकर विवादित टिप्पणी कर चुके हैं. गहलोत ने एक लेख का हवाला देते हुए कहा था कि गुजरात चुनाव में दलित वोटों का फायदा लेने के लिए रामनाथ कोविंद को बीजेपी ने राष्ट्रपति बनाया है. हांलाकि अशोक गहलोत ने बाद में अपने इस बयान को लेकर सफाई दी थी.

मोदी के भरोसे बीकानेर में जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में अर्जुन मेघवाल

बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के प्रत्याशी और अब तक बीकानेर संसदीय सीट से सबसे ज्यादा मतों से जीतने का रिकॉर्ड रखने वाले अर्जुनराम मेघवाल इस बार जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं. अपने पहले दो चुनावों से इतर इस बार अर्जुन राम मेघवाल के लिए चुनाव जरा टेढ़ा है. वे अपनों के विरोध से जूझ रहे हैं.

टिकट मिलने के साथ ही अर्जुनराम मेघवाल पूरी तरह से सक्रिय हो गए थे. यही कारण रहा कि टिकट घोषित होने से पहले ही दिल्ली के गलियारों को छोड़कर बीकानेर में पूरी तरह से डेरा डाल दिया था, क्योंकि उन्हें पता था अगर अगले पांच साल दिल्ली के सियासी गलियारों में धमक करनी है तो समय रहते बीकानेर की सड़कों को नापना होगा.

टिकट घोषणा में कांग्रेस से बाजी मारने वाले अर्जुन मेघवाल प्रचार के पहले दौर में अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के मदन मेघवाल से पिछड़ गए थे, क्योंकि कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी का विरोध पूरी तरह से मुखर हो चुका था और अर्जुनराम को प्रचार अभियान की शुरुआत के साथ ही काले झंडे दिखाकर भाटी समर्थकों विरोध किया था. वहीं, दूसरी ओर सूबे के मुखिया अशोक गहलोत बीकानेर में ताबड़तोड़ सभाएं कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना रहे थे.

नामांकन तक लगातार हुए विरोध के बावजूद अर्जुनराम प्रचार को धार देने में कामयाब हुए हैं. दूसरी ओर जोधपुर समेत 13 सीटों पर हुए प्रथम चरण चुनाव में जिले के बड़े कांग्रेसी नेताओं, जिनके भरोसे मदन मेघवाल टिकट लेकर आए या यूं कहें कि जिन लोगों ने मदन मेघवाल को टिकट दिलाया, उनमें से मंत्री बीडी कल्ला जोधपुर और भंवर सिंह भाटी सिरोही में व्यस्त हो गए. वहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी अन्य सीटों पर प्रचार में चले गए.

ऐसे में मदन मेघवाल अकेले ही प्रचार में घूमते रहे हालांकि अन्य विधानसभाओं में स्थानीय नेता उनके साथ रहे, लेकिन यह वही नेता हैं जो मदन मेघवाल के समानांतर दूसरे प्रत्याशी को टिकट देने की पैरवी कर रहे थे. लिहाजा मदन मेघवाल पूरी तरह से प्रचार में अकेले नजर आए. यानी प्रचार के दूसरे दौर में अर्जुन मेघवाल ने मदन मेघवाल पर बढ़त हासिल कर ली है. अर्जुनराम ने पूरे लोकसभा क्षेत्र को कवर कर लिया है.

दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस पूरी तरह से बीजेपी उम्मीदवार के विरोध के भरोसे खुद की जीत मानकर बैठी है तो अर्जुनराम खुद के विरोध पर मोदी के नाम के छींटे डालकर उसको शांत करने का प्रयास कर रहे हैं. दोनों प्रत्याशियों में संपर्क के मामले में अर्जुन का पलड़ा निश्चित रूप से मदन से भारी है, क्योंकि वे तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और उनके पास पार्टी के साथ ही खुद के समर्थकों की फौज है.

दूसरी ओर मदन मेघवाल को खुद का चेहरा बता कर पार्टी नेताओं और अर्जुन के विरोध में वोट का ही भरोसा है. उनको पहली बार चुनावी मैदान में होने की वजह से पहचान और परिचय से जूझना पड़ रहा है. लोकसभा क्षेत्र में आम मतदाताओं से ही नहीं, कांग्रेसी कार्यकर्ता से भी मदन मेघवाल को रूबरू होना पड़ रहा है.

वहीं, इन सबके बीच बीजेपी के प्रदेश और जिला संगठन के बड़े नेता पूरी तरह से अर्जुन मेघवाल के लिए लामबंद होकर काम करते हुए नजर आ रहे हैं. बीजेपी ने यहां प्रदेश महामंत्री कैलाश मेघवाल, झुंझुनूं से दशरथ सिंह शेखावत को टास्क देकर कैंप करवा दिया है. कांग्रेस की बात करें तो स्थानीय संगठन और विधानसभा के चुनाव में जीते और हारे प्रत्याशी ही मदन मेघवाल के लिए सहारा हैं.

बीकानेर में मतदान 6 मई को है. मदन मेघवाल ने 18 अप्रैल को नामांकन दाखिल किया था. उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट बीकानेर आए थे. इसके बाद कांग्रेस का कोई बड़ा नेता बीकानेर नहीं आया है. यानी प्रचार पूरी तरह से प्रत्याशी मदन मेघवाल के कंधों पर ही है. उन्हें पहले चरण का मतदान होने के बाद बड़े नेताओं के सक्रिय होने की उम्मीद है.

बीजेपी की बात करें तो पार्टी के बड़े नेता लगातार बीकानेर का दौरा कर रहे हैं. सबसे बड़ा दौरा 3 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होगा. प्रचार खत्म होने से ठीक एक दिन पहले होने वाली यह सभा जीत-हार तय करने में अहम पड़ाव साबित होगी मोदी के नाम पर वोट मांग रहे अर्जुनराम मेघवाल को पीएम की सभा से जीत की हैट्रिक लगने की उम्मीद है.

राहुल गांधी के हलफनामें पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामें को लेकर कोर्ट ने नाराजगी जताई है. यह मामला प्रधानमंत्री मोदी के पर राहुल गांधी के बयान से जुड़ा है. राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में यह कहा था कि ‘’अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार चोर है.’’ इस बयान को लेकर बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी.

अवमानना मामले में आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के वकील से पूछा कि जब हमारे तरफ से ऐसा कुछ नहीं कहा गया तो आपकी (राहुल गांधी) तरफ से ऐसा क्यों कहा जा रहा है. साथ ही चीफ जस्टिस रंजन गोगाई ने कहा कि आपने दूसरा हलफनामा क्यों दायर किया. जबकि आपने इसमें पूरा खेद नहीं जताया है. राहुल गांधी की तरफ से उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने आज तीन गलतियों को लेकर माफी मांगी. इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले काफी समय से राफेल विमान खरीद में कथित घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साध रहे हैं. राहुल ने इसी मामले में चौकीदार चोर है का नारा दिया है. इसी के जवाब में बीजेपी ‘’मैं भी चौकीदार’’ कैंपेन को लाई थी.

बीएसपी उम्मीदवार के कांग्रेस में शामिल होने पर भड़की मायावती

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देश में लोकसभा चुनावों में नेताओं के दल बदलने का सिलसला जारी है. इसी कड़ी में गुना से बीएसपी के प्रत्याशी लोकेन्द्र सिंह धाकड़ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. बता दें कि गुना से कांग्रेस के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया है जो इस सीट से लगातार चार बार सांसद रहे हैं और उनकी मौजुदगी में बसपा के प्रत्याशी ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली. जिससे नाराज बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला. बता दें कि मायावती शनिवार को बसपा प्रत्याशी के समर्थन में सभा करने गुना जाने वाली थीं.

नाराज मायावती ने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग कर रही है. साथ ही मायावती ने कहा कि, बसपा मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को समर्थन जारी रखने पर पुनर्विचार करेगी. आगे मायावती ने यह भी कहा कि सत्ता का दुरूपयोग करने में कांग्रेस बीजेपी से कम नहीं है. हमारे उम्मीदवार को कांग्रेस ने डरा-धमकाकर बैठाया है. फिर भी बसपा गुना में अपने सिंबल पर चुनाव लड़कर जवाब देंगी.

इसके बाद मायावती ने अगले ट्वीट में कहा कि कांग्रेसी नेता यूपी में ये प्रचार कर रही है कि चाहे बीजेपी जीत जाए लेकिन बसपा-सपा नहीं जीतनी चाहिए. यह कांग्रेस पार्टी के जातिवादी, संकीर्ण व दोगले चरित्र को दर्शाता है. अतः लोगों का यह मानना सही है कि बीजेपी को केवल हमारा गठबंधन ही हरा सकता है. लोग कांग्रेस के इस दोहरे चरित्र से सावधान रहें.

गौरतलब है कि कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा चली थी लेकिन गठबंधन नहीं हो पाया. मायावती ने कांग्रेस के साथ किसी भी राज्य में गठबंधन से साफ इंकार कर दिया था, वहीं मायावती की पार्टी यूपी में सपा और रालोद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं. जिसमें बीएसपी 38, सपा 37, रालोद 3 लोकसभा सीटों पर चुनावी मैदान में है. वहीं गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली सीट पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं.

जोधपुर में मोदी लहर पर भारी पड़ सकता है अशोक गहलोत का सियासी जादू!

लोकसभा चुनाव के रण में राजस्थान की सबसे ‘हॉट सीट’ जोधपुर में मतदान की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है. मतदाताओं ने 48 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ते हुए 68% से अधिक मतदान कर नया इतिहास रचा है. पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर होने के बावजूद 62.5% मतदान हुआ था. बढ़े हुए मतदान को कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने पक्ष में बता रहे हैं.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत और मोदी सरकार के मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच मुकाबला होने की वजह से सबकी निगाह इस सीट पर थी. इस दिलचस्प सियासी भिडंत को रिकॉर्ड मतदान ने और रोचक बना दिया है. आमतौर पर बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत बीजेपी के पक्ष में माना जाता रहा है लेकिन कई बार परिणाम कांग्रेस के पक्ष में भी आए हैं.

जोधपुर सीट पर बंपर मतदान किसकी किस्मत चमकाएगा और किसकी लुटिया डुबोएगा, यह तो 23 मई को ही पता चलेगा, लेकिन इलाके की राजनीति के जानकार कांग्रेस को बढ़त मिलने का आकलन कर रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी वैभव गहलोत के लिए जिस तरह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मेहनत की है, उसी का परिणाम है कि मतदान के अंत तक यह मुकाबला काफी कड़ा नजर आया.

आपको बता दें कि 3 दिन तक अशोक गहलोत ने वार्ड वार जाकर कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क स्थापित किया और उनमें जोश भरने का काम किया. जोधपुर लोकसभा सीट में कुल 8 विधानसभा क्षेत्र हैं. पोलिंग प्रतिशत के ट्रेंड को देखा जाए तो सबसे अधिक मतदान पोकरण विधानसभा क्षेत्र में हुआ है. पोकरण में लगभग 75 फीसदी मतदान हुआ है. पोकरण का बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत कांग्रेस को के पक्ष में जाता दिख रहा है तो वहीं सरदारपुरा में भी कांग्रेस को अच्छी बढ़त मिलती नजर आ रही है.

इसके अलावा लोहावट और फलोदी में भी कांग्रेस को बढ़त मिलने की उम्मीद है. वहीं बीजेपी को शेरगढ़ से बड़ी बढ़त मिलने की उम्मीद है. जोधपुर शहर, सूरसागर और लूणी से भाजपा को बढ़त मिल सकती है. यानी दोनों उम्मीदवारों को चार-चार विधानसभा सीटों पर बढ़त मिल सकती है, लेकिन वैभव को सरदारपुरा और पोकरण से निर्णायक बढ़त मिलने की संभावना जताई जा रही है.

हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि हार और जीत का अंतर 50000 के भीतर ही रहेगा. मतदान के बाद दोनों ही प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम मशीन में बंद हो चुका है और 23 मई को जब चुनाव परिणाम आएंगे तो तस्वीर साफ हो पाएगी कि क्या अशोक गहलोत की जादूगरी एक बार फिर कामयाब रही या मोदी लहर में गहलोत का जादू फीका पड़ा.

लोकसभा चुनाव: उद्योगपति क्यों करने लगे हैं गठबंधन सरकार की बात?

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देश में लोकसभा चुनाव के चार चरण संपन्न हो चुके हैं. जिसमें देश के बड़े कारोबारियों ने भी अपने मत का प्रयोग किया है. साथ ही मतदान के बाद पत्रकारों की तरफ से गठबंधन सरकार के बारे सवाल पूछा गया तो उनकी तरफ से कहा गया कि गठबंधन सरकार देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक नहीं होती है. कॉर्पोरेट घरानों की तरफ से आये इन बयानों से ये निष्कर्ष निकालता दिख रहा है कि कॉर्पोरेट जगत स्वयं को हर परिस्थिति के लिए तैयार रखना चाहता है.

सोमवार को चौथे चरण के मतदान के दौरान अपना वोट देकर लौटे महिन्द्रा समूह के निदेशक आनन्द महिन्द्रा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि भारत में विकास का कीड़ा घुस गया है. तो अब अगर सरकार गठबंधन की भी आती है तो हमें डरने की जरुरत नहीं है. गठबंधन सरकार भी देश को प्रगति के रास्ते पर ही लेकर चलेगी. वो भी हमारे देश के लिए लाभदायक होगी.

वहीं जेएसडब्ल्यू के निदेशक सज्जन जिंदल की राय भी आनन्द महिन्द्रा से मिलती-जुलती दिखी. उन्होंने कहा कि देश में गठबंधन की सरकारें पहले भी रह चुकी हैं और उन्होंने देश का सुचारू रुप से विकास करके दिखाया है. हमें गठबंधन सरकारों से घबराने की जरूरत नहीं है.

इसके अलावा देश के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी ने मुंबई दक्षिण लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी मिलिंद देवड़ा को अपना खुला समर्थन दिया है. बता दें कि हाल ही में मिलिंद देवड़ा की ओर से चुनाव प्रचार के लिए एक वीडियो जारी किया था, जिसमें मुकेश अंबानी उनका समर्थन करते नजर आए थे.

कॉर्पोरेट जगत के इस बयानबाजी के रूख के कई मायने हो सकते हैं. इनके इन बयानों से यह भी जाहिर होता दिख रहा है कि कॉर्पोरेट जगत अपने आपको परिस्थिति के अनुसार ढालने में पहले से तैयार दिख रहा है. फिलहाल सबको 23 मई का ही इंतजार है. जिस दिन जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार की तस्वीर सबके सामने साफ होने वाली है.

राजस्थान: दूसरे चरण के लिए पीएम मोदी-शाह की चुनावी रैली व सभाएं

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लोकसभा चुनाव का रथ चरण-दर-चरण आगे बढ़ता जा रहा है और राजनीतिक पार्टियों जोर-शोर से चुनाव प्रचार में डटी हैं. पार्टी के शीर्ष नेता धुंआधार रैलियों और चुनावी सभाओं में जुटे हैं. कल 29 अप्रैल को राजस्थान की 13 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुके हैं बाकी रही 12 सीटों पर अब 6 मई को वोट डाले जाएंगे. जिसके लिए प्रचार की रणनीति बनाते हुए बीजेपी ने दोनों शीर्ष नेताओं पीएम नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की रैली व चुनावी सभा की तैयारी की है. जिसमें पीएम मोदी 4 जनसभाएं करेंगे व अमित शाह का भी 3 बड़ी चुनावी सभाएं करने का कार्यक्रम है.

प्रदेश में 29 अप्रैल को संपन्न हुए पहले चरण के मतदान के बाद अब फिर से दूसरे चरण के लिए प्रचार की तैयारियों को लेकर राजनीतिक पार्टियां कमर कसती नजर आ रही है. इसी के चलते प्रदेश में बीजेपी प्रत्याशियों के लिए पीएम नरेंद्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह फिर से चुनाव प्रचार में उतरने जा रहे हैं. पीएम मोदी प्रदेश में बाकी बची 12 सीटों में से 4 जगह जनसभा में शामिल होंगे. वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का 3 चुनावी सभाओं को संबोधित करने का कार्यक्रम है.

पीएम मोदी के कार्यक्रम के अनुसार वे 1 मई को शाम 7 बजे जयपुर के मानसरोवर में प्रगति मैदान में आयोजित जनसभा को संबोधित करेंगे. इसके बाद 3 मई को उनकी 3 बड़ी चुनावी सभाओं का कार्यक्रम है. जिसमें पीएम मोदी सुबह 11.30 बजे करौली-धौलपुर संसदीय क्षेत्र के हिण्डौन में सभा को हिस्सा लेंगे. यहां वे बीजेपी प्रत्याशी मनोज राजौरिया के समर्थन में प्रचार के पहुंचेंगे.

इसके बाद 2 बजे उनका सीकर प्रत्याशी सुमेधानंद की चुनावी सभा में शामिल होने का कार्यक्रम है. यहां से वे बीकानेर प्रत्याशी अर्जुन राम मेघवाल के पक्ष में जनसभा को संबोधित करने के लिए जाएंगे. प्रदेश में पहले चरण के प्रचार में भी पीएम नरेंद्र मोदी ने 21 अप्रैल को चित्तौढ़गढ़ और बाड़मेर में जनसभाएं की थी. इसके बाद 22 अप्रैल को उदयपुर और जोधपुर में भी पीएम मोदी ने जनसभाएं कर बीजेपी प्रत्याशियों को जिताने की अपील की थी.

इसके अलावा प्रदेश में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का भी चुनाव प्रचार के लिए आने का कार्यक्रम है. जिसके अनुसार शाह आज प्रदेश में तीन लोकसभा क्षेत्रों में चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगे. कार्यक्रम के अनुसार आमित शाह की सबसे पहले दौसा में बीजेपी प्रत्याशी जसकौर मीना के पक्ष में जनसभा है. इसके बाद वे अलवर लोकसभा क्षेत्र के किशनगढ़ बास के बीबीरानी में बीजेपी प्रत्याशी बाबा बालकनाथ के पक्ष में जनसभा को सम्बोधित करने वाले हैं. यहां से वे भरतपुर में बीजेपी प्रत्याशी रंजीता कोली के पक्ष में जनसभा को सम्बोधित करेंगे.

गृह मंत्रालय ने राहुल गांधी से ब्रिटिश नागरिकता मामले में मांगा जवाब

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देश में लोकसभा चुनाव का रोमांच चरम पर है. इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बिट्रिश नागरिकता का मामला एक बार फिर गरमाया हुआ है. इस संबध में गृह मंत्रालय की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष को नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर अपना जवाब पेश करने को कहा गया है. कांग्रेस अध्यक्ष को ये नोटिस बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी की शिकायत पर भेजा गया है.

गृह मंत्रालय की तरफ से जारी नोटिस में कहा गया है कि सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मंत्रालय को बताया है कि साल 2003 में यूके में रजिस्टर्ड Backops Limited नामक कंपनी में आपको निदेशक और कंपनी सचिव बताया गया है. साथ ही कंपनी की तरफ से भरी गई वार्षिक रिर्टन में आपकी जन्म दिनांक 19-06-70 बताई गई है. इसके अलावा इसमें आपकी नागरिकता ब्रिटिश बताई गई है.

बता दें कि इससे पूर्व राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर यूपी की अमेठी लोकसभा सीट से उनके नामांकन पत्र पर आपत्ति जताई थी. आपत्ति में ब्रिटेन में रजिस्टर्ड कंपनी के दस्तावेजों का हवाला देते हुए राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक बताया गया. लेकिन बाद में जांच के बाद राहुल गांधी के नामांकन को सही पाया गया था.

गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दो संसदीय सीटों से लोकसभा के चुनाव मैदान है. अपनी परंपरागत अमेठी सीट के साथ वो इस बार केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. अमेठी में उनका मुकाबला केन्द्रीय मंत्री स्म़ृति ईरानी से है तो वहीं वायनाड सीट पर उनके सामने सीपीआई के पीपी सुनीर हैं.

उत्तर प्रदेश: पांचवें चरण की 14 सीटों में से किसके सिर बंधेगा ​जीत का सेहरा

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण के खिलाड़ी तय हो चुके हैं. नाम वापसी के बाद अब वही मैदान में हैं जिन्हें सियासी जंग लड़नी है. 5वें चरण की यह 14 पॉपुलर सीटें अवध की तराई से लेकर बुंदेलखंड तक फैली हैं. सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह और जितिन प्रसाद जैसे राष्ट्रीय चेहरों की चमक भी इसी चरण में तय होनी है. राम नगरी अयोध्या का प्रतिनिधित्व कर रही फैजाबाद अपना खेवनहार किसे बनाएगी, यह भी इसी चरण में तय होगा. इस समय कांग्रेस परिवार की दो सीटों को छोड़कर सब पर बीजेपी काबिज है. इन 14 सीटों पर मिलने वाली बढ़त 2019 में सत्ता हासिल करने वालों की किस्मत तय करने में भी अहम भूमिका निभाएंगीआइए जानते हैं इनके बारे में

1. हाई प्रोफाइल सीट धौरहरा:
मनमोहन सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद की उम्मीदवारी के चलते यह सीट हाई प्रोफाइल मानी जाती है. 2009 में अस्तित्व में आई इस सीट से कांग्रेस के जितिन प्रसाद 1.85 लाख वोटों के अंतर से जीते लेकिन 2014 में पासा ऐसा पलटा कि वह केवल चौथे नंबर पर रहे बल्कि उन्हें उनकी पुरानी जीत के अंतर से भी कम वोट मिले. इन चुनावों में बीजेपी ने मौजूदा सांसद रेखा वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है. बसपा से अरशद सिद्दीकी गठबंधन प्रत्याशी हैं. वहीं प्रसपा ने कभी चंबल में खौफ का पर्याय रहे मलखान सिंह को उतार मुकाबला दिलचस्प बना दिया है. मुस्लिम और ब्राह्मण बहुल सीट पर जितिन प्रसाद की उम्मीदें इन दोनों जाति के वोट बैंक पर टिकी है. पिछली बार सपाबसपा को यहां बराबरबराबर वोट मिले थे जोकि बीजेपी उम्मीदवार को मिले वोट से 1.18 लाख अधिक थे. ऐसे में दोनों दलों ने आपस में वोट ट्रांसफर करा लिए तो नतीजे उनके पक्ष में सकते हैं.
प्रत्याशी
रेखा वर्मा : बीजेपी
जितिन प्रसाद : कांग्रेस
अरशद सिद्दीकी : बसपा
मलखान सिंह : प्रसपा
कुल वोटर : 16.34 लाख

2. सीतापुर: त्रिकोणीय लड़ाई में कोर वोटर होंगे अहम
आजादी के बाद से लेकर अब के चुनाव में इस सीट पर तीन मौकों को छोड़कर ब्रा्ह्मण या कुर्मी ही सांसद बना है. 2014 में बीजेपी कभी बसपाई रहे राजेश वर्मा के जरिए 51 हजार वोटों की बढ़त के साथ इस सीट पर काबिज हुई थी. इस बार भी पार्टी ने उन्हीं पर दाव खेला है. यहां से कैसरजहां कांग्रेस और नकुल दुबे बसपा की तरफ से मैदान में हैं. इस सीट पर मुस्लिम, दलित, ब्राह्मण व कुर्मी वोटर्स की संख्या अधिक है. बसपा ने प्रभावी ब्राह्मण चेहरा लेकर ब्राह्मणों के साथ दलित वोटों पर भी निशाना साधा है. लड़ाई त्रिकोणीय है इसलिए कोर वोटर्स का गणित अहम किरदार निभाएगा.
प्रत्याशी
राजेश वर्मा : बीजेपी
नकुल दुबे : बसपा
कैसर जहां : कांग्रेस
कुल वोटर : 16.53 लाख

3. मोहनलालगंज : कौशल दिखेगा या खत्म होगा बसपा का सूखा
मोहनलालगंज, सियासत और विकास दोनों ही पैमाने पर राजधानी से जुदा है. बिल्डरों व जमीन के कारोबार करने वालों का यह पसंदीदा इलाका सियासत में भी अलग-अलग चेहरे चुनता रहा है. बावजूद इसके, अब तक बसपा का खाता यहां नहीं खुल सका है. 1998 के बाद 2014 में कौशल किशोर ने यहां बीजेपी का कमल खिलाया और इस बार भी पार्टी का भरोसा कौशल ही है. बसपा से सीएल वर्मा यहां से प्रत्याशी है. पिछली बार बसपा के चुनावी उम्मीदवार आर.के. चौधरी इस बार कांग्रेस के झंडे के साथ मैदान में है. दलित बहुल इस इस सीट पर पासी सर्वाधिक हैं लेकिन तीनों ही दलों के उम्मीदवार इसी बिरादरी के हैं. ऐसे में दलित व मुस्लिम वोट बैंक यहां की तस्वीर तय करेंगे.
प्रत्याशी
कौशल किशोर : बीजेपी
सीएल वर्मा : बसपा
आरके चौधरी : कांग्रेस
कुल वोटर : 19.56 लाख

4. लखनऊ : महज एमपी नहीं चुनती राजधानी
यूपी की राजधानी लखनऊ तीन दशक से महज एमपी चुनने तक ही सीमित नहीं रही. 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका प्रतिनिधित्व किया तो अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं. इस बार भी वह मैदान में हैं. उनसे मुकाबले के लिए सपा शत्रुघ्न सिंहा की पत्नी पूनम सिंहा को तलाश लाई है. कांग्रेस की तलाश प्रमोद कृष्णम पर पूरी हुई है. यहां जातीय गणित बीजेपी के लिए उलझन पैदा करती है. यहां करीब पौने पांच लाख मुस्लिम, तीन लाख कायस्थ और दो लाख से अधिक दलित हैं. क्षेत्र के साढ़े चार लाख ब्राह्मण, एक लाख ठाकुर और तीन लाख से अधिक व्यापारी, सिंधी व पंजाबी अगर बीजेपी के साथ जाते हैं तो विपक्ष की दोनों पार्टियों के लिए मुश्किल होगी.
प्रत्याशी
राजनाथ सिंह : बीजेपी
पूनम सिन्हा : सपा
प्रमोद कृष्णम : कांग्रेस
कुल वोटर : 19.58 लाख

5. रायबरेली : सोनिया के सामने उनका ही ‘सिपहसालार’
इंदिरा गांधी को चौंकाने वाली रायबरेली की जनता अब तक उनकी बहू सोनिया गांधी के साथ मजबूती से खड़ी रही है. यूपीए की संयोजक ने पांचवी बार इसी सीट से अपना नामांकन दाखिल किया है. पिछली बार उन्होंने बीजेपी के अजय अग्रवाल को 3.52 लाख वोटों से हराया था. इस बार बीजेपी ने उनके खिलाफ उन्हीं के सिपहसालार कांग्रेस से विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह पर दांव खेला है. दिनेश का परिवार रायबरेली में राजनैतिक रूप से प्रभावी है. उनके भाई राकेश प्रताप सिंह हरचंदपुर से कांग्रेस के विधायक हैं जबकि एक भाई जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. ऐसे में दिनेश की दावेदारी रायबरेली में लड़ाई को दिलचस्प बनाएगी. सपाबसपा ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है.
प्रत्याशी
सोनिया गांधी : कांग्रेस
दिनेश प्रताप सिंह : बीजेपी
सपा-बसपा : कोई नहीं
कुल वोटर : 16.50 लाख

6. अमेठी : चुनौतियों के चक्रव्यूह में राहुल
गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं. उनका मुकाबला मौजूदा केंद्रीय मंत्री व बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति जुबिन ईरानी से है. 2009 में 71% फीसदी वोट हासिल करने वाले राहुल गांधी 2014 में अमेठी में 46% वोट पर पहुंच गए थे और जीत का अंतर घटकर 1.08 लाख आ गया. इन पांच सालों में हार के बाद भी स्मृति इरानी लगातार अमेठी में बनी रहीं. यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां शानदार प्रदर्शन किया था. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष का कद व गांधी परिवार से अमेठी का जुड़ाव अब भी राहुल के लिए मुफीद स्थिति बनाता है लेकिन जो राहुल गांधी को नहीं चुनना चाहते, उनके लिए स्मृति इरानी का एकमात्र विकल्प होना मुश्किल पैदा करेगा. राहुल के वायनाड़ से लड़ने को भी बीजेपी चुनावी मुद्दा बना वोटर्स को अपने पाले में खींचने में लगी है.
प्रत्याशी
राहुल गांधी : कांग्रेस
स्मृति ईरानी : बीजेपी
कुल वोटर : 17.18 लाख

7. बांदा : अगड़े-दलित वोट तय करेंगे जीत
यह सीट इस बार दलबदल का अखाड़ा बनी हुई है. पिछली बार इलाहाबाद सीट से बीजेपी सांसद श्यामाचरण गुप्ता यहां से सपा गठबंधन उम्मीदवार हैं. सपा से चुनावी लड़ाई लड़ चुके बाल कुमार पटेल पर कांग्रेस ने अपनी उम्मीदें लगाई हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद भैरो प्रसाद मिश्र का टिकट काट बसपा से चुनाव लड़कर आए आर.के. पटेल को दिया है. वैश्य बिरादरी के वोटरों की प्रभावी संख्या के साथ दलितों, मुस्लिमों की बहुतायत उनका दावा मजबूत बना रही है. बीजेपी बड़ी संख्या में मौजूद ब्राह्मण वोटर्स के भरोसे हैं. अगड़ेदलित जीतहार में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
प्रत्याशी
आरके पटेल : बीजेपी
श्यामाचरण गुप्ता : सपा
बाल कुमार पटेल : कांग्रेस
कुल वोटर : 16.82 लाख

8. फतेहपुर : साध्वी की ‘साध’ में रोड़े अधिक
पिछड़ा वोटर बहुल इस सीट पर राजनीति मंडल और कमंडल के ध्रुवीकरण पर टिकी है. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर देश की राजनीति बदलने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह भी फतेहपुर की नुमाइंदगी कर चुके हैं. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति पर फिर भरोसा जताया है तो बसपा ने बिंदकी के पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद वर्मा को टिकट दिया है. टिकट की आस टूटने के बाद पूर्व सांसद राकेश सचान सपा छोड़ कांग्रेस की उम्मीदवारी कर रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में साध्वी को सपा-बसपा के कुल वोटों से भी अधिक वोट मिले थे लेकिन इस बार विपक्ष के दोनों उम्मीदवार कुर्मी होने के चलते उनमें बंटवारा होता दिख रहा है. साध्वी की अपनी बिरादरी के वोट भी यहां प्रभावी है लेकिन मुस्लिम-दलित वोटों का रुख भी बहुत कुछ तय करेगा. हालांकि ढाई लाख से अधिक सवर्ण बिरादरी के वेाट बीजेपी के समीकरण को मुफीद बना रहे हैं.
प्रत्याशी
साध्वी निरंजन ज्योति : बीजेपी
सुखदेव प्रसाद वर्मा : बसपा
राकेश सचान : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.20 लाख

9. कौशांबी : राजा की एंट्री ने दिलचस्प बनाया मुकाबला
सुरक्षित सीट पर सपा-बसपा के प्रभाव का आकलन इससे किया जा सकता है कि त्रिकोणीय लड़ाई में भी बीजेपी 42 हजार वोटों से जीत पाई थी. हालांकि, इस बार निर्दलीय विधायक व क्षेत्र की राजनीति में प्रभावी रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भईया की जनसत्ता पार्टी की एंट्री ने चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. बीजेपी ने सांसद विनोद सोनकर पर फिर से दांव लगाया है. पिछली बार उन्हें सपा से कड़ी टक्कर देने वाले पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार जनसत्ता दल से उम्मीदवार हैं. बसपा छोड़कर पार्टी में आए इंद्रजीत सरोज पर सपा ने दांव लगाया है तो बसपा से आए गिरीश चंद्र पासी कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. दलित बहुल इस सीट की दो विधानसभाएं कुंडा व बाबूगंज प्रतापगढ़ जिले में आती हैं. इन दोनों ही सीटों पर राजा भईया का सिक्का चलता है. ऐसे में उनकी पार्टी वोटकटवा बनेगी या निर्णायक लड़ाई लड़ेगी, इसी पर दूसरे दलों का भविष्य निर्भर करेगा.
प्रत्याशी
विनोद कुमार : बीजेपी
इंद्रजीत सरोज: सपा
गिरीश चंद्र पासी : कांग्रेस
शैलेंद्र कुमार : जनसत्ता दल
कुल वोटर : 17.65 लाख

10. बाराबंकी : त्रिकोणीय लड़ाई में फंसी कांग्रेस की उम्मीद
प्रदेश की राजधानी से सटी इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता पीएल पूनिया अपने बेटे तनुज पूनिया के सियासी भविष्य बनाने का ख्वाब पाले हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद प्रियंका रावत का टिकट काट जैदपुर से विधायक उपेंद्र रावत को चुना है. चार बार के सांसद राम सागर रावत सपा के उम्मीदवार है. यहां लड़ाई त्रिकोणीय है और दिग्गजों की भूमिका अहम. मसलन सपा उम्मीदवार की पहचान जमीनी चेहरे के तौर पर है और क्षेत्र की राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप रखने वाले कुर्मी बिरादरी के बड़े नेता राज्यसभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा का पूरा समर्थन. कुर्मी वोटरों की यहां अच्छी खासी संख्या है. मुस्लिमों में पैठ और बसपा का साथ समीकरण को दुरुस्त करता है. वहीं सर्वण वोटों की प्रभावी संख्या व मोदी प्रभाव उन्हें लड़ाई में मजबूत बनाता है. कांग्रेस दलितों के साथ मुस्लिम वोटों में सेंधमारी के भरोसे है.
प्रत्याशी
उपेंद्र रावत : बीजेपी
राम सागर रावत : सपा
तनुज पुनिया : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.04 लाख

11. फैजाबाद : राम नगरी में किसका होगा बेड़ा पार
देश की सियासत बदलने वाली राम नगरी समय-समय पर सांसद बदलती रहती है. हर दल को मौका दे चुके फैजाबाद में बीजेपी का वनवास 1999 के बाद 2014 में लल्लू सिंह की जीत के बाद खत्म हुआ था. लल्लू इस बार भी पार्टी के उम्मीदवार हैं. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं दो बार यहीं से सांसद रहे निर्मल खत्री भी मैदान में है. सपा ने पूर्व सांसद मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन यादव पर भरोसा जताया है. देशभर में रामलहर की बुनियाद तय करने वाली इस सीट से मोदी लहर में बीजेपी को सपा, बसपा व कांग्रेस तीनों से ही अधिक वोट मिले थे लेकिन इस बार लड़ाई त्रिकोणीय है. कभी यहां के डीएम रहे रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट विजय शंकर पांडेय भी यहीं से सियासी पारी शुरू कर रहे हैं. बीजेपी राम-राष्ट्रवाद के साथ मोदी के भरोसे मैदान में है जबकि गठबंधन जातीय समीकरणों को साध रहे हैं. वहीं कांग्रेस शहरी व मुस्लिम वोटर्स के समर्थन की संभावनाओं पर नींव तैयार कर रही है.
प्रत्याशी
लल्लू सिंह : बीजेपी
आनंद सेन यादव : सपा
निर्मल खत्री : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.04 लाख

12. बहराइच : सुरक्षित सीट पर ‘असुरक्षित’ बीजेपी
मान्यता है कि यहां के वोटर भी हर पार्टी की दुआ कबूल करते हैं. फिलहाल बीजेपी से यहां सांसद बनी सावित्री बाई फुले इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. बीजेपी ने अक्षयवार लाल गौंड को उतारा है और सपा ने पार्टी के पुराने चेहरे शब्बीर अहमद वाल्मीकि पर फिर दांव लगाया है. एक बार फिर बीजेपी दलितों के साथ ही सवर्ण मतदाताओं के भरोसे है. कांग्रेस 2009 में यह सीट जीत चुकी है और मौजूदा सांसद को टिकट देकर उनकी क्षेत्र में पैठ व मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी के जरिए अपनी राह बना रही है. इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 25 प्रतिशत से अधिक है इसलिए उनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है.
प्रत्याशी
अक्षयवार लाल गौड़ : बीजेपी
शब्बीर अहमद वाल्मीकि : सपा
सावित्री बाई फुले : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.13 लाख

13. कैसरगंज : अखाड़े में तीसरी पारी के लिए ‘पहलवान’
गोंडा जिले की इस सीट से कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह अपनी तीसरी पारी खेलने के लिए मैदान में है. बसपा से चंद्रदेव राम यादव गठबंधन के उम्मीदवार है. कांग्रेस ने पूर्व सांसद विनय कुमार पांडेय को उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण-ठाकुर बहुल इस सीट पर पिछली बार ब्रजभूषण 78 हजार वोट से जीते थे. मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी न होना भी ब्रजभूषण के पक्ष में है. बसपा उम्मीदवार का बाहरी होना यहां एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में कोर वोटर्स की एकजुटता पर ही गठबंधन की आस टिकी है.
प्रत्याशी
ब्रजभूषण सिंह : बीजेपी
चंद्रदेव राम यादव : बसपा
विनय कुमार पांडेय : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.91 लाख

14. गोंडा : राजा बनाम ‘पंडित’ की लड़ाई
अवध की इसरियासतमें इस बार सियासी लड़ाईराजा बनाम पंडितकी है. बीजेपी से मौजूदा सांसद गोंडा इस्टेट के उत्तराधिकारी कीर्तिवर्धन सिंह पार्टी का फिर से कमल खिलाने के लिए मैदान में हैं. उनके सामने गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह हैं. कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल को इस सीट पर उतारा है. इस सीट पर कुर्मी वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है, जिनके साथ ब्राह्मण मुस्लिम वोटों की जुगलबंदी कर कांग्रेस के बेनी प्रसाद वर्मा 2009 में यहां से सांसद बने थे. फिलहाल दो ठाकुरों की लड़ाई में सबसे बड़ा अंतर छवि का है. यहां ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक दोनों उम्मीदवारों की किस्मत तय करेंगे. वहीं कुर्मी वोटर्स में कृष्णा पटेल की सेंधमारी बीजेपी को परेशान कर सकती है.
प्रत्याशी
कीर्तिवधन सिंह : बीजेपी
विनोद सिंह उर्फ पंडित : सपा
कृष्णा पटेल : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.54 लाख

एक सेट डिजाइनर कैसे बना निषाद समाज का चेहरा?

ये कहानी एक ऐसे नेता की है जिन्हें बिहार में ‘सन आफ मल्लाह’ के नाम से जाना जाता है. इन्होंने अपने करियर की शुरुआत तो फिल्मी दुनिया से की लेकिन 2015 में ये चेहरा बिहार की राजनीति में उभर कर आया. बात कर रहे हैं मुकेश सहनी की. मुकेश सहनी बिहार में एकदम से उभरी विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष हैं. फिलहाल यह पार्टी बिहार के महागठबंधन में शामिल है और उसके हिस्से में तीन सीटें आई हैं. मुकेश खुद बिहार की खगड़िया सीट से चुनाव मैदान में है. उनका मुकाबला जदयु के महबूब अली कैसर से है जो वर्तमान सांसद है.

महागठबंधन के स्वरुप की सबसे हैरान करने वाली बात जो बिहार और देश के राजनीतिक जानकारों के मध्य है, उसमें मुकेश सहनी की नई नवेली पार्टी को महागठबंधन में 3 सीटें देने की है. जानकार सवाल उठा रहे है कि बिहार की राजनीति में इतने बरस से सक्रिय होने के बावजूद गठबंधन में जीतनराम मांझी के हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 3 व उप्रेन्द्र कुशवाहा को 5 ही सीटें मिली. वहां सिर्फ एक साल पहले अस्तित्व में आई पार्टी कैसे तीन सीटें पाने में कामयाब हुई. कुशवाहा की पार्टी पिछला लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ी थी. वहीं जीतनराम मांझी की पार्टी 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ मिलकर मैदान में उतरी थी. ऐसे में मुकेश सहनी की इस नई-नवेली पार्टी को महागठबंधन में तीन सीटें मिलना लोगों को हैरान कर रहा है.

ऐसे में सवाल उठना जायज है कि मुकेश सहनी को महागठबंधन में इतनी तव्वजो क्यों दी गई. इसका कारण बिहार में निषाद समुदाय का कई सीटों पर निर्णायक होना है. पहले इस समाज पर जयनारायण निषाद की पकड़ मजबूत थी लेकिन 2014 में खराब स्वास्थ्य और उम्र बढ़ने के साथ उनकी राजनीतिक सक्रियता कम होती गई जिससे समाज की राजनीतिक पकड़ में शून्यता आई. उसी दौर में मुकेश सहनी सुर्खियों में आए. उनके द्वारा निषादों को अन्य पिछड़ा वर्ग से निकालकर अनुसूचित जाति में डालने की मांग की गई जिससे उनकी लोकप्रियता समाज में बढी.

मुकेश सहनी की पार्टी बिहार की खगडिया, मुजफ्फरपुर और मधुबनी सीट से चुनाव मैदान में है. खगड़िया सीट से स्वयं मुकेश सहनी मैदान में है. खगड़िया सीट के निषाद और मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण मुकेश सहनी ने इस सीट को चुना. पहले उनकी मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने की चर्चा थी. लकिन बाद में पार्टी ने वहां से राज चौधरी को मैदान में उतारा.

मुकेश सहनी को नेता बनाने का श्रेय अगर किसी दिया जाए तो वो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह है. 2015 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह अपने हेलीकाॅप्टर से सहनी को कई सभाओं में खुद लेकर जाते थे और संयुक्त तौर पर सभाओं को संबोधित करते थे. उससे प्रदेश के निषादों में ये माहौल बना कि जो नेता बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इतना करीब है तो उसकी राजनीतिक पकड़ भी अच्छी होगी. प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह 2014 में चाय पर चर्चा कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था, उसी प्रकार मुकेश सहनी ने निषादों के मध्य माझ पर चर्चा का अभियान चलाया जिससे उनकी समाज के लोगों में पकड़ मजबूत हुई.

बिहार में 40 संसदीय सीटों पर राजद, कांग्रेस, हम, रालोसपा, वीआईपी गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. राजद के हिस्से 20 ,कांग्रेस के 9, जीतनराम मांझी की पार्टी के 3, उप्रेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा 5 और मुकेश सहनी की वीआईपी 3 सीटों से चुनाव लड़ रही है.

मुकेश सहनी की पार्टी जिन 3 सीटों पर चुनाव लड रही है, उनके नतीजें बिहार की राजनीति में उनका भविष्य तय करेंगे. जानकार मानते है कि तेजस्वी यादव ने विकासशील इंसान पार्टी को तीन सीट देकर जुआ खेला है. या तो ये उन्हें तैराएगा या ये डुबाएंगा. तेजस्वी ने वीआईपी को तीन सीटें यादव-मुस्लिम-निषाद गठजोड़ बनाने के लिए दी है. तेजस्वी जानते है कि अगर ये समीकरण धरातल पर काम कर गया तो महागठबंधन के लिए बिहार में संभावना बहुत मजबूत होगी.

 

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