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गढ़चिरौली में नक्सली हमला, 15 जवान शहीद

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महाराष्ट्र के गढचिरौली में नक्सलियों ने c60 टीम पर घात लगाकर आईडी ब्लास्ट किया जिसमें 15 जवान शहीद हो गए. देश में पिछले 2 सालों में यह सबसे बड़ा नक्सल आंतकी हमला है. यह हमला नक्सलियों ने तब किया जब जवानों की गाड़ी कुरखेड़ा-कोरची रोड़ से गुजर रही थी. अभी घटनास्थल पर जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चल रही है. साल 2018 में इसी इलाके में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में 40 नक्सलियों को मार गिराया था. माना जा रहा है कि आजका यह नक्सली हमला इसी मुठभेड़ का बदला है. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इस हमले को लेकर सुरक्षा एजेंसियां सतर्क नजर आ रही है. पुलिस ने बताया कि सभी शहीद जवान गढ़चिरौली की क्विक रिस्पांस टीम के सदस्य थे जो नक्सलियों के द्वारा दिन में जलाए गए वाहनों को देखने के लिए जा रहे थे तब ही नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर नक्सलियों के इस हमले की कड़ी निंदा की है. ट्वीट कर उन्होंने कहा, ‘इस हमले को अंजाम देने वालों को नहीं बख्शा जाएगा. मैं इन बहादुर वीरों को सलाम करता हूं. इन बहादुर वीरों का बलिदान कभी भूला नहीं जाएगा.’  उन्होंने शोक संतप्त परिवारों से धैर्य रखने को अपील की है. वहीं गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हमले को कायराना और हताशापूर्ण करार दिया है. साथ ही महाराष्ट्र सरकार को हरसंभव मदद का भरोसा दिया है.

राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ‘गढ़चिरौली में महाराष्ट्र पुलिस कर्मियों पर हमला कायरता और हताशा का एक कार्य है. हमें अपने पुलिस कर्मियों की वीरता पर बेहद गर्व है. राष्ट्र की सेवा करते हुए उनका सर्वोच्च बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. उनके परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है.’

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘गढ़चिरौली में हुई दुखद घटना के बारे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ​देव फडनविस से बात की और बहादुर पुलिस कर्मियों के नुकसान पर अपना दुख व्यक्त किया. हम राज्य सरकार द्वारा आवश्यक सभी सहायता प्रदान कर रहे हैं. राज्य प्रशासन के साथ MHA लगातार संपर्क में है.’

बता दें कि इन नक्सली हमलों के अलावा हाल ही में देश ने भारत-पाक सीमा पर भी आतंकी हमला झेला है. बीते फरवरी के महीने में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों के द्वारा भारतीय सेना की गाड़ी पर आत्मघाती हमला किया गया था. जिसमें 40 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे. जिसके बाद भारतीय सेना ने पाक कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादियों के कैंप पर एयर स्ट्राइक की थी.

बीकानेर संभाग: तीनों सीटों पर सीधा मुकाबला, राहुल-मोदी दिखा रहे दम

राजस्थान में 25 लोकसभा सीटों में से 13 सीटों पर चुनाव संपन्न होने के बाद दोनों प्रमुख पार्टियों ने अपना पूरा ध्यान शेष रही बारह सीटों पर केंद्रित कर लिया है. बीकानेर संभाग की तीनों सीटों पर भी 6 मई को ही मतदान होना है. खास बात यह है कि तीनों सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है जबकि पड़ौसी जिले नागौर में कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के बीच चुनावी जंग है. संभाग की बीकानेर, श्रीगंगानगर और चूरू संसदीय सीटों पर कांग्रेस व बीजेपी उम्मीदवारों में सीधा मुकाबला देखा जा रहा है.

बीकानेर संभाग की तीनों सीटों पर कांग्रेस व बीजेपी ने अपना पूरा दम लगा रखा है. दोनों बड़े दल संभाग में अपने शीर्ष नेता के साथ मैदान में उतर चुके हैं. कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सोमवार को चूरू में एक आमसभा को संबोधित कर चुके हैं जबकि बीजेपी की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी तीन मई को बीकानेर के सार्दुल क्लब मैदान में सभा को संबोधित करने वाले हैं.

निहालचंद-भरत मेघवाल में टक्कर
संभाग की श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर बीजेपी से चार बार सांसद रहे निहालचंद चौहान का मुकाबला कांग्रेस के भरतराम मेघवाल से है. श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में सादुलशहर, गंगानगर, करनपुर, सूरतगढ़, रायसिंह नगर विधानसभा और हनुमानगढ़ जिले की सांगरिया, हनुमानगढ़ और पिलीबंगा विधानसभा सीट शामिल हैं. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इन 8 सीटों में से 4 पर बीजेपी, 3 पर कांग्रेस और 1 पर निर्दलीय उम्मदीवार ने जीत दर्ज की. इसे देखते हुए इस बार मुकाबला टक्कर का माना जा रहा है.

राहुल कस्वां-रफिक मंडेलिया मुकाबला
चूरू लोकसभा सीट पर बीजेपी ने एक बार फिर से मौजूदा सांसद राहुल कस्वां पर भरोसा जता मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने रफीक मंडेलिया पर दांव खेला है. यहां भी कांटे की टक्कर मानी जा रही है. इस लोकसभा क्षेत्र में जिले की सादुलपुर, तारानगर, सुजानगढ़, सरदारशहर, चूरू, रतनगढ़ विधानसभा सीटों के अलावा हनुमानगढ़ जिले की नोहर व भादरा क्षेत्र शामिल है. हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजों में इन 8 में से 5 पर कांग्रेस, 2 पर बीजेपी और 1 पर सीपीएम ने जीत दर्ज की है.

सूरज की तपन का पड़ेगा असर
बता दें कि श्रीगंगानगर व चूरू, दोनों जिलों में ग्रामीण मतदाता सर्वाधिक है. इन दिनों यहां के ग्रामीण क्षेत्र में तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच रहा है. ऐसे में सूर्यदेव के तपते रूख के चलते मतदान प्रतिशत पर गर्मी का असर देखा जा सकता है जिसका सीधा असर दोनों ही राजनीतिक दलों पर पड़ने वाला है. बढ़ते तापमान के आंकड़ों के आकलन के अनुसार मतदान के दिन 45 डिग्री तापमान रहने की आशंका है. ऐसे में मतदान पर असर पड़ना लाजमी है.

बीकानेर में बीजेपी का अंतिम शॉट ‘मोदी’
बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में प्रचार थमने से ठीक चौबीस घंटे पहले प्रधानमंत्री और वर्तमान में बीजेपी के तारणहार नरेंद्र मोदी स्वयं सभा को संबोधित करने आ रहे हैं. पीएम मोदी की सभा के लिए बीजेपी ने एक लाख समर्थकों की भीड़ जुटाने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में मोदी की सभा का यह लक्ष्य तय बीजेपी के अंतिम शॉट पर बड़ी उपलब्धि हो सकती है. इससे न सिर्फ बीकानेर शहर बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में भी बीजेपी के पक्ष में माहौल बनने के आसार हैं.

फिलहाल यही कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी का ग्रामीण क्षेत्र में खासा विरोध है. इसी बीच पार्टी अगर एक लाख लोगों का लक्ष्य पूरा करती है तो इसका सत्तर फीसदी हिस्सा गांव-ढ़ाणियों से ही आना वाला है. वहीं अगर पीएम मोदी की इस सभा में तय लक्ष्य के अनुसार भीड़ नहीं उमड़ी तो यह बीजेपी प्रत्याशी के लिए परेशानी का सबब भी हो सकता है.

बीकानेर आए पर रूके नहीं राहुल
बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में प्रचार थमने से ठीक चौबीस घंटे पहले प्रधानमंत्री और वर्तमान में बीजेपी के तारणहार नरेंद्र मोदी स्वयं सभा को संबोधित करने आ रहे हैं. पीएम मोदी की सभा के लिए बीजेपी ने एक लाख समर्थकों की भीड़ जुटाने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में मोदी की सभा का यह लक्ष्य तय बीजेपी के अंतिम शॉट पर बड़ी उपलब्धि हो सकती है. इससे न सिर्फ बीकानेर शहर बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में भी बीजेपी के पक्ष में माहौल बनने के आसार हैं. फिलहाल यही कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी का ग्रामीण क्षेत्र में खासा विरोध है. इसी बीच पार्टी अगर एक लाख लोगों का लक्ष्य पूरा करती है तो इसका सत्तर फीसदी हिस्सा गांव-ढ़ाणियों से ही आना वाला है. अगर पीएम मोदी की इस सभा में तय लक्ष्य के अनुसार भीड़ नहीं उमड़ी तो यह बीजेपी प्रत्याशी के लिए परेशानी का सबब भी हो सकता है.

देवीसिंह भाटी का भरोसा
कांग्रेस के लिए जितना प्रचार स्वयं पार्टी के नेता नहीं कर रहे हैं, उससे ज्यादा तो बीजेपी प्रत्याशी अर्जुनराम का विरोध करके पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी मदन गोपाल मेघवाल की राह आसान कर रहे हैं. बीकानेर शहर के अलावा नापासर सहित अन्य क्षेत्रों में भाटी की सभाओं में उमड़ रहे लोग विरोध को बढ़ा रहे हैं. वहीं कांग्रेस नेताओं ने कोई खास दमखम अब तक नहीं दिखाया है. भाटी अपने प्रचार में बीजेपी का विरोध कर रहे हैं. ऐसे में परोक्ष रूप से कांग्रेस के पक्ष में मतदान की अपील हो रही है.

नोटा का रहेगा बोलबाला
बीकानेर संभाग की तीन सीटों बीकानेर, श्रीगंगानगर व चूरू में से नोटा का सर्वाधिक उपयोग बीकानेर में होता लग रहा है. खासकर शहरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग नोटा पर विचार कर रहे हैं. बीजेपी प्रत्याशी से स्थानीय लोगों की नाराजगी को कांग्रेस अब तक भुनाने में विफल रही है. अंतिम दिनों में कांग्रेस बाजी पलटने की कोशिश कर सकती है.

श्रीगंगानगर-चूरू में गांव पर निर्भरता
संभाग की श्रीगंगानगर व चूरू लोकसभा क्षेत्र में मतदान का बड़ा हिस्सा गांवों से आता है. ग्रामीण क्षेत्र पर ही कांग्रेस-बीजेपी दोनों काम कर रहे हैं. कांग्रेस का दावा है कि गांवों में मोदी व स्थानीय प्रत्याशी का भारी विरोध है जबकि बीजेपी यही मानकर चल रही है कि शहर व गांव दोनों क्षेत्रों में मोदी लहर समान रूप से चल रही है. संभाग की लोकसभा सीट बीकानेर, श्रीगंगानगर और चूरू में कांग्रेस व बीजेपी प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर है. शहरी क्षेत्र में जहां बीजेपी अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस ने सेंधमारी करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है. खासकर श्रीगंगानगर व चूरू संसदीय क्षेत्रों की बात करें तो मतदान प्रतिशत ही तय करेगा कि किस प्रत्याशी का पलड़ा भारी रहने वाला है.

बुर्का बेन पर गरमाई राजनीति, आपस में भिड़ीं बीजेपी-शिवसेना

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लगता है कि बुर्के का भूत एक बार फिर से देश की आबो हवा पर छाने लगा है. अबकी बार इसकी शुरूआत की है शिवसेना ने. शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से महिलाओं के बुर्के पहनने पर रोक लगाने की मांग की है. शिवसेना की इस मांग पर अब बीजेपी और शिवसेना आमने-सामने हो गए हैं. कुछ ने इस मांग का समर्थन तो कईयों ने शिवसेना की बात का विरोध जाहिर किया है. बीजेपी ने शिवसेना की मांग का पूर्णतया विरोध करते हुए बुर्का पर प्रतिबंध को गैरजरुरी करार दिया है.

बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि भारत में बुर्के पर पाबंदी की कोई जरूरत नहीं है. वहीं केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि हर महिला जो बुर्का पहनती है वह आतंकवादी नहीं होती. अगर वह आतंकवादी हैं तो उनका बुर्का हटवाना चाहिए. बुर्का पहनना एक परंपरा है और उन्हें यह पहनने का पूरा अधिकार है. भारत में बुर्का पहनने पर किसी भी तरह की कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए.

दरअसल, शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ और ‘दोपहर का सामना’ में बुधवार को छपे संपादकीय में कहा है कि जैसे श्रीलंका में बुर्के पर पाबंदी लगा दी गई है. उसी तरह से भारत में भी बुर्का पहनने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देनी चाहिए. लेख में में पीएम मोदी से मांग की गई है कि अगर श्रीलंका रावण का देश होकर बुर्के पर पाबंदी लगा सकता है तो हम आखिर यह भारत में क्यों नहीं हो सकता है जबकि भारत को राम का देश है. शिवसेना ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी एक पत्र लिखा है जिसमें तीन तलाक के साथ बुर्के पर भी पाबंदी की मांग की गई है.

गृह मंत्रालय को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि पूरी तरह से चेहरे को ढकने वाले बुर्के पर पाबंदी लगाई जाए. लोगों को नकाब पहनकर सार्वजनिक स्थलों, सरकार और प्राइवेट संस्थानों में जाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. भारत को भी श्रीलंका की राह पर चलना चाहिए, जैसा कि उसने हमलों से बचने के लिए कदम उठाया है. बता दें कि हाल ही में श्रीलंका में हुए सिलसिलेवार बम धमाके में 250 लोगों की मौत हो गई थी जिसके बाद श्रीलंका में बुर्का पहनने पर पाबंदी लगा दी गई थी.

इधर मध्यप्रदेश की भोपाल संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने इस बात का समर्थन कर बुर्का पर सियासी राजनीति को हवा देने का काम किया है. हिंदूवादी नेता साध्वी प्रज्ञा ने देशहित में बैन का समर्थन किया है. साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि किसी कारण से अगर कोई इस माध्यम का लाभ उठाते हैं और इससे देश को नुकसान पहुंचता हो, लोकतंत्र खतरे में हो या फिर सुरक्षा खतरे में हो तो ऐसी परंपराओं में थोड़ी ढील देनी चाहिए. कानून के जरिए बैन लगाया जाए इससे अच्छा है कि वो खुद ही इस पर फैसला लें. अगर कोई इसके लिए जरिए गलत काम करता है तो उनका ही पंथ बदनाम होगा.

बंगाल में EC की सख्ती, पोलिंग बूथ पर ममता की पुलिस वर्जित

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देश में भयमुक्त व शांतिपूर्ण मतदान को लेकर निर्वाचन आयोग की सख्ती लगातार देखी जा रही है. जिसके चलते आयोग ने शुरूआत के चार चरणों में मतदान के दौरान पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा पर बड़ा फैसला लिया है. जिसमें 6 मई को होने वाले पांचवें चरण के मतदान के दौरान पोलिंग बूथ व ईवीएम सुरक्षा की कमान केंद्रीय बलों के हाथों में रहेगी. वहीं ईवीएम मशीन रखी जाने वाली जगह पर पश्चिमी बंगाल पुलिस व केंद्रीय बल, दोनों के जाने पर पाबंदी रहेगी. आयोग के फैसले के तहत वहां जाने के लिए मौजूद चुनाव अधिकारी की इजाजत लेना जरूरी रहेगा.

लोकसभा चुनाव के बीते चरणों में यहां हुई हिंसा के बाद बीजेपी द्वारा शिकायत की थी कि केंद्रीय बलों को हटाकर राज्य पुलिस को पोलिंग बूथ पर तैनात किया जा रहा है, जिससे चुनाव भी प्रभावित हो रहा है. पश्चिम बंगाल के स्पेशल पुलिस ऑबजर्वर विवेक दुबे ने जानकारी दी कि पांचवें चरण में सौ फीसदी पोलिंग बूथ को केंद्रीय बलों के द्वारा ही कवर किया जाएगा. इसके साथ ही आने वाले चरणों में इसी तरह से मतदान कराया जाएगा.

बता दें कि इसी 6 मई को होने वाले पांचवें चरण के मतदान होना है. जिसमें पश्चिम बंगाल की बंगांव, बैरकपुर, हावड़ा, उलुबेरिया, श्रीरामपुर, हुगली, आरामबाग संसदीय सीट पर वोट डाले जाने हैं. गत चरणों में हुई हिंसा के बाद बीजेपी की शिकायत पर ध्यान देते हुए आयोग ने राज्य पुलिस व केंद्रीय बल, दोनों को ही आगे के चरणों में पोलिग बूथ व ईवीएम से दूर रखने का आदेश दिया है.

गौरतलब है कि पश्चिमी बंगाल में बीते चार चरणों में कई जगह झड़प व हिंसा की घटनाएं सामने आईं थी. अभी चौथे चरण के मतदान के दौरान आसनसोल में भी बीजेपी सांसद बाबुल सुप्रीयो की पोलिंग बूथ में झड़प देखने को मिली थी. इसके बाद उनकी गाड़ी पर पथराव हुआ और शीशे तक तोड़ दिए गए थे. आसनसोल में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग करते हुए मतदान को रोक दिया था.

जिसके बाद टीएमसी-बीजेपी कार्यकर्ताओं में झड़प हुई थी. हालात को काबू में करने के लिए स्थानीय पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा था. इससे पहले मुर्शिदाबाद में मतदान के दौरान उपद्रवियों द्वारा पोलिंग बूथ पर देसी बमों से हमला किया था. जिसमें एक वोटर की मौत भी हो गई थी. जिसमें बीजेपी-टीएमसी दोनों की तरफ से एक-दूसरे पर हिंसा, मतदान में रुकावट पैदा करना व बूथ कैप्चरिंग के आरोप लगाए. हालांकि, इसके बावजूद बंगाल में चार चरणों में मतदान 80 फीसदी से ऊपर रहा है.

40 साल के सियासी सफर में पहली बार दोहरे दवाब में ‘जादूगर’

अपने 40 साल से ज्यादा के सार्वजनिक जीवन में राजस्थान ही नहीं, केंद्र की राजनीति में भी कई बार ‘जादूगरी’ दिखा चुके अशोक गहलोत की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव को कहा जाए तो गलत नहीं होगा. तीन बार राजस्थान में सत्ता के शिखर तक पहुंच चुके गहलोत ने राजनीति के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन जीत आखिरकार उनकी ही हुई है. वे कभी पार्टी के भीतर चुनौतियों से निपटे हैं तो कभी विपक्ष पर बीस साबित हुए हैं.

चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के समय राजनीति के जानकारों का एक तबका यह मानकर चल रहा था कि इस बार कांग्रेस के बहुमत हासिल करने की स्थिति में आलाकमान उनकी बजाय युवा सचिन पायलट को गद्दीनशीं करेगा, लेकिन कई दिन तक चली खींचतान के बाद अंतत: सेहरा उनके सिर ही सजा और पायलट को राहुल गांधी का वरदहस्त होने के बावजूद उप मुख्यमंत्री की कुर्सी से ही संतोष करना पड़ा.

जिस समय आलाकमान राजस्थान में मुख्यमंत्री के चयन को लेकर पसोपेश में था उस समय अशोक गहलोत के पक्ष में इस तर्क ने सबसे ज्यादा काम किया कि चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को अच्छा प्रदर्शन करना है तो सू​बे की कमान अनुभवी हाथों में सौंपना जरूरी है. अब जब राजस्थान की कमान गहलोत के हाथों में है तो आलकमान उनसे कम से कम विधानसभा चुनाव में मिली सीटों के अनुपात में लोकसभा की सीटों की जिताने की अपेक्षा कर रहा है.

वैसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने 20 सीटों का लक्ष्य रखा है. जिस तरह से देश में मोदी का प्रभाव देखने को मिल रहा है और विपक्ष मोदी को हराने के नाम पर एक हो रहा है। उस घड़ी में खुद की पार्टी के शासन वाले राज्य राजस्थान से राहुल की अपेक्षा कुछ ज्यादा होना गलत नहीं है. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि राजस्थान में पिछले कई चुनाव में यह ट्रेंड रहा है कि जिसकी सरकार होती है, उसकी लोकसभा में ज्यादा सीटें आती हैं. निश्चित रूप से आलाकमान की इस अपेक्षा का भार गहलोत के कंधों पर है.

‘मिशन-25’ के लक्ष्य के साथ चुनावी रण में उतरे अशोक गहलोत पर लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने का दवाब तो है ही, जोधपुर सीट पर बेटे वैभव का चुनाव लड़ना उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है. पहली बार गहलोत के परिवार का कोई व्यक्ति चुनाव लड़ रहा है. वह भी तब जब वे मुख्यमंत्री हैं. गहलोत चाहते तो पिछले कार्यकाल के दौरान भी वैभव को चुनावी रण में उतार सकते थे, लेकिन तब उन्होंने ऐसा नहीं किया.

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इस बार जब वैभव गहलोत को जोधपुर से उम्मीदवार बनाया गया तो सीएम गहलोत ने कई बार यह बात दोहराई कि यह टिकट उनके कहने से नहीं दिया गया है. उन्होंने कहा कि वैभव इतने साल से राजनीति में ​सक्रिय है, पार्टी ने उनके कामकाज को देखते हुए उम्मीदवार बनाया है. गहलोत के इस बयान और सच्चाई के बीच कितना फासला है, इसे राजनीति की सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी जान सकता है. इस तथ्य को कोई नकार नहीं सकता कि गहलोत की रजामंदी से वैभव को टिकट मिला है.

जोधपुर से वैभव का टिकट तय होने के बाद उनकी जीत की जिम्मेदारी अशोक गहलोत के कंधों पर आनी ही थी. पहले तो यह चुनाव आसान माना जा रहा था, लेकिन बीजेपी ने यहां जोरदार चक्रव्यूह रचा. बीजेपी उम्मीदवार गजेंद्र सिंह शेखावत मोदी-शाह के चहेते हैं. वे उनमें राजस्थान की राजनीति का भविष्य तलाश रहे हैं. ऐसे में उनकी ​जीत बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई. उनके समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी सभा की और पार्टी अध्यक्ष अ​मित शाह ने रोड-शो किया.

इस चुनाव में गजेंद्र सिंह शेखावत बीजेपी के उन गिने-चुने उम्मीदवारों में शामिल हैं, जिनका प्रचार करने मोदी-शाह, दोनों आए. बीजेपी की इस रणनीति ने वैभव गहलोत की राह कठिन कर दी. इसे आसान बनाने के लिए अशोक गहलोत को जमकर पसीना बहाना पड़ा. उन्हें गली-गली में प्रचार के लिए उतरना पड़ा. बावजूद इसके जोधपुर में कांटे की टक्कर बताई जा रही है. वोटिंग ट्रेंड के आधार पर राजनीति के जानकार जीत-हार का अंतर 40 हजार के अंदर बता रहे हैं.

हालांकि अशोक गहलोत जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हैं. उनकी नजदीकी नेता चार विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक बढ़त को जीत का आधार बता रहे हैं. वहीं, बीजेपी के नेता मोदी लहर के सामने अशोक गहलोत की रणनीति को बेअसर बताकर जीत का दावा कर रहे हैं. हालांकि गजेंद्र सिंह शेखावत के करीबी लोग यह मान रहे हैं कि मुकाबला कड़ा है और कुछ भी नतीजा आ सकता है.

जोधपुर में मतदान होने के बाद अशोक गहलोत दूसरे चरण की 12 सीटों पर धुंआधार प्रचार कर रहे हैं, लेकिन उनके चेहरे पर जोधपुर के परिणाम का दवाब देखा जा सकता है. उन्हें पता है कि कुल सीटें भले ही 7 से 8 रह जाएं, लेकिन जोधपुर में वैभव चुनाव हार गए तो यह उनकी सियासत के लिए कितनी हानिकारक होगी. विरोधी खेमा यह कहने में जरा भी देर नहीं लगाएगा कि जो अपने गृह क्षेत्र में बेटे को चुनाव नहीं जिता सके उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने का क्या अधिकार है.

कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि राजस्थान में लोकसभा चुनाव का रण मुख्यमंत्री के साथ साथ पिता अशोक गहलोत की भी अग्निपरीक्षा ले रहा है. अब यह तो भविष्य के गर्त में है कि हर बार की तरह अशोक गहलोत की सियासी जादूगरी चलती है या इसकी धार कुंद होती है.

 

लोकसभा चुनाव के रण में दांव पर इन दबंगों की सियासी साख

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राजनीति और अपराध का नाता पुराना रहा है. इतिहास पर नजर डालें तो जरायम की दुनिया से निकले लोगों ने राजनीति में अपना स्थान बनाया है. साथ ही देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में भी पहुंचे हैं और उनकी हिस्सेदारी सरकारों में भी रही है. लेकिन यूपीए सरकार के समय आया अध्यादेश इन अपराधियों के गले की फांस बन गया. इस अध्यादेश का लब्बोलुआब कुछ ऐसा था कि दो साल से अधिक सजा पाए अपराधियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी.

कई आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोग इन चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं इनके अलावा जो बाहुबली यूपीए सरकार के दौरान आए अध्यादेश के कारण चुनाव लड़ने में अयोग्य हो गए, उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा है. भले ही इन नेताओं की पहचान देश में एक अपराधियों की है लेकिन इनके क्षेत्रों में इनकी छवि रॉबिनहुड टाइप की है. आइए जानते हैं देश के शीर्ष बाहुबलियों के बारे में-

अफजाल अंसारी:

उत्तर प्रदेश की पूर्वांचल की राजनीति में अंसारी परिवार का खासा दबदबा है. अफजाल उत्तर प्रदेश की गाजीपुर सीट से बसपा के टिकट पर मैदान में है और साल 2004 में सपा से सांसद रह चुके हैं. 2014 में यहां से बीजेपी के मनोज सिन्हा ने जीत हासिल की थी. अफजाल का प्रभाव उनके भाई के कारण है. अफजाल के भाई मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में राजनीति और अपराध के बड़े चेहरे हैं. मुख्तार 2004 से जेल में बंद हैं और जेल से ही लगातार चुनाव जीत रहे हैं. वह 1996 से लगातार मऊ से विधायक है. अंसारी परिवार की इस क्षेत्र में पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्तार 2017 में बीजेपी की आंधी में भी जीतने में कामयाब हुए थे. मुख्तार 2009 में वाराणसी से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके है जिसमें उन्हें बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी से करीबी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था. मुख्तार बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में जेल में बंद है.

मोहम्मद शहाबुद्दीन: 

देश में अगर सिवान की चर्चा होती है तो आंख के सामने जघन्य तेजाब कांड की तस्वीर आ जाती है. हीना साहब की उम्मीदवारी उसी हत्याकांड से जुडी है. हीना के पति और सिवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन तेजाब कांड के मुख्य आरोपी हैं. उन्हें कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. शहाबुद्दीन वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. शहाबुद्दीन बिहार की सिवान सीट से चार बार सांसद चुने गए थे. हीना साहब को 2009 और 2014 में ओमप्रकाश यादव से हार का सामना करना पड़ा था. शहाबुद्दीन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नजदीकी माने जाते है. कुछ समय पूर्व उनका लालू यादव के साथ एक ऑडियो वायरल हुआ था जिसे लेकर बिहार की सियासत में काफी बवाल मचा था.

अनंत सिंह:

इसी कड़ी में आगे है नीलम सिंह, जो बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. उनकी उम्मीदवारी उनके पति अनंत सिंह के कारण चर्चा में है. अनंत सिंह बिहार की मोकामा सीट से लगातार चार बार से विधायक है. वो 3 बार जदयू और साल 2015 में निर्दलीय विधायक चुने गए थे. उनकी गिनती बिहार के उन नेताओं में है जिन्होंने अपराध की दुनिया से राजनीति से प्रवेश किया है. वें 2005 में पहली बार विधायक चुने गए थे. उनपर हत्या और अपहरण के अनेक मामले दर्ज हैं. उन्हें कई दफा जेल की हवा भी खानी पड़ी थी लेकिन हर बार अपने राजनीतिक रसूख के कारण बचते रहे. बिहार में लोग अनंत सिंह को छोटे सरकार के नाम से जानते है. मुंगेर में इस बार मुकाबला नीलम सिंह और नीतीश सरकार के मंत्री जदयू नेता ललन सिंह के बीच है.

सूरजभान सिंह:

बिहार का ही बड़ा नाम है चंदन कुमार, जो नवादा सीट से लोजपा के टिकट पर मैदान में है. बता दें कि बिहार में बीजेपी-जदयु-लोजपा गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं. नवादा की सीट केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की वजह से देश में काफी चर्चा में रहीं. लेकिन 2019 के चुनाव में ये सीट लोजपा के हिस्से में आई जिस वजह से गिरिराज सिंह को बेगूसराय लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया. नवादा सीट बाहुबली सूरजभान सिंह के कारण चर्चा में हैं. लोजपा के प्रत्याशी चंदन कुमार बाहुबली नेता सूरजभान सिंह के छोटे भाई है. बता दें कि सूरजभान सिंह की गिनती बिहार के मुख्य बाहुबलियों में होती है. एक समय उनका खौफ बिहार में इतना था कि उनका नाम लेने से पहले लोग 100 बार सोचते थे. बाद में वो अपराध के माध्यम से राजनीति में आए. मोकमा से निर्दलीय विधायक चुने गए. बाद में वो रामविलास पासवान से जुड़े और बिहार की बलिया सीट से सांसद चुने गए. सूरजभान की पत्नी वीणा देवी भी बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से साल 2014 में सांसद चुनी गई थी. कोर्ट ने सूरजभान सिंह को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है और वो अभी जमानत पर बाहर है.

पप्पू यादव:

इसी कड़ी में आगे है पप्पू यादव. बिहार की सियासत का वो बड़ा नाम जिसके साथ विवाद हमेशा जुड़े रहे. पप्पू पर हत्या जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं. हालांकि पप्पू यादव इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. पप्पू यादव देश की सबसे बड़ी पंचायत के पांच बार सदस्य चुने गए है. 2014 में वो राजद के टिकट पर मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे. उन्होंने जदयू के शरद यादव को हराया था लेकिन इस बार परिस्थितियां बिलकुल विपरीत है. पप्पू यादव जन अधिकार पार्टी से मैदान में है. पप्पू यादव ने 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले राजद छोड़कर जन अधिकार पार्टी का गठन किया था लेकिन उनको कामयाबी नहीं मिली थी. शरद यादव महागठबंधन के प्रत्याशी हैं.

राजस्थान: पहले चरण में बंपर वोटिंग से बीजेपी बमबम, कांग्रेस टेंशन में

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राजस्थान में पहले चरण की 13 लोकसभा सीटों पर हुई वोटिंग ने 67 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. भीषण गर्मी के बावजूद लोगों ने बंपर मतदान करते हुए नया इतिहास रचा. इन सीटों पर 68.16 प्रतिशत मतदान हुआ है. भारी मतदान के बाद जहां कांग्रेस 13 में से तीन सीटों पर ही जीत मानकर चल रही है जबकि बीजेपी 12 सीटों पर जीत तय मान रही है.

सियासत में यह धारणा बनी हुई है कि वोट प्रतिशत घटने से कांग्रेस को फायदा होता है जबकि बढ़ने से बीजेपी को फायदा होता है. ऐसे में पहले फेज की वोटिंग के बाद कांग्रेसी खेमे में अभी से मायूसी दिखने लगी है. दिग्गज नेता वोटिंग ट्रेंड का विश्लेषण कर रहे हैं. सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और प्रभारी अविनाश पांडेय बूथवाइज मतदान प्रतिशत के आंकड़ो को खंगालने में जुटे हुए हैं.

अविनाश पांडेय लोकसभा सीटों पर भेजे गए पर्यवेक्षकों और उम्मीदवारों से बढ़े हुए मतदान प्रतिशत की हकीकत जानने में जुटे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक अब तक मिले फीडबैक के अनुसार पार्टी की चिंता बढ़ा दी है. ‘पॉलिटॉक्स न्यूज’ ने जब 13 सीटों के वोटिंग ट्रेंड की पड़ताल की तो कई चीजें निकलकर सामने आई.

आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि सिर्फ वोटिंग घटने या बढ़ने से कांग्रेस-बीजेपी की हार-जीत का आकलन नहीं किया जा सकता. कई चुनावों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के बावजूद कांग्रेस ने जीत दर्ज की है और बीजेपी वोटिंग प्रतिशत कम रहने पर फतह हासिल कर चुकी है. हालांकि ज्यादातर बार वोटिंग बढ़ने का फायदा बीजेपी को हुआ है.

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते राजस्थान में इन 13 सीटों पर 64.27 फीसदी मतदान हुआ था जब​कि इस बार इन सीटों पर 3.90 ज्यादा वोटिंग हुई है. यह बढ़ी हुई वोटिंग क्या एक बार फिर मोदी लहर के चलते बीजेपी के पक्ष में हुई है या कांग्रेस के समर्थन में लोग मतदान केंद्र तक ज्यादा संख्या में पहुंचे?

‘पॉलिटॉक्स न्यूज’ की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार 13 सीटों पर मोदी लहर कायम है और कांग्रेस के पक्ष में कोई अंडर करंट नहीं है. यानी ज्यादा वोटिंग से बीजेपी को फायदा होगा और कांग्रेस को नुकसान. वोटिंग के आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि अजमेर लोकसभा सीट को छोड़कर सभी जगह ज्यादा लोग मतदान केंद्रों तक पहुंचे हैं. अजमेर में भी वोटिंग प्रतिशत गिरने को कांग्रेस की जीत से जोड़कर नहीं देखा जा रहा, क्योंकि पार्टी के प्रत्याशी रिजु झुनझुनवाला के बाहरी होने के चलते कांग्रेस के मतदाताओं ने उदासीनता दिखाई. पिछली बार खुद सचिन पायलट मैदान में थे इसलिए मतदान प्रतिशत बढ़ा था.

बंपर वोटिंग के बाद कांग्रेस टोंक-सवाई माधोपुर, जोधपुर और बाड़मेर में ही जीत मानकर चल रही है. जोधपुर में सियासत के जादूगर कहे जाने वाले सीएम अशोक गहलोत की रणनीति के चलते कांग्रेसी जीतकर मान चल रहे हैं. हालांकि इस सीट पर भी कई कांग्रेसी जीत पर संशय जता रहे हैं. वहीं, बाड़मेर सीट को कांग्रेस अपने खाते में मान रही है. हालांकि यहां अंतर उम्मीद से कम बताया जा रहा है.

‘समाजवाद का नारा देने वाले टोंटी भी नहीं छोड़ते हैं’

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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर जमकर हमला बोला. रैली के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि यहां जो गठबंधन बना वो महागठबंधन नहीं महामिलावट है. साथ ही सपा अध्यक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि समाजवाद का नारा देने वाले ऐसा समाजवाद लेकर आए जो टोंटी भी नहीं छोड़ते हैं. उन्होंने जनता से कहा कि अगर सरकार महामिलावट की बनेंगी तो देश के हालातों का अंदाजा आप भी लगा सकतें है.

वहीं इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी बिहार में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे. जहां मुजफ्फरपुर में चुनावी सभा में संबोधन के दौरान पीएम ने कहा कि आप बिहार में अगर महामिलावट को मजबूत करेंगे तो बिहार में पुराना जंगलराज का दौर फिर से शुरू हो जाएगा. जिसके चलते अपहरण फिर धंधे के रूप में विकसित होगा. आप लोग सूरज छिपने के बाद अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाएंगे.

साथ ही पीएम मोदी ने कहा कि, महामिलावट को मजबूत करने का नतीजा ये होगा कि बिहार में वापस जंगलराज स्थापित होगा और कानून का राज समाप्त हो जाएगा. जिसके चलते हर जगह अपराधियों की तूती बोलेगी. रैली के दौरान उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए कहा कि जिन लोगों की हैसियत नेता विपक्ष का पद हासिल करने की नहीं है वो देश के प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाल रखे हैं.

बता दें कि मुजफ्फरपुर में मुकाबला वर्तमान बीजेपी सांसद अजय निषाद और वीआईपी पार्टी के राम निषाद के बीच है. वही बाराबंकी में मुकाबला बीजेपी के उप्रेन्द्र रावत व सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन के सपा प्रत्याशी राम सागर रावत में है. वहीं कांग्रेस ने यहां से तनुज पूनिया को चुनावी मैदान में उतारा है.

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