राजनीति और अपराध का नाता पुराना रहा है. इतिहास पर नजर डालें तो जरायम की दुनिया से निकले लोगों ने राजनीति में अपना स्थान बनाया है. साथ ही देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में भी पहुंचे हैं और उनकी हिस्सेदारी सरकारों में भी रही है. लेकिन यूपीए सरकार के समय आया अध्यादेश इन अपराधियों के गले की फांस बन गया. इस अध्यादेश का लब्बोलुआब कुछ ऐसा था कि दो साल से अधिक सजा पाए अपराधियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी.
कई आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोग इन चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं इनके अलावा जो बाहुबली यूपीए सरकार के दौरान आए अध्यादेश के कारण चुनाव लड़ने में अयोग्य हो गए, उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा है. भले ही इन नेताओं की पहचान देश में एक अपराधियों की है लेकिन इनके क्षेत्रों में इनकी छवि रॉबिनहुड टाइप की है. आइए जानते हैं देश के शीर्ष बाहुबलियों के बारे में-
अफजाल अंसारी:
उत्तर प्रदेश की पूर्वांचल की राजनीति में अंसारी परिवार का खासा दबदबा है. अफजाल उत्तर प्रदेश की गाजीपुर सीट से बसपा के टिकट पर मैदान में है और साल 2004 में सपा से सांसद रह चुके हैं. 2014 में यहां से बीजेपी के मनोज सिन्हा ने जीत हासिल की थी. अफजाल का प्रभाव उनके भाई के कारण है. अफजाल के भाई मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में राजनीति और अपराध के बड़े चेहरे हैं. मुख्तार 2004 से जेल में बंद हैं और जेल से ही लगातार चुनाव जीत रहे हैं. वह 1996 से लगातार मऊ से विधायक है. अंसारी परिवार की इस क्षेत्र में पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्तार 2017 में बीजेपी की आंधी में भी जीतने में कामयाब हुए थे. मुख्तार 2009 में वाराणसी से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके है जिसमें उन्हें बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी से करीबी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था. मुख्तार बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में जेल में बंद है.
मोहम्मद शहाबुद्दीन:
देश में अगर सिवान की चर्चा होती है तो आंख के सामने जघन्य तेजाब कांड की तस्वीर आ जाती है. हीना साहब की उम्मीदवारी उसी हत्याकांड से जुडी है. हीना के पति और सिवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन तेजाब कांड के मुख्य आरोपी हैं. उन्हें कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. शहाबुद्दीन वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. शहाबुद्दीन बिहार की सिवान सीट से चार बार सांसद चुने गए थे. हीना साहब को 2009 और 2014 में ओमप्रकाश यादव से हार का सामना करना पड़ा था. शहाबुद्दीन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नजदीकी माने जाते है. कुछ समय पूर्व उनका लालू यादव के साथ एक ऑडियो वायरल हुआ था जिसे लेकर बिहार की सियासत में काफी बवाल मचा था.
अनंत सिंह:
इसी कड़ी में आगे है नीलम सिंह, जो बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. उनकी उम्मीदवारी उनके पति अनंत सिंह के कारण चर्चा में है. अनंत सिंह बिहार की मोकामा सीट से लगातार चार बार से विधायक है. वो 3 बार जदयू और साल 2015 में निर्दलीय विधायक चुने गए थे. उनकी गिनती बिहार के उन नेताओं में है जिन्होंने अपराध की दुनिया से राजनीति से प्रवेश किया है. वें 2005 में पहली बार विधायक चुने गए थे. उनपर हत्या और अपहरण के अनेक मामले दर्ज हैं. उन्हें कई दफा जेल की हवा भी खानी पड़ी थी लेकिन हर बार अपने राजनीतिक रसूख के कारण बचते रहे. बिहार में लोग अनंत सिंह को छोटे सरकार के नाम से जानते है. मुंगेर में इस बार मुकाबला नीलम सिंह और नीतीश सरकार के मंत्री जदयू नेता ललन सिंह के बीच है.
सूरजभान सिंह:
बिहार का ही बड़ा नाम है चंदन कुमार, जो नवादा सीट से लोजपा के टिकट पर मैदान में है. बता दें कि बिहार में बीजेपी-जदयु-लोजपा गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं. नवादा की सीट केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की वजह से देश में काफी चर्चा में रहीं. लेकिन 2019 के चुनाव में ये सीट लोजपा के हिस्से में आई जिस वजह से गिरिराज सिंह को बेगूसराय लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया. नवादा सीट बाहुबली सूरजभान सिंह के कारण चर्चा में हैं. लोजपा के प्रत्याशी चंदन कुमार बाहुबली नेता सूरजभान सिंह के छोटे भाई है. बता दें कि सूरजभान सिंह की गिनती बिहार के मुख्य बाहुबलियों में होती है. एक समय उनका खौफ बिहार में इतना था कि उनका नाम लेने से पहले लोग 100 बार सोचते थे. बाद में वो अपराध के माध्यम से राजनीति में आए. मोकमा से निर्दलीय विधायक चुने गए. बाद में वो रामविलास पासवान से जुड़े और बिहार की बलिया सीट से सांसद चुने गए. सूरजभान की पत्नी वीणा देवी भी बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से साल 2014 में सांसद चुनी गई थी. कोर्ट ने सूरजभान सिंह को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है और वो अभी जमानत पर बाहर है.
पप्पू यादव:
इसी कड़ी में आगे है पप्पू यादव. बिहार की सियासत का वो बड़ा नाम जिसके साथ विवाद हमेशा जुड़े रहे. पप्पू पर हत्या जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं. हालांकि पप्पू यादव इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. पप्पू यादव देश की सबसे बड़ी पंचायत के पांच बार सदस्य चुने गए है. 2014 में वो राजद के टिकट पर मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे. उन्होंने जदयू के शरद यादव को हराया था लेकिन इस बार परिस्थितियां बिलकुल विपरीत है. पप्पू यादव जन अधिकार पार्टी से मैदान में है. पप्पू यादव ने 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले राजद छोड़कर जन अधिकार पार्टी का गठन किया था लेकिन उनको कामयाबी नहीं मिली थी. शरद यादव महागठबंधन के प्रत्याशी हैं.