उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण के खिलाड़ी तय हो चुके हैं. नाम वापसी के बाद अब वही मैदान में हैं जिन्हें सियासी जंग लड़नी है. 5वें चरण की यह 14 पॉपुलर सीटें अवध की तराई से लेकर बुंदेलखंड तक फैली हैं. सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह और जितिन प्रसाद जैसे राष्ट्रीय चेहरों की चमक भी इसी चरण में तय होनी है. राम नगरी अयोध्या का प्रतिनिधित्व कर रही फैजाबाद अपना खेवनहार किसे बनाएगी, यह भी इसी चरण में तय होगा. इस समय कांग्रेस परिवार की दो सीटों को छोड़कर सब पर बीजेपी काबिज है. इन 14 सीटों पर मिलने वाली बढ़त 2019 में सत्ता हासिल करने वालों की किस्मत तय करने में भी अहम भूमिका निभाएंगीआइए जानते हैं इनके बारे में …
1. हाई प्रोफाइल सीट धौरहरा:
मनमोहन सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद की उम्मीदवारी के चलते यह सीट हाई प्रोफाइल मानी जाती है. 2009 में अस्तित्व में आई इस सीट से कांग्रेस के जितिन प्रसाद 1.85 लाख वोटों के अंतर से जीते लेकिन 2014 में पासा ऐसा पलटा कि वह न केवल चौथे नंबर पर रहे बल्कि उन्हें उनकी पुरानी जीत के अंतर से भी कम वोट मिले. इन चुनावों में बीजेपी ने मौजूदा सांसद रेखा वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है. बसपा से अरशद सिद्दीकी गठबंधन प्रत्याशी हैं. वहीं प्रसपा ने कभी चंबल में खौफ का पर्याय रहे मलखान सिंह को उतार मुकाबला दिलचस्प बना दिया है. मुस्लिम और ब्राह्मण बहुल सीट पर जितिन प्रसाद की उम्मीदें इन दोनों जाति के वोट बैंक पर टिकी है. पिछली बार सपा–बसपा को यहां बराबर–बराबर वोट मिले थे जोकि बीजेपी उम्मीदवार को मिले वोट से 1.18 लाख अधिक थे. ऐसे में दोनों दलों ने आपस में वोट ट्रांसफर करा लिए तो नतीजे उनके पक्ष में आ सकते हैं.
प्रत्याशी
रेखा वर्मा : बीजेपी
जितिन प्रसाद : कांग्रेस
अरशद सिद्दीकी : बसपा
मलखान सिंह : प्रसपा
कुल वोटर : 16.34 लाख
2. सीतापुर: त्रिकोणीय लड़ाई में कोर वोटर होंगे अहम
आजादी के बाद से लेकर अब के चुनाव में इस सीट पर तीन मौकों को छोड़कर ब्रा्ह्मण या कुर्मी ही सांसद बना है. 2014 में बीजेपी कभी बसपाई रहे राजेश वर्मा के जरिए 51 हजार वोटों की बढ़त के साथ इस सीट पर काबिज हुई थी. इस बार भी पार्टी ने उन्हीं पर दाव खेला है. यहां से कैसरजहां कांग्रेस और नकुल दुबे बसपा की तरफ से मैदान में हैं. इस सीट पर मुस्लिम, दलित, ब्राह्मण व कुर्मी वोटर्स की संख्या अधिक है. बसपा ने प्रभावी ब्राह्मण चेहरा लेकर ब्राह्मणों के साथ दलित वोटों पर भी निशाना साधा है. लड़ाई त्रिकोणीय है इसलिए कोर वोटर्स का गणित अहम किरदार निभाएगा.
प्रत्याशी
राजेश वर्मा : बीजेपी
नकुल दुबे : बसपा
कैसर जहां : कांग्रेस
कुल वोटर : 16.53 लाख
3. मोहनलालगंज : कौशल दिखेगा या खत्म होगा बसपा का सूखा
मोहनलालगंज, सियासत और विकास दोनों ही पैमाने पर राजधानी से जुदा है. बिल्डरों व जमीन के कारोबार करने वालों का यह पसंदीदा इलाका सियासत में भी अलग-अलग चेहरे चुनता रहा है. बावजूद इसके, अब तक बसपा का खाता यहां नहीं खुल सका है. 1998 के बाद 2014 में कौशल किशोर ने यहां बीजेपी का कमल खिलाया और इस बार भी पार्टी का भरोसा कौशल ही है. बसपा से सीएल वर्मा यहां से प्रत्याशी है. पिछली बार बसपा के चुनावी उम्मीदवार आर.के. चौधरी इस बार कांग्रेस के झंडे के साथ मैदान में है. दलित बहुल इस इस सीट पर पासी सर्वाधिक हैं लेकिन तीनों ही दलों के उम्मीदवार इसी बिरादरी के हैं. ऐसे में दलित व मुस्लिम वोट बैंक यहां की तस्वीर तय करेंगे.
प्रत्याशी
कौशल किशोर : बीजेपी
सीएल वर्मा : बसपा
आरके चौधरी : कांग्रेस
कुल वोटर : 19.56 लाख
4. लखनऊ : महज एमपी नहीं चुनती राजधानी
यूपी की राजधानी लखनऊ तीन दशक से महज एमपी चुनने तक ही सीमित नहीं रही. 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका प्रतिनिधित्व किया तो अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं. इस बार भी वह मैदान में हैं. उनसे मुकाबले के लिए सपा शत्रुघ्न सिंहा की पत्नी पूनम सिंहा को तलाश लाई है. कांग्रेस की तलाश प्रमोद कृष्णम पर पूरी हुई है. यहां जातीय गणित बीजेपी के लिए उलझन पैदा करती है. यहां करीब पौने पांच लाख मुस्लिम, तीन लाख कायस्थ और दो लाख से अधिक दलित हैं. क्षेत्र के साढ़े चार लाख ब्राह्मण, एक लाख ठाकुर और तीन लाख से अधिक व्यापारी, सिंधी व पंजाबी अगर बीजेपी के साथ जाते हैं तो विपक्ष की दोनों पार्टियों के लिए मुश्किल होगी.
प्रत्याशी
राजनाथ सिंह : बीजेपी
पूनम सिन्हा : सपा
प्रमोद कृष्णम : कांग्रेस
कुल वोटर : 19.58 लाख
5. रायबरेली : सोनिया के सामने उनका ही ‘सिपहसालार’
इंदिरा गांधी को चौंकाने वाली रायबरेली की जनता अब तक उनकी बहू सोनिया गांधी के साथ मजबूती से खड़ी रही है. यूपीए की संयोजक ने पांचवी बार इसी सीट से अपना नामांकन दाखिल किया है. पिछली बार उन्होंने बीजेपी के अजय अग्रवाल को 3.52 लाख वोटों से हराया था. इस बार बीजेपी ने उनके खिलाफ उन्हीं के सिपहसालार कांग्रेस से विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह पर दांव खेला है. दिनेश का परिवार रायबरेली में राजनैतिक रूप से प्रभावी है. उनके भाई राकेश प्रताप सिंह हरचंदपुर से कांग्रेस के विधायक हैं जबकि एक भाई जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. ऐसे में दिनेश की दावेदारी रायबरेली में लड़ाई को दिलचस्प बनाएगी. सपा–बसपा ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है.
प्रत्याशी
सोनिया गांधी : कांग्रेस
दिनेश प्रताप सिंह : बीजेपी
सपा-बसपा : कोई नहीं
कुल वोटर : 16.50 लाख
6. अमेठी : चुनौतियों के चक्रव्यूह में राहुल
गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं. उनका मुकाबला मौजूदा केंद्रीय मंत्री व बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति जुबिन ईरानी से है. 2009 में 71% फीसदी वोट हासिल करने वाले राहुल गांधी 2014 में अमेठी में 46% वोट पर पहुंच गए थे और जीत का अंतर घटकर 1.08 लाख आ गया. इन पांच सालों में हार के बाद भी स्मृति इरानी लगातार अमेठी में बनी रहीं. यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां शानदार प्रदर्शन किया था. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष का कद व गांधी परिवार से अमेठी का जुड़ाव अब भी राहुल के लिए मुफीद स्थिति बनाता है लेकिन जो राहुल गांधी को नहीं चुनना चाहते, उनके लिए स्मृति इरानी का एकमात्र विकल्प होना मुश्किल पैदा करेगा. राहुल के वायनाड़ से लड़ने को भी बीजेपी चुनावी मुद्दा बना वोटर्स को अपने पाले में खींचने में लगी है.
प्रत्याशी
राहुल गांधी : कांग्रेस
स्मृति ईरानी : बीजेपी
कुल वोटर : 17.18 लाख
7. बांदा : अगड़े-दलित वोट तय करेंगे जीत
यह सीट इस बार दल–बदल का अखाड़ा बनी हुई है. पिछली बार इलाहाबाद सीट से बीजेपी सांसद श्यामाचरण गुप्ता यहां से सपा गठबंधन उम्मीदवार हैं. सपा से चुनावी लड़ाई लड़ चुके बाल कुमार पटेल पर कांग्रेस ने अपनी उम्मीदें लगाई हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद भैरो प्रसाद मिश्र का टिकट काट बसपा से चुनाव लड़कर आए आर.के. पटेल को दिया है. वैश्य बिरादरी के वोटरों की प्रभावी संख्या के साथ दलितों, मुस्लिमों की बहुतायत उनका दावा मजबूत बना रही है. बीजेपी बड़ी संख्या में मौजूद ब्राह्मण वोटर्स के भरोसे हैं. अगड़े–दलित जीत–हार में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
प्रत्याशी
आरके पटेल : बीजेपी
श्यामाचरण गुप्ता : सपा
बाल कुमार पटेल : कांग्रेस
कुल वोटर : 16.82 लाख
8. फतेहपुर : साध्वी की ‘साध’ में रोड़े अधिक
पिछड़ा वोटर बहुल इस सीट पर राजनीति मंडल और कमंडल के ध्रुवीकरण पर टिकी है. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर देश की राजनीति बदलने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह भी फतेहपुर की नुमाइंदगी कर चुके हैं. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति पर फिर भरोसा जताया है तो बसपा ने बिंदकी के पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद वर्मा को टिकट दिया है. टिकट की आस टूटने के बाद पूर्व सांसद राकेश सचान सपा छोड़ कांग्रेस की उम्मीदवारी कर रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में साध्वी को सपा-बसपा के कुल वोटों से भी अधिक वोट मिले थे लेकिन इस बार विपक्ष के दोनों उम्मीदवार कुर्मी होने के चलते उनमें बंटवारा होता दिख रहा है. साध्वी की अपनी बिरादरी के वोट भी यहां प्रभावी है लेकिन मुस्लिम-दलित वोटों का रुख भी बहुत कुछ तय करेगा. हालांकि ढाई लाख से अधिक सवर्ण बिरादरी के वेाट बीजेपी के समीकरण को मुफीद बना रहे हैं.
प्रत्याशी
साध्वी निरंजन ज्योति : बीजेपी
सुखदेव प्रसाद वर्मा : बसपा
राकेश सचान : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.20 लाख
9. कौशांबी : राजा की एंट्री ने दिलचस्प बनाया मुकाबला
सुरक्षित सीट पर सपा-बसपा के प्रभाव का आकलन इससे किया जा सकता है कि त्रिकोणीय लड़ाई में भी बीजेपी 42 हजार वोटों से जीत पाई थी. हालांकि, इस बार निर्दलीय विधायक व क्षेत्र की राजनीति में प्रभावी रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भईया की जनसत्ता पार्टी की एंट्री ने चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. बीजेपी ने सांसद विनोद सोनकर पर फिर से दांव लगाया है. पिछली बार उन्हें सपा से कड़ी टक्कर देने वाले पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार जनसत्ता दल से उम्मीदवार हैं. बसपा छोड़कर पार्टी में आए इंद्रजीत सरोज पर सपा ने दांव लगाया है तो बसपा से आए गिरीश चंद्र पासी कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. दलित बहुल इस सीट की दो विधानसभाएं कुंडा व बाबूगंज प्रतापगढ़ जिले में आती हैं. इन दोनों ही सीटों पर राजा भईया का सिक्का चलता है. ऐसे में उनकी पार्टी वोटकटवा बनेगी या निर्णायक लड़ाई लड़ेगी, इसी पर दूसरे दलों का भविष्य निर्भर करेगा.
प्रत्याशी
विनोद कुमार : बीजेपी
इंद्रजीत सरोज: सपा
गिरीश चंद्र पासी : कांग्रेस
शैलेंद्र कुमार : जनसत्ता दल
कुल वोटर : 17.65 लाख
10. बाराबंकी : त्रिकोणीय लड़ाई में फंसी कांग्रेस की उम्मीद
प्रदेश की राजधानी से सटी इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता पीएल पूनिया अपने बेटे तनुज पूनिया के सियासी भविष्य बनाने का ख्वाब पाले हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद प्रियंका रावत का टिकट काट जैदपुर से विधायक उपेंद्र रावत को चुना है. चार बार के सांसद राम सागर रावत सपा के उम्मीदवार है. यहां लड़ाई त्रिकोणीय है और दिग्गजों की भूमिका अहम. मसलन सपा उम्मीदवार की पहचान जमीनी चेहरे के तौर पर है और क्षेत्र की राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप रखने वाले कुर्मी बिरादरी के बड़े नेता राज्यसभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा का पूरा समर्थन. कुर्मी वोटरों की यहां अच्छी खासी संख्या है. मुस्लिमों में पैठ और बसपा का साथ समीकरण को दुरुस्त करता है. वहीं सर्वण वोटों की प्रभावी संख्या व मोदी प्रभाव उन्हें लड़ाई में मजबूत बनाता है. कांग्रेस दलितों के साथ मुस्लिम वोटों में सेंधमारी के भरोसे है.
प्रत्याशी
उपेंद्र रावत : बीजेपी
राम सागर रावत : सपा
तनुज पुनिया : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.04 लाख
11. फैजाबाद : राम नगरी में किसका होगा बेड़ा पार
देश की सियासत बदलने वाली राम नगरी समय-समय पर सांसद बदलती रहती है. हर दल को मौका दे चुके फैजाबाद में बीजेपी का वनवास 1999 के बाद 2014 में लल्लू सिंह की जीत के बाद खत्म हुआ था. लल्लू इस बार भी पार्टी के उम्मीदवार हैं. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं दो बार यहीं से सांसद रहे निर्मल खत्री भी मैदान में है. सपा ने पूर्व सांसद मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन यादव पर भरोसा जताया है. देशभर में रामलहर की बुनियाद तय करने वाली इस सीट से मोदी लहर में बीजेपी को सपा, बसपा व कांग्रेस तीनों से ही अधिक वोट मिले थे लेकिन इस बार लड़ाई त्रिकोणीय है. कभी यहां के डीएम रहे रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट विजय शंकर पांडेय भी यहीं से सियासी पारी शुरू कर रहे हैं. बीजेपी राम-राष्ट्रवाद के साथ मोदी के भरोसे मैदान में है जबकि गठबंधन जातीय समीकरणों को साध रहे हैं. वहीं कांग्रेस शहरी व मुस्लिम वोटर्स के समर्थन की संभावनाओं पर नींव तैयार कर रही है.
प्रत्याशी
लल्लू सिंह : बीजेपी
आनंद सेन यादव : सपा
निर्मल खत्री : कांग्रेस
कुल वोटर : 18.04 लाख
12. बहराइच : सुरक्षित सीट पर ‘असुरक्षित’ बीजेपी
मान्यता है कि यहां के वोटर भी हर पार्टी की दुआ कबूल करते हैं. फिलहाल बीजेपी से यहां सांसद बनी सावित्री बाई फुले इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. बीजेपी ने अक्षयवार लाल गौंड को उतारा है और सपा ने पार्टी के पुराने चेहरे शब्बीर अहमद वाल्मीकि पर फिर दांव लगाया है. एक बार फिर बीजेपी दलितों के साथ ही सवर्ण मतदाताओं के भरोसे है. कांग्रेस 2009 में यह सीट जीत चुकी है और मौजूदा सांसद को टिकट देकर उनकी क्षेत्र में पैठ व मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी के जरिए अपनी राह बना रही है. इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 25 प्रतिशत से अधिक है इसलिए उनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है.
प्रत्याशी
अक्षयवार लाल गौड़ : बीजेपी
शब्बीर अहमद वाल्मीकि : सपा
सावित्री बाई फुले : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.13 लाख
13. कैसरगंज : अखाड़े में तीसरी पारी के लिए ‘पहलवान’
गोंडा जिले की इस सीट से कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह अपनी तीसरी पारी खेलने के लिए मैदान में है. बसपा से चंद्रदेव राम यादव गठबंधन के उम्मीदवार है. कांग्रेस ने पूर्व सांसद विनय कुमार पांडेय को उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण-ठाकुर बहुल इस सीट पर पिछली बार ब्रजभूषण 78 हजार वोट से जीते थे. मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी न होना भी ब्रजभूषण के पक्ष में है. बसपा उम्मीदवार का बाहरी होना यहां एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में कोर वोटर्स की एकजुटता पर ही गठबंधन की आस टिकी है.
प्रत्याशी
ब्रजभूषण सिंह : बीजेपी
चंद्रदेव राम यादव : बसपा
विनय कुमार पांडेय : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.91 लाख
14. गोंडा : राजा बनाम ‘पंडित’ की लड़ाई
अवध की इस ‘रियासत’ में इस बार सियासी लड़ाई ‘राजा बनाम पंडित‘ की है. बीजेपी से मौजूदा सांसद व गोंडा इस्टेट के उत्तराधिकारी कीर्तिवर्धन सिंह पार्टी का फिर से कमल खिलाने के लिए मैदान में हैं. उनके सामने गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह हैं. कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल को इस सीट पर उतारा है. इस सीट पर कुर्मी वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है, जिनके साथ ब्राह्मण व मुस्लिम वोटों की जुगलबंदी कर कांग्रेस के बेनी प्रसाद वर्मा 2009 में यहां से सांसद बने थे. फिलहाल दो ठाकुरों की लड़ाई में सबसे बड़ा अंतर छवि का है. यहां ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक दोनों उम्मीदवारों की किस्मत तय करेंगे. वहीं कुर्मी वोटर्स में कृष्णा पटेल की सेंधमारी बीजेपी को परेशान कर सकती है.
प्रत्याशी
कीर्तिवधन सिंह : बीजेपी
विनोद सिंह उर्फ पंडित : सपा
कृष्णा पटेल : कांग्रेस
कुल वोटर : 17.54 लाख