ये कहानी एक ऐसे नेता की है जिन्हें बिहार में ‘सन आफ मल्लाह’ के नाम से जाना जाता है. इन्होंने अपने करियर की शुरुआत तो फिल्मी दुनिया से की लेकिन 2015 में ये चेहरा बिहार की राजनीति में उभर कर आया. बात कर रहे हैं मुकेश सहनी की. मुकेश सहनी बिहार में एकदम से उभरी विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष हैं. फिलहाल यह पार्टी बिहार के महागठबंधन में शामिल है और उसके हिस्से में तीन सीटें आई हैं. मुकेश खुद बिहार की खगड़िया सीट से चुनाव मैदान में है. उनका मुकाबला जदयु के महबूब अली कैसर से है जो वर्तमान सांसद है.

महागठबंधन के स्वरुप की सबसे हैरान करने वाली बात जो बिहार और देश के राजनीतिक जानकारों के मध्य है, उसमें मुकेश सहनी की नई नवेली पार्टी को महागठबंधन में 3 सीटें देने की है. जानकार सवाल उठा रहे है कि बिहार की राजनीति में इतने बरस से सक्रिय होने के बावजूद गठबंधन में जीतनराम मांझी के हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 3 व उप्रेन्द्र कुशवाहा को 5 ही सीटें मिली. वहां सिर्फ एक साल पहले अस्तित्व में आई पार्टी कैसे तीन सीटें पाने में कामयाब हुई. कुशवाहा की पार्टी पिछला लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ी थी. वहीं जीतनराम मांझी की पार्टी 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ मिलकर मैदान में उतरी थी. ऐसे में मुकेश सहनी की इस नई-नवेली पार्टी को महागठबंधन में तीन सीटें मिलना लोगों को हैरान कर रहा है.

ऐसे में सवाल उठना जायज है कि मुकेश सहनी को महागठबंधन में इतनी तव्वजो क्यों दी गई. इसका कारण बिहार में निषाद समुदाय का कई सीटों पर निर्णायक होना है. पहले इस समाज पर जयनारायण निषाद की पकड़ मजबूत थी लेकिन 2014 में खराब स्वास्थ्य और उम्र बढ़ने के साथ उनकी राजनीतिक सक्रियता कम होती गई जिससे समाज की राजनीतिक पकड़ में शून्यता आई. उसी दौर में मुकेश सहनी सुर्खियों में आए. उनके द्वारा निषादों को अन्य पिछड़ा वर्ग से निकालकर अनुसूचित जाति में डालने की मांग की गई जिससे उनकी लोकप्रियता समाज में बढी.

मुकेश सहनी की पार्टी बिहार की खगडिया, मुजफ्फरपुर और मधुबनी सीट से चुनाव मैदान में है. खगड़िया सीट से स्वयं मुकेश सहनी मैदान में है. खगड़िया सीट के निषाद और मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण मुकेश सहनी ने इस सीट को चुना. पहले उनकी मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने की चर्चा थी. लकिन बाद में पार्टी ने वहां से राज चौधरी को मैदान में उतारा.

मुकेश सहनी को नेता बनाने का श्रेय अगर किसी दिया जाए तो वो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह है. 2015 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह अपने हेलीकाॅप्टर से सहनी को कई सभाओं में खुद लेकर जाते थे और संयुक्त तौर पर सभाओं को संबोधित करते थे. उससे प्रदेश के निषादों में ये माहौल बना कि जो नेता बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इतना करीब है तो उसकी राजनीतिक पकड़ भी अच्छी होगी. प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह 2014 में चाय पर चर्चा कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था, उसी प्रकार मुकेश सहनी ने निषादों के मध्य माझ पर चर्चा का अभियान चलाया जिससे उनकी समाज के लोगों में पकड़ मजबूत हुई.

बिहार में 40 संसदीय सीटों पर राजद, कांग्रेस, हम, रालोसपा, वीआईपी गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. राजद के हिस्से 20 ,कांग्रेस के 9, जीतनराम मांझी की पार्टी के 3, उप्रेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा 5 और मुकेश सहनी की वीआईपी 3 सीटों से चुनाव लड़ रही है.

मुकेश सहनी की पार्टी जिन 3 सीटों पर चुनाव लड रही है, उनके नतीजें बिहार की राजनीति में उनका भविष्य तय करेंगे. जानकार मानते है कि तेजस्वी यादव ने विकासशील इंसान पार्टी को तीन सीट देकर जुआ खेला है. या तो ये उन्हें तैराएगा या ये डुबाएंगा. तेजस्वी ने वीआईपी को तीन सीटें यादव-मुस्लिम-निषाद गठजोड़ बनाने के लिए दी है. तेजस्वी जानते है कि अगर ये समीकरण धरातल पर काम कर गया तो महागठबंधन के लिए बिहार में संभावना बहुत मजबूत होगी.

 

Leave a Reply