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बागी विधायकों से मुलाकात के बाद बोले आर. रमेश, कहा-मेरा काम किसी को बचाना नहीं

सुप्रीम कोर्ट के ​आदेशों का पालन करते हुए कर्नाटक सरकार के 11 बागी विधायक विधानसभा स्पीकर आर. रमेश के मिलने पहुंचे. इसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए आर. रमेश ने कहा कि मेरा काम किसी को बचाना नहीं है. मैं जल्दबाजी में फैसला नहीं ले सकता था. मैं पिछले 40 साल से सार्वजनिक जीवन में हूं और सम्मान के साथ जीने की कोशिश करता हूं. उन्होंने कहा कि मैंने कुछ मीडिया रिपोर्टों को पढ़ा है, जिससे मैं आहत हुआ हूं. मैं इस देश के संविधान और राज्य की जनता प्रति बाध्य हूं.

इस्तीफे स्वीकार न करने की बात पर उन्होंने कहा कि विधायकों ने मुझसे बात नहीं की और राज्यपाल के पास पहुंच गए. वो मुझसे मिलने की बजाय मुंबई में जाकर बैठ गए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट चले गए और इस्तीफा स्वीकार न करने का आरोप लगा दिया. इस पर मैं क्या कर सकता हूं? क्या यह यह देश की कार्यप्रणाली का दुरुपयोग नहीं है.

आज कांग्रेस के बागी विधायक मुंबई से बेंगलुरु पहुंचे और सीधे विधानसभा स्पीकर से मिलने पहुंचे. सुरक्षाकर्मियों ने कड़ी सुरक्षा के बीच बागी विधायकों को स्पीकर के कार्यालय में पहुंचाया. विधायक बी. बसावराज, रमेश जारकिहोली, शिवराम हेब्बर, बीसी पाटिल, सोमशंकर, नारायण गौड़ा, गोपाल, विश्वनाथ, महेश कुमताहल्ली और प्रताप पाटिल समेत 11 बागी विधायकों ने स्पीकर के चैंबर में प्रवेश किया. अन्य 5 विधायकों की अभी कोई जानकारी नहीं मिली है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नाटक स्पीकर ने कहा कि 8 विधायकों के इस्तीफे अब सही हैं. उन्होंने बताया कि सभी विधायकों से मुलाकात की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई है. इसकी कॉपी कल कोर्ट में जमा करा दी जाएगी.

बता दें, कल सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होनी है. कोर्ट में 10 विधायकों ने इस्तीफा स्वीकार न करने की अर्जी दायर की थी. इस मामले में कल विधायकों के साथ स्पीकर की बात भी सुनी जाएगी. वहीं जेडीएस ने अपने तीन विधायकों के इस्तीफे के खारिज करने की अर्जी भी दाखिल की है. कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार के 16 विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं.

विधायक क्यों छोड़ रहे हैं कांग्रेस, प्रकाश जावड़ेकर की जुबानी जानिए सवाल का जवाब

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद ऐसा क्या हो गया है कि विधायक और सांसद समेत बड़े पदाधिकारी तक ‘हाथ’ का साथ छोड़ रहे हैं. शायद यह सवाल इस समय सभी के दिमाग में चल रहा है. खुद कांग्रेस नेताओं और आलाकमान के दिलोदिमाग पर भी यह सवाल छाप छोड़ रहा है लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है. खुद राहुल गांधी इन सवालों से बचते फिर रहे हैं.

हाल में कर्नाटक एवं गोवा के विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी का आसरा लिया है. इसके बाद तो इस तरह के सवाल और भी गहरे हो गए हैं. लेकिन इन सभी सवालों के प्रकाश जावड़ेकर ने दिए हैं. उन्होंने न सिर्फ जवाब दिए हैं बल्कि कांग्रेस को अच्छी खासी नसीयत भी दी है.

बीजेपी के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि कांग्रेस इस समय अपने राजनीतिक दिवालियापन पर है. उनसे पार्टी संभल नहीं रही है. उनके विधायकों को वहां भविष्य नजर नहीं आता इसलिये लोग पार्टी छोड़ रहे हैं. इसके उलट कांग्रेस बीजेपी को इसकी जिम्मेदार बता रही है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में मची भगदड़ के लिए स्वयं कांग्रेस जिम्मेदार है.

कांग्रेस पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि जिनकी पार्टी का पिछले 40 दिन से कोई अध्यक्ष नहीं है, उसके लिए भी बीजेपी जिम्मेदार होगी? कांग्रेस नेतृत्व का अपने नेताओं से कोई संवाद नहीं है, इसलिए उनकी पार्टी बिखर रही है. इसके लिए बीजेपी नहीं बल्कि उनकी खुद की पार्टी जिम्मेदार है.

जावड़ेकर ने कांग्रेस को नसीयत देते हुए कहा कि बीजेपी को कोसने से उनकी स्थिति नहीं सुधरेगी. पार्टी को आत्मावलोकन करने की जरूरत है. कांग्रेस को अपनी नकारात्मक सोच बदलनी चाहिए.

कर्नाटक-गोवा दलबदल पर मायावती का तंज, सख्त कानून बनाने की मांग

PoliTalks

कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे और गोवा में विधायकों के दलबदल पर बसपा प्रमुख मायावती ने बीजेपी को आडे हाथ लिया है. मायावती ने सोशल मीडिया पर बीजेपी पर जमकर निशाना बोला. साथ ही ऐसे दलबदलू विधायकों की सदस्यता भंग करने के सख्त कानून बनाने की अपील की है.

सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए मायावती ने पोस्ट किया है कि बीजेपी ईवीएम में गड़बड़ी व धनबल आदि से केन्द्र की सत्ता में दोबारा आ गई लेकिन सन 2018 व 2019 में देश में अबतक हुए सभी विधानसभा आमचुनाव में अपनी हार की खीज अब वह किसी भी प्रकार से गैर-बीजेपी सरकारों को गिराने के अभियान में लग गई है जिसकी बीएसपी कड़े शब्दों में निन्दा करती है.

अपने अगले ट्वीट में उन्होंने शेयर किया है, बीजेपी एक बार फिर कर्नाटक व गोवा आदि में जिस प्रकार से अपने धनबल व सत्ता का घोर दुरुपयोग करके विधायकों को तोड़ने आदि का काम कर रही है वह देश के लोकतंत्र को कलंकित करने वाला है. वैसे अब समय आ गया है जब दलबदल करने वालों की सदस्यता समाप्त हो जाने वाला सख्त कानून देश में बने.

बता दें, कर्नाटक में 16 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद वहां की मौजूदा कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई है. वहां सरकार गिरने तक की नौबत आ खड़ी हुई है और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. वहीं गोवा में एक साथ कांग्रेस के 10 विधायकों ने बीजेपी ज्वॉइन कर ली है. हालांकि कांग्रेस पहले से ही विपक्ष में विराजमान थी लेकिन अब वहां मौजूद सदस्यों की संख्या 15 से घटकर पांच पर आ गई है.

कर्नाटक के सियासी घमासान के शोर के बीच गोवा में हुआ बीजेपी का ‘साइलेंट ऑपरेशन लोटस’

लगता है लोकसभा चुनाव में करारी हार का काला साया कांग्रेस का जल्द पीछा नहीं छोड़ेगा. कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार पर सत्ता जाने का खतरा थमा भी नहीं था कि गोवा में पता नहीं कहां से ‘साइलेंट ऑपरेशन लोटस’ की आंधी आई और कांग्रेस के विधायकों को बहा ले गयी. यह इतना जल्दी और गुपचुप में हुआ कि किसी को कानोकान खबर तक नहीं हुई. दरअसल गोवा में कांग्रेस के 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं. चौकाने वाली बात यह है बीजेपी में शामिल होने वाले विधायकों की लिस्ट में गोवा कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष चंद्रकांत कावलेकर का नाम भी शामिल हैं.

‘हाथ’ का साथ छोड़ ‘कमल’ की शरण में जाने वाले सभी बागी विधायकों ने आज सीएम प्रमोद सावंत के साथ दिल्ली में बीजेपी के चाणक्य अमित शाह और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की. हालांकि इस बारे में किसी ने भी अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है. गोवा सीएम ने इतनाभर जरूर कहा है कि बीजेपी ने किसी कांग्रेस MLA को तोड़ने की कोशिश नहीं की और वे खुद आकर पार्टी में शामिल हुए हैं.

इससे पहले बीजेपी में शामिल होने से पहले कांग्रेस के उक्त सभी 10 विधायकों ने विधानसभा स्पीकर को अलग ग्रुप बनाने की चिट्ठी दी थी. इसके बाद सभी विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. चूंकि पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की संख्या 2 तिहाई से ज्यादा है. इस वजह से इन विधायकों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा.

गोवा में आए ‘साइलेंट ऑपरेशन लोटस’ की सफलता के पीछे सीएम प्रमोद सावंत की अहम भूमिका रही है जिन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद मार्च, 2019 में प्रदेश की सत्ता का भार सौंपा गया है. उनके सारथी का किरदार निभाया अतानासियो मोनसेराते ने, जो कांग्रेस के टिकट पर हाल ही में पणजी सीट से उपचुनाव जीत विधानसभा में पहुंचे हैं. मोनसेराते ने चंद्रकांत कावलेकर के साथ मिलकर बीजेपी के लिए ‘साइलेंट ऑपरेशन लोटस’ को अमली जामा पहना दिया. इसके बाद सत्ताधारी पार्टी ने बहुमत से कहीं ज्यादा विधायकों की संख्या जुटा ली. हालांकि सभी बागी विधायकों का नेतृत्व करते हुए कावलेकर ने सीएम प्रमोद सावंत और गोवा सरकार के अच्छे कार्यों का हवाला देते हुए बीजेपी में शामिल होने की बात कही है.

10 विधायक जाने के बाद अब कांग्रेस के पास गोवा विधानसभा में केवल 5 विधायक बचे हैं. ताज्जुब की बात यह है कि 2017 में हुए गोवा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 15 सीट जीत प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. कुल 40 सीटों में से 13 सीटों पर बीजेपी के विधायक जीतकर आए. कम सीटें होने के बाद भी बीजेपी ने अन्य विधायकों के साथ मिलकर गठबंधन में सरकार बनाई. बाद में 5 सीटों पर हुए उपचुनावों में से बीजेपी ने 4 सीटों पर कब्जा जमा लिया. अब 10 कांग्रेस बागियों के आने के बाद बीजेपी के पास 27 विधायक हो गए हैं. गोवा फॉरवर्ड पार्टी के तीन और 3 निर्दलीय विधायक पहले से ही बीजेपी को समर्थन दे रहे हैं.

खैर जो भी हो लेकिन बीजेपी ने गोवा में ‘साइलेंट ऑपरेशन लोटस’ चलाकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं. पहला तो ये कि उन्होंने गठबंधन सरकार से आगे बढ़ते हुए जादूई बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. यह संख्या बहुमत से कहीं ज्यादा है. दूसरा, विपक्ष में बैठी कांग्रेस को इतना कमजोर कर दिया है कि अब वह किसी भी मुद्दे पर आवाज तक नहीं उठा पाएगी.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कर्नाटक संकट, बागी विधायकों को स्पीकर के सामने हाजिर होने के निर्देश

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कर्नाटक में चल रहा सियासत का नाटक अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है. जिन 10 विधायकों ने इस्तीफा दिया है उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है कि स्पीकर उनका इस्तीफा मंजूर नहीं कर रहे हैं. शेष बचे 6 विधायकों की अर्जी लगाना बाकी है. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए सभी बागी विधायकों को आज शाम 6 बजे तक कर्नाटक विधानसभा स्पीकर के.आर रमेश कुमार के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए हैं.

इससे पहले स्पीकर आर रमेश ने पेश किए गए सभी इस्तीफों को स्वीकार करने से साफ तौर पर मना कर दिया था. उनका तर्क था कि किसी भी विधायक ने उनके समक्ष पेश होकर इस्तीफों की पेशकश नहीं की है. सभी ने विधानसभा ​सचिव को इस्तीफे सौंपे हैं जो न्याय संगत नहीं है. ऐसे में उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया का एक नियम है और वह उसके अनुसार ही काम करेंगे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब आज शाम तक सभी बागी विधायकों को स्पीकर के सामने पेश होना होगा और अपनी इस्तीफे सौंपने होंगे.

बता दें कि बुधवार शाम दो अन्य विधायकों के इस्तीफा देने के बाद कुल बागी विधायकों की संख्या 16 हो गई है. इसमें 13 कांग्रेस और तीन जेडीएस के हैं. इन विधायकों के इस्तीफे के बाद विधानसभा में कुमार स्वामी की गठबंधन सरकार के कुल विधायकों की संख्या 101 रह गई है जो अल्पमत में है. वहीं बीजेपी के कुल 105 विधायक हैं और विपक्ष दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन में सरकार बनाने के निमंत्रण की मांग कर रहा है.

कर्नाटक का नाटक जारी, कुमारस्वामी सरकार गिरेगी या बचेगी?

कर्नाटक का सियासी घमासान सनसनीखेज मोड़ पर पहुंच गया है. एचडी कुमार स्वामी की जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार चलेगी या गिर जाएगी, कहना मुश्किल है. सरकार गिरने के आसार ज्यादा दिख रहे हैं. सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायक बागी हो रहे हैं और बीजेपी उनको संरक्षण दे रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस अपने विधायकों को इस्तीफे से रोकने के भरसक प्रयास कर रही है. इस बीच कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफों का सिलसिला जारी है. बुधवार को दो और कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफे दे दिए. ये हैं चिक बल्लारपुर के विधायक के. सुधाकर और होस्कोटे के विधायक और राज्य के आवास मंत्री एमटीबी नागराज. इसके साथ ही इस्तीफा देने वाले विधायकों की संख्या 16 हो गई है. इन विधायकों के इस्तीफे के बाद विधानसभा में कुमार स्वामी की गठबंधन सरकार के कुल विधायकों की संख्या 101 रह गई है जो अल्पमत में है. वहीं बीजेपी के कुल 105 विधायक हैं और विपक्ष दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन में सरकार बनाने के निमंत्रण की मांग कर रहा है.

वहीं स्पीकर केआर रमेश के बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार नहीं करने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है. जिन 10 विधायकों ने इस्तीफा दिया है, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है कि स्पीकर उनका इस्तीफा मंजूर नहीं कर रहे हैं. शेष बचे 6 विधायकों की अर्जी लगाना बाकी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए सभी बागी विधायकों को आज शाम 6 बजे तक कर्नाटक विधानसभा स्पीकर के.आर रमेश कुमार के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए हैं. इससे पहले स्पीकर आर. रमेश ने पेश किए गए सभी इस्तीफों को स्वीकार करने से साफ तौर पर मना कर दिया था. उनका तर्क था कि किसी भी विधायक ने उनके समक्ष पेश होकर इस्तीफों की पेशकश नहीं की है. पूरी प्रक्रिया का एक नियम है और वह उसके अनुसार ही काम करेंगे.

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कर्नाटक का राजनीतिक संकट सचमुच बहुत गंभीर स्थिति में पहुंचने के संकेत बुधवार दोपहर मिले, जब इस्तीफा देने वाले विधायक सुधाकर को विधानसभा में जाने से रोका गया. जब सुधाकर के पिछले द्वार से प्रवेश कर रहे थे, तब उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुंडू राव, समाज कल्याण मंत्री प्रियंक खड़गे और पूर्व एमएलसी नजीर अहमद ने रोका. वे सुधाकर को जबरन उद्योग मंत्री केजे जॉर्ज के कक्ष में ले गए और उन पर इस्तीफा नहीं देने का दबाव डाला. जब बीजेपी नेताओं को इस घटनाक्रम की सूचना मिली तो वे केजे जॉर्ज के दफ्तर के बंद दरवाजे के सामने धरने पर बैठ गए. वे कांग्रेस नेताओं से मांग कर रहे थे कि सुधाकर को जाने दिया जाए.

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया के विधानसभा सौध पहुंचने पर तनाव और बढ़ गया. गलियारे में भारी भीड़ लग गई, जिसमें सभी पार्टियों के नेता शामिल थे. इस बीच पूर्व मंत्री बीजेपी नेता रेणुकाचार्य और शहरी विकास मंत्री यूटी खादर में जमकर कहासुनी हुई. दोनों इस सीमा तक झगड़ने लगे कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए वहां अतिरिक्त पुलिस बल तैनात करना पड़ा. करीब दो घंटे बाद सुधाकर कक्ष से बाहर निकले. मल्लिकार्जुन खड़गे और बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर आलोक कुमार उन्हें बीजेपी नेताओं की नारेबाजी के बीच बाहर ले गए.

कर्नाटक में बीजेपी आरोप लगा रही है कि कई विधायक इस्तीफा देना चाहते हैं और कांग्रेस कुछ विधायकों को जबरन रोके हुए है. एमएलसी रवि कुमार ने आरोप लगाया कि बुधवार शाम चिक्कोडी-सादलगा विधायक और कांग्रेस के सचेतक गणेश हुक्केरी भी विधानसभा अध्यक्ष से मिले थे. कांग्रेस ने उन्हें भी कहीं रोक रखा है. उधर दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में भी कर्नाटक का मामला गूंजा. सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस और JDS के 10 विधायकों ने कर्नाटक की कुमार स्वामी सरकार पर कुशासन और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. उन्होंने कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार पर भी इस्तीफा मंजूर करने में गैरजरूरी देरी करने का आरोप लगाया.

कर्नाटक की राजनीतिक हलचल का असर मुंबई में भी दिखा. कांग्रेस नेता डी शिवकुमार बुधवार सुबह एक होटल में ठहरे 10 बागी विधायकों से मिलने पहुंचे थे. वे कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को समझाना चाहते थे कि बगावत करने से कोई फायदा नहीं है. ये विधायक बेंगलुरु में कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे सौंपकर मुंबई पहुंच गए हैं. बताया जाता है कि इन विधायकों को बीजेपी से संरक्षण मिल रहा है. मुंबई के होटल रेनीसेंस में ठहरे इन विधायकों से मिलने के लिए शिवकुमार ने पुलिस का सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की थी. पुलिस ने उन्हें होटल के सामने सड़क पार खड़े रहने को कहा. इसके बाद शिवकुमार को मुंबई विश्वविद्यालय के कलीना परिसर में ले जाया गया. पूर्व मुंबई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा, संजय निरुपम और अन्य पार्टी कार्यकर्ता उनके साथ थे. शाम को डी शिवकुमार को एय़रपोर्ट पहुंचकर बेंगलुरु के लिए उड़ान पकड़नी पड़ी. उन्होंने कहा, कुछ अज्ञात ताकतों के कारण वह असंतुष्ट विधायकों से नहीं मिल सके.

मुंबई के इस घटनाक्रम के दौरान दिल्ली में लोकसभा में संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सदन को सूचित किया कि कर्नाटक के मंत्री डीके शिवकुमार को मुंबई के एक होटल में प्रवेश करने से रोक दिया गया, क्योंकि होटल में ठहरे कर्नाटक के विधायकों ने अपनी सुरक्षा खतरे में होने की शिकायत की थी. उन्होंने इस संबंध में एक पत्र भी सदन में लहराया, जो विधायकों ने मुंबई पुलिस कमिश्नर को लिखा था. कर्नाटक के ये विधायक सुरक्षा की चिंता में मुंबई के होटल में ठहरे हुए हैं. लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कर्नाटक में लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है. उन्होंने बीजेपी और केंद्र सरकार पर कर्नाटक में सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने चौधरी को इस मुद्दे पर आगे बोलने से रोक दिया.

राज्यसभा में भी कर्नाटक का मामला गूंजता रहा. लंच से पहले दो बार सदन की बैठक स्थगित करनी पड़ी. कांग्रेस सदस्यों ने राज्यसभा सभापति के आसन के सामने नारेबाजी करते हुए कर्नाटक के घटनाक्रम पर बहस कराने की मांग की. सभापति वेंकैया नायडू ने यह मांग नामंजूर कर दी. इसके बाद सदन की कार्यवाही चलाना मुश्किल हो गया. लंच के बाद सदन की बैठक फिर शुरू होने पर कांग्रेस सदस्यों का रवैया नहीं बदला. सदन में केंद्रीय बजट पर बहस होनी थी, लेकिन कांग्रेस सदस्यों की नारेबाजी जारी रही. पांच मिनट बाद कार्यवाही फिर स्थगित हो गई. इसके बाद दोपहर तीन बजे राज्यसभा की बैठक शुरू हुई. सदन के उप सभापति हरिवंश ने कांग्रेस के पी चिदंबरम से बजट पर बहस शुरू करने के लिए कहा, चिदंबरम ने इनकार कर दिया. इसके बाद हरिवंश ने सुरेश प्रभु का नाम पुकारा. हंगामे और टोकाटाकी के बीच सुरेश प्रभु का संबोधन 50 मिनट तक चला.

इस तरह कर्नाटक के नाटक का अभी तक पटाक्षेप नहीं हुआ है. विधायक इस्तीफा देने के बाद इधर से उधर हो रहे हैं. बीजेपी को सरकार गिरने का इंतजार है. कांग्रेस सरकार को बचाने के प्रयासों में लगी है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी समझ नहीं पा रहे हैं कि यह क्या हो रहा है.

अयोध्या केस में सुनवाई टली, मध्यस्थता नहीं बढ़ी आगे तो 25 जुलाई से रोजाना सुनवाई

अयोध्या राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मध्यस्थता के काम न करने पर की गई यह सुनवाई आज टल गई है. अगली सुनवाई 25 जुलाई को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल से 18 जुलाई को स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. पैनल को ये रिपोर्ट अगले गुरुवार तक सुप्रीम कोर्ट में जमा करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले मध्यस्थता पैनल अपनी रिपोर्ट पेश करे. अगर पैनल कहता है कि मध्यस्थता कारगर साबित नहीं होती है तो 25 जुलाई के बाद ओपन कोर्ट में रोजाना इसकी सुनवाई होगी.

हिंदू पक्ष की तरफ से वकील रंजीत कुमार ने कहा है कि 1950 से ये मामला चल रहा है लेकिन अभी तक सुलझ नहीं पाया है. मध्यस्थता कारगर नहीं रही है इसलिए अदालत को तुरंत फैसला सुना देना चाहिए. पक्षकार ने कहा कि जब ये मामला शुरू हुआ था तब वह जवान थे, लेकिन अब उम्र 80 के पार हो गई है. लेकिन मामले का हल नहीं निकल रहा है.

इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की बेंच कर रही है. अदालत ने कहा है कि अनुवाद में समय लग रहा था. इसी वजह से मध्यस्थता पैनल ने अधिक समय मांगा था. अब हमने पैनल से रिपोर्ट मांगी है.

बता दें, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की इजाजत दी थी. मध्यस्थों की कमेटी में जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर को शामिल किया गया था. इस कमेटी के चेयरमैन जस्टिस खलीफुल्ला हैं. मध्यस्थता कमेटी को 8 हफ्तों में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था. कोर्ट ने मामले में 15 अगस्त तक का समय मांग था.

कांग्रेस अध्यक्ष तय करने में जितनी देर होगी उतनी गुटबंदी बढ़ेगी और शुरू होगा बिखराव

2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद पार्टी का नेतृत्व कौन संभालेगा, अब तक तय नहीं हो पा रहा है. नेहरू-गांधी परिवार की चार पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ रहे कर्ण सिंह का इस बारे में कहना है कि पार्टी के नेतृत्व को लेकर जल्दी फैसला नहीं हुआ तो इससे पार्टी में भ्रम फैलेगा और कार्यकर्ताओं में निराशा बढ़ेगी. इससे कई कार्यकर्ता पार्टी छोड़ सकते हैं.

राहुल गांधी के बाद पार्टी को कौन संभालेगा, इस पर भारी असमंजस बना हुआ है. यह साफ नहीं है कि पार्टी में महत्वपूर्ण फैसले कौन करेगा. औपचारिक तौर पर कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण फैसले कांग्रेस कार्य समिति करती है. नई परिस्थितियों में CWC रबर स्टांप की तरह काम करेगी या इसमें शामिल नेता आपसी सलाह-मशविरे से फैसला करेंगे, यह तय नहीं है. राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पार्टी की निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे.

पार्टी में सभी लोग यह मानते हैं कि जो भी नया अध्यक्ष होगा, वह नेहरू-गांधी परिवार की पसंद का होगा. समझा जाता है कि इसी लिए नए अध्यक्ष की ताजपोशी में समय लग रहा है. कांग्रेस में इस समय पीढ़ियों का स्थानांतरण भी हो रहा है. अगर नई पीढ़ी के नेता कांग्रेस की निर्णय प्रक्रिया में शामिल हुए तो क्या पुराने नेता इसे स्वीकार कर पर पाएंगे?
एक मुद्दा यह भी है कि नया कांग्रेस अध्यक्ष उत्तर भारत से होगा या दक्षिण भारत से. कांग्रेस को दक्षिण भारत में अच्छी सफलता मिली है. इसके मद्देनजर कांग्रेस का नया अध्यक्ष दक्षिण भारत से हो सकता है. लेकिन इसके साथ ही पार्टी को उत्तरी और पूर्वी भारत में भी मजबूत बनाने की जरूरत होगी. यह कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. इस लिए मध्य भारत से भी नया कांग्रेस अध्यक्ष चुना जा सकता है. जो भी हो, लेकिन कांग्रेस को इस समय नेतृत्व पर तत्काल फैसला करने की जरूरत है. इसमें देर करने से पार्टी में गुटबंदी बढ़ेगी और बिखराव शुरू हो सकता है.
इसका संकेत जनार्दन द्विवेदी ने दे दिया है. जनार्दन द्विवेदी वरिष्ठ नेता हैं और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पूर्व महासचिव रह चुके हैं. उन्होंने नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए चल रही अनौपचारिक विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर सवाल उठा दिए हैं. उन्होंने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया है. उनका कहना है कि राहुल गांधी इसके लिए कुछ नेताओं को मनोनीत कर देते तो ठीक होता. जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थी और इलाज के लिए विदेश गई थी, तब उन्होंने पार्टी के चार वरिष्ठ नेताओं को रोजमर्रा का काम देखने के लिए नियुक्त किया था. राहुल गांधी भी इस्तीफा देने के बाद ऐसा कर सकते थे.
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से पहले वरिष्ठ नेताओं की एक समन्वय समिति का गठन किया था. उस समिति में शामिल वरिष्ठ नेता ही विचार-विमर्श की प्रक्रिया में लगे हुए हैं. लेकिन पार्टी संविधान के मुताबिक इन नेताओं को ऐसा करने का अधिकार नहीं है. समिति के सदस्य वरिष्ठ नेता एके एंटनी इस विचार-विमर्श में भाग नहीं ले रहे हैं. जनार्दन द्विवेदी का सवाल है कि फिर इस समिति की वैधता क्या है? उन्होंने मंगलवार को एक पत्र भी जारी किया, जो उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा था.

15 सितंबर, 2014 को लिखे गए इस पत्र के मुताबिक उस समय द्विवेदी कांग्रेस महासचिव पद छोड़ना चाहते थे. उन्होंने सोनिया गांधी से नई पीढ़ी के नेताओं के साथ मिलकर पार्टी का पुनर्गठन करने और बुजुर्ग नेताओं को कम मेहनत वाली जिम्मेदारियां सौंपने का अनुरोध किया था. उस समय सोनिया गांधी ने पत्र को सार्वजनिक नहीं करने के लिए कहा था. अब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं, इसलिए उन्होंने वह पुराना पत्र सार्वजनिक करने का फैसला किया है.

जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि जब किसी समाज या संगठन में व्यक्तिगत विचार प्रकट करने की आजादी नहीं होती, तब उस संगठन में लोकतंत्र मृतप्राय हो जाता है. उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस कार्यसमिति ऐसा नेता का चुनाव करेगी, जो पार्टी कार्यकर्ताओं को स्वीकार्य हो. अगर नेता पार्टी को ही स्वीकार नहीं होगा तो देश उसे कैसे स्वीकार करेगा. गौरतलब है जनार्दन द्विवेदी पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी की निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा नहीं रहे हैं.

सनसनीखेज मोड़ पर कर्नाटक का सियासी घमासान

कर्नाटक में सियासी घमासान के बीच स्पीकर की दो टूक- अभी किसी का इस्तीफा स्वीकार नहीं करूंगा

कर्नाटक में सियासी घमासान जारी है. कांग्रेस के 2 और विधायकों के इस्तीफे के बाद अब तक कर्नाटक में कुल 16 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है. इस बीच कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर के.आर रमेश कुमार ने कहा कि वे अभी किसी का इस्तीफा स्वीकार नहीं करने वाले हैं और वे जो भी करेंगे, वो पूरी कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक ही करेंगे.

कर्नाटक में राजनीतिक घमासान चरम पर पहुंच गया है. बुधवार को कांग्रेस के दो और विधायकों के सुधाकर और एमटीबी नागराज ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ ही कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार से इस्तीफा देने वाले विधायकों की संख्या 16 पहुंच गई है. इनमें से 13 कांग्रेस के और 3 जनता दल सेकुलर के विधायक हैं. इस तरह अब सरकार के समर्थन में मौजूद विधायकों की संख्या 101 रह गई है. उधर बीजेपी का दावा है कि उसके पास कुल 107 विधायकों का समर्थन है.

इस सियासी घमासान के बीच कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर के.आर रमेश कुमार का कहना है कि उन्होंने किसी भी विधायक का इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं किया है. केआर रमेश कुमार ने कहा, “मैंने कोई इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है, मैं इसे रातों-रात नहीं कर सकता हूं, मैंने उन सभी विधायकों को 17 तारीख़ तक का समय दिया है, मैं पूरी तरह से कानूनी प्रक्रियाओं का अध्ययन करूंगा, तब फैसला लूंगा.”

कर्नाटक के स्पीकर केआर रमेश कुमार के अनुसार इस मामले में कानून अपना काम करेगा, और किसी के लिए भी कानून को बदला नहीं जा सकता है. इसी के चलते बुधवार को विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ. कांग्रेस विधायक के. सुधाकर ने जैसे ही इस्तीफा दिया, उन्हें कांग्रेस के नेताओं और विधायकों ने घेर लिया और अपने चैंबर में ले गए. रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने करीब-करीब धक्का दे दिया और कांग्रेस विधायकों के बीच में ले गए. यहां पर के. सुधाकर को समझाने की कोशिश की गई लेकिन वो नहीं माने हैं.

इसके बाद इस्तीफा देने वाले दोनों विधायक के. सुधाकर और एमटीबी नागराज कर्नाटक के राज्यपाल से मिलने राजभवन पहुंचे. इधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने आरोप लगाया कि बीजेपी कांग्रेस और जेडीएस विधायकों खरीदने की पूरी कोशिश कर रही है.

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