Politalks.News/Uttrakhand. उत्तराखंड की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर अटकलों का दौर पूरे ‘शिखर‘ पर है. इसी को लेकर राज्य भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं के साथ विपक्ष कांग्रेस की भी दिल्ली की ओर निगाहें लगी हुई है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बाद अब उत्तराखंड की तीरथ सरकार को लेकर पार्टी हाईकमान जबरदस्त ‘उधेड़बुन‘ में है. तीन दिनों से राजधानी देहरादून से लेकर दिल्ली तक ‘कयासों का बाजार गर्म है. वहीं मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ‘मौन‘ हो गए हैं. दो दिन पहले यानी बुधवार को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह को दिल्ली के नेतृत्व में अचानक तलब किया था. उसके बाद उसी दिन देर रात तीरथ की गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हो पाई थी. जिसके बाद पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री को दिल्ली में रुकने के लिए कहा गया था.
अभी-अभी आई जानकारी के अनुसार आलाकमान ने तीरथ सिंह रावत को हटाने के मन बना लिया है और अब तीरथ को वापस देहरादून लौटने के लिए बोल दिया गया है, जिसके बाद मुख्यमंत्री रावत देहरादून के लिए रवाना हो गए हैं. रावत की बॉडी लैंग्वेज से भी साफ झलक रहा है कि आलाकमान ने उनसे दो टूक क्या कहा होगा. सूत्रों की मानें तो कल विधायक दल की बैठक में नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर दी जाएगी. इस बार मुख्यमंत्री पहले से किसी विधायक को ही बनाया जाएगा, और सम्भवतः सतपाल महाराज को इस बार उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
सियासी अटकलों के बीच अब चर्चा इस बात की हो रही है कि आखिरकार दिल्ली में कौन सी ‘हलचल‘ चल रही है. मुख्यमंत्री तीन दिन से दिल्ली में है, ऐसे में सवाल ये कि आखिरकार भाजपा हाईकमान क्या कोई बड़ा फैसला लेने जा रही है. आज सीएम के दिल्ली से वापस देहरादून पहुंचने की भी बात सामने आ रही है. लेकिन अभी भी तीरथ राजधानी देहरादून नहीं लौटे हैं. वह आज सुबह से ही दिल्ली में अपने सांसद आवास ‘कावेरी अपार्टमेंट‘ पर रुके हुए हैं. सुबह से ही मुख्यमंत्री तीरथ दिल्ली स्थित अपने आवास में ‘चुपचाप‘ नजर आए, न उन्होंने किसी से मुलाकात की और नहीं बाहर निकले. इस बीच दोपहर करीब एक बजे एक बार फिर तीरथ ने जेपी नड्डा से मिलने पहुंचे. इसके बाद फिर कयासों का दौर शुरू हो गया है ‘देहरादून में तो यहां तक चर्चा है कि भाजपा हाईकमान ने उत्तराखंड की कमान देने के लिए एक नया चेहरा भी तलाश लिया है’.
उत्तराखंड की सियासत में अटकलों का बाजार और तेज हो गया जब केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड तीरथ सरकार के दो मंत्रियों को अचानक दिल्ली बुला लिया. जमीनी स्तर पर मिल रहे फीडबैक के आधार पर नेता दिल्ली तलब किए गए हैं. यहां हम आपको बता दें कि कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को आज दिल्ली बुलाया गया. इससे पहले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को भी चिंतन बैठक के तुरंत बाद दिल्ली तलब किया गया था. आज सीएम तीरथ सिंह रावत की देहरादून वापसी थी, लेकिन अभी तक वह नहीं पहुंच सके हैं. संभव है तीरथ के देहरादून लौटने पर पार्टी कोई ‘बड़ा एलान’ कर सकती हैैैै.
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को लेकर हो चुका है फैसला
एक बात तो तय है कि भाजपा हाईकमान अगले साल उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव तीरथ सिंह के नेतृत्व में लड़ने के ‘मूड‘ में नहीं है. इसके साथ ही उत्तराखंड के दिग्गज भाजपाई भी इस पक्ष में नहीं हैं. चर्चा यह भी है कि किसी भी समय पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कोई बड़ा फैसला ले सकता है. यह बड़ा फैसला क्या है, इस पर कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा. यदि उपचुनाव की स्थिति नहीं बनी तो सरकार में फिर से नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है.
बता दें कि दिल्ली में इस बार तीरथ सिंह रावत राज्य की सत्ता पर काबिज रहेंगे या हटाए जाएंगे, पार्टी आलाकमान ने रणनीति बना ली गई है, बस घोषणा करना बाकी रह गया है. रावत ने इसी साल 10 मार्च को मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी. ऐसे में उन्हें 10 सितंबर से पहले विधायक बनना होगा. क्योंकि इसकी छह महीने की अवधि समाप्त हो रही है और यह भाजपा नेतृत्व को ‘परेशान‘ किए हुए है. दूसरी ओर कई दिनों से चर्चा चली आ रही है कि विधायक के निधन के बाद राज्य की खाली हुई ‘गंगोत्री‘ सीट से उपचुनाव तीरथ सिंह रावत लड़ सकते हैं. लेकिन इस सीट से तीरथ उप चुनाव लड़ने के लिए अपने आप को ‘तैयार‘ नहीं कर पा रहे हैं. यदि उपचुनाव होता है तो मुख्यमंत्री गंगोत्री सीट से शायद ही चुनाव लड़ें, क्योंकि ‘देवस्थानम बोर्ड‘ को लेकर वहां तीर्थ पुरोहित ‘नाराज‘ चल रहे हैं.
दूसरी ओर ‘चुनाव आयोग के नए नियम भी तीरथ के लिए मुश्किल बढ़ा रहे हैं’. अंतिम समय में चुनाव से बचने के लिए भाजपा नया मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकती है. ऐसे में पार्टी के सामने अन्य विकल्पों को देखते हुए कई उम्मीदवारों ने हाईकमान के सामने खुद को राष्ट्रीय राजधानी में ‘तैनात‘ कर लिया है. यह अटकलें भी लगाई गईं कि यदि उपचुनाव की स्थिति नहीं बनी तो सरकार में फिर से ‘नेतृत्व परिवर्तन‘ हो सकता है.