भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) का आज जन्मदिवस है. आज वे 54 वर्ष के हो गए हैं और भाजपा की ओर से अगले प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के लिए तैयार हो रहे हैं. इस समय शाह को चुनावी बिसात का बेताज बादशाह समझा जाता है. उन्हें जमीनी स्तर पर काम करते हुए लहर का रुख बदलना बखूबी आता है. यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने जिस समय देश की बागड़ोर संभाली, उसी समय अमित शाह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर पार्टी की कमान सौंप दी. यहां से अमित शाह पार्टी को आसमान की उन बुलंदियों पर ले गए, जहां तक जाने का किसी ने सोचा तक न था.
सोलहवीं लोकसभा चुनाव यानि 2014 के लोकसभा चुनाव के करीब 10 माह पूर्व 12 जून, 2013 को अमित शाह को भाजपा का उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया. तब वहां समाजवादी पार्टी का एकछत्र राज कायम था. उस समय वहां भाजपा की मात्र 10 लोकसभा सीटें थी. 16 मई, 2014 को आया लोकसभा का परिणाम और वो हुआ जिसकी उम्मीद खुद नरेंद्र मोदी तक को भी नहीं थी. भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल की. ये यूपी में भाजपा की अब तक की सबसे बड़ी जीत थी. करिश्माई जीत के शिल्पकार रहे अमित शाह का कद पार्टी के भीतर इतना बढ़ा कि उन्हें बीजेपी की कप्तानी सौंप दी गई. उनका काम यही खत्म नहीं हुआ बल्कि यहां से तो शुरू हुआ. मोदी-शाह की जोड़ी की गहन रणनीति का ही असर है कि कुछ एक चुनिंदा राज्यों में भाजपा की सरकार को वे 19 राज्यों में बीजेपी या गठबंधन सरकार तक पर ले आए.
अमित शाह (Amit Shah) का जन्म 22 अक्टूबर, 1964 को महाराष्ट्र के मुंबई में एक गुजराती हिंदू वैष्णव बनिया व्यापारी के घर हुआ था. उनका पूरा नाम ‘अमितभाई अनिलचन्द्र शाह’ है. उनका गांव पाटण जिले के चंदूर में है. मेहसाणा में शुरुआती पढ़ाई के बाद बॉयोकेमिस्ट्री की पढ़ाई के लिए वे अहमदाबाद आए जहां से उन्होंने बीएससी की. उसके बाद अपने पिता का बिजनेस संभालने में जुट गए. राजनीति में आने से पहले वे मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक बिजनेस संभालते थे. बहुत कम उम्र में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े. 1982 में अपने कॉलेज के दिनों में शाह की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से हुई. 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह छात्र जीवन में उनका राजनीतिक रुझान बना.
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अमित 1987 में भाजपा में शामिल हुए. 1987 में उन्हें भारतीय नेता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया. शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला. दूसरा मौका उन्हें 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया. इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह (Amit Shah) ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की.
1989 से 2014 के बीच शाह गुजरात राज्य विधानसभा और विभिन्न स्थानीय निकायों के लिए 42 छोटे-बड़े चुनाव लड़े, लेकिन वे हर चुनाव में अपराजित रहे. उन्होंने 1997 में गुजरात विधानसभा का उपचुनाव सरखेज सीट से लड़ा और जीता. उसके बाद उन्होंने 1998, 2002 और 2007 में लगातार इसी सीट का प्रतिनिधित्व किया और इस सीट को परम्परागत तौर पर भाजपा की झोली में डाला. 2012 में उन्होंने नरनपुरा सीट से चुनाव लड़ा और जीता. मोदी सरकार में वे प्रदेश के गृहमंत्री और बाद में पार्टी महासचिव भी रह चुके हैं. उन्होंने सम्प्रति सीट से राज्यसभा में भी बीजेपी का नेतृत्व किया है.
शाह सुर्खियों में तब आए जब 2004 में अहमदाबाद के बाहरी इलाके में कथित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां, ज़ीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश की हत्या हुई थी. राजनीतिक पंडित इसे उनकी यात्रा का अंतिम पड़ाव मान रहे थे लेकिन अमित शाह ने विरोधी लहरों के बीच से पार्टी में ज़बरदस्त वापसी की. गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि 2002 में गोधरा बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे. इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने अदालत में एक आवेदन देकर मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाने की अपील की थी. हालांकि 15 मई, 2014 को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने शाह के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण इस याचिका को ख़ारिज कर दिया.
एक समय ऐसा भी आया जब सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ के मामले में उन्हें 25 जुलाई, 2010 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा. शाह पर आरोपों का सबसे बड़ा हमला खुद उनके बेहद खास रहे गुजरात पुलिस के निलंबित अधिकारी डीजी बंजारा ने किया.
गुजरात की राजनीति करते हुए पिछली सरकार में गृहमंत्री रह चुके राजनाथ सिंह ने भी अमित शाह की इस खूबी को देख और समझ लिया था. इसके बाद उन्होंने अमित शाह को दिल्ली भेज दिया गया और वो गुजरात की राजनीति छोड़ अब संगठन को मजबूत करने में जुट गए. 17वीं लोकसभा चुनाव में उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी की सीट गांधी नगर से प्रत्याशी बनाया गया और यहां भी उन्होंने जीत दर्ज की. इस बार मोदी ने उन्हें गृह विभाग सौंपा और राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय का प्रमुख बनाया. अमित शाह ने मंत्रालय संभालते ही कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को हटा फेंकने में सफलता हासिल की.
अमित शाह (Amit Shah) ने अपने जीवन में हर तरह का अच्छा-बुरा वक़्त देखा है. एबीवीपी कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने वाले शाह आज उस मुक़ाम तक पहुंच गए हैं, जहां वो पार्टी के प्रदर्शन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं. कहा ये भी जाता है कि सरसंघचालक बालासाहब देवड़ा ने जब मोदी से पहली बार भाजपा में शामिल होने को कहा था. तब शाह ही वो पहले व्यक्ति थे, जिससे मोदी ने अपने मन की बात साझा की. शाह ने भी मोदी को राजनीति की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया. आज के समय में शाह ही भाजपा के लिए एक तरह से सबकुछ हैं. कर्नाटक और गोवा में ऑपरेशन लोटस खिलाने में अमित शाह का भरपूर योगदान रहा.
हाल में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा और शिवसेना की आपसी नोकझोंक को सुलझाने में भी शाह का अहम किरदार रह़ा. उम्मीद यही है कि मोदी 2.0 सरकार में मोदी-शाह की ये जोड़ी कुछ हैरतअंगेज कारनामों को अंजाम तक पहुंचाने में सफल साबित होगी.