रायशुमारी में उलझा मसला! एक ओर गहलोत की ‘जादूगरी’, दूसरी तरफ पायलट का जनता में जादुई ‘क्रैज’

रायशुमारी के बाद अब गेंद आलाकमान के पाले में, 5 अगस्त से पहले हो सकती है 'फैसलों की झड़ी', लेकिन आलाकमान के सामने हैं कई मुश्किलें, रायशुमारी ने उलझा दिया सीधा-सा गणित, सरकार रिपीट भी करनी है, सीएम गहलोत भी चाहिए तो सचिन पायलट भी, कैसे जुड़ेगा ये कुनबा?

गहलोत की 'जादूगरी' V/S पायलट का जादुई 'क्रैज'
गहलोत की 'जादूगरी' V/S पायलट का जादुई 'क्रैज'

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में मानसून जमकर बरस रहा है. इधर रायशुमारी के बाद राजनीति में तूफान से पहले की सी शांति है. गहलोत सरकार के मंत्रियों को अपने सपने बहने का तो पायलट कैंप के लोगों को राहत की बौछार की उम्मीद है. तीन दिन ‘रायशुमारी‘ कर दिल्ली गए प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने अपनी रिपोर्ट देर रात आलाकमान को सौंप दी है. आलाकमान ने अजय माकन को डेडलाइन दी थी. तो आनन फानन में या ये कहें कि पहले से तय हो चुका प्लान अजय माकन ने आलाकमान को सौंपा है. राजस्थान में होने वाले मंत्रिमंडल पुनर्गठन, राजनीतिक नियुक्तियों और जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में पायलट कैंप को काफी उम्मीद हैं.

रायशुमारी से जुड़ी अपनी ‘रिपोर्ट’ या कहें राजस्थान की राजनीतिक भविष्य का लेखा जोखा प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने कांग्रेस आलाकमान को सौंप दिया है. अब गेंद आलाकमान के पाले में है. लेकिन राजस्थान से जुड़ी बड़ी खबर ये है कि 5 अगस्त से पहले दिल्ली से बड़े चौंकाने वाली घोषणाएं हो सकती हैं.

पॉलिटॉक्स के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सोनिया गांधी 5 अगस्त को अमेरिका जा रहीं हैं और 21 अगस्त को वापस दिल्ली लौटने का कार्यक्रम है. वहीं प्रियंका गांधी भी निजी कारणों से दो दिन पहले विदेश जा चुकीं. और राजस्थान का मसला आलाकमान की प्राथमिकताओं में है. माना जा रहा है कि विदेश दौरे से पहले मंत्रिमंडल पुनर्गठन को लेकर घोषणा हो सकती है. और साथ ही जिलाध्यक्षों की लिस्ट भी जारी हो सकती है.

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लेकिन यह सब जितना आसान दिख रहा है उतना आसान है नहीं, क्योंकि आलाकमान के आदेश पर हुई रायशुमारी ही इसका सबसे बड़ा कारण है. कांग्रेस के विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों ने मसला और उलझा दिया है. विधायकों की रायशुमारी में जो बात निकल कर आई है वो आलाकमान को फैसला लेने में परेशान करने वाली हो सकती है. विधायकों ने सरकार के कामों की तो तारिफ की है. लेकिन कुछ मंत्रियों को विधायकों की नाराजगी का सामना करना पड़ा है. साथ ही आने वाला चुनाव कैसे जीता जाए इस पर विधायकों की राय उलझा देने वाली है. अधिकांश विधायकों ने ये कहा है कि अगला चुनाव जीतने के लिए सीएम गहलोत के साथ सचिन पायलट जरूरी है, ना तो अकेले सीएम गहलोत के नाम पर चुनाव जीता जा सकता है, नाही सीएम गहलोत के बिना पार पाना आसान होगा. वहीं कुछ विधायकों ने ये कहा है कि सचिन पायलट ही अगले चुनाव में जीतने के लिए अति आवश्यक है. यही राय करीब करीब कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की रायशुमारी में सामने आई है.

सूत्रों का कहना है कि आलाकमान के सामने दोहरी मुसीबत ये है कि वो ज्योतिरादित्य और जितिन प्रसाद वाला एपिसोड राजस्थान में रिपीट करना नहीं चाहती हैं. आलाकमान नहीं चाहेगा किसी भी कीमत पर सचिन पायलट को खोना और विधायकों का सपोर्ट रखने वाले सीएम गहलोत को नाराज तो बिल्कुल नहीं करना चाहेगा. अब आलाकमान को फैसला लेने में ये दोनों ही लोगों का ध्यान रखना होगा. ऐसे में कुछ सीएम अशोक गहलोत के ‘पर’ काटे जाएंगे, तो कुछ हद के बाद सचिन पायलट को भी समझौता करना पड़ सकता है. क्योंकि अंतत: ये तो खुद माकन भी मीडिया के सामने कह चुके हैं कि सीएम गहलोत के कामकाज की सभी ने तारीफ की है.

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समर्थक विधायकों की गणित में सीएम गहलोत सचिन पायलट पर भारी पड़ते हैं. फिर चाहे वो कांग्रेस के हों, निर्दलीय या बसपा से कांग्रेसी बने विधायक. विधायकों का ध्यान रखने में सीएम गहलोत का कोई सानी नहीं है. बीजेपी के दिग्गजों ने खुद बयान दिया है कि सीएम गहलोत के राज में इनके विधायक खुद को मुख्यमंत्री मानते हैं. लेकिन यहां एक बात ध्यान में रखने की है कि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का राजस्थान की जनता में (खासकर युवाओं में) जबरदस्त क्रैज है. अब आलाकमान के सामने एक तरफ सीएम गहलोत की सियासी जादूगरी है, तो दूसरी तरफ सचिन पायलट का जबरदस्त जादुई क्रैज, इन दोनों मुश्किलों के बीच सामने आ रहे विधानसभा चुनाव, क्योंकि कुछ भी गड़बड़ होती है तो कांग्रेस के हाथ से राजस्थान फिसलना तय है.

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